भारत में चाय का उत्पादन ब्रिटिश शासन काल से होता आ रहा है. भारत दुनिया की लगभग 27 प्रतिशत चाय का उत्पादन करता है. चाय के उत्पादन में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश बना हुआ है. जबकि 11 प्रतिशत उपभोग के साथ बड़ा उपभोगकर्ता भी बना हुआ है. चाय का इस्तेमाल पेय पदार्थ के रूप में किया जाता है. इसका सीमित इस्तेमाल शरीर के लिए लाभदायक होता है.
Table of Contents
पानी के बाद पूरे विश्व में चाय को सबसे ज्यादा पीया जाता है. भारत में चाय पीने वाले लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है. चाय के अंदर कैफ़ीन की मात्रा सबसे ज्यादा पाई जाती है. चाय को इसके पौधों की पत्तियों और कलियों के माध्यम से तैयार किया जाता है. इसका रंग मुख्य रूप से काला दिखाई देता है.
भारत में चाय का उत्पादन व्यापक रूप में सबसे पहले असम से शुरू किया गया था. जिसके बाद अब चाय का उत्पादन उत्तर पूर्व से लेकर दक्षिण भारत तक पहुँच चुका है. चाय की खेती के लिए गर्म मौसम की आवश्यकता होती है. इसके पौधे सर्दी के मौसम में विकास करना बंद कर देते हैं. इसकी खेती के लिए अम्लीय भूमि सबसे उपयुक्त मानी जाती है.
अगर आप भी चाय की खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
चाय की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली भूमि की जरूरत होती है. जल भराव वाली भूमि में इसकी खेती नही की जा सकती. क्योंकि जल भराव होने पर इसके पौधे बहुत जल्द खराब हो जाते हैं. भारत में इसको पहाड़ी राज्यों में ही उगाया जाता है. इसकी खेती के लिए हल्की अम्लीय भूमि का होना जरूरी है. इसके लिए भूमि का पी.एच. मान 5.4 से 6 के बीच होना चाहिए.
जलवायु और तापमान
चाय का पौधा उष्णकटिबंधीय जलवायु का पौधा है. चाय की खेती के लिए गर्म मौसम के साथ साथ बारिश का होना जरूरी होता है. जिस जगह हमेशा बारिश का मौसम बना रहता है, वहां इसकी खेती आसानी से की जा सकती है. इसके पौधे शुष्क और आद्र मौसम में अच्छे से विकास करते हैं. इसकी खेती के लिए छायादार जगह सबसे उपयुक्त होती है. क्योंकि छायादार जगह में इसके पौधे आसानी से विकास करते हैं. अचानक होने वाला मौसम परिवर्तन इसकी खेती के लिए नुकसानदायक होता है.
चाय के पौधे को शुरुआत में विकसित होने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. उसके बाद इसके पौधे 20 से 30 डिग्री तापमान के बीच अच्छे से विकास करते हैं. इसके पौधे अधिकतम 35 और न्यूनतम 15 डिग्री तापमान को सहन कर सकते हैं. लेकिन इससे कम या ज्यादा तापमान होने पर इसके पौधे विकास करना बंद कर देते हैं.
उन्नत किस्में
चाय की कई किस्में हैं जिन्हें भारत में कई जगहों पर उगाया जाता है. चाय के पौधों को बीज और कलम के माध्यम से तैयार कर उगाया जाता है.
चीनी जात
चाय की इस किस्म के पौधे झाड़ीदार दिखाई देते हैं. जिसकी पत्तियां चिकनी और सीधी दिखाई देती है. इस किस्म के पौधों पर बीज काफी जल्दी बनते हैं. इस किस्म के पौधों में एक ख़ास चीनी टैग की सुगंध आती है. अगर इस किस्म के बीज और पत्तियों का चुनाव सावधानीपूर्वक किया जाए तो अच्छी गुणवत्ता वाली चाय का उत्पादन अधिक मात्रा में किया जा सकता हैं.
असमी जात
असमी जात को दुनियाभर में सबसे अच्छा माना जाता है. इस किस्म के पौधों पर बनने वाली पत्तियां हल्के हरे रंग की होती है. इसकी पत्तियां कोमल और चमकदार होती है. जो किनारों पर से दातेदार दिखाई देती है. इस किस्म के पौधों का इस्तेमाल पुन: रोपण में किया जाता है.
कांगड़ा चाय
कांगड़ा चाय का उत्पादन हिमाचल प्रदेश में किया जाता है. इस किस्म के पौधों की पत्तियों की तुड़ाई अप्रैल से अक्टूबर माह तक की जाती है. इसकी पत्तियों का इस्तेमाल ग्रीन टी पाउडर बनाने में किये जाता है.
व्हाइट पिओनी
चाय की इस किस्म का उत्पादन सबसे ज्यादा चीन में किया जाता है. इस किस्म की चाय को पौधे की कोमल पत्तियों और बड्स के माध्यम से तैयार किया जाता है. इस किस्म की चाय में हल्का कड़कपन देखने को मिलता और पानी में इसका रंग हल्का होता है.
