लहसुन की खेती करना सबसे आसान होता हैं. लहसुन की खेती में काफी कम मेहनत लगती है. साथ ही इसकी खेती में खर्च भी बहुत कम आता है. लहसुन की खेती चार से पांच महीने में तैयार हो जाती हैं. और बाज़ार में इसकी कीमत भी काफी ज्यादा होती है. जिस कारण किसान भाइयों को इसकी खेती से अच्छा मुनाफ़ा हो जाता है.
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लहसुन की खेती के लिए सामान्य ठण्ड वाली जगह सबसे उपयुक्त होती है. इस कारण मध्य भारत में इसकी खेती सबसे ज्यादा की जाती है. लहसुन को ज्यादा दिनों तक भंडारण करके रखा जा सकता है. जिससे किसान इसको अपने हिसाब से भी बेच सकते हैं. और उन्हें अपनी फसल के उचित दाम मिल जाते हैं.
लहसुन का दैनिक जीवन में बहुत ज्यादा उपयोग है. लहसुन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल मसाले के रूप में किया जाता है. इसके अलावा इसका उपयोग लोग लहसुन का पाउडर, लहसुन का पेस्ट और आचार डालने में भी करते हैं. जबकि ग्रामीण लोग लहसुन का इस्तेमाल चटनी बनाने में करते हैं.
लहसुन का खाने के अलावा दवाइयों में भी इस्तेमाल होता हैं. दरअसल लहसुन के अन्दर एक वाष्पशील तेल पाया जाता है. इस वाष्पशील तेल का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने के लिए किया जाता है. लहसुन के इस्तेमाल से शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा नियंत्रित रहती हैं और पाचन सम्बंधित रोगों से छुटकारा मिलता हैं. इसके अलावा इसका इस्तेमाल सर्दियों में जुकाम लगने पर भी किया जाता है.
अगर आप इसकी खेती करना चाहते हैं तो आज हम इसके बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
लहसुन की खेती मुख्य रूप से रेतीली दोमट मिट्टी में की जाती है. रेतीली दोमट मिट्टी के अलावा लहसुन की खेती काली और चिकनी दोमट मिट्टी में भी की जा सकती हैं. इसके लिए मिट्टी में जैविक पदार्थों की मात्रा सबसे ज्यादा होनी चाहिए. और मिट्टी की पी. एच. का मान भी 6 से 7 के बीच होना चाहिए. लहसुन की खेती के लिए मिट्टी में पानी का भराव नही होना चाहिए.
लहसुन की खेती के लिए जलवायु और तापमान
लहसुन की खेती के लिए ज्यादा गर्मी और ज्यादा ठंड दोनों की ही जरूरत नही होती. लेकिन सामान्य ठंड वाला टाइम इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है. लहसुन की खेती लगभग सितम्बर के महीने में की जाती है. जबकि सितम्बर और अक्टूबर का महीना इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि इस दौरान मौसम एक समान बना रहता है. जिसके बाद मौसम में हलकी हलकी ठंड बननी शुरू हो जाती है. इस दौरान लहसुन का कंद बहुत अच्छे से बनता है.
लहसुन की खेती के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. जबकि शुरूआती दिनों में लगभग 30 डिग्री तापमान दिन के समय रहना चाहिए. जिससे कंद मजबूत बनता है. लहसुन की खेती के लिए छोटे दिनों का टाइम सबसे उपयुक्त होता है. इस दौरान फसल को उचित पोषण मिलता है.
लहसुन की उन्नत किस्में
लहसुन की कई तरह की किस्में प्रचलित हैं. लेकिन कुछ किस्में हैं जो व्यापारिक रूप से काफी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं. आज हम आपको इन्ही किस्मों के बारें में बताने वाले हैं.
यमुना सफेद 1
इस किस्म को जी 1 के नाम से भी जाना जाता है. इसकी फसल पांच महीनों में तैयार हो जाती है. यह मध्यम आकार वाली फसल हैं. इसकी हर गांठ में 20 से ज्यादा कलियाँ पाई जाती है. जो बाहर से बिलकुल सफ़ेद दिखाई देती हैं. जबकि इसको छिलने पर निकलने वाली कली क्रीम कलर की होती है. एक एकड़ में इसकी पैदावार 40 से 45 क्विंटल तक हो जाती है.
