मिर्च की खेती कैसे करें – Chilli Farming Guide in Hindi

मिर्च की फसल नगदी फसल के रूप में की जाती है. इसकी खेती कर किसान भाई कम समय में ज्यादा कमाई कर सकते है. मिर्च का मसालों के रूप में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. मसाले के अलावा मिर्च का इस्तेमाल अचार, चटनी, सलाद और सब्जी के रूप में भी किया जाता है. मिर्च के अंदर कई ऐसे तत्व मौजूद है जो मनुष्य के शरीर के लिए बहुत लाभदायक होते हैं.

मिर्च की पैदावार

मिर्च का पौधा झाड़ीनुमा होता है, जिसकी ऊंचाई दो फिट के आसपास पाई जाती है. भारत में इसकी खेती आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और राजस्थान में की जाती है. मिर्च की खेती साल भर किसी भी मौसम में की जा सकती है. इसकी खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि उपयुक्त होती है. इसकी खेती के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है. और फूल और फल लगने के दौरान होने वाली बारिश इसकी पैदावार को नुक्सान पहुँचाती है.

अगर आप भी मिर्च की खेती के द्वारा अधिक लाभ कमाना चाहते हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

मिर्च की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर काली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है. इसकी खेती के लिए मिट्टी में उचित जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए. जलभराव की स्थिति में इसके पौधे में कई तरह के विषाणु और किट जनित रोग लग जाते हैं. जिसका असर पैदावार पर देखने को मिलता है. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 5.5 से 7 के बीच होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

मिर्च की खेती के लिए आद्र और शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है. इसकी खेती के लिए अधिक गर्मी और सर्दी दोनों ही नुकसानदायक होती है. गर्मियों के मौसम में तेज़ हवाओं के चलने से इसके पौधे पर बनने वाले फूल और फल दोनों ही खराब हो जाते हैं. जबकि सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसके पौधे को अधिक नुक्सान पहुँचाता है. इसकी खेती के लिए ज्यादा बारिश की भी आवश्यकता नही होती.

मिर्च के पौधे को अंकुर होने और विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. सामान्य तापमान पर इसका पौधा आसानी से विकास करता है. गर्मियों में इसका पौधा अधिकतम 35 डिग्री और सर्दियों में न्यूनतम 10 डिग्री तापमान पर भी विकास कर सकता है. इससे कम या ज्यादा तापमान होने की स्थिति में पौधे पर बनने वाले फूल और फल खराब हो जाते हैं.

उन्नत किस्में

मिर्च की वर्तमान में कई तरह की किस्में मौजूद हैं. इन सभी किस्मों को उनकी पैदावार के आधार पर तैयार किया गया है. जिनको देशी और संकर प्रजातियों में बांटा गया है.

देशी प्रजाति

देशी प्रजाति की किस्मों की पैदावार संकर किस्मों से कम पाई जाती है.

पंजाबी तेज़

मिर्च की ये एक जल्दी पकने वाली किस्म है. इस किस्म के पौधे अधिक फैले हुए और सामान्य लम्बाई के होते है. इस किस्म की प्रति एकड़ पैदावार 60 क्विंटल ( हरी मिर्च ) और 12 क्विंटल ( लाल सुखी मिर्च ) के आसपास पाई जाती है. इस किस्म के फल लगभग 6 सेंटीमीटर लम्बे होते हैं. जिनका छिलका शुरुआता में पतला और हलके हरे रंग का होता है. जबकि पकने के बाद गहरा लाल रंग का हो जाता है.

पूसा जवाला

उन्नत किस्म की मिर्च

मिर्च की इस किस्म के पौधे बौने पाए जाते हैं. इसके पौधों की परिपक्वता अवधि 130 से 150 दिन की होती है. इस किस्म के फल 9 से 10 सेंटीमीटर लम्बे, पतले और बहुत तीखे होते हैं. इस किस्म के पौधों पर थ्रिप्स का रोग नही लगता. इसकी हरी और लाल सुखी हुई मिर्च की प्रति एकड़ पैदावार 35 और 7 क्विंटल के आसपास पाई जाती है.

