धनिया का सबसे ज्यादा उपयोग मसाले के रूप में किया जाता है. धनिया का उपयोग बीज और पत्ती दोनों रूप में ही किया जाता है. पत्ती वाले धनिये का इस्तेमाल चटनी बनाने में और पकी हुई सब्जियों में डालकर उसको स्वादिष्ट बनाने में किया जाता है. दरअसल धनिये के अंदर एक वाष्पशील तेल पाया जाता है. जिसके इस्तेमाल से खाने की चीजें स्वादिष्ट बन जाती हैं.
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धनिये के बीज से तेल, कैंडी, सूप, शराब और सीलबन्द भोज्य पदार्थों को खुशबूदार बनाया जाता है. मिठाइयों में इसके बीजों को पाउडर बनाकर इस्तेमाल करते हैं. इसके अलावा धनिये के इस्तेमाल से साबुन और कई द्रव्य पदार्थ को खुशबूदार बनाया जाता हैं.
धनिये की खेती शीतोष्ण जलवायु वाले प्रदेशों में की जाती हैं. भारत में धनिये का उत्पादन राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश में की जाती है. धनिये के अंदर फाइबर, कैल्शियम, कॉपर, आयरन, विटामिन-ए, सी, के और कैरोटिन जैसे उपयोगी तत्त्व पाए जाते हैं. इसके दो बीज रोज़ चबाकर खाने पर शुगर की बीमारी कम होती है.
अगर आप भी इसकी खेती करना चाह रहे है तो आज हम आपको इसके बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
धनिये की खेती के लिए उपयुक्त भूमि
धनिये की खेती के लिए अच्छी तरह जल निकाशी वाली दोमट मिटटी की आवश्यकता होती है. जबकि ज्यादा पानी वाली जगह पर इसकी खेती काली मिटटी में की जाती हैं. इसके अलावा धनिये को और भी कई तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता हैं. धनिया की फसल के लिए क्षारीय और लवणीय मिटटी उपयुक्त नहीं होती हैं. इसलिए धनिये की खेती के लिए भूमि की पी. एच. का मान 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए.
जलवायु और तापमान
धनिया की खेती शीतोष्ण जलवायु वाली जगह पर होती हैं. इसकी पैदावार के लिए शुष्क और ठंडा मौसम काफी अच्छा होता है. इस दौरान पौधा ज्यादा पैदावार देता हैं. धनिये के बीज आने के दौरान उच्च गुणवत्ता और खुशबूदार बीज बनाने के लिए हलकी सर्दी का होना जरूरत होता हैं. जबकि सर्दियों में पड़ने वाले पाले की वजह से इसकी फसल खराब हो जाती हैं. इस कारण इसे पाले से बचाकर रखा जाता है.
धनिये के बीज के उगने के दौरान 25 डिग्री तक तापमान की जरूरत होती हैं. जिसके बाद पत्तियों के बनने के दौरान दिन में इसके पौधे को तेज़ धुप की जरूरत होती हैं. इस दौरान तापमान 30 से 35 डिग्री के आसपास होना चाहिए.
धनिया की किस्में
धनिया की बहुत सारी किस्में बाज़ार में पाई जाती हैं. लेकिन अच्छे उत्पादन के लिए इनमें से उच्च गुणवत्ता वाली किस्म की जरूरत होती हैं. जिन्हें तीन श्रेणियों में बांटा गया है. जिनके बारें में हम आपको बताने वाले हैं.
उत्तम बीज वाली किस्में
इस श्रेणी के बीजों की गुणवत्ता काफी अच्छी होती है. और इसके बीजों के अंदर पाए जाने वाले सुगन्धित तेल की मात्रा ज्यादा होती हैं. इस तरह की किस्मों में आर सी आर 435, सिम्पो एस 33 और आरसीआर 684 शामिल हैं.
पत्तीदार किस्में
धनिये की इस श्रेणी वाली किस्मों का इस्तेमाल पत्तियों के रूप में किया जाता हैं. जिनका आकार काफी बड़ा होता है. इनमें आर सी आर 728, ए सी आर 1 और गुजरात धनिया- 2 जैसी किस्में शामिल हैं.