जी 50
इस किस्म को मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा बोया जाता है. इसकी फसल को तैयार होने में 160 दिन से भी ज्यादा का टाइम लगता है. इस किस्म को बैंगनी धब्बा और झुलसा रोग नही लगता है. इसका कंद ठोस होता है. जबकि इसकी कलियों का रंग बाहर से सफ़ेद और अंदर से क्रीम जैसा होता है. एक एकड़ में इसकी पैदावार लगभग 40 क्विंटल हो जाती है.
टाइप 56-4
इस किस्म का निर्माण पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा किया गया है. इसकी किस्म की हर गांठ में 20 से 25 कलियाँ पाई जाती है. इसकी कलियाँ सफ़ेद और छोटी होती हैं. यह पांच महीने में पककर तैयार हो जाती हैं. लहसुन की इस किस्म से किसान भाइयों को एक हेक्टेयर से 200 क्विंटल तक पैदावार मिल जाती है.
जी 323
लहसुन की इस किस्म की पैदावार सबसे ज्यादा होती है. इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 200 से 250 क्विंटल तक होती है. इस किस्म का कंद अन्य किस्मों के कंद से ज्यादा मजबूत होते हैं. इसके एक कंद में 20 के आसपास कलियाँ पाई जाती हैं. इनका बाहर से रंग सफ़ेद और अंदर से क्रीम कलर होता है. इसे यमुना सफ़ेद 4 के नाम से भी जाना जाता है.
एग्रीफाउंड पर्वती
इस किस्म की पैदावार ज्यादातर पर्वतीय भागों में की जाती है. इस किस्म के कंद भी बड़े आकार के होते हैं. जिनके अंदर 16 से 20 कलियाँ पाई जाती हैं. इन कलियों का आकार भी काफी बड़ा होता हैं. इनको तैयार होने में 120 दिन का टाइम लगता है. इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 200 क्विंटल तक होती है.
सोलन
लहसुन की इस किस्म का निर्माण हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा किया गया था. इस किस्म की गांठों का आकर बड़ा और सफ़ेद होता है. इन गाठों में सिर्फ चार पुतियाँ ही होती हैं. लहसुन की ये किस्म अन्य किस्मों से ज्यादा पैदावार देने के लिए जानी जाती है. यह किस्म पांच महीनों में पककर तैयार हो जाती है.
एग्रीफाउंड व्हाईट
लहसुन की इस किस्म को भारत में गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में सबसे ज्यादा बोया जाता है. इस किस्म की फसल को पककर तैयार होने में 150 से 160 दिन का टाइम लगता है. इस किस्म के कंद ठोस होते हैं. इनका बाहरी रंग चाँदी की तरह सफ़ेद होता है. जबकि अंदर से इनका रंग क्रीम कलर का होता हैं. इसके एक कंद में 20 से 25 कलियाँ पाई जाती हैं. जिनका आकार काफी बड़ा होता है. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर उपज 130 से 140 क्विंटल तक होती है.
इनके अलावा और भी कई किस्में पाई जाती हैं. जिन्हें मौसम और जगह के अनुसार अलग अलग जगहों पर उगाया जाता है. जिनमें जी -282, आई . सी . 49381, 1 सिलेक्शन, आई . सी . 42891 और को. 2 किस्में शामिल हैं.
खेत की जुताई
लहसुन की खेती के लिए खेत की जुताई अहम होती है. क्योंकि लहसुन की खेती में फसल जमीन के अन्दर बनती है. इसकी जुताई के लिए पहले से की हुई फसल के सभी बचे हुए भाग को साफ़ कर उसे नष्ट कर दें. जिसके बाद खेत की तिरछी जुताई करें. जुताई के बाद हर बार खेत में पाटा लगाये. जिससे जुताई के दौरान बने सभी ढेलें फुट जाएँ.
खेत की तिरछी जुताई बाद खेत में पुरानी गोबर की खाद डालें. और एक बार फिर से खेत की जुताई करें. जुताई के बाद खेत में पानी दे (पलेव करें). पानी देने के बाद खेत की फिर से अच्छे से जुताई करें. खेत की जुताई के दौरान ध्यान रखे की खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाए और उसमें ढेलें दिखाई ना दें. जिसके बाद खेत को पाटा (गोडी) लगाकर समतल बना दें.
लहसुन की बुवाई का तरीका और टाइम
लहसुन की खेत में बुवाई तीन तरीकों से की जाती है. हालाँकि वर्तमान में सिर्फ दो ही तरीके ज्यादा प्रचलन में हैं. लहसुन की एक हेक्टेयर में बुवाई के लिए 4 से 5 क्विंटल बीज का इस्तेमाल होता है.