काशी अनमोल

मिर्च की ये एक ज्यादा उत्पादन देने वाली देशी किस्म है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 250 क्विंटल ( हरी मिर्च ) और 20 क्विंटल ( सुखी लाल मिर्च ) के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों की लम्बाई दो फिट के आसपास पाई जाती है.

पूसा सदाबाहर

इस किस्म के पौधे दो से ढाई फिट लम्बाई के होते हैं. जिन पर पौध लगाने के दो महीने बाद मिर्च लगना शुरू हो जाती है. इस किस्म के पौधे पर फल गुच्छों में लगते हैं. इस किस्म के फल पकने के दौरान गहरे लाल और तीखे हो जाते हैं. इस किस्म पर पत्ती मरोड का रोग नही लगता. इस किस्म की हरी और लाल मिर्च की प्रति एकड़ पैदावार 40 और 10 क्विंटल के आसपास पाई जाती है.

पंजाब सिंदूरी

मिर्च की ये एक जल्द पकने वाली किस्म है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 70 से 75 दिन बाद फल देना शुरू कर देते हैं. जिनकी प्रति एकड़ पैदावार 70 क्विंटल ( हरी मिर्च) और ( सुखी लाल मिर्च) 15 क्विंटल के आसपास पाई जाती है. शुरुआत में इसके फल गहरे हरे होते हैं. लेकिन पकने के बाद गहरे लाल दिखाई देते हैं. जिनका छिलका मोटा होता है.

संकर किस्म

संकर किस्मों को संकरण के माध्यम से तैयार किया जाता है. जिनका उत्पादन देशी किस्मों से ज्यादा पाया जाता है.

अर्का मेघना

अर्का मेघना एक अधिक पैदावार देने वाली संकर किस्म है. जिसका प्रति एकड़ उत्पाद 130 से 140 क्विंटल ( हरी मिर्च ) और ( सुखी लाल मिर्च ) 15 से 20 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के फल शुरुआत में हलके हरे रंग के होते है. जो सूखने के बाद गहरे लाल रंग में बदल जाते हैं. इस किस्म के पौधों पर पत्ती धब्बा का रोग नही लगता.

अर्का हरिता

अर्का हरिता भी एक अधिक उपज वाली संकर किस्म है. जिसके फल अधिक तीखे होते हैं. जिनका रंग शुरुआत में हल्का हरा और पकने पर सामान्य लाल दिखाई देता हैं. इस किस्म के पौधों पर चूर्ण आसिता रोग का प्रकोप नही होता. इस किस्म के पौधों की प्रति एकड़ पैदावार लगभग 150 से 200 क्विंटल ( हरी मिर्च ) और 30 से 35 क्विंटल ( सुखी लाल मिर्च ) के आसपास पाई जाती है.

काशी अर्ली

उन्नत किस्म की संकर मिर्च

काशी अर्ली हरी मिर्च के उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त होती है. इस किस्म की तुड़ाई हर सप्ताह की जा सकती है. जिसकी 10 से 12 तुड़ाई की जा सकती है. इस किस्म की प्रति एकड़ पैदावार लगभग 80 से 90 क्विंटल ( हरी मिर्च ) और 18 से 20 क्विंटल ( लाल मिर्च ) तक पाई जाती है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 50 दिन बाद ही पैदावार देना शुरू कर देते हैं.

कल्याणपुर चमन

इस किस्म के पौधे सामान्य लम्बाई के होते हैं. इस किस्म के फल अत्यधिक तीखे होते हैं. और आकार में लम्बे दिखाई देते हैं. जिनका रंग शुरुआत में हरा और पकने के बाद सामान्य लाल दिखाई देता है. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर सुखी लाल मिर्च की पैदावार 25 से 30 क्विंटल तक पाई जाती है.

