सफेद मूसली की खेती काफी मेहनत वाली पैदावार हैं. लेकिन इसकी पैदावार कर किसान भाई अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं. इसकी फसल मुख्य रूप से गर्म और समशीतोषण जलवायु वाले प्रदेशों में की जाती है. इस फसल को खेतों में बारिश के टाइम उगाया जाता है. गर्म जलवायु वाले प्रदेशों में इसकी खेती उन स्थानों पर की जा सकती जहाँ बारिश की मात्रा 60 से 110 सेंटीमीटर हो.
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आज इसकी कमाई को देखते हुए इसे बड़े पैमाने पर खेतों में उगाया जा रहा है. सफ़ेद मूसली की खेती कुदरती तौर पर जंगलों में भी होती है. जहाँ बरसात के मौसम में ये उगती है. सफेद मूसली की खेती 6 से 8 महीने की होती हैं. सफेद मूसली के पौधे की ऊचाई 40 से 50 सेंटीमीटर होती है. जबकि जमीन में पाई जाने वाली इसकी जड़ों की लम्बाई 10 सेंटीमीटर तक होती हैं.
सफेद मूसली के फल जमीन के अंदर पाए जाते हैं. जबकि इसके फूलों से बीज बनाकर उन्हें भी बेचा जा सकता है. जिससे अच्छी कमाई हो जाती है. हालाँकि फूल के पकाने से फसल पर प्रभाव पड़ता है. सफ़ेद मूसली का सबसे ज्यादा उपयोग आयुर्वेदिक और यूनानी दवाइयों में किया जाता है.
सफेद मूसली का इस्तेमाल शक्तिवर्धक के रूप में किया जाता हैं. इसके इस्तेमाल से खांसी, अस्थमा, चर्मरोग, बवासीर, पीलिया और नपुंसकता जैसे रोग दूर हो जाते हैं. सफ़ेद मूसली का बाज़ार में अलग अलग भाव पाया जाता है. सबसे अच्छी दिखाई देने वाली मूसली का भाव 800 रूपये प्रति किलो तक हो सकता है.
अगर आप भी इसकी खेती करना चाहते हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
सफेद मूसली की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
सफेद मूसली की खेती के लिए मुख्य रूप से हलकी रेतीली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती हैं. इसके अलावा इसे लाल और काली चिकनी मिट्टी में भी आसानी से उगाया जा सकता है. लेकिन इस दौरान ध्यान रखना होता है कि जमीन का पी. एच. मान 7.5 से ज्यादा ना हो. क्योकि 7 से ज्यादा पी.एच. वाली जमीन में क्षारीय गुण ज्यादा पाया जाता है और वहाँ पर इसकी खेती नही की जा सकती. जिसका असर इसकी पैदावार और गुणवत्ता दोनों पर पड़ता है.
सफेद मूसली की खेती में उचित जल निकाशी का होना जरूरी है. क्योंकि अगर पानी का भराव ज्यादा दिनों तक रहता है तो इससे फसल को रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है. सफ़ेद मूसली की खेती अधिक उपजाऊ भूमि में करना अच्छा होता है. इससे मूसली की पैदावार ज्यादा होती है. जबकि पथरीली जमीन में इसकी खेती करने पर जमीन के अंदर मूसली की वृद्धि कम होती है.
जलवायु और तापमान
सफेद मूसली की खेती गर्मी या आर्द्र प्रदेशों में बड़ी मात्रा में की जाती है. भारत में इसकी खेती राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के ऊपर क्षेत्रों में आसानी से की जा रही है.
इसकी खेती के लिए किसी विशेष तापमान की जरूरत नही पड़ती. क्योंकि इसकी खेती बारिश के टाइम में की जाती है. इस दौरान तापमान सामान्य बना रहता है.
उन्नत किस्में
बाज़ार में आज सफेद मूसली की बहुत ज्यादा प्रजातियां मौजूद हैं. लेकिन इन्हें मुख्य रूप से तो चार प्रजातियों में बाँटा गया है. जिनमें क्लोरोफाइटम टयूवरोजम, क्लोरोफाइटम एटेनुएटम, क्लोरोफाइटम बोरिमिलियनम और क्लोरोफाइटम वोरिविलिएनम मुख्य प्रजाति हैं. इसके अलावा और भी कई प्रजातियाँ है. जिनमें क्लोरोफाइटम अरुन्डीशियम, क्लोरोफाइटम लक्ष्म और क्लोरोफाइटम लेक्सम जैसी कई प्रजातियाँ शामिल हैं.