समतल क्यारियों में बुवाई
इस तरीके में खेत को समतल बनाने के बाद उसमें छोटी छोटी क्यारियाँ बना देते हैं. जिसके बाद उन क्यारियों में 5 से 7 सेंटीमीटर की दूरी पर एक लाइन से बीज बो देते हैं. लेकिन बीज बोते टाइम ध्यान रखे की प्रत्येक लाइनों के बीच में 10 सेंटीमीटर से ज्यादा दूरी रखे.
मेड़ों पर बुवाई
इस तरीके से बीज़ बोने के लिए पहले समतल बने खेत में मेड बनाते है. जिसके लिए 30 सेंटीमीटर की दूरी वाले बड़े हलों का इस्तेमाल करते हैं. जिसके बाद बीज़ को मेड के दोनों और सात सेंटीमीटर की दूरी पर लगा देते हैं. इस तरीके से बीज लगाने से पैदावार ज्यादा प्राप्त होती हैं. क्योंकि कंद का आकर इससे बढ़ जाता है.
पौध लगाकर
इस तरीके का इस्तेमाल कम हो लोग करते हैं. या फिर ये कहें कि इसका इस्तेमाल करना लगभग लोगों ने छोड़ दिया है. इस तरीके में पहले लहसुन की पौध को तैयार किया जाता है. फिर 40 से 50 दिन बाद उन छोटे पौधों को उखाड़कर उन्हें खेतों में लगाया जाता है. खेत में इन पौधों को 15 सेंटीमीटर की दूरी पर 10 सेंटीमीटर के अंतराल में लगाया जाता है.
लहसुन की बुवाई करते टाइम उसे केरोसिन से उपचारित कर लें ताकि उसे शुरुआती दीमक जैसे रोग ना लग पायें. इसके अलावा कार्बेंडाजिम से उपचारित कर भी उसे खेतों में लगा सकते हैं. ऐसा करने से कलियों को कवक एवं जीवाणु जनित रोगों से छुटकारा मिल जाता है. जिससे फसल खराब होने का खतरा कम हो जाता है.
मैदानी भागों में लहसुन की खेती के लिए बुवाई का सबसे उपयुक्त टाइम सितम्बर और अक्टूबर माह को माना जाता है. लेकिन सितम्बर माह में बोना सबसे सही होता है. जबकि पर्वतीय भागों में इसकी बुवाई मार्च या अप्रैल में करनी चाहिए. क्योंकि इस दौरान पर्वतीय भागों में सर्दी कम होती और तापमान सामान्य बना होता है.
सिचाई का तरीका
लहसुन की पहली सिचाई बुवाई के साथ ही कर देनी चाहिए. जिसके बाद 3 से 4 दिन के अंतराल में सिचाई करते रहना चाहिए. जब पौध पूरी तरह से विकसित हो जाए तब उसे पानी की कमी ना रहने दे. खेत में नमी बनी रहे इसके लिए आवश्यकता के अनुसार ही पानी दें. ज्यादा पानी ना दें इससे पौधे में रोग लग सकता है. लेकिन जब कंद की खुदाई करनी हो तो उसके 10 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें.
खरपतवार नियंत्रण
लहसुन की खेती में खरपतवार का नियंत्रण सबसे जरूरी होता है. खरपतवार नियंत्रण कर और अच्छी नीलाई गुड़ाई कर इसकी पैदावार बढ़ाई जा सकती हैं. इसके लिए बीज़ बोने से पहले खेत की जुताई करते टाइम ही खेत को खरपतवार नाशक दवाइयों से उपचारित कर देना चाहिए. जिससे शुरुआत में पौधों को पूरी तरह से विकसित होने में दिक्कत नही होती है और उसे खेत से पूरा पोषण मिलता रहता है.
जब पौधा पूरी तरह से बनना शुरू हो जाए तब खेत में उगने वाली खरपतवार को निकाल दें. और बीज बोने के एक महीने बाद खेत की गुड़ाई कर दें. कंद के पूरी तरह से तैयार होने तक उसकी चार से पांच गुड़ाई कर दें.
लहसुन के लिए गुड़ाई करना काफी अहम होता है. क्योंकि लहसुन का पौधा ज्यादा गहराई में नही जाता हैं. इस कारण इसको पोषक तत्व जमीन के ऊपरी भाग से ही लेने होते हैं. ऐसे में खरपतवार ज्यादा हो जाने पर उन्हें ऊपरी भाग से पोषण पूरी तरह से नही मिल पाता है.