खेत की तैयारी

मिर्च की खेती के लिए शुरुआत में खेत में मौजूद सभी तरह के अवशेषों को नष्ट कर दें. उसके बाद मिट्टी पलटने वाले हलों से खेत की गहरी जुताई कर तेज़ धूप लगने के लिए खेत को खुला छोड़ दें. उसके कुछ दिन बाद खेत में 25 से 30 गाडी प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पुरानी गोबर की खाद डालकर मिट्टी में मिला दें. खाद डालकर मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी छोड़ दें. पानी छोड़ने के दो से तीन दिन बाद खेत की फिर से जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लें. और साथ में पाटा चलाकर मिट्टी को समतल बना लें.

पौध तैयार करना

मिर्च के बीजों को सीधा खेतों में नही उगाया जाता. इसके लिए सबसे पहले मिर्च की पौध तैयार की जाती है. जिनकी तैयारी नर्सरी में की जाती है. नर्सरी में इसके बीजों की रोपाई से पहले उन्हें थायरम या बाविस्टन से उपचारित कर लेना चाहिए. नर्सरी में इसके बीज की रोपाई जमीन से कुछ ऊंचाई पर की जाती है. एक हेक्टेयर के लिए संकर किस्म का आधा किलो और देशी किस्म का एक किलो बीज काफी होता है.

नर्सरी में इसके बीजों की रोपाई के लिए एक मीटर चौड़ी और 5 मीटर लम्बाई की समतल से उठी हुई क्यारी तैयार करते हैं. इन क्यारियों में 25 किलो पुरानी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद को डालकर उसे मिट्टी में मिला दें. उसके बाद इसके बीजों की रोपाई पंक्ति में की जाती है. इसके लिए क्यारी में चार से पांच सेंटीमीटर की दूरी छोड़ते हुए हलकी नाली बना लेते हैं. इन नालियों में बीज डालकर उन पर हल्की मिट्टी डालकर ढक देते हैं. उसके बाद क्यारियों की हजारे की सहायता से सिंचाई करते हैं.

सिंचाई करने के बाद क्यारियों को पुलाव या सूखी हुई घास से ढक देते है. पुलाव से ढकने से बीजों का अंकुरण अच्छे से होता है. जब इसके बीज अंकुरित हो जाएँ तब पुलाव को हटा देते हैं. नर्सरी में इसके बीज की रोपाई पौध लगाने के टाइम से लगभग एक से डेढ़ महीने पहले करनी चाहिए. जिससे पौध समय पर तैयार हो जाती है.

पौध की रोपाई का टाइम और तरीका

मिर्च के पौधों की रोपाई समतल और मेड बनाकर की जाती है. समतल में इसकी रोपाई 4 गुना 10 फिट की क्यारी बनाकर की जाती हैं. इन क्यारियों में इसकी पौध को ढाई फिट की की दूरी पर उगाया जाता है. ताकि पौधे को फैलने के लिए आसानी से पूरी जगह मिल सके. जबकि मेड पर इसकी रोपाई करते समय मेड से मेड की दूरी तीन फिट और पौधे से पौधे की दूरी डेढ़ फिट रखी जाती है.

मिर्च के पौधे

दोनों तरह से इसके पौधों की रोपाई करते वक्त पौधों की जड़ों को तीन से चार सेंटीमीटर नीचे जमीन में गाड़ना चाहिए. इसके पौधों की रोपाई कभी भी तेज़ धूप में नही करनी चाहिए. इसलिए पौधों की रोपाई के लिए शाम का वक्त सबसे उपयुक्त होते है. शाम को इसके पौधों की रोपाई करने पर पौधों का अंकुरण अच्छे से और अधिक मात्रा में होता है.

इसके पौधों की शरदकालीन रोपाई के लिए अक्टूबर और मध्य नवम्बर का महीना सबसे उपयुक्त होता है. इस दौरान इसकी रोपाई करने पर पैदावार ज्यादा प्राप्त होती है. जबकि गर्मियों के मौसम के लिए इसकी रोपाई फरवरी और मार्च महीने में की जाती है.