जबकि भारत में क्लोरोफाइटम टयूवरोजम और क्लोरोफाइटम वोरिविलिएनम प्रजाति की किस्में ही ज्यादा बोई जाती हैं. इन किस्मों में एम सी बी – 405, एम सी बी – 412, एम सी टी – 405, एम.डी.बी. 13 और 14 भारत में सबसे ज्यादा उगाई जाती है.
एम.डी.बी. 13 और 14
सफेद मूसली की इस किस्म को सबसे बेहतर माना जाता है. इनका छिलका उतारना सबसे आसान होता है. इस किस्म की जड़ों की मोटाई एक समान पाई जाती है. जिससे फसल का दाम अच्छा मिलता है. इसके एक गुच्छे में 50 ट्यूबर्स तक पाए जाते हैं. इस किस्म की पैदावार एक एकड़ से 4 से 5 क्विंटल तक होती है.
एम सी बी – 405, एम सी बी – 412
इस किस्म की मूसली की जड़ों की मोटाई अन्य किस्मों की अपेक्षा ज्यादा होती है. इनका छिलका भी आसानी से उतर जाता है. जिससे इस पर खर्चा कम आता है. इसकी एक एकड़ से सुखी हुई मूसली की पैदावार 8 क्विंटल से ज्यादा होती है.
खेत की जुताई
सफेद मूसली की खेती के लिए शुरुआत में खेत की तीन जुताई कर दें. जिसके बाद खेत को कुछ दिनों के खुला छोड़ दें. जिससे सूर्य की तपन मिट्टी के अंदर तक आसानी से चली जाए. जिसके कुछ दिन बाद उसमें पुरानी गोबर की खाद डाल दें. और उसमें पानी दे. जिसके बाद खेत की फिर से अच्छे से जुताई करे और मिट्टी की सुख जाने दें.
बीज की बुवाई का तरीका और समय
सफेद मूसली की रुपाई जून और जुलाई महीने में कर देनी चाहिए. जिससे पौधे को बारिश के टाइम में बढ़ने में आसानी होती है. और पौधा जल्दी वृद्धि करता है. इसकी रुपाई के लिए 4 से 5 क्विंटल बीज प्रति एकड़ में लगता है. बीज की रुपाई से पहले उसे गोमूत्र से उपचारित कर लें. इसके लिए पानी और गोमूत्र को 10:1 के अनुपात में लें. जिसमें बीज को रुपाई से पहले 2 घंटे तक डालकर रख दे. उसके बाद बीज को खेत में लगाएं.
इसकी रुपाई एक लाइन में करनी चाहिए. इसके लिए दो लाइनों के बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए. जबकि एक लाइन में लगाई जाने वाली मुसलियों के बीच की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए. मूसली की रुपाई के दौरान ध्यान रखे कि रुपाई के लिए उपयोग में लिए जाने वाले सभी गुच्छों के अंदर 2 या 3 फिंगर का होना जरूरी है. मूसली की रुपाई करने के तुरंत बाद उसे मिट्टी से ढक दें.
उर्वरक की मात्रा
सफेद मूसली की खेती के लिए ज्यादा उर्वरक की आवश्यकता नही होती है. क्योंकि रसायानिक उर्वरक के इस्तेमाल से फसल की गुणवत्ता पर असर देखने को मिलता है. जिस कारण फसल बाज़ार में कम कीमत पर बिकती है. इसलिए इसकी खेती में मुख्य रूप से गोबर की खाद या वर्मी कपोस्ट खाद का ही इस्तेमाल करते हैं. इसके इस्तेमाल से खेतों में फंगस के रोग का भी असर कम देखने को मिलता है.
सफेद मूसली की सिंचाई
फसल की पहली सिंचाई खेत में लगाने के साथ ही कर देनी चाहिए. जिसके बाद अगर बारिश ना हो तो आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए. इसके लिए सप्ताह में एक बार सिंचाई कर देनी चाहिए. और अगर बारिश हो जाए तो सिंचाई नही करनी चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
सफेद मूसली की खेती में खरपतवार को निकालते टाइम ध्यान रखे कि मूसली की जड़ों को किसी भी तरह का नुक्सान नही पहुँचना चाहिए. इस कारण इसकी गुड़ाई लगभग 15 से 20 दिन बाद करनी चाहिए. और हो सके तो पहली गुड़ाई करते टाइम हाथ से ही खरपतवार निकाल दें. जिसके 20 दिन बाद एक बार और हलकी गुड़ाई कर दें.
फसल को लगने वाले रोग
सफेद मूसली को ज्यादातर कोई रोग नही लगता है. लेकिन अगर मूसली के बीज की खेत में रुपाई करते टाइम उसको उपचारित नही करते हैं तो इससे पौधे को कवक और फफूंदी के रोग लग जाते हैं. ये रोग कीटों के कारण होते हैं, इसलिए खेत में खरपतवार पैदा ना होने दें.
अगर फसल में रोग लग जाए तो इनकी रोकथाम के लिए पौधे पर बायोपैकूनील या बायोधन दवाई का उचित मात्रा में छिडकाव करें. इसके अलावा ट्राईकोडर्मा की तीन किलो मात्रा लेकर उसे गोबर की खाद में मिलकर खेत में छिडक दें. इससे फसल को लाभ पहुँचता है.
सफेद मूसली के बीजों का एकत्रीकरण
जब मूसली को खेत में लगाया जाता है तो उसके लगाने के लगभग एक महीने बाद ही उसमें फूल आने शुरू हो जाते हैं. फूल आने के बाद इनकी पकने की प्रक्रिया शुरू होती है. जो 25 दिनों में पूरी हो जाती है. जब बीज पूरी तरह तैयार हो जाए तो उसे तोड़कर सुखा लें. यह पूरा क्रम 50 से 60 दिन में पूरा हो जाता है.
फसल की खुदाई और सफाई
फसल तैयार होने के बाद इसकी खुदाई नवम्बर माह के बाद करनी चाहिए. खुदाई के करने से पहले देखा लेना चाहिए की फसल पूरी तरह से तैयार हो गई है या नही. इसकी पहचान पौधे को देखकर की जा सकती है. जब फसल तैयार हो जाती है तो पौधे की पत्तियां पीली पड़कर सुखने लग जाती हैं. और जड़ों का छिलका भी कठोर हो जाता है. मूसली की जड़ों का रंग गहरा भूरा हो जाता है. जिसके बाद खेत में पानी देकर जड़ों की खुदाई कर बहार निकाल लेना चाहिए.
जबकि इसके तैयार होने के तीन महीने बाद भी इसकी खुदाई कर सकते हैं. जिससे जड़ें बिलकुल सुख जाती हैं. लेकिन ऐसा जड़ों से बीज बनाने के लिए ही किया जाता है. इसके लिए मूसली के ऊपरी भाग को हटाकर उस पर मिट्टी चढ़ा देते हैं. जिसके बाद जब मूसली को खेत से निकलते हैं तो उससे पहले खेत में पानी छोड़ दें. जिससे मूसली की जड़ों को जमीन में से निकालने में आसानी होती है, और जड़ें टूटती भी नही हैं.
मूसली की खुदाई करने के बाद चाक़ू की सहायता से अँगुलियों को अलग किया जाता है. इन अलग की हुई अँगुलियों को बाद में पानी से साफ कर उसकी मिट्टी हटाई जाती हैं. जिसके बाद चाक़ू से उसका छिलका हटाया जाता है. और उसे फिर से पानी से साफ़ किया जाता है. जिससे इसका रंग बिलकुल भूरा दिखाई देने लगता हैं. इसको साफ़ करने के बाद इसे तीन से चार दिनों तक धुप में सुखाया जाता है. जिसके बाद इनकी पैकिंग कर बाज़ार में बेच दी जाती है.
पैदावार और लाभ
ताज़ा सफ़ेद मूसली की एक हेक्टेयर में पैदावार 12 क्विंटल से ज्यादा हो जाती है. इसके अलावा सुखी मूसली की पैदावार 4 क्विंटल से ज्यादा हो जाती है. जबकि इसका औसत बाज़ार भाव 500 रूपये तक होता हैं. जिससे किसान भाइयों की कुल आया 4 से 5 लाख तक हो जाती है.
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