उर्वरक की मात्रा
लहसुन की खेती के लिए जमीन तैयार करते टाइम उसमें 10 से 12 गाड़ी प्रति एकड़ के हिसाब से गोबर की खाद डाल दें. जिसके बाद उसमें 20 किलो पौटाश, 20 से 25 किलो नाइट्रोजन और 20 किलो फास्फोरस मिलकर आखिरी जुताई के टाइम खेत में डाल दें. जिसके बाद लगभग 20 किलो नाइट्रोजन फसल की बुवाई के 40 दिन बाद खेत में डाल दें. जिससे पैदावार में बढ़त मिलती है.
लहसुन की खेती में लगने वाले रोग
लहसुन से फसल जड़ के रूप में मिलती है. लेकिन इसको रोग जमीन के बाहर और भीतर दोनों जगह ही लगते हैं. जमीन के बाहर कीटों के कारण रोग लगते हैं.
थ्रिप्स
लहसुन के पौधों को ये रोग कीटों के माध्यम से बाहरी भाग में लगता है. इस तरह के किट पत्तियों का रस चूस लेते हैं. जिससे पत्तियां के ऊपरी भाग भूरे दिखाई देने लगते है. उसके बाद धिरे धीरे वो सुखकर नष्ट हो जाते हैं. पौधों पर लगने वाले ये किट छोटे और पीले होते हैं. इनकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 5 मिली. को 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कना चाहिए.
शीर्ष छेदक कीट
यह किट फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाता है. इस तरह के किट का लार्वा पत्तियों को खाते हुए जमीन के अंदर कंद तक पहुँच जाता है. जिसके बाद वो कंद को गलाकर नष्ट कर देता है. इसकी रोकथाम के लिया फोरेट का खेत में छिडकाव करें या थायेमेथाक्झाम और सेंडोविट को उचित मात्रा में मिलाकर खेत में छिडकाव करें.
बेंगानी धब्बा
लहसुन की खेती में ये रोग सबसे ज्यादा लगता है. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पत्तियों पर अंदर की तरफ धब्बे बनने लगते हैं. जिसके बाद धीरे धीरे पतियाँ नष्ट होकर गिरने लगती हैं, और जल्द ही पौधा ख़तम हो जाता है. इसकी रोकथाम के लिए मैंकोजेब और कार्बेंडाजिम की उचित मात्रा से बीज को बोने से पहले ही उपचारित कर लें. या फिर रोग लगने पर इसका छिडकाव फसल पर करें.
झुलसा रोग
इस रोग के लगने की संभावना काफी कम ही होती है. इस रोग के लगने से पत्तियों के शीर्ष भाग पर नारंगी रंग के धब्बे बनने शुरू हो जाते हैं. इसकी रोकथाम के लिए कापर आक्सीक्लोराइड का छिडकाव करें.
लहसुन की खुदाई
लहसुन की फसल 5 महीने बाद पककर तैयार हो जाती है. इस दौरान खेत में ज्यादा नमी नही रहनी चाहिए. क्योंकि इससे फसल फिर से अंकुरित होने लगती है. लहसुन की फसल तैयार होने पर पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगता है. और पत्तियां सुखना शुरू हो जाती है. पौधों में जब ये लक्षण दिखाई दें उस दौरान फसल को पानी देना बंद कर देना चाहिए. जिसके 15 दिन बाद जब खेत की नमी ख़तम हो जाए तो उसकी खुदाई करनी चाहिए.
लहसुन की खुदाई के बाद लहसुन की गांठो को 2 दिन के लिए खेत में ही सूखने दे. उसके बाद उसे छाया में सूखने के लिए डाल देना चाहिए. लहसुन के भण्डारण के लिए लहसुन की 25 से 30 गांठों को पत्तियों सहित बांधकर छायादार जगह में रख देना चाहिए. जहाँ इसका भंडारण करें वहां नमी ना हो और हवा अच्छे से लगे.
पैदावार और लाभ
लहसुन की खेती कई प्रदेशों में की जा रही है. इसकी खेती से किसानों अच्छी आमदनी हो जाती है. क्योंकि इसका बाज़ार भाव 100 रूपये किलो के आसपास होता है. लेकिन कभी कभी तो इसका भाव 150 से भी ज्यादा पहुँच जाता है.
लहसुन की एक हेक्टेयर में पैदावार 200 क्विंटल तक पहुँच जाती है. हांलाकि पैदावार किस्मों के आधार पर होती है. जिसके हिसाब से किसान भाइयों की एक बार में 10 लाख तक कमाई हो जाती है.
Very good information thanks