पौधों की सिंचाई

मिर्च के पौधों की रोपाई खेत में करने के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर देनी चाहिए. उसके बाद पौधों के अंकुरित होने तक खेत में नमी बनाए रखने के लिए हल्की सिंचाई करें. इसके पौधों को सर्दियों में कम और गर्मियों में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है. सर्दियों में इसके पौधों को 10 से 15 दिन के अंतराल में जमीन सूखने पर पानी देना चाहिए. जबकि गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को सप्ताह में दो बार पानी की आवश्यकता पड़ती है. और बारिश के मौसम में इसके पौधे को पानी की कम ही आवश्यकता होती है.

उर्वरक की मात्रा

मिर्च के पौधों को उर्वरक की ज्यादा जरूरत होती है. खासकर इसके पौधे पर जब फूल और फल बन रहे होते हैं तब उर्वरक की ज्यादा जरूरत होती है. इसके लिए पौधे की रोपाई से पहले 25 से 30 गाड़ी गोबर की पुरानी खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालकर उसे मिट्टी में मिला दें. गोबर की खाद की जगह कम्पोस्ट खाद का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में नाइट्रोजन 140 किलो, फास्फोरस 60 किलो और पोटाश 80 किलो की मात्रा को आपस में मिलाकर खेत की आखिरी जुताई के वक्त खेत में छिड़क दें.

खरपतवार नियंत्रण

मिर्च की खेती में खरपतवार नियंत्रण करना जरूरी होता है. क्योंकि खरपतवार के होने से पौधे अच्छे से विकास नही कर पाते. जिससे पौधों से पैदावार कम प्राप्त होती है. इसलिए खरपतवार नियंत्रण कर पौधों से अच्छी पैदावार ली जा सकती है. मिर्च की खेती में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक और प्राकृतिक दोनों तरीके से की जाती है.

रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए आक्सीफ्लोरफेन का पौधे की रोपाई से पहले खेत में छिडकाव करना चाहिए. जबकि प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए पौधों की कम से कम तीन बार नीलाई गुड़ाई कर देनी चाहिए. पौधों की पहली गुड़ाई पौध रोपण के 20 दिन बाद कर दें. और बाकी की गुड़ाई 15 से 20 दिन के अंतरालों में कर दें.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

मिर्च के पौधे में कई तरह के रोग लगते हैं. जिनकी समय रहते रोकथाम नही की जाए तो पूरी पैदावार प्रभावित होती हैं.

छाछया

रोग ग्रस्त पौधे

मिर्च के पौधों पर लगने वाले इस छाछया रोग को सफ़ेद रोली के नाम से भी जाना जाता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर सफ़ेद चूर्णी धब्बे दिखाई देने लगते हैं. इस रोग की वजह से पौधे की पत्तियां पीली पड़कर गिरने लगती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर केराथियॉन एल सी की उचित मात्रा का छिडकाव 10 से 15 दिन के अंतराल में करना चाहिए.

सूत्र कृमि

मिर्च के पौधे पर लगने वाला ये रोग पौधे को बहुत ज्यादा नुक्सान पहुँचाता है. इस रोग के लगने पर पौधे की जड़ों में गांठे बनने लगती है. जिससे पौधे की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती है. और पौधे का विकास रुक जाता है. पौधे पर ये रोग रोपाई के बाद कभी भी दिखाई दे सकता है. इस रोग की रोकथाम के लिए कार्बोफ्यूरान का छिडकाव मिट्टी में कर दें. इसके अलावा पौधों की रोपाई के वक्त पौधों को फॉस्फोमिडॉन की उचित मात्रा के घोल से उपचारित कर खेत में लगाना चाहिए.