सिल्वर निडल व्हाइट
चाय की इस किस्म को ताज़ी कलियों के माध्यम से तैयार किया जाता है. इसकी कलियाँ चारों तरफ से सफ़ेद रोयें से ढकी होती है. इस किस्म की चाय को पानी में डालने पर बहुत ही हल्का रंग देखने को मिलता है. इसका स्वाद मीठा और ताजगी देने वाला होता है.
चाय के प्रकार
चाय मुख्य रूप से हरी, सफ़ेद और काली होती है. जिन्हें पौधों की पत्तियों, शाखाओं और कोमल भागों की प्रोसेसिंग कर तैयार किया जाता है.
काली या आम चाय
काली चाय आम रूप से हर घरों में उपयोग में ली जाती है. काली चाय दानेदार रूप में होती जिससे कई तरह की चाय बनाई जा सकती है. लेकिन आम तौर पर इससे साधारण चाय हर रोज़ बनाई जाती है. इस तरह की चाय को बनाने के लिए पत्तियों को तोड़कर कर्ल किया जाता है. जिससे उनका आकार दानेदार दिखाई देता है.
सफ़ेद चाय
सफेद चाय को ताज़ा और कोमल पत्तियों के माध्यम से तैयार किया जाता है. इस तरह की चाय का स्वाद मीठा होता है. सफ़ेद चाय में कैफ़ीन की मात्रा कम और एंटी-ऑक्सिडेंट की मात्रा अधिक पाई जाती है.
हरी चाय
हरी चाय को पौधे की कच्ची पत्तियों से तैयार किया जाता है. हरी चाय इसकी ताज़ा पत्तियों के माध्यम से भी बनाई जा सकती है. इसमें भी एंटी-ऑक्सिडेंट की मात्रा अधिक पाई जाती है. हरी चाय के माध्यम से कई तरह की चाय तैयार की जाती है.
खेत की तैयारी
चाय के पौधे एक बार लगाने के बाद कई साल तक उत्पादन दे सकते हैं. भारत में इसकी खेती ज्यादातर पर्वतीय भागों में की जाती है. जहां इसे ढाल वाली भूमि में उगाया जाता है. ढाल वाली भूमि में इसके पौधों की रोपाई के लिए गड्डे तैयार किये जाते हैं. इन गड्डों को पंक्तियों में ढाई से तीन फिट की दूरी पर तैयार किया जाता है. पंक्तियों में गड्डों को तैयार करते वक्त प्रत्येक पंक्तियों के बीच एक से डेढ़ मीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए. गड्डों के तैयार होने के बाद उनमें उचित मात्रा में जैविक और रासायनिक खाद को मिट्टी में मिलाकर भर देते हैं. इन गड्डों को पौध लगाने के एक महीने पहले भरकर तैयार किया जाता है.
पौध तैयार करना
चाय के पौधे बीज और कलम दोनों के माध्यम से तैयार किये जाते हैं. बीज के माध्यम से खेती के लिए पहले इसके बीजों से नर्सरी में पौध तैयार की जाती है. इसके लिए इसके बीजों को उपचारित कर नर्सरी में उचित मात्रा में जैविक और रासायनिक खाद डालकर तैयार की गई क्यारियों में 5 से 7 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए पंक्तियों में लगा देते हैं. उसके बाद जब पौधा लगभग एक फिट के आसपास की लम्बाई का हो जाता है तब उसे खेतों में लगा देते हैं.
कलम के माध्यम से पौध तैयार करने के लिए इसके पौधों की कटिंग का इस्तेमाल करते हैं. इसकी कटिंग की लम्बाई 15 सेंटीमीटर के आसपास होनी चाहिए. जिसे गर्म पानी में डालकर उबाल लें और फिर उसे सुखाकर पॉलीथीन में मिट्टी डालकर उसमें लगा दें. या फिर इसकी कटिंग को रूटीन हार्मोन में डुबोकर नमी युक्त जमीन में गाड़ दें. और उसे उचित तापमान पर कवर कर दें. कलम लगाने के कुछ दिन बाद कलम अंकुरित हो जाती है.
पौध रोपाई का तरीका और टाइम
चाय की पौध तैयार होने के बाद उसे उर्वरक डालकर तैयार किये गए गड्डों में लगाया जाता है. पौध को गड्डों में लगाने से पहले तैयार किये गए गड्डों में खुरपी की सहायता से एक और छोटा गड्डा तैयार कर ले. इस तैयार किए गए छोटे गड्डे में पौधे की पॉलीथिन को हटाकर लगाया जाता हैं. पौध के गड्डों में लगाने के बाद पौधे को चारों तरफ से अच्छे से मिट्टी से दबा दे.
चाय के पौधों को खेत में बारिश के मौसम में बाद लगाया जाता है. इस दौरान इसके पौधों को लगाने का सबसे उपयुक्त टाइम अक्टूबर और नवम्बर माह होता है. इस दौरान पौधे लगाने पर इनका विकास अच्छे से होता है. और पौधा जल्द ही तुड़ाई के लिए तैयार हो जाता है.
