गन्ना की खेती नकदी और वाणिज्यिक फसल के तौर पर की जाती है. गन्ना उत्पादक देशों में भारत दूसरे स्थान पर है. गन्ने का इस्तेमाल कई तरह की व्यापारिक चीजों को बनाने में किया जाता है. जिनमें चीनी, गुड़, शक्कर और शराब आदि का निर्माण इसके रस से किया जाता है. गन्ने के रस का इस्तेमाल जूस के रूप में भी किया जाता है. गन्ना के उत्पादन में हमारा देश भले दुसरे नंबर पर हो लेकिन इसके प्रति एकड़ उत्पादन में काफी पीछे हैं. जिसकी मुख्य वजह उन्नत किस्मों के साथ साथ इसके पौधों में लगने वाले रोग हैं. इसके पौधों में कई तरह के रोगों का असर देखने को मिलता है. जिनकी वजह से इसकी पैदावार काफी कम प्राप्त होती हैं.
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आज हम आपको गन्ने की फसल में लगने वाले कुछ मुख्य रोग और उनकी रोकथाम के बारें में बताने वाले हैं.
दीमक
गन्ने के पौधों में दीमक का प्रभाव बीज रोपाई के बाद कभी भी दिखाई दे सकता है. इस रोग के कीट पौधे की जड़ों को काटकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते हैं. जिससे पौधा मुरझाकर सुख जाता है. पौधों पर इसका प्रकोप रोपाई के वक्त अधिक दिखाई देता है. इससे प्रभावित गाठें अंकुरित ही नही हो पाते हैं.
रोकथाम के उपाय
- इसकी रोकथाम के लिए खेत की जुताई के वक्त फेनवलरेट या लिंडेन धुल का छिडकाव खेत में कर देना चाहिए.
- इसके अलावा बीजों की रोपाई से पहले उन्हें कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए.
- जिस खेत में इसका प्रकोप अधिक दिखाई दे उसमें ताजा गोबर की खाद को नही डालना चाहिए.
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर इमिडाक्लोप्रिड या क्लोरपाइरीफास की उचित मात्रा को पानी के साथ पौधों को देना चाहिए.
लाल सड़न
गन्ने के पौधे में लगने वाले इस रोग को रेड रॉट के नाम से भी जाना जाता है. जो कोलेटोट्राइकम फाल्केटम नामक फफूंद की वजह से फैलता है. पौधों में इस रोग का प्रभाव सबसे ज्यादा उनके विकास के दौरान देखने को मिलता हैं. इस रोग के लगने से गन्नों के अंदर का भाग लाल सफ़ेद दिखाई देने लगता हैं. रोग के बढ़ने पर पौधे के बीच की पत्तियां सूखने लगती है. और साथ ही गन्ने पर लाल फफूंद के बीजाणु दिखाई देने लगते हैं. इस रोग को गन्ने का कैंसर भी कहा जाता है. रोग ग्रस्त पौधे खराब हो जाते हैं. जिनका किसी भी तरह इस्तेमाल नही किया जा सकता.
रोकथाम के उपाय
- इस रोग की रोकथाम के लिए अभी कोई प्रभावी उपाय नही खोजा गया है. इसलिए इस रोग की रोकथाम के लिए इस रोग की प्रतिरोधी किस्मों को ही उगाना चाहिए.
- रोपाई से पहले इसके बीजों को कार्बेन्डाजिम या नम गर्म शोधन मशीन के माध्यम से उपचारित कर लेना चाहिए.
- खेत में जल भराव ना होने दें.
- गोबर की खाद को खेत में डालने से पहले उसमें ट्राइकोडर्मा या स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस की उचित मात्रा को मिला देना चाहिए.
सफ़ेद गिडार
गन्ने के पौधों में सफ़ेद गिडार रोग का प्रभाव बारिश के मौसम में अधिक दिखाई देता है. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाता है. जबकि इसकी सुंडी पौधे की जड़ों को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाती है. जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं. और कुछ दिनों बाद सूखकर नष्ट हो जाते हैं.
रोकथाम के उपाय
- इसकी रोकथाम के लिए खेती की तैयारी वक्त खेत की गहरी जुताई कर कुछ दिन तेज़ धूप लगने के लिए उसे खुला छोड़ दें.
- गन्ने के कंदों की रोपाई से पहले उन्हें बाविस्टीन या कैप्टन दवा से उपचारित कर लेना चाहिए.
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर मेटाराइजियम एनीसोपली की ढाई किलो मात्रा को सिंचाई के साथ 400 से 500 लीटर पानी में मिलाकर पौधों को देना चाहिए.
रूट बोरर (जड़ बेधक)
जड़ बेधक रोग कीट की वजह से फैलता है. पौधों पर इस रोग का प्रभाव किसी भी अवस्था में दिखाई दे सकता है. इस रोग की सुंडी पौधों की जड़ों में छेद बनाकर अंदर घुस जाती है. जिससे सम्पूर्ण पौधा नष्ट हो जाता है.