मोजेक

मोजेक रोग का प्रभाव पौधे की पत्तियों पर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियां सिकुड़कर मुड़ने लगती है. और पत्तियों पर हलके और गहरे पीले धब्बे दिखाई देते हैं. जिससे पौधे का विकास रुक जाता है. और यह रोग पास वाले पौधों पर भी फैलने लगता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे को खेत से निकालकर दूर गहराई में दबा दें. इसके अलावा इसके प्रभाव को कम करने के लिए रेडियो, घड़ी और टॉर्च में काम आने सेल को फोड़कर उसकी एक ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी में मिलाकर पौधे पर छिडकाव करना चाहिए.

सफेद लट

सफेद लट मिर्च के पौधों को जमीन में रहकर नुक्सान पहुँचाती है. पौधों पर सफेद लट का प्रकोप ज्यादातर बरसात के मौसम के बाद ज्यादा देखने को मिलता है. सफेद लट पौधे की जड़ों को काटकर सम्पूर्ण पौधे को नुकसान पहुँचाती है. इस रोग के लगने पर पौधा मुरझाकर सूखने लगता है. इस रोग की रोकथाम के लिए फोरेट या कार्बोफ्यूरान की उचित मात्रा को रोपाई से पहले खेत में मिला दें.

आर्द्र गलन

मिर्च के पौधे पर आर्द्र गलन रोग का प्रकोप पौधे की छोटी अवस्था में देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर जमीन की सतह के पास से पौधे का तना काला दिखाई देने लगता है. जिसके कुछ दिन बाद तना सड़ने की वजह से पौधा गिरकर नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे को रोपाई से पहले थाइरम या कैप्टान से उपचारित कर उगाना चाहिए. जबकि खड़ी फसल में रोग लगने पर इनका छिडकाव पौधों की जड़ों के पास करना चाहिए.

फूलों का झाड़ना

मिर्च के पौधे में फूल झड़ने की वजह से पैदावार को सबसे ज्यादा नुक्सान पहुँचता है. पौधों फूल झडन का रोग कई तरह के कारकों की वजह से होता है. जिसमें मौसम परिवर्तन भी एक मुख्य कारक है. पौधे में फूल झडन को रोकने के लिए पौधे पर नैथलिन एसिटिक एसिड की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

मिर्च की तुड़ाई

मिर्च की अलग अलग किस्मों की तुड़ाई अलग अलग समय पर की जाती है. मिर्च की कई किस्में तो पौध रोपाई के लगभग 50 दिन बाद ही पैदावार देना शुरू कर देती हैं. जबकि कुछ इनसे ज्यादा टाइम लेती हैं. लेकिन इन सभी की पहली तुड़ाई के बाद बाकी की सभी तुड़ाई 10 से 12 दिन के अंतराल में की जाती है. मिर्च की बार बार तुड़ाई करने पर पौधे से पैदावार अधिक मात्रा में प्राप्त होती है. लेकिन लाल मिर्च बनाने के लिए फलों की तुड़ाई 120 से 130 दिन बाद करनी चाहिए. पकी हुई लाल मिर्चों को 8 से 10 दिन तक तेज़ धूप में सुखाया जाता है. और जब मिर्च आधी सुख जाएँ तब उन्हें रात के वक्त एकत्रित कर ढककर दबा दिया जाता है. इससे मिर्च और ज्यादा तीखी बनती है. जिसके बाद उन्हें बोरोन में भरकर बाजार में बेच दिया जाता है.

पैदावार और लाभ

मिर्च की अलग अलग देशी किस्मों से ताज़ी हरी मिर्च की प्रति एकड़ औसतन पैदावार 35 से 50 क्विंटल तक पाई जाती है. जबकि संकर किस्मों से 250 से 300 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त होती है. जिनका बाज़ार भाव 15 से 40 रूपये प्रति किलो मिलता है. जिससे किसान भाई एक बार में एक एकड़ से देशी किस्म से एक लाख और संकर किस्म से तीन से पांच लाख तक की कमाई आसानी से कर सकता है. जबकि सुखाकर बेचने पर लाभ और भी ज्यादा मिलता है.

Leave a Comment