एलोवेरा की खेती आज बहुत ज्यादा मात्रा में की जा रही है. एलोवेरा इसका अंग्रेजी नाम है, वैसे इसे घृतकुमारी और ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है. एलोवेरा का उपयोग प्राचीन काल से ही होता रहा है. पहले इसका ज्यादातर उपयोग औषधियों में ही होता था. लेकिन आज इसका उपयोग चिकित्सा जगत की दवाइयों के साथ साथ सौदर्य प्रसाधन की सामग्री, आचार, सब्जी और जुस के रूप में होने लगा है. लेकिन अभी भी इसका ज्यादा उपयोग तो दवाइयाँ बनाने में ही होता है.
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किसान भाई आज इसकी खेती बड़े पैमाने पर करने लगे है. आज भारत में कई फार्मासिटिकल कंपनियां है जो इनकी बड़ी मात्रा में ख़रीदार है. इसके अलावा कॉस्मेटिक सामान बनाने वाली भी काफी ज्यादा कम्पनियाँ हैं, जो इसका बड़ी मात्रा में इस्तेमाल कर रही है. जिस कारण इसकी मांग अब लगातार मार्केट में बढ़ती जा रही है. इसकी बढ़ती मांग को देखकर किसान भाइयों ने भी इसकी खेती बड़ी मात्रा में करनी शुरू कर दी है. जिससे वो लोग काफी ज्यादा मात्रा में मुनाफ़ा कमा रहे हैं.
एलोवेरा की खेती में लागत भी काफी कम आती है. और इसको एक बार लगाने पर यह 2 से 3 साल तक पैदावार देता है. जिस कारण इससे किसान भाइयों की अच्छीखासी आमदनी भी हो जाती है. अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे है तो हम आपको आज यहाँ इसकी खेती करने के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं. जिससे आपको इसकी खेती करने में काफी मद्द मिलेगी.
एलोवेरा की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
एलोवेरा की खेती के लिए सबसे उपयुक्त काली उपजाऊ मिट्टी मानी जाती है. लेकिन इसे पहाड़ी मिट्टी और बलुई दोमट मिट्टी, बलुई मिट्टी में भी उगाया जा सकता है. राजस्थान और गुजरात के साथ साथ उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा में भी इसकी खेती व्यापक तरीके से की जा रही है. वैसे एलोवेरा के पौधे को कम उपजाऊ वाली जगह पर भी आसानी से उगाया जा सकता है, लेकिन इससे शुरूआती कमाई पर काफी ज्यादा असर पड़ता है. एलोवेरा की खेती के लिए ज़मीन की पी. एच. का मान भी 8.5 होना जरूरी माना जाता है.
उन्नत किसम
एलोवेरा की खेती के लिए बढ़िया किस्म का पौधा होना काफी ज़रुरी होता है. भारत में इसकी खेती के लिए कई तरह की किस्में मौजूद है. लेकिन केन्द्रीय औषधीय संघ पौधा संस्थान द्वारा कुछ ऐसी किस्मों के बारें में बताया गया है, जिससे फसल से ज्यादा मुनाफा प्राप्त होता है. जिसमें सिम-सीतल, एल- 1,2,5 और 49 को व्यापार के लिए सबसे उत्तम किस्म माना जाता है. काफी तरह के परीक्षण के बाद इन्हें खेती के लिए तैयार किया गया है. इनसे काफी अधिक मात्रा में जैल प्राप्त होती है.
इनके अलावा और भी कई प्रजातियाँ हैं जो व्यापार के लिए काफी उपयुक्त समझी जाती हैं. जिनमें आई. सी. 111269, आई. सी. 111271, आई. सी. 111273 और आई.सी. 111280 शामिल हैं. इन्हें भी भारत में कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर बोया जाता है.
खेत की जुताई
एलोवेरा की खेती के लिए ज़मीन की जुताई काफी अहम होती है. क्योंकि एलोवेरा के पौधों की जड़ें सिर्फ 20 से 30 सेंटीमीटर नीचे ही जा पाती है. और पौधे को ऊपरी सतह से ही अपने लिया आवश्यक तत्व हासिल करने होते हैं. जिस कारण खेत की जुताई करते टाइम शुरुआती जुताई के बाद खेत को कुछ दिन के लिए खुल्ला छोड़ दें. लेकिन इस दौरान उसकी एक या दो बार और जुताई कर दें.
