चना की खेती प्रमुख दलहनी फसल के रूप में की जाती है. इसके दानो में प्रोटीन की मात्रा काफी ज्यादा पाई जाती है. चना कई तरह के रोगों में लाभदायक होता है. चना की खेती किसानों को लाभ देने वाली होती हैं. क्योंकि इसकी खेती में किसान भाइयों को पानी और उर्वरक पर काफी कम खर्च करना पड़ता है. चना के पौधों में सामान्य रूप से कीट रोगों का प्रभाव ही अधिक देखने को मिलता है. लेकिन कभी कभी अधिक बारिश हो जाने की वजह से इसके पौधों में और भी कई तरह के कवक जनित रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है. जिससे पौधों की पैदावार काफी कम प्राप्त होती है.
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आज हम आपको चना के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों के बारें में बताने वाले हैं. जिनकी रोकथाम कर किसान भाई अपनी फसलों को खराब होने से बचा सकता है.
कजरा कीट (कट वर्म)
चना के पौधों में इस रोग का प्रभाव पौधों के विकास के दौरान देखने को मिलता है. इस रोग के कीट की सुंडी काले भरे रंग की होती है. जो मिट्टी में छुपकर रहती है. और रात में पौधों को जमीन की सतह के पास से काटकर उन्हें नुक्सान पहुँचाती है. इस रोग का प्रकोप बढ़ने पर पूरी फसल नष्ट हो जाती हैं.
रोकथाम
इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर इन्डोसल्फान या क्यूनॉलफॉस की उचित मात्रा का छिडकाव शाम के वक्त करना चाहिए.
रस्ट
चने के पौधों में इस रोग का प्रभाव फसल के पकने के दौरान अधिक दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधे की पत्तियों और शाखाओं पर भूरे काले रंग के चित्ते दिखाई देने लगते हैं. और रोग बढ़ने पर पौधे विकास करना बंद कर देते हैं. जिसका असर पौधों की पैदावार पर देखने को मिलता है.
रोकथाम
इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर गंधक या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिडकाव 10 दिन के अंतराल में 2 बार करना चाहिए.
फली छेदक
चना के पौधों में फली छेदक रोग का प्रभाव पौधों के विकास और फली बनने के दौरान देखने को मिलता है. इसकी सुंडी का रंग हल्का हरा दिखाई देता है. इस रोग की सुंडी फलियों के आने से पहले पौधे की पत्तियों को खाकर उनके विकास को प्रभावित करती हैं. और फलियों के आने के बाद उनमें छेद कर उनके दानो को खा जाती है. जिससे पौधे की पैदावार पर सबसे ज्यादा फर्क देखने को मिलता है.
रोकथाम
इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफास, इन्डोसल्फान या क्यूनॉलफॉस की उचित मात्रा को पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकना चाहिए.
उकठा रोग
चने के पौधों में उकठा रोग फफूंद की वजह से फैलता है. पौधों पर इस रोग का प्रभाव बीज रोपाई के लगभग तीन से चार सप्ताह बाद ही दिखाई देने लगता है. इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है. कुछ दिनों बाद पौधे की पत्तियां सूखने लगती है. रोग के अधिक बढ़ जाने की वजह से सम्पूर्ण फसल नष्ट हो जाती हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के दौरान खेत की गहरी जुताई कर खुला छोड़ दें.
- फसल चक्र को अपनाकर खेती करें. एक बार रोग लगने के बाद उस जगह तीन साल बाद फिर से खेती करें.
- बीज की रोपाई से पहले उसे ट्राइकोडर्मा, कार्बेन्डाजिम या थायरम से उपचारित कर लेना चाहिए.
- खड़ी फसल में रोग लगने पर ट्राइकोडर्मा या कार्बेन्डाजिम 50 WP को रेत में मिलाकर पौधों पर छिड़कना चाहिए.
ग्रेमोल्ड
चना के पौधों में इस रोग का प्रभाव पौधों के विकास के दौरान सम्पूर्ण पौधे पर दिखाई देता है. इस रोग के लगने से पौधे के सभी भागों पर काले, भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं. जिससे पौधों का विकास रुक जाता है. और रोग बढ़ने पर फलियों में दाने नही बनते. और जिनमें दाने बनते हैं उनका आकार काफी छोटा होता है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के बीजों को ट्राइकोडर्मा, कार्बेन्डाजिम या थायरम से उपचारित कर उगाना चाहिए.
- इसके अलावा पौधों की गहरी रोपाई नही करनी चाहिए.
- खेत में खरपतवार को जन्म ना लेने दें.
ड्राई रूट रॉट
ड्राई रूट रॉट रोग मिट्टी जनित रोग है. जो कवक के माध्यम से पौधों में फैलता है. इस रोग का प्रभाव शुष्क प्रदेशों में अधिक देखने को मिलता है. जो मिट्टी में नमी की कमी होने पर दिखाई देता है. इस रोग का प्रभाव पौधों पर फूल खिलने के दौरान अधिक दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर पौधे की जड़ें काली पड़कर सूखने लगती हैं. जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में नमी की मात्रा बनाए रखने के लिए पौधों की उचित समय पर सिंचाई कर देनी चाहिए.
- इसके अलावा रोगरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए.
पत्ती धब्बा रोग
चने के पौधों पर इस रोग का प्रभाव पौधों पर फलियों के बनने के दौरान दिखाई देता है. इस रोग के लगने से पौधे की पत्ती सूखने लगती है. और पत्तियों का रंग मटियाला पीला दिखाई देता है. पौधों पर ये रोग जलभराव की वजह से फैलता है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में जलभराव ना होने दें.
- इसके अलावा रोग दिखाई देने पर बैसिलस थुरिंजिनिसिस की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
हरदा रोग
चने के पौधे में इस रोग का प्रभाव यूरोमाईसीज साइसरीज नामक फफूंद की वजह से फैलता है. जो भूमि में अधिक नमी और मौसम में ठंड के बनने पर दिखाई देता है. इस रोग के लगने से पौधे के सभी भागों पर सफेद रंग के फफोले बन जाते हैं. जो बाद में काले दिखाई देने लगते हैं. जिसके कुछ दिनों बाद पौधे सूखकर नष्ट हो जाते हैं.
रोकथाम
इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर रोग दिखाई के तुरंत बाद मेनकोजेब की दो किलो मात्रा को पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकना चाहिए.
स्टेमफिलियम ब्लाईट
चना के पौधों में ये रोग फफूंद की वजह से फैलता है. इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. जिससे पौधे की नीचे की पत्तियां पीली पड़कर झड़ने लगती है. रोग के बढ़ने इसका प्रभाव ऊपर की तरफ बढ़ने लगता है. और पौधों की सभी पत्तियां गिर जाती हैं.
रोकथाम
इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मेनकोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की उचित मात्रा का छिडकाव रोग दिखाई देने के तुरंत बाद कर देना चाहिए.