अदरक की खेती कंद के रूप में होती है. अदरक का इस्तेमाल मसाले के रूप में ज्यादा किया जाता हैं. मसाले के अलावा अदरक का इस्तेमाल चाय, अचार और किसी भी व्यंजन को खुशबूदार बनाने में किया जाता है. अदरक को सुखाकर उसकी सोंठ बनाई जाती. जिसको घी और शुगर ( चीनी ) में मिलाकर लड्डू भी बनाए जाते हैं.
अदरक का इस्तेमाल मसाले के अलावा दवाइयों के रूप में भी किया जाता है. अदरक के खाने से सर्दी-जुकाम, खांसी, पेट के रोग, पथरी और पीलिया जैसे रोगों में आराम मिलता है. वर्तमान में अदरक का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन की चीजों में भी किया जा रहा हैं.
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अदरक की खेती गर्म जलवायु वाले स्थानों पर की जाती है. इसकी खेती के लिए दोमट मिट्टी की जरूरत होती हैं. अदरक की खेती ज्यादा अम्लीय या क्षारीय जमीन में नही की जा सकती. अदरक की खेती के लिए ज्यादा वर्षा की जरूरत भी नही होती. भारत में इसकी खेत उत्तर और दक्षिण भारत के कई राज्यों में बड़ी मात्रा में की जाती है.
अगर आप भी अदरक की खेती करना चाह रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
अदरक की खेती भारत के कई हिस्सों में की जा रही है. इसकी खेती के लिए उचित जल निकासी वाली मिट्टी की जरूरत होती है. जिस जगह इसकी खेती की जाती है उस जमीन का पी.एच. मान 6 के आसपास होना चाहिए. जिस मिट्टी में जीवाश्म और कार्बनिक पदार्थ की मात्रा ज्यादा होती है, उस मिट्टी में अदरक ज्यादा पैदावार देती है.
जलवायु और तापमान
अदरक की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण कटिबंध जलवायु सबसे उपयुक्त होती हैं. भारत में अदरक की खेती ज्यादातर गर्मी के मौसम में की जाती है. इसके कंदों को विकास करने के लिए सूर्य के प्रकाश की जरूरत होती है. इस कारण इसकी खेती खुली जगह पर करनी चाहिए. अदरक की खेती समुद्र ताल से 1500 मीटर की ऊचाई वाली जगहों पर भी आसानी से की जा सकती है.
अदरक की खेती को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती हैं. जबकि इसके पौधे को अंकुरण के लिए 20 से 25 डिग्री तापमान की जरूरत होती है. जब अदरक का कंद पकता हैं उस वक्त इसे ज्यादा तापमान की जरूरत होती है. कंद के पकने के दौरान इसे एक महीने तक 30 से 35 डिग्री तापमान की जरूरत होती है.
अदरक की उन्नत किस्में
अदरक की उपज और गुणवत्ता के आधार पर कई तरह की किस्में हैं. जिनको दो श्रेणियों में बांटा गया है. इन सभी किस्मों को अलग अलग जगहों के लिए तैयार किया गया हैं. जिनमें से कुछ संकर किस्म भी हैं जो अधिक पैदावार देने के लिए तैयार की गई हैं.
संकर प्रजाति की किस्में
संकर प्रजाति की किस्मों को संकरण के माध्यम से तैयार किया गया है. इस प्रजाति की किस्मों की पैदावार ज्यादा पाई जाती है.
आई आई एस आर वरदा
अदरक की इस किस्म को कम समय में ज्यादा पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन लगभग 22 टन के आसपास होता है. इस किस्म के पौधे रोपाई के 200 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म की अदरक में रेशों की मात्रा 4.5 प्रतिशत तक पाई जाती हैं.
सुप्रभा
अदरक की इस क़िस्म में ओलि ओरिसिन की मात्रा 8 प्रतिशत से भी ज्यादा पाई जाती है. इसका पौधा पककर तैयार होने में 230 दिन का वक्त लेता है. इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 17 टन के आसपास पाई जाती है. अदरक की इस किस्म में रेशों की मात्रा भी ज्यादा पाई जाती है.
हिमगिरी
अदरक की इस किस्म में रेशों की मात्रा सबसे ज्यादा 6.4 प्रतिशत तक पाई जाती है. इस किस्म के पौधे 220 से 230 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 13 टन के आसपास पाई जाती है.
आई आई एस आर महिमा
अदरक की इस किस्म को कम समय में ज्यादा पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म की अदरक के पौधों को तैयार होने में 200 दिन का टाइम लगता है. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 23 टन से ज्यादा पाई जाती है. जो सूखने पर 23 प्रतिशत तक उपज देती है.
देशी या साधारण प्रजाति
देशी या साधारण किस्मों की पैदावार संकर किस्मों की अपेक्षा कम होती है. और पकने में भी ज्यादा टाइम लेती हैं.
हिमाचल
अदरक की इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 7 टन के आसपास होती है. इस किस्म के पौधों को तैयार होने में लगभग 200 दिन से भी ज्यादा का वक्त लगता है. इस किस्म के अंदर ओलि ओरिसिन की मात्रा 10 प्रतिशत तक पाई जाती है.
रियो-डी-जिनेरियों
अदरक की ये किस्म 190 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इस किस्म की एक हेक्टेयर में पैदावार 17 टन के आसपास होती है. अदरक की इस किस्म में ओलि ओरिसिन की मात्रा सबसे ज्यादा 10.5 प्रतिशत पाई जाती है. और इसमें रेशों की मात्रा 5 प्रतिशत से भी ज्यादा पाई जाती है.
नादिया
अदरक की इस किस्म को ज्यादातर सुखी अदरक ( सोंठ ) बनाने के लिए उगाया जाता है. अदरक की ये किस्म सबसे ज्यादा पैदावार देती हैं. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 28 टन से भी ज्यादा होती है. अदरक की इस किस्म के पौधे 200 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं.
खेत की जुताई
अदरक की खेती के लिए खेत की अच्छी जुताई करना जरूरी होता है. खेत की पहली जुताई अच्छे से कर उसे खुला छोड़ दें. उसके कुछ दिन बाद खेत में गोबर की खाद डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दे. उसके बाद खेत में पानी छोड़ दें. और जब खेत में खरपतवार अंकुरित होने लगे तब खेत की फिर से अच्छे से जुताई कर दें. इसके बाद खेत में पाटा लगा दें. इससे खेत में जुताई के वक्त बचे सभी मिट्टी के ढेले फुट जाते हैं. और मिट्टी भुरभुरी हो जाती है.
अदरक की खेत के लिए भुरभुरी मिट्टी अच्छी होती है. इससे अदरक के कंद अच्छे से विकास करते हैं. अगर मिट्टी भुरभुरी ना होकर कठोर हो तो कंद अच्छे से विकास नही कर पाते. जिसका असर पैदावार पर देखने को मिलता है.
बीज बोने का तरीका और टाइम
अदरक के बीज को खेत में मेड पर लगाना चाहिए. इसके लिए खेत की जुताई के बाद खेत में मेड बना देनी चाहिए. इन मेड़ों के बीच की दूरी एक से सवा फिट होनी चाहिए. मेड पर अदरक के बीज को 3 से 5 सेंटीमीटर की गहराई में 15 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए. अदरक की खेती करने से पहले ध्यान रखे की जहाँ इसकी खेती की जा रही हैं, वहां किसी भी तरह की छाया नही होनी चाहिए. क्योंकि छाया में इसका पौधा अच्छे से वृद्धि नही करता है. और पैदावार भी कम देता है.
दक्षिण भारत में अदरक की रोपाई अप्रैल माह में कर देनी चाहिए. जबकि उत्तर भारत में इसकी रोपाई के लिए मई का महीना उपयुक्त होता है. मई बाद इसे जून के पहले सप्ताह में भी उगा सकते हैं. लेकिन इसके बाद उगाने पर इसके कंद बड़ी मात्रा में खराब हो जाते हैं. जिसका असर पैदावार पर देखने को मिलता हैं.
जहाँ सिंचाई की उचित व्यवस्था हो वहां इसकी रोपाई फरवरी माह में भी कर सकते हैं. फरवरी माह में इसकी रोपाई करने पर पैदावार अधिक मात्रा में होती है. और बाज़ार में फसल की कीमत भी अधिक मिलती है.
एक हेक्टेयर में अदरक के लगभग 140000 पौधे लगाये जाते हैं. जिसके लिए लगभग 25 क्विंटल प्रकन्द (बीज) की जरूरत पड़ती हैं. जबकि मैदानी भाग में सिर्फ 18 क्विंटल प्रकन्द (बीज) काफी होता है. किसान भाई को अदरक का बीज काफी महंगा पड़ता है. इसलिए इसके बीजों के कंद को देखकर खरीदना चाहिए. इसका बीज इसके कंद से ही तैयार किया जाता है. प्रत्येक प्रकन्द में दो आँख का होना जरूरी है. जिन्हें कंद से काटकर अलग किया जाता है.
अदरक के बीज को खेत में उगाने से पहले उसे अच्छे से उपचारित कर लेना चाहिए. ताकि फसल को शुरूआती रोगों से बचाया जा सके. बीज को उपचारित करने के लिए बीज को कार्बेन्डाजिम के घोल में आधे घंटे तक डुबोकर रखना चाहिए. इसके अलावा घोल में प्लान्टो माइसिन या स्ट्रेप्टोसाइक्लिन मिला देना चाहिए. इससे पौधों को जीवाणु जनित रोग भी नही लगते. और पौधे अच्छे से अंकुरित होते हैं.
उर्वरक की मात्रा
अदरक का कंद जमीन के अंदर रहकर वृद्धि करता हैं. इसके कंद को विकास करने के लिए पौषक तत्वों की अधिक जरूरत होती है. अदरक के पौधे की जड़ें जमीन में ज्यादा गहराई में नही जाती. इसके कंद जमीन में सिर्फ 6 से 8 इंच नीचे तक पाए जाते हैं. इस कारण इसे अपनी वृद्धि के लिए पौषक तत्व जमीन की ऊपरी सतह से ही हासिल करने होते हैं.
अदरक की खेती करने से पहले किसान भाई को अपने खेत की मिट्टी को किसान सेवा केंद्र ले जाकर जांच करा लेनी चाहिए. और उसके बाद आवश्यकता के अनुसार मिट्टी को उर्वरक की मात्रा देना चाहिए. लेकिन साधारण रूप में इसकी खेती के लिए कुछ उर्वरक जरूरी होते हैं. इसके लिए खेत की जुताई के वक्त खेत में 10 से 15 गाडी गोबर की खाद प्रति एकड़ के हिसाब से डालकर उसे मिट्टी में मिला दें.
गोबर की खाद डालने के बाद खेत की आखिरी जुताई के वक्त खेत में एन.पी.के. की उचित मात्रा खेत में डालकर उसे मिट्टी में मिला दें. और अगर मिट्टी की जांच में खेत में जिंक की कमी पाई जाए तो, खेत में 25 किलो जिंक प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिडक दें. बीज रोपण के 40 दिन बाद खेत में 20 किलो नाइट्रोजन सिंचाई के साथ खेत में दें.
खेत की सिंचाई
अदरक की खेती को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नही होती. अगर इसकी खेती बारिश आने से पहले की जाती है तो खेत में बारिश से पहले नमी बनाए रखने के लिए आवश्यकता के अनुसार पानी देना चाहिए. बारिश के मौसम में इसके पौधे को पानी की जरूरत नही होती. और जब बारिश का मौसम समाप्त हो जाए तब इसके पौधों को 15 से 20 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए. हल्दी की खेती को सिर्फ 5 से 7 सिंचाई की जरूरत होती है.
खरपतवार नियंत्रण
अदरक की खेती में खरपतवार नियंत्रण करना जरूरी होता है. क्योंकि इसके पौधे जमीन की ऊपरी सतह से ही अपनी वृद्धि के लिए पौषक तत्व हासिल करते हैं. लेकिन खेत में पाई जाने वाली खरपतवार इन्हें उचित मात्रा में पौषक तत्व हासिल नही करने देती. जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है. जिसका असर पैदावार पर देखने को मिलता है.
अदरक के खेत में खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई कर किया जाता है. खेत में बीज लगाने के लगभग एक महीने बाद पहली नीलाई गुड़ाई कर देनी चाहिए. अदरक की नीलाई गुड़ाई के वक्त पौधों की सुरक्षा का ख़ास ध्यान रखा जाता है. अदरक के कंद जमीन के अंदर रहकर वृद्धि करते हैं. इस कारण जब इनकी नीलाई गुड़ाई करें तो गुड़ाई ज्यादा गहराई में ना करें. इससे अदरक के कंद गुड़ाई के दौरान कट सकते हैं. और इससे पौधा खराब हो सकता है.
अदरक की पहली गुड़ाई के बाद लगभग 25 दिन के अंतराल में 2 से 3 गुड़ाई कर देनी चाहिए. प्रत्येक गुड़ाई के दौरान पौधों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए. अदरक के कंदों की गुड़ाई करने से उन्हें पौषक तत्वों के साथ साथ हवा की भी उचित मात्रा मिलती रहती है. जिससे पौधे को रोग भी कम लगते हैं. और अदरक के कंदों का आकार भी बढता है. जिससे ज्यादा पैदावार प्राप्त होती है.
अदरक के पौधे को लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
अदरक के पौधे को किट और वायरस जनित कई तरह के रोग लगते हैं. इन रोगों से पौधे को बचाने के लिए खेत की अच्छे से देखभाल करना जरूरी होता है. अदरक की खेती कभी भी लगातार नही करनी चाहिए. इसकी खेती लगातार एक ही जगह बार बार करने से इसको लगने वाले रोग के कीट खुद को मजबूत कर लेते हैं. जिन पर कीटनाशकों का असर कम होता है. इसके लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए.
तना बेधक
अदरक की खेती में ये रोग किट की वजह से लगता है. इस कीट का लार्वा पौधे के तने को अंदर से खाकर पौधे को नष्ट कर देता है. पौधे पर इस रोग के लक्षण अक्टूबर माह के आसपास दिखाई देते है. इस दौरान इस रोग से बचाव के लिए पौधे पर मैलाथियान का छिडकाव 20 दिन के अंतराल में 2 या 3 बार करना चाहिए.
पर्ण चित्ती
पौधे पर इस रोग के लक्षण पत्तियों पर दिखाई देता है. इस रोग की वजह से पौधे की पत्तियों पर धब्बे दिखाई देने लगते हैं. जिसके कुछ दिनों बाद इनका आकार बढ़ता जाता है. इस रोग के लगने पर पौधे सूर्य का प्रकाश अच्छे से ग्रहण नही कर पाते. जिससे पौधा कुछ दिनों बाद नष्ट होना शुरू हो जाता है. इस रोग के लगने पर 2 ग्राम गंधक प्रति लिटर के हिसाब से पानी में डालकर पौधों पर छिडकाव करना चाहिए. इसके अलावा मिथाइल डिमेटान का छिडकाव भी कर सकते हैं.
राइजोम शल्क
अदरक के पौधों पर ये रोग शुरुआत में ही देखने को मिलता है. इस रोग के कीट का लार्वा पौधे के कंद भाग पर आक्रमण करता हैं. और कंद का रस चूसकर उसे नष्ट कर देता है. जिससे पौधा उगने के दौरान ही मुरझाकर नष्ट हो जाता है. इसकी रोकथाम के लिए पौधे के बीज को खेत में लगाने से पहले क्विनालफॉस के घोल में आधे घंटे तक डुबोकर रखना चाहिए.
जड़ बेधक
इस कीट का लार्वा पौधे के नर्म भागों पर आक्रमण करता है. इसका लार्वा पौधे के तने या नरम कंद को खाकर पौधे की वृद्धि रोक देता हैं. जिससे पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगती है. और पौधा जल्द ही नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए क्लोरपाइरीफोस का छिडकाव पौधों की जड़ों में करना चाहिए.
मृदु विगलन
पौधे पर ये रोग पानी भराव की वजह से ज्यादा होता है. इस कारण इसका पहला सबसे अच्छा उपाय है की खेत में पानी जमा ना होने दें. इस रोग के लक्षण पौधे पर मानसून के टाइम देखने को मिलते है. पौधे पर इस रोग की शुरुआत मिट्टी के ऊपरी भाग से होती है. जिसके बाद ये रोग पौधे पर उपर की तरफ बढ़ने लगता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियां पीली होकर सूखने लगती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर ट्राइकोडर्मा हरजियानम और नीम केक की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
अदरक की खुदाई और सफाई
अदरक का पौधा रोपाई के आठ महीने बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाता है. कंदों के तैयार हो जाने पर पौधे की पत्तियां पिली होकर सूखने लगती है. अदरक की खुदाई दो तरीके से की जाती है. अगर अदरक की खुदाई सब्जी के रूप में लेनी हो तो इसकी खुदाई इसके पूर्ण रूप से पकने से पहले ही 6 या 7 महीने में कर लेनी चाहिए. उसके बाद अदरक की मिट्टी को अच्छे से साफ कर उसे एक दिन धूप में सुखाकर बाज़ार में बेचनी चाहिए.
आठ महीने बाद अदरक की खुदाई भण्डारण और बीज के लिए की जाती है. इस दौरान इसकी खुदाई पौधे की पत्तियां पूर्ण रूप से सुख जाने के बाद की जाती है. इससे कंद अधिक गुणवत्ता वाले प्राप्त होते हैं. जिन्हें साफ कर अधिक समय तक भंडारण कर रखा जा सकता है. इसके कंदों को पानी से साफ़ कर उसके छिल्को को हटा देते हैं. जिसके बाद कंदों को लगभग सात दिनों तक तेज़ धूप में सुखाया जाता है. अगर इसके कंदों का भंडारण बीज बनाने के लिए कर रहे हो तो कंदों को क्विनालफॉस या मैन्कोजेब से उपचारित कर ही भंडारण करें. इससे बीज ज्यादा दिन तक सुरक्षित रहते हैं.
पैदावार और लाभ
अदरक की अलग अलग किस्मों के आधार पर इसकी औसत पैदावार 15 से 20 टन तक हो जाती है. जिसको सुखाने पर इसकी पैदावार 20 से 22 प्रतिशत शेष रह जाती है. इसकी गीली पैदावार की बाज़ार में कीमत 8 से 10 रूपये प्रति किलो होती है. जिससे किसान भाई एक बार में दो लाख तक की कमाई कर लेते हैं.