पौधों की सिंचाई
चाय की खेती ज्यादातर उन्ही जगहों पर अधिक होती है जहां बारिश पर्याप्त मात्रा में होती है. इसके पौधे को छायादार जगह और पानी की ज्यादा जरूरत होती है. इसके पौधे की अधिकांश सिंचाई बारिश के माध्यम से होती है. लेकिन बारिश कम होने पर इसके पौधों की सिंचाई फव्वारा विधि से करनी चाहिए. इसके पौधों की सिंचाई अधिक तापमान होने पर अगर बारिश ना हो तो रोज़ हल्के रूप में करनी चाहिए. जबकि सामान्य तापमान पर मौसम के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए.
उर्वरक की मात्रा
चाय के पौधों को उर्वरक की जरूरत अधिक होती है. इसके लिए गड्डों को तैयार करते वक्त उनमें 15 किलो के आसपास पुरानी गोबर की खाद और रासायनिक उर्वरक के रूप में नाइट्रोजन 90 से 120 किलो, सिंगल सुपर फास्फेट 90 किलो और पोटाश 90 किलो की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पौधों में देना चाहिए. उर्वरक की ये मात्रा साल में तीन बार पौधों की कटिंग के बाद देनी चाहिए. इसके अलावा खेत में सल्फर की कमी होने पर खेत मे जिप्सम का छिडकाव शुरुआत में ही कर देना चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
चाय की खेती में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से नीलाई गुड़ाई के माध्यम से किया जाता है. इसके लिए इसके पौधों की रोपाई के लगभग 20 से 25 दिन बाद पहली गुड़ाई कर दें. इसके पौधों को शुरुआती साल में खरपतवार नियंत्रण की जरूरत ज्यादा होती है. लेकिन जब इसका पौधा पूर्ण रूप धारण कर लेता है, तब इसके पौधे की साल में तीन से चार गुड़ाई काफी होती है.
पौधों की देखभाल
चाय के पौधों को देखभाल की ज्यादा जरूरत शुरुआत में होती है. शुरुआत में इसके पौधों को उचित आकार देने के लिए उनकी उचित टाइम पर कटिंग की जानी जरूरी होती है. अगर शुरुआत में इनकी कटिंग नही की जाए तो इसका पौधा दस फिट की लम्बाई तक बढ़ सकता है.
इसलिए इसके पौधे की कटिंग कर एक से सवा मीटर की ऊंचाई तक रखा जाता है. इसकी कटिंग करने से पौधे में और अधिक शाखाएं निकलती हैं. जिससे पौधे का आकार झाड़ीनुमा बन जाता है. पौधे का आकार झाड़ीनुमा दिखाई देने पर उससे उत्पादन अधिक प्राप्त होता है. इसलिए इसके पौधे की हर साल एक बार कटिंग कर देनी चाहिए.
पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
चाय के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जिनकी उचित टाइम रहते देखभाल करने पर पौधों की पैदावार में होने वाली कमी को कम किया जा सकता है. चाय के पौधों में मुख्य रूप से लाल किट्ट और शैवाल, फफोला अंगमारी, काला विगलन कीट रोग सबसे ज्यादा देखने को मिलते हैं. इनके अलावा भूरी अंगमारी, गुलाबी रोग, शीर्षरम्भी क्षय, काला मूल विगलन, अंखुवा चित्ती, चारकोल विगलन, मूल विगलन और भूरा मूल विगलन रोग भी देखने को मिलते हैं. इन रोगों की रोकथाम के लिए पौधों पर कई तरह के जैविक और रासायनिक कीटनाशकों का छिडकाव कर नियंत्रित किया जा सकता है.
पत्तियों की तुड़ाई
चाय के पौधे खेत में रोपाई के लगभग एक साल बाद ही तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसकी पत्तियों की तुड़ाई साल में तीन बार की जाती है. पहली बार इसकी पत्तियों की तुड़ाई मार्च माह के बाद की जाती है. इसके पौधे पहली तुड़ाई के लगभग तीन महीने बाद फिर से तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस तरह इसके पौधों की साल में तीन तुड़ाई की जाती है. जबकि सर्दियों के मौसम में अधिक तेज़ सर्दी होने की वजह से इसके पौधे विकास करना बंद कर देते हैं. जिससे अक्टूबर-नवम्बर में उनकी तीसरी तुड़ाई के बाद इसके पौधे अप्रैल माह में फिर से तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं.
पैदावार और लाभ
चाय की विभिन्न किस्मों के पौधों का प्रति हेक्टेयर एक बार में औसतन उत्पादन 600 से 800 किलो तक पाया जाता है. जिसका बाज़ार भाव भी किसान भाइयों को काफी अच्छा मिल जाता है. जिससे किसान भाई हर साल चाय की एक हेक्टेयर भूमि से डेढ़ से दो लाख तक की कमाई आसानी से कर लेते हैं. इसकी फसल में एक बार पौध लगाने के बाद पौधों की देखरेख में सामान्य खर्च आता है. लेकिन पैदावार हर बार बढ़ने से कमाई में भी इज़ाफा देखने को मिलता है.
Nice
जानकारी अच्छी लगी
Chai ke kheti ke bare me adhi adhuri jankari di gayi hain. Par sadharan jankari thik hain
Thish information is a great