जिसके बाद एक एकड़ में लगभग 10 से 15 टन के हिसाब से सड़ी हुई गोबर की खाद उसमें डाल दें. गोबर की खाद इसकी पैदावार के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है. क्योंकि ये पौधे के विकास में काफी ज्यादा सहायक होती है. जिससे किसान एक साल में पौधे की कई कटाई कर पाता है. गोबर की खाद डालने के बाद उसमें कुछ नमी बनाने के लिए खेत में पानी छोड़ दें. फिर कुछ दिनों बाद उसकी फिर से अच्छे से जुताई कर दें. जिससे ज़मीन फसल लगाने के लिए तैयार हो जाती है.
पौधे का चयन
एलोवेरा की खेती में हम बीज नही बोते बल्कि तैयार की हुई पौध खेतों में लगाते हैं. जिसके लिए हमें अच्छी किस्म के साथ साथ एक बढ़िया पौध का भी चयन करना होता है. जब हम खेती के लिए पौध का चयन करें तब ख़ास ध्यान रखे कि हम जिस पौध को खेती के लिए खरीद रहे है. वो कम से कम 4 या 5 पत्ती वाली हो साथ में 4 महीने पुरानी और 20 से 25 सेंटीमीटर लम्बी हो. इस तरह की पौधे का चुनाव करने पर फसल काफी जल्दी तैयार हो जाती है. जिससे बड़ा मुनाफा भी मिलता है. एलोवेरा के पौधे की एक सबसे बड़ी ख़ासियत ये होती है की इसकी पौध को उखाड़ने के महीनों बाद भी इसे लगाया जा सकता है.
पौध लगाने का टाइम और और तरीका
एलोवेरा की खेती में इसके लगाने का टाइम और तरीका भी मायने रखता है. एलोवेरा को वैसे तो हम समतल खेत में भी लगा सकते हैं. लेकिन ऐसा तभी करें जब उसकी खेती आप सिर्फ एक साल के लिए करना चाह रहे हों. लेकिन अगर आप 2 या 3 साल तक इसकी खेती करने की सोच रहे तो इसे खेत से लगभग 15 सेंटीमीटर ऊचाई पर लगाये. साथ ही सभी पौधों को एक लाइन से 60 सेंटीमीटर की दुरी पर लगाए, क्योंकि लाइन में लगाने से पत्तियों को तोड़ने में काफी आसानी होती है.
जब पौधे को खेत में लगाए तब उनकी जड़ें मिट्टी से अच्छी तरह से दबा दें. इसके अलावा मिट्टी को समतल से ऊँचा करते टाइम भी मिटटी को अच्छे से दबा दें ताकि पानी या हवा से मिट्टी का कटाव ना हो पायें. क्योंकि अगर आप 2 साल से ज्यादा के टाइम के लिए पौधे को लगा रहे हैं तो ऐसे में अगर मिट्टी का कटाव होता है तो पौधे की जड़ें बहार निकल आयेंगी और पौधा नष्ट हो जाएगा.
एलोवेरा को पौधे को लगाने का सबसे उचित टाइम तो जुलाई का महीना है. क्योंकि उस टाइम बारिश का मौसम रहता है. जिससे सिचाई की आवश्यकता काफी कम होती है. लेकिन सिचाई की सुविधा वाली जगहों पर इसकी खेती कभी भी शुरू कर सकते हैं. लेकिन सर्दी के टाइम में इसकी रुपाई का सबसे ज्यादा ख़याल रखना चाहिए. अगर तेज़ ठंड पड़ रही हो तो इसको रुपाई नही करनी चाहिए.
