आज फूलों का उपयोग सबसे ज्यादा होता है. हर परिस्थिति में लोग फूलों का उपयोग तो करते ही है. ऐसे में हर प्रकार के फूलों की मांग लगातार मार्केट में बढती जा रही है. इन सभी फूलों में गुलाब के फूल को सबसे ज्यादा पसंद किया जाता हैं. खासकर शादियों के टाइम में तो इनकी मांग बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. जिस कारण अब काफी किसानों ने गुलाब के फूलों की खेती करना शुरू कर दिया है.
वैसे तो मुख्य रूप से गुलाब का रंग गुलाबी ही होता हैं. लेकिन आज गुलाब के रूप में हमें कई रंग के फूल देखने को मिलते हैं. जिनमें सफ़ेद और पीले फूल काफी ज्यादा मात्रा में देखे जाते हैं. इनके अलावा रक्त्लाल, दोरंगे और तींरंगे गुलाब, लाल, नारंगीलाल रंग के भी गुलाब आसानी से मिल जाते हैं. लेकिन अब तो हमें नीले और काले रंग के गुलाब भी देखने को मिल रहे हैं. गुलाब का फूल भले ही कांटो से घिरा रहता हो लेकिन इसे आज भी प्रेम का ही प्रतीक माना जाता है. गुलाब के फूल का जितना उपयोग सुन्दरता दिखाने के लिए किया जाता है उससे ज्यादा इसका उपयोग औषधियों में किया जाता हैं. गुलाब के फूलों का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन की चीजों में भी सबसे ज्यादा किया जाता है.
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गुलाब का पौधा मुख्य रूप से 4 या 5 फिट तक लम्बा हो सकता है. जिसके फूल वाले भाग को छोड़कर बाकी सभी जगह (टहनी और तना दोनों) पर कांटे दिखाई देते हैं. गुलाब को पूरे भारत में उगाया जाता है. कुछ जगहों पर इसे मुनाफ़े के लिए उगाया जाता है तो कुछ जगहों पर इसे सुन्दरता के लिए उगाया जाता है. सुन्दरता के लिए इसे लोग घरों, बाग़ बगीचों, सरकारी या निजी इमारतों, ऑफ़िस एरिया जैसी जगहों पर उगते हैं. जबकि व्यापार करने वाले इसे खेतों में और पोलीहाउस में उगाते हैं. जिससे वो ज्यादा कमाई कर सकें.
आज हर जगह की मंडियों में फूलों का भी व्यापार होने लगा है. जिस कारण इन्हें बेचना भी अब काफी आसान हो चुका है. फूलों की सबसे बड़ी मंडी दिल्ली में होने की वजह से उत्तर भारत के लोगों को ज्यादा मात्रा में पैदावार बेचने में कम कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.
भूमि का चुनाव
गुलाब की खेती के लिए भूमि का चुनाव करना सबसे अहम बात होती है. गुलाब की खेती करने के लिए जिस भूमि का हम चयन करते है वहां पानी की सुविधा होना काफी जरुरी होता है, साथ ही इस चीज़ का भी खासा ध्यान रखना चाहिए कि हम जिस भूमिका चयन कर रहे हैं वहां बारिश के टाइम पानी का भराव न होता हो. क्योंकि ऐसा होने पर पौधे के खराब होने की संभावना बढ़ जाती है. इसके अलावा भूमि के चयन के समय ये भी ध्यान रखना चाहिए की खेती वाली ज़मीन किसी छायादार जगह में तो नही है. क्योंकि छाया का प्रभाव इस खेती पर सबसे ज्यादा पड़ता है. इसलिए जब खेती के लिए भूमि का चुनाव करें तो देख लें कि पास में कोई घर या बड़ा पेड़ ना हो. क्योंकि इससे सूर्य का प्रकाश सीधा पौधों और फूलों को नही मिल पायेगा, जिस कारण फूल जल्द ही खराब हो जाते हैं और अच्छे से बड़े भी नही हो पाते हैं.
उपयुक्त मिट्टी
गुलाब की खेती वैसे तो लगभग सभी तरह की मिट्टी में हो सकती है. लेकिन कुछ तरह की ऐसी मिट्टी भी हैं, जिनमें हम इसकी खेती नही कर सकते. लेकिन पोलीहाउस ने इन सभी समस्याओं से छुटकारा दिला दिया है. आज पोलीहाउस की मदद से इसकी खेती भारत के ज्यादातर हिस्सों में होने लगी है. पोलीहाउस के माध्यम से लोग अब काफी तरह की फसल कर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं. लेकिन बिना पोलीहाउस के गुलाब की खेती करने के लिए दोमट मिट्टी की आवश्यकता ज्यादा होती है. इसके अलावा काली मिट्टी में भी इसे उगाया जा सकता है. इसके लिए मिट्टी की पी.एच. लगभग 5.5 से 6.5 तक होनी चाहिए. गुलाब की खेती के लिए मिट्टी की उपरी सतह ज्यादा कठोर भी नही होनी चाहिए.
तापमान और जलवायु
गुलाब की खेती करने के लिए दिन में अधिकतम 30 डिग्री तापमान होना चाहिए. इसके अलावा रात में 15 डिग्री तापमान की होना चाहिए. कश्मीर जैसे ज्यादा ठंडे प्रदेशों में इसकी खेती नही हो पाती. क्योंकि इसकी खेती के लिए सामान्य तापमान वाली जगह सबसे उपयुक्त मानी जाती है. जबकि उत्तर भारत के कुछ प्रदेशों में इसकी खेती सर्दियों के टाइम में ही की जाती हैं. क्योंकि गर्मियों के टाइम में वहां का तापमान काफी बढ़ जाता है. इसके अलावा तेज़ गर्म हवाएँ भी चलती हैं जो गुलाब के फूल ले लिए काफी ज्यादा नुकसानदायक होती हैं. इस कारण यहाँ इसकी खेती शर्दियों में होती है. वैसे इसे राजस्थान जैसे शुष्क प्रदेश में भी उगा सकते हैं. लेकिन इसके लिए तापमान का सबसे ज्यादा ध्यान रखना होगा.
खेती के लिए भूमि को तैयार करना
गुलाब की खेती के लिए भूमि तैयार करने के लिए सबसे पहले उस जगह पर पहले की हुई फसल के सभी बचे हुए भाग को साफ़ कर दें. जिसके बाद खेत की अच्छे से जुताई कर उसे लगभग 15 से 20 दिन के लिए खुल्ला छोड़ दें. ऐसा करने से सूर्य का प्रकाश और तपन जमीन के अंदर तक पहुँच जायेगी. लेकिन इस दौरान खेत को 3 से 4 बार और जोत दें. इसके बाद गोबर का सडा हुआ देशी खाद खेत में डाल दें, और इसके साथ ही सुपर फास्फेट का का भी खेत में छिडकाव करें. इसके अलावा दीमक से बचाव के लिए फ़ालीडाल पाउडर या कार्बोफ्यूरान 3 जी. का छिडकाव करें. ये सब होने के बाद खेत की फिर से अच्छे से जुताई करें. जिसके बाद खेत में उचित लम्बाई की क्यारियां बनाये और उनमें पानी भर दें. और खेत को पौधे लगाने के लिए तैयार होने के लिए छोड़ दें.
गुलाब के पौधों की किस्म
हर फसल को बोने से पहले उस जगह के हिसाब से उसकी उत्तम किस्म का चयन करना चाहिए. उसी तरह हर अलग अलग जगहों के लिए गुलाब की कई अलग अलग किस्में हैं. जिनका हमें खेती करते टाइम सही से चयन करना होता है. भारत में पहले इसकी एक परम्परागत किस्म ही तैयार की जाती थी. लेकिन आज संकरण के माध्यम से इसकी बहुत सारी किस्में तैयार कर ली गई हैं. आज गुलाब के पौधों की किस्में कई देशों से मंगाई जाती हैं. जिनमें इंग्लैंड, अमेरिका, आयरलैंड, जर्मनी, जापान, फ्रांस, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया जैसे देश शामिल हैं.
वैसे तो दुनिया भर में गुलाब की लगभग 20 हजार किस्में हैं. लेकिन मुख्य रूप से इन्हें फूलों की खुशबू, रंग, आकार, के आधार पर ही अलग अलग किया गया है. अगर आप गुलाब की खेती करना चाह रहे है तो हम आपको इनकी सबसे उन्नत किस्म के बारें में जानकारी देने वाले हैं.
गुलाब की देशी किस्मों में रंग के आधार पर इनकी कई किस्म मौजूद हैं. जिनका लोग काफी मात्रा में उत्पादन करते हैं. सफ़ेद फूल के लिए देशी किस्मों में होमी भाभा, पूसा सोनिया, विरंगों, डिवाइन लाइट किस्में उपलब्ध हैं. जबकि पीले रंग के फूलों के लिए चितवन, लिंडोस, पूर्णिमा जैसी किस्में मौजूद हैं. देशी किस्मों में ही बात करें लाल रंग के गुलाब के फूलों की किस्मों के बारें में तो इनमें पापामिलाड, हेपिनेस, क्रीमसन, ग्लोरी, रक्त गंधा, भीम, अनुपमा और ग्लेडिएटर जैसी किस्में शामिल हैं. लेकिन इन सभी किस्मों को एक ख़ास किस्मों की श्रेणी में रखा गया है.
हाईब्रिड टी वर्ग
इस किस्म के पौधों को बड़े आकर वाले पौधों की श्रेणी में रखा गया है. इस वर्ग के पौधों से एक वर्ग मीटर के एरिया से एक साल में 100 से 150 फूल ही एक साल में मिल पाते हैं. इस वर्ग के पौधों में फूल सबसे जल्दी आते हैं, पौधे के लगाने के 2 महीने बाद ही इसमें फूल बनकर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों की टहनियों पर ही फूल खिलतें हैं. इस किस्म के पौधे काफी जल्दी बढ़ते हैं. इस तरह के गुलाब के पौधों में चित्रलेखा, चंद्बंदीकली, गुलजार, मिलिंद, मृणालिनी, रक्त्गंधा, सोमा, सुरभी, नूरजहाँ, मदहोश, डा. बैंजमन पाल, डा.होमी भाभा, चितवन और भीम जैसी भारतीय किस्में शामिल हैं.
पॉलिएन्था
इस किस्म के गुलाब को लोग ज्यादातर अपने घरों में या ऑफ़िस गार्डन में सजावट के लिए लगाते हैं. इस वर्ग के पौधों में फूल काफी मात्रा में और काफी दिनों तक आते हैं. इनमें मुख्य रूप से स्वाति, इको, अंजनी किस्में शामिल हैं.
क्लैंग्बिंग एंड रैंबलिंग रोज
इस वर्ग के पौधों को लता वर्ग के पौधों भी कहा जाता है. क्योंकि इस वर्ग के पौधे किसी दीवार का सहारा लेकर ऊपर चढ़ते हैं. इस वर्ग के पौधे एक रस्सी की तरह बढ़ते हैं. इन्हें बढ़ने के लिए किसी सहारे की जरूरत होती हैं. इस वर्ग के पौधों की एक बेल बनती है. लेकिन इस तरह के पौधों पर साल में एक बार ही फूल खिलते हैं. इस वर्ग में सदाबहार, समर स्नो, मार्शल नील, दिल्ली वाईट पर्ल, गोल्डन शावर, कॉकटेल, रायल गोल्ड, एलवटाइन, एक्सेलसा और डोराथी पार्किंस किस्में पाई जाती हैं.
टी रोजेज
इस किस्म की उत्पत्ति चीन में की गई थी. इस किस्म के गुलाब की पंखुडियाँ मोटी और चौड़ी होती हैं. इस किस्म के फूल जल्दी ही बढ़ते हैं. इनमें मुख्य रूप से अलैक्जेण्डर, दी ब्रिज जैसी प्रजातियाँ पाई जाती हैं.
ग्रेन्डीफ्लोरा
इस वर्ग के पौधों को छोटी डंडी वाला गुलाब भी बोला जाता है. इस वर्ग के पौधों से 250-350 फूल साल में एक बार एक वर्ग मीटर में मिलते है. इनकी कटाई में काफी ज्यादा टाइम लगता है. इस वर्ग के पौधों को फ्लोरीबंडा और हाईब्रिड किस्म के संकरण के बाद तैयार किया गया था. इस किस्म का उपयोग खेती में बड़े पैमाने पर किया जाता है. वर्ग में मुख्य रूप से गोल्ड स्पॉट, मांटेजुआ, क्वीन एलिजाबेथ काफी फेमस हैं. जिनका बड़ी मात्रा में उपयोग होता है.
फ्लोरीबंडा वर्ग
इस वर्ग के पौधे ज्यादा बड़े नही होते हैं. इन्हें माध्यम साइज़ के गुलाबों की श्रेणी में रखा गया है. इन किस्म के पौधों में फूल थोड़े छोटे होते हैं. इस वर्ग के गुलाब के पौधों से एक वर्ग मीटर के एरिया में एक साल में 200 फूल ही मिल सकते हैं. लेकिन सभी फूल गुच्छों में खिलते हैं. जिससे किसान को कम जगह में ज्यादा माल प्राप्त होता है. जिस कारण उसे मुनाफ़ा भी ज्यादा ही मिलता है. इस वर्ग की मुख्य किस्मों में कविता, जंतर मंतर, सदाबहार, लहर, सूर्यकिरण, दिल्ली, प्रिन्सिस, समर, बहिश्त, आइसबर्ग, शबनम, बंजारन, करिश्मा, चन्द्रमा, चित्तचोर और दीपिका शामिल हैं.
पौधे को तैयार करना
गुलाब का पौधे को तैयार करने की विधि को टी बडिंग कहा जाता है. इस विधि के माध्यम से पौधे को तैयार करने के लिए जंगली गुलाब के पौधों की कलम जून या जुलाई में लगा दी जाती हैं. इन कलम को क्यारी में 15 सेंटीमीटर की दुरी पर लगाया जाता है. जिसके बाद इनमें शाखाएं निकल आती हैं, जिन्हें हटा देते हैं. जिसके बाद इनमें अच्छी किस्म के गुलाब की टहनी लगाकर पोलीथिन में उन्हें ऊपर तक कसकर बांध दी जाती हैं, जिसमें उर्वरक मिली मिट्टी भरी होती है. जिसके कुछ टाइम बाद इनमें टहनी निकल आती हैं. जिसके बाद अगस्त माह तक ये पौधे रुपाई के लिए तैयार हो जाते हैं.
पौधे को लगाने का टाइम और तरीका
किसी भी तरह की फसल से मुनाफा कमाने के लिए उसे टाइम पर लगाना जरूरी होता हैं. क्योंकि टाइम निकल जाने पर फसल के मुनाफ़े पर फर्क पड़ता है. जबकि गुलाब के फूल के लिए तो टाइम काफी जरूरी होता है. क्योंकि कुछ टाइम ऐसे आते हैं जब गुलाब के फूलों की मांग सबसे ज्यादा बढ़ जाती है. जिनमें वेलेंटाइन और क्रिसमस के मौके काफी ख़ास होते हैं. इस दौरान गुलाबों का उपयोग सबसे ज्यादा होता है. इस कारण छोटे पौधे अप्रैल या मई में तैयार कर लेने चाहिए और बड़े पौधों को अगस्त से सितम्बर तक लगा देना चाहिए. ताकि वेलेंटाइन और क्रिसमस दोनों पर इनकी फसल तैयार हो जाए. जिससे उपज के ज्यादा दाम मिल पायें.
लेकिन पौधे को लगते टाइम इसे किस तरह लगाये इस पर भी ख़ास ध्यान देना चाहिए. गुलाब के पौधे को खेत में लगाने से पहले ध्यान रखे की पौधे को भूमि से लगभग 15 सेंटीमीटर ऊपर ही लगाये. पौधे की रुपाई करते टाइम पोलीथिन को काटकर हटा लें. लेकिन ध्यान रखे कि पोलीथिन को हटाते वक्त पोलीथिन में भरी मिट्टी नही टूटे. जिसके बाद उसे खेत की मिट्टी से चारों तरफ से अच्छे से दबा दें. लेकिन दूसरी कलम लगने वाले स्थान को जमीन से थोड़ा बहार ही रखे. और पौधे की रुपाई के तुरंत बाद ही उसकी सिचाई कर दें.
पौधों को लगने वाले रोग और रोकथाम के उपाय
गुलाब के पौधों और फूल दोनों को ही रोग लगता है. जिस कारण इनकी देखभाल करना भी काफी अहम है. गुलाब को सुंडियां, खर्रा रोग, उलटा सूखा रोग लगते हैं. इसके अलावा कीटों का हमला भी पौधों पर सबसे ज्यादा होता है. कीटों के हमले से पौधे को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचता है. आइये जानते हैं उन सभी तरह के कीटों से होने वाले रोग और उनकी रोकथाम के लिए अपनाएं जाने वाले तरीकों के बारें में!
बैक्टीरियल और फंगल
इस तरह के रोग के लक्षण पौधों और फूल दोनों पर देखने को मिलते हैं. इस तरह के रोग के दौरान पौधे की शाखाएँ सुखने लगती हैं. इसके साथ ही फूल और नई कलियाँ भी सुखने लगती हैं. इस तह के रोकथाम के लिए टैगक्सोन नाम का का एक पाउडर मिलता है. इसके 5 ग्राम के पाउच को 6 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करने से इस रोग से फायदा मिलता है.
सफ़ेद मक्खी
गुलाब के पौधों में सबसे ज्यादा सफ़ेद मक्खी का रोग लगता है. इस रोग के दौरान सफ़ेद मक्खी पौधे की पत्तियों का रस चूस लेती है. जिससे पत्तियां जल्द खराब होकर गिर जाती हैं. इसके रोकथाम के लिए डायफेन्थ्रीयुरोन 50 डब्लूपी के 20 ग्राम पाउच को लगभग 15 लिटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें. इसके अलावा स्पाइरोमेसिफेन 240 एससी के 20 मिलीलीटर को लगभग 18 से 20 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें.
थ्रिप्स
इस तरह के रोग के ज्यादा लक्षण पौधे की पत्तियों और उनकी कली पर देखने को मिलता है. इस रोग के दौरान कीट कलीयों और फूल दोनों का रस चूस लेती हैं. पत्तियों पर इस रोग के लक्ष्ण सिखाई ज्यादा देते हैं. जिससे पत्तियों और कलि पर कुछ बादामी रंग के धब्बे बनने लगते हैं. इस रोग के रोकथाम के लिए फिप्रोनिल 5 एससी कि 30 मिलीलीटर मात्रा को लगभग 15 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें. इसके अलावा इमिडाक्लोप्रिड 350 एससी को भी इसी तरह छिडकाव करें.
स्केल किट
स्केल किट पौधों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचता है. स्केल किट खुद को एक पतले सफ़ेद आवरण के पीछे छिपाकर रखता है. इसके प्रभाव से पौधे का विकास रुक जाता है. क्योंकि इस तरह का किट पौधे की कोमल तने के रस को चूसकर उसको ख़तम कर देता है. जिससे पौधा सुख जाता है. इसके रोकथाम के लिए क्लोरोपायरीफोस 2% के 10 किलो पैक्ट को एक एकड़ में इस रोग से ग्रसित पौधों पर छिडकाव करें. इसके अलावा ज्यादा प्रभाव बढ़ने पर बुप्रोफेजिन 25 एससी के 30 मिलीलीटर को 15 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें.
मिलिबग
यह किट पौधे की कोमल डुंख और पत्ते की नीचे की सतह पर से रस चूस कर पौधे को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचता है. जिससे पूरा पौधा नष्ट हो जाता है. इसके लिए बुप्रोफेजिन 25 एससी का छिडकाव करें. अगर फिर भी प्रभाव कम ना हो तो पौधे को ही हटा दें.
माहू
माहू नामक किट बहुत छोटा किट होता है. इस तरह का किट एक समूह बनाकर पौधे पर आक्रमण करता है. माहू किट पौधे का तना, पत्ति, कलि और फूल सबका रस चूस जाता है. और इसका प्रभाव सबसे ज्यादा और जल्द देखने को मिलते हैं. इसके रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रीड की 3 मिलीलीटर या थायोमेथाक्जाम की 4 ग्राम मात्रा को 10 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव कर्रें.
मकड़ी और दीमक
मकड़ी और दिमक का रोग लगभग सभी तरह के पौधे को लगता है. लेकिन गुलाब की खेती में दीमक का रोग रेतीली जमीन में ज्यादा देखने को मिलता है. जिस कारण इसके रोकथाम के लिए फिप्रोनिल या क्लोरोपाइरीफोस 20 ईसी का छिडकाव करें. इसके अलावा मकड़ी के बचाव के लिए फेनाजाक्वीन 10 ईसी और डायफेन्थ्रीयुरोन 50 डब्लूपी का छिडकाव उचित मात्रा में करें.
हरी इल्ली
हरी इल्ली का प्रभाव फूल की जगह पौधे पर ज्यादा देखने को मिलता है. हरी इल्ली ज्यादातर शुरुआत में पौधे को कोमल पत्तियों को खाती है. जिसके बाद ये फूल की कली पर आक्रमण करती है. जिस कारण कली को सबसे ज्यादा नुकशान पहुंचता है. और खिलने से पहले ही ख़तम हो जाती है. इसका सबसे ज्यादा प्रभाव फूलों पर देखने को मिलाता है. इसके रोकथाम के लिए एक एकड़ में लगभग 4 फेरोमेन ट्रैप लगाये. इसके अलावा इंडोक्साकार्ब14.5 एससी या स्पीनोसेड़ 45 एससी का उचित मात्रा में पौधों पर छिडकाव करें.
सिचाई करने का तरीका
जब पौधे को खेतों में लगाये तो उसकी सिचाई तुरंत कर देनी चाहिए. जिसके बाद ताज़ा लगाई कलम को लगातार नमी देने के लिए उसकी सिचाई उचित टाइम पर करते रहे. लेकिन पानी का भराव खेत में ना होने दें. सर्दियों के टाइम में सप्ताह में एक बार पानी ज़रुर दें. और गर्मियों के टाइम में 4 से 5 दिनों के अंतराल में पौधों की सिचाई करते रहे. इसके अलावा अच्छे और उतम किस्म के फूल लेने के लिए सिचाई के टाइम उचित मात्रा में उर्वरक पौधों को दें. जिनमें नीम की खाद और हड्डी का चुरा पौधों को देने पर पौधे पर काफी प्रभाव पड़ता है. इसके साथ ही यूरिया, फास्फेट और पोटाश भी उचित मात्रा में देने पर पैदावार में काफी फर्क देखने को मिलेगा.
अगर आप गमलों में इसकी खेती कर रहे हैं तो हर साल इसके ऊपर की मिट्टी को 2 से 3 इंच तक निकाल दें और उसकी जगह सड़ी हुई गोबर की देशी खाद भर दें. इसके अलावा 3 साल बाद उस गमले को भी पूरी तरह बदल दें. लेकिन ये प्रक्रिया मुख्य रूप से सितम्बर से अक्टूबर के बीच में करें.
पौधे की नीलाई और गुड़ाई
गुलाब के फूलों की ज्यादा पैदावार लेने के लिए पौधों की नीलाई और गुड़ाई करना काफी जरूरी होता है. इसकी नीलाई गुड़ाई नवम्बर के बाद शुरू कर देनी चाहिए. क्योंकि इस दौरान कलम में से शाखाएं सबसे ज्यादा बनती है. इस कारण इसकी गुड़ाई उस वक्त करने से नई शाखाएँ ज्यादा बनती है. जिससे पैदावार पर भी फर्क पड़ता है. इसके अलावा बार बार पानी देने से जमीन भी कठोर होने लग जाती है. जिस कारण जड़ों तक हवा भी अच्छे से नही जा पाती. लेकिन नीलाई करने से हवा उचित मात्रा में पौधों को मिल पाती है. जिससे पौधे का विकास और भी अच्छे से होता है. इस कारण पौधे की नवम्बर माह के बाद जनवरी तक 3 से 4 बार नीलाई गुड़ाई कर देनी चाहिए.
फूलों की तुड़ाई और छटाई
फूलों को तोड़ते टाइम ख़ास ध्यान रखे की फूल के पूरे खिलने से पहले ही पौधे से अलग कर लें. इसके लिए सबसे उचित टाइम तब आता है जब फूल की एक या दो पंखुडियां खिल जाती है. जिसके बाद फूल को पौधे से अलग कर लेना चाहिए. लेकिन जब पौधे से फूल को अलग करें तो उसे तेज़ धार वाले चाक़ू या ब्लेड से काटकर अलग करें. फूल को काटने के तुरंत बाद पानी से भरे बर्तन में रख दें. जिसके बाद उसे कोल्ड स्टोरेज में रख दें जिसका तापमान 2 से 10 डिग्री तक होना चाहिए. जिसके बाद फूलों की ग्रेडिंग की जाती है, जिसे कोल्ड स्टोरेज में ही पूर्ण किया जाता है. इसे फूलों की छटाई भी कहा जाता है. इसमें फूलों की छटाई फूलों के रंग और उनकी डंडी के आधार पर की जाती है.
इसके अलावा फूलों की ग्रेडिंग करते टाइम खास ध्यान रखें कि फूल की डंडी रोग मुक्त होनी चाहिए. इसके साथ ही उस पर किसी तरह का कोई दाग नही लगा होना चाहिए. जिसके बाद फूलों को पैकिंग आवश्यकता के अनुसार ही करनी चाहिए.
पैदावार और मुनाफा
गुलाब की खेती कर कई किसान है जो काफी ज्यादा मुनाफ़ा कम रहे है. गुलाब की खेती चार महीने में फूल देना शुरू कर देती है. एक एकड़ में हर दिन लगभग 30 से 40 किलो या इससे ज्यादा भी फूल प्राप्त हो जाते हैं. और इनका बाज़ार भाव लगभग 50 से 70 रुपये प्रति किलो के हिसाब से होता है. जिस कारण प्रतिदिन 1500 से 3000 तक की कमाई हो सकती है. जबकि एक एकड़ में 30 हजार से 40 हज़ार पौधे लगते हैं. और एक पौधे से साल में लगभग 20 फूल से ज्यादा निकलते है. इस तरह साल में एक एकड़ से लगभग 200 से 300 क्विंटल फूल प्राप्त हो सकते हैं. जिनकी सालाना कमाई लगभग 15 से 20 लाख तक पहुँच सकती है.
गुलाब की खेती करनि है मुझे कैसे करू
मुझे गुलाब की खेती करनि है कैसे करू