पत्ती और बीज दोनों की मिश्रित किस्में
इस किस्म के पौधों से बीज और पत्तियां दोनों प्राप्त होती हैं. इस किस्म के बीजों को तैयार होने में काफी ज्यादा टाइम लगता हैं. शुरुआत में इसकी पत्तियों की कटाई की जाती है. जिसके बाद उन पर बीज आते हैं. इन तरह की किस्मों में जे डी-1, पंत हरीतिमा, आर सी आर 446 और पूसा चयन- 360 शामिल हैं.
क्रं. स. | किस्म का नाम | पकने का टाइम | उत्पादन क्षमता (क्विं. / हे.) | विशेष गुण |
1 | जे डी-1 | 120 – 130 | 14 – 16 | दाने गोल और माध्यम आकर वाले, पौधा उकठा रोग रहित, सिंचाई और असिंचित दोनों जगह उपयोगी |
2 | आर सी आर 480 | 120 – 130 | 12 – 14 | सिंचाई वाली जहों में उपयुक्त, दाने माध्यम आकर वाले, पौधा माध्यम आकर वाला उकठा, स्टेम गाल, भभूतिया निरोधक |
3 | ए सी आर 1 | 110 – 120 | 13 -14 | दानो का आकर छोटा, पौधा बड़ी पत्तियों वाला मध्यम आकर वाला, पत्तियों वाली किस्म |
4 | सी एस 6 | 110 – 115 | 12 – 14 | दाने और पत्तियां सामन्य आकार वाले, उकठा, स्टेम गाल, भभूतिया निरोधक |
5 | सिम्पू एस 33 | 140 – 150 | 13 – 14 | दानों का आकर बड़ा, पौधा माध्यम आकर वाला उकठा, स्टेम गाल रोग निरोधक |
6 | गुजरात धनिया 2 | 110 – 115 | 15- 16 | हरी पत्तियों के लिए ख़ास, मध्यम आकर वाली शाखाओं युक्त पौधा, |
7 | पंत हरीतिमा | 120 – 125 | 15 – 20 | बीज और पत्तियों के लिए उपयुक्त, उकठा, स्टेम गाल रोग निरोधक |
8 | आर सी आर 435 | 110 – 130 | 11 – 12 | जल्द तैयार होने वाली बड़े दानो वाली, पौधे का आकर झाड़ीनुमा, उकठा, भभूतिया निरोधक |
9 | आर सी आर 436 | 90 – 100 | 11 – 12 | उकठा, भभूतिया निरोधक बड़े दानो वाली फसल |
10 | आर सी आर 446 | 110 – 130 | 13 – 14 | हरी पत्तियों के लिए उपयुक्त ज्यादा पत्तियों वाली किस्म, दानो का आकर सामान्य, कम सिंचाई वाली जगहों के लिए सबसे उपयुक्त |
11 | कुंभराज | 115 -120 | 14 – 15 | उकठा ,अमंगल, भभूति रोग प्रतिरोधक, पत्ती और बीज दोनों के लिए उपयोगी, छोटे दानो वाला |
12 | हिसार सुगंध | 120 – 125 | 20 – 25 | सामान्य आकर के दाने वाली किस्म, उकठा, स्टेम गाल रोग प्रतिरोधक |
13 | आर सी आर 41 | 130 – 140 | 9 – 10 | गुलाबी फूल वाले छोटे दाने, .25 % तेल की मात्रा वाला मिश्रित प्रजाति का पौधा |
खेत की जुताई
धनिया की फसल को बोने से पहले खेत में मौजूद सभी अपशिष्ट को खेत से हटा दें. जिसके बाद उसकी अच्छे से जुताई करें. फिर उसमें गोबर की खाद डालकर उसकी जुताई कर दें. जुताई करने के बाद खेत में नमी बनाने के लिए उसमें पानी चला दें. जिससे खेत में नमी बन जाती है और खरपतवार भी निकल आती हैं. जिसके बाद खेत में फिर से जुताई कर दें.
इस बार जुताई करते टाइम ध्यान दे की जुताई के साथ खेत में पाटा लगा दे. जिससे मिट्टी के ढेले फुटकर समाप्त हो जायें. क्योंकि इसकी बुवाई के टाइम मिट्टी का भुरभुरा होना जरूरी है.
बीज बोने का टाइम और तरीका
धनिया के बीज के लिए इसकी बुवाई 15 अक्टूबर के बाद लगभग 25 से 30 दिन के टाइम में कर देनी चाहिए. जबकि पत्तियों वाले धनिये के लिए इसकी बुवाई अक्टूबर से दिसम्बर माह तक कर देनी चाहिए. जिस जमीन में नमी की मात्रा ज्यादा हो वहां 15 से 20 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बीज खेत में डालना चाहिए. जबकि कम नमी वाली जगह 25 से 30 किलो बीज डालना चाहिए.
खेत में बीज को डालने से पहले भूमि में लगने वाले रोग से बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम और थाइरम को 2:1 के अनुपात में मिलकर बीज में मिलाना चाहिए. इसके अलावा बीज जनित रोग से बचाव के लिए बीज को स्ट्रेप्टोमाइसिन 500 पीपीएम से उपचारित करना चाहिए.
बीज को खेत में बोने से पहले उसे हल्का रगड़कर दो भागों में तोड़ लें. खेत में बीज की बुवाई कतारों में विशेष हल के माध्यम से करनी चाहिए. जिससे हर पंक्तियों के बीच 30 सेंटीमीटर की दूरी ही होनी चाहिए. जबकि बीजों के बीच की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए. बीज को खेत में 4 सेंटीमीटर नीचे तक बोना चाहिए. इससे ज्यादा नीचे बोने पर बीज बहार नही निकल पाता. जिसका असर पैदावार पर पड़ता है.
धनिया की खेती के लिए उर्वरक
हर तरह की फसल के लिए उर्वरक की मात्र निर्धारित की गई है. धनिया की फसल को बोने से पहले एक एकड़ में 8 से 10 गाडी गोबर की खाद डालनी चाहिए. खेत में आखिरी जुताई के दौरान फास्फोरस, जिंक सल्फेट, पोटाश और नाइट्रोजन को 2:2:2:1 के अनुपात में खेत में डालने से पैदावार में फर्क देखने को मिलता हैं.
जिसके बाद बाकी बची नाइट्रोजन की आधी मात्रा को पहली सिंचाई के दौरान देनी चाहिए. और पहली कटाई के बाद उचित मात्रा में हल्का यूरिया खेत में देना चाहिए.
फसल की सिंचाई
धनिये की सिचाई वहां तुरंत कर दें जहाँ बिना नमी वाली जगह में इसे उगाते हैं. जबकि नमी वाली जगह पर इसे उगने के बाद जब पौधा बहार निकल आयें तो उसके कुछ दिन बाद पानी दें. और उसके बाद में पानी पौधे की आवश्यकता के अनुसार दें. धनिये की कई बार सिंचाई की जाती है. लेकिन बीज बनाने के दौरान 5 से 7 सिंचाई की ही जरूरत होती है.
खरपतवार नियंत्रण
धनिया की खेती में खरपतवार सबसे ज्यादा नुक्सान पहुंचाती है. इसके बचाव के लिये खेत की जुताई के टाइम ही खरपतवार नाशक का छिडकाव खेत में कर देना चाहिए. या फिर खेत में उगने वाली खरपतवार को हाथ से निकल दें. ज्यादा खरपतवार होने पर पेन्डीमिथालिन स्टाम्प 30 ई.सी या क्विजोलोफॉप इथाईल टरगासुपर 5 ई.सी. का छिडकाव खेत में करें.
धनिया के पौधे को लगने वाले रोग
धनिया के पौधे रोग जमीन के बाहर ज्यादा कीटों की वजह से लगता है. जिस कारण पत्तियों वाली फसल की पैदावार पर असर ज्यादा पड़ता है.
चेपा
चेपा का रोग हलकी गर्मी शुरू होने के साथ ही लगता है. और पौधे पर फूल आने के दौरान ज्यादा लगता हैं. पौधे पर चेपा का रