मोती कठोर और चमकीला होता है. मोती को प्राचीन काल से ही बहुमूल्य रत्नों में शामिल किया गया है. जिसका इस्तेमाल आभूषण और सजावट की चीजों में किया जाता है. भारत में इसकी पैदावार काफी कम होती है. इस कारण भारत में मोती को बड़ी मात्रा में आयात किया जाता है.
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मोती की खेती से किसान भाई अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं. इसकी खेती के लिए ज्यादा मेहनत की भी जरूरत नही पड़ती. मोती की पैदावार कम रूपये लगाकर घर में भी शुरू कर सकते हैं. मोती को तैयार होने में लगभग एक साल का वक्त लगता है. जिसको घोंघा नामक जीव तैयार करता है. प्राक्रतिक रूप से मोती जब सीप अपना मुख खोलता है, तब उसमें किसी रेत के कण या छोटे कीड़े मकोड़े के जाने से तैयार होता है. लेकिन अब इसकी पैदावार की जाने लगी है.
अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
मोती की खेती के लिए तालाब बनाना
मोती की खेती मिट्टी ने नही बल्कि पानी में की जाती है. इसके लिए आप जितने सिप की पैदावार करना चाहते है. उसके हिसाब से तालाब तैयार किया जाता है. तालब को जमीन में गड्डा बनाकर या सीमेंट का होद बनाकर तैयार किया जाता है. मिट्टी में तालाब बनाने के लिए खोदे गए तालाब में पहले एक पॉलीथीन बिछाकर उसमें पानी भर देते हैं. लेकिन अगर मिट्टी पानी की मात्रा को ज्यादा दिन तक ना सूखने दे तो पॉलीथीन की जरूरत नही होती.
सीप को तैयार करना
मोती की खेती के लिए सीप की जरूरत होती है. इसके लिए सीप को नदियों से खोजा जाता है. लेकिन आज बाज़ार में भी सीप आसानी से मिल जाते हैं. मोती की खेती साफ़ पानी में नही की जा सकती. क्योंकि सीप अपने लिए खाना गंदे पानी से ग्रहण करता है. सिप खाने में काई ( सिवाल ) का ज्यादा इस्तेमाल करता है.
मोती के प्रकार
मोती मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है. जिनको उनके उपयोग के आधार पर तैयार किया जाता है.
केवीटी
इस तरह का मोती सीप के अंदर ऑपरेशन के जरिए फॉरेन बॉडी डालकर तैयार किया जाता है. जिससे हम किसी भी आकर का मोती तैयार कर सकते हैं. आज बाज़ार में दिखाई देने वाले अनेक भगवान के चेहरे जैसे मोती इसी विधि से तैयार किये जाते हैं. इस तरह के मोती की बाज़ार में कीमत हजारों में होती है.
गोनट
इस प्रकार का मोती प्राक्रतिक रूप से गोल आकार का होता है. यह मोती चमकदार और सुन्दर दिखाई देता है. इस तरह के मोती की कीमत आकार और चमक के आधार पर एक से 50 हज़ार तक पाई जाती है.
मेंटलटीसू
इस तरह के मोती का उपयोग खाने में किया जाता है. इस तरह के मोती को तैयार करने के लिए सीप के अन्दर सीप के ही भाग को काटकर डाला जाता है. जिसका उपयोग भस्म, च्यवनप्राश व टॉनिक बनाने में किया जाता है. वर्तमान में बाज़ार में इस तरह के मोती की मांग सबसे ज्यादा है.
मोती की खेती करने का वक्त
मोती की पैदावार सर्दियों के मौसम में की जाती है. इसकी खेती के लिए अक्टूबर से दिसंबर तक का वक्त सबसे उपयुक्त होता है. इस दौरान सीप में शल्य क्रिया के द्वारा बीड डालकर तैयार कर लेते हैं. उसके बाद उसे कुछ दिन एंटी-बायोटिक और प्राकृतिक चारे पर रखने के बाद तालाब में डाला दिया जाता है. जिसके बाद उचित मात्रा में पोषक तत्व देकर उन्हें तैयार किया जाता है.
सीप का ऑपरेशन
सीप का ऑपरेशन करने के बाद ही मोती तैयार किया जाता है. सीप के अंदर साधारण 4 से 6 मिलीमीटर व्यास वाले रेट के कण या डिज़ाइन किया बीड़ शल्य क्रिया के द्वारा डाला जाता है. शल्य क्रिया करते वक्त खास ध्यान रखना होता है की सिप को ज्यादा नही खोलना चाहिए. क्योंकि ज्यादा खोलने पर सीप मर जाता है. और पैदावार में नुक्सान होता है.
मोती के तैयार होने की प्रक्रिया
लगभग तीन साल पुराना सीप ही मोती तैयार कर सकता है. जिसको तैयार होने में 8 से 14 महीने का वक्त लगत है. सीप में मोती तैयार करने के लिए उसका ऑपरेशन (शल्य क्रिया द्वारा) कर उसमें फॉरेन बॉडी डालकर या रेत का कण डालकर तैयार किया जाता है. दरअसल मोती को तैयार घोंघा नामक प्राणी करता है. जो कई रंगों में पाया जाता है. सीप के अंदर रेत का कण जब घोंघे को चुभता है तो वो एक तरल और चिकना पदार्थ छोड़ता है. जो परत दर परत इस कण पर चढ़ता रहता है. जिससे मोती तैयार होता है. मोती के तैयार होने पर सीप का रंग सिल्वर कलर का हो जाता है. उसके बाद सीप से मोती को निकाल लिया जाता है. मोती निकालने के बाद सीप को भी बाज़ार में बेचकर अच्छी कमाई की जा सकती है.
सीप का रखरखाव
शल्य क्रिया करने के बाद बीज का रखरखाव करना जरूरी होता है. इसके लिए सीप को शल्य क्रिया के बाद जालीदार नायलॉन बैंग में 10 दिनों तक एंटी-बायोटिक और प्राकृतिक चारे पर रखा जाता है. इन नायलॉन बैग को किसी बाँस की लकड़ी या पीवीसी पाइप से बाँधकर उन्हें पानी में एक से डेढ़ फिट नीचे डुबोकर रखा जाता है.
शल्य क्रिया के बाद सीप को रोज़ निकालकर देखना चाहिए. क्योंकि अगर सीप मर जाता है तो अमोनिया बड़ी मात्रा में छोड़ता है. जिससे पानी में अमोनिया की मात्रा बढ़ जाती है. अमोनिया की मात्रा बढ़ने पर और भी सीप के मरने का डर रहता है. इस कारण पानी में अमोनिया की मात्रा भी चेक करते रहें. अमोनिया की मात्रा बढ़ने पर तालाब का पानी 75 प्रतिशत निकालकर उसमें ताज़ा पानी डाल दें.
शल्य क्रिया करने के बाद जब सीप अच्छे से गति करता है तो उसे 10 दिन बाद तालाब में छोड़ दिया जाता है. इसके 8 से 14 महीने बाद इनमें मोती तैयार हो जाते हैं. जब इनका रंग सिल्वर दिखाई देने लगे तब इन्हें बाहर निकालकर उनमें से मोती निकाल लिए जाते हैं.
खर्चा और लाभ
लगभग 500 सीप की खेती करने के लिए सभी तरह का खर्च 25 हज़ार के आसपास होता है. जबकि 500 सीप से 500 मोती प्राप्त हो जाते हैं. लेकिन अगर उनमें से शल्य क्रिया के बाद 50 सीप मर जाते हैं तो 450 सीप बचते हैं. जिनसे 450 मोती प्राप्त होते हैं. और एक मोती की कीमत 250 भी रखते हैं तो एक बार में किसान भाई 500 सीप से सवा लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते हैं. जिनमें उनका खर्च काटने के बाद उन्हें एक लाख तक की कमाई आसानी से हो जाती है.