सिचाई करने का तरीका
एलोवेरा के पौधे को ज्यादा पानी की आवश्यकता नही होती. लेकिन पौधे को खेत में लगाने के साथ ही उसमें पानी दे देना चाहिए. जिसके बाद पौधे की आवश्यकता के अनुसार उसे पानी देते रहना चाहिए. लेकिन कभी भी इसे ज्यादा पानी नहीं देना चाहिए. क्योंकि ज्यादा पानी इसके लिए सही नही होता है. जबकि पानी की कमी को ये आसानी से सहन कर लेता है. इसकी कटाई करते टाइम ख़ास ध्यान रखना चाहिए कि कटाई के तुरंत बाद एक बार पौधे को पानी ज़रुर दे दें. इससे पौधे का अच्छे से विकास होता है और साथ ही पैदावार पर भी फर्क देखने को मिलता है. सिचाई करते टाइम ख़ास ध्यान रखे की कहीं मिट्टी का कटाव तो ना हो रहा हो. और अगर कही ऐसा हो रहा हो तो तुरंत वहां मिट्टी लगाकर उसे रोक दें. बारिश के टाइम ध्यान रखे अगर कही पानी का भराव हो रहा हो तो पानी को तुरंत निकाल दें. अगर आप ऐसा नही करते है तो पौधा खराब हो सकता है.
एलोवेरा को लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
एलोवेरा में काफी कम ही रोग देखने को मिलते है. लेकिन कभी कभी पत्तियों के सड़ने या फिर काले धब्बे पड़ने वाले रोग दिखाई देते हैं. जिसके लिए रिडोमिल, मैंकोजेब और डाइथेन एम-45 का उचित मात्रा में पौधों पर छिडकाव कर देना चाहिए. और अगर दीमक का रोग दिखाई दे तो खेत की जुताई के टाइम क्लोरोपाईरिफास की 5 मी.ली मात्रा को प्रति लिटर पानी के हिसाब से मिलकर छिडकाव कर दें.
फसल की तुड़ाई
एलोवेरा की फसल जल्द ही तैयार हो जाती है. अगर ज़मीन अच्छी उपजाऊ है तो फसल रुपाई के लगभग 8 महीने बाद ही तैयार हो जाती है. जबकि कम उपजाऊ जमीन में यह 10 से 12 महीनों में तैयार होती हैं.
तुड़ाई के टाइम ख़ास ध्यान रखे की पूरी तरह से विकसित हो चुकी सभी पत्तियों को तोड़ ले. अगर आप ऐसा नही करते हैं तो पौधे का विकास रुक जाता है. लेकिन कभी भी नई आ रही पत्तियों को नुक्सान ना पहुँचाए.
एक बार तुड़ाई करने के बाद दूसरी तुड़ाई के लिए पौधा लगभग 2 महीने का टाइम लेता है. जिसके बाद फिर से विकसित हुई पत्तियों को तोड़ सकते हैं. लेकिन दूसरे और तीसरे वर्ष में फसल की पैदावार में इजाफा जरुर देखने को मिलता है.
उपज और लाभ
एलोवेरा की एक एकड़ खेती से किसान साल में 5 से 7 लाख तक की कमाई कर सकता है. क्योंकि एक एकड़ में लगभग 11 हज़ार से ज्यादा पौधे लगते हैं. जिससे आप एक साल में लगभग 20 से 25 टन एलोवेरा आसानी से प्राप्त कर लेते हैं. भारतीय बाजार में इसकी कीमत 25 से 30 हजार प्रति टन के हिसाब से है. जिससे आपकी शुद्ध आय लगभग 3 से 4 लाख तक हो जाती हैं.
उपज को कहाँ बेचे
एलोवेरा की उपज को आसानी से बेचा जा सकता है. आज इंटरनेट के माध्यम से आप किसी भी बड़ी कंपनी से करार कर सीधा उसे बेच सकते हैं. जिससे आपको अच्छे दाम तो मिलेंगे ही साथ में आपको फसल खराब होने से भी बच जायेगी. और अगर आप इसका जूस बनाकर बेचते हैं तो इससे और भी ज्यादा मुनाफा आप कमा सकते हैं.
एलोवेरा की खेती के लिए किस से संपर्क करे ।
mai bhi alovera ki kheti krna chahti hu aur sale krna chahti hu