रोकथाम के उपाय
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की रोपाई जलभराव वाली तलहटी भूमि में नही करनी चाहिए.
- इसके अलावा बीजो की रोपाई से पहले उन्हें इमिडाक्लोप्रिड या क्लोरपाइरीफास से उपचारित कर लेना चाहिए.
काला चिटका
गन्ने के पौधों में काला चिटका रोग कीट की वजह से फैलता हैं. इस रोग का प्रकोप पौधे की पत्तियों पर अधिक देखने को मिलता है. इस रोग के कीट काले और सफ़ेद रंग के दिखाई देते हैं. जो पौधे की पेडी पर अधिक सक्रिय पाए जाते हैं. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों का रस चूसकर पौधे के विकास को प्रभावित करते हैं. इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगता है. रोग बढ़ने पर पौधे के पत्तियां सूखने लगती हैं.
रोकथाम के उपाय
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर वर्टिसिलियम लेकानी 1.15 प्रतिशत डब्लू.पी. की ढाई किलो मात्रा को 500 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकना चाहिए.
- इसके अलावा क्यूनालफास या क्लोरपाइरीफास की उचित मात्रा का छिडकाव करना भी लाभकारी होता है.
कंडुआ रोग
गन्ने के पौधों पर इस रोग का प्रभाव कभी भी दिखाई दे सकता है. इस रोग के लगने पर पौधे लम्बे और पतले दिखाई देने लगते हैं. और पौधों का शीर्ष भाग काला पड़ जाता है. इस रोग के लगने से पौधों की पहली आँख समय से पहले ही अंकुरित होने लगती है.
रोकथाम के उपाय
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर कार्बेन्डाजिम या कार्बोक्सिन की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
- गाठों का चयन करते वक्त रोगरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए.
ग्रासी सूट
गन्ने के पौधों में इस रोग का प्रभाव किसी भी वक्त दिखाई दे सकता है. इस रोग के लगने पर पौधे पतले, झाड़ीनुमा और बौने दिखाई देने लगते हैं. रोग लगने पर पौधों की पत्तियां हल्की पीली और सफ़ेद दिखाई देने लगती है. साथ ही खड़े गन्ने के पौधों की आँखों से भी पतली घास जैसी शाखाएं निकलने लगती है. जिससे पौधा पूरी तरह से नष्ट हो जाता है.
रोकथाम के उपाय
- इस रोग की रोकथाम के लिए गन्ने के कंदों को गर्म ठंडी मशीन में 54 डिग्री तापमान पर दो से तीन घंटे तक उपचारित कर लेना चाहिए.
- इसके अलावा रोग प्रतिरोधी किस्म का चुनाव करना चाहिए.
- पौधे में रोग दिखाई देने पर तुरंत पौधे को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए.
कडुआ रोग
गन्ने के पौधों पर इस रोग का प्रभाव ज्यादातर गर्मियों के मौसम में अधिक दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियां पतली और नुकीली दिखाई देते हैं. इसके अलावा पौधे की पोरी की लम्बाई अधिक बढ़ जाती है. रोग बढ़ने पर पौधों पर काला कोड दिखाई देने लगता है. जिससे पौधा जल्द ही नष्ट हो जाता है.
रोकथाम के उपाय
- इस रोग की रोकथाम के लिए बीजों को उपचारित कर खेतों में उगाना चाहिए. इसके कंदों को उपचारित करने के लिए ठंडी गर्म मशीन का इस्तेमाल करना चाहिए.
- रोग ग्रस्त पौधे को तुरंत उखाकर नष्ट कर देना चाहिए.
- फसल चक्कर का इस्तेमाल करना चाहिए. एक बार फसल में रोग दिखाई देने के बाद उस जगह दूसरी बार फसल तीन साल बाद फिर से उगानी चाहिए.
उकठा रोग
गन्ने के पौधों में लगने वाला उकठा रोग फफूंद की वजह से फैलता है. इस रोग के लगने की वजह से पौधे की पत्तियां पीली पड़कर सुखने लगती हैं. और कुछ दिनों बाद पौधे पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं. पौधों में ये रोग अधिक समय तक जलभराव बने रहने की वजह से फैलता है. इस रोग का प्रभाव बढ़ने से गन्नों का वजन कम हो जाता है. और गन्ने अंदर से खोखले दिखाई देने लगते हैं.
रोकथाम के उपाय
- इस रोग की रोकथाम के लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त खेत की गहरी जुताई कर उसे खुला छोड़ दें.
- खेत में बारिश के मौसम में अधिक समय तक जलभराव ना होने दें.
- इस रोग की रोकथाम के लिए इसके कंदों की रोपाई से पहले उन्हें ट्राइकोडर्मा विरिडी या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए.
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर फ्यूराडान या नीम की खली का छिडकाव पौधों की जड़ों में करना चाहिए.
तना बेधक
गन्ना के पौधों में तना बेधक रोग कीट की वजह से फैलता है. पौधों में इस रोग का प्रभाव बारिश के मौसम में अधिक दिखाई देता है. इस रोग के कीट की सुंडी पौधे के तने में छेद कर अंदर प्रवेश कर जाती है. जिसके बाद अंदर से पौधे के गुदे को खाकर उसकी वृद्धि को रोक देते हैं. रोग बढ़ने पर इसका प्रभाव ज्यादातर पौधों पर फैल जाता है. जिसका असर पौधों की पैदावार पर देखने को मिलता है.
रोकथाम के उपाय
- इसकी रोकथाम के लिए पौधों पर पत्तियों के सूख जाने के तुरंत बाद हटाकर बाहर निकाल देना चाहिए.
- खड़ी फसल रोग दिखाई देने के तुरंत बाद मोनोक्रोटोफास की दो लीटर मात्रा को 900 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकना चाहिए.
- इसके अलावा क्लोरपाइरीफास और कार्बोफ्यूरान की उचित मात्रा का छिडकाव भी लाभदायक होता है.
पायरिला
गन्ना के पौधों में लगने वाला पायरिला रोग कीट जनित रोग है. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों का रस चूसकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते हैं. जिसकी वजह से पौधों का विकास रुक जाता है. और पत्तियां सूखने लगती है. इस रोग के कीट का सिर लम्बा और चौंचनूमा दिखाई देता है. इस रोग के कीट शिशु और व्यस्क दोनों ही अवस्थाओं में पौधों को नुक्सान पहुँचाते हैं. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों का रस चूसकर चिपचिपे पदार्थ का उत्सर्जन करते हैं. जिससे पौधे पर काली फफूंद जन्म लेने लग जाती है.
रोकथाम के उपाय
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर रोग दिखाई देने पर क्यूनालफास की दो लीटर मात्रा को 900 लीटर पानी में मिलाकर छिडक देना चाहिए.
- इसके अलावा क्लोरपाइरीफास और डाइक्लोरोवास की उचित मात्रा का छिडकाव भी फसल के लिए लाभदायक होता है.
अगोले सड़न
गन्ने के पौधों में अगोले सड़न रोग का प्रभाव पौधे की शुरूआती अवस्था में देखने को मिलता हैं. जो बारिश के मौसम में अधिक दिखाई देता हैं. इस रोग के लगने पर पौधे की नई पत्तियां प्रारम्भ में हल्की पीली या सफ़ेद दिखाई देने लगती हैं. और रोग के बढ़ने पर पौधे की पत्तियां सड़कर गिरने लग जाती है. जिससे पौधे की बढ़वार रुक जाती है.
रोकथाम के उपाय
- बीजों का चयन करते वक्त अगर उनके कंदों (गाठों) पर हल्का लाल रंग दिखाई दे तो उनको नही लगाना चाहिए.
- इसकी गाठों को उपचारित कर ही खेतों में लगाना चाहिए.
- इसके अलावा खेत की तैयारी के दौरान भूमि में ट्राइकोडर्मा का छिडकाव गोबर की खाद में मिलाकर करना चाहिए.
लाल धारी
गन्ने के पौधों में लाल धारी रोग का प्रकोप पौधों की पत्तियों पर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधे की नीचे की पत्तियां लाल दिखाई देने लगती हैं. और रोग बढ़ने पर धीरे धीरे सभी पत्तियां लाल रंग की हो जाती हैं. जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं.
रोकथाम के उपाय
- इस रोग की रोकथाम के लिए इसकी गाठों को गर्म ठंडी मशीन में ढाई घंटे तक 54 डिग्री तापमान पर उपचारित करनी चाहिए.
- बीजों के चयन के दौरान रोग प्रतिरोधी किस्म का चयन करना चाहिए.
सफ़ेद मक्खी
गन्ने के पौधों में सफ़ेद मक्खी रोग का प्रभाव कीट की वजह से फैलता है. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों की निचली सतह पर पाए जाते हैं. जिनका आकर छोटा और रंग सफ़ेद दिखाई देता है. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों का रस चूसकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते हैं. इस रोग का प्रभाव बढ़ने पर पौधे की पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगता है. जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं. इसके कीट पत्तियों का रस चूसकर उन पर चिपचिपे पदार्थ का उत्सर्जन करते हैं, जिससे पौधों पर काली फफूंद रोग बढ़ जाता है.
रोकथाम के उपाय
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एसिटामिप्रिड या इमिडाक्लोप्रिड की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
- इसके अलावा नीम के तेल का 10 दिन के अंतराल में दो से तीन बार छिडकाव करना चाहिए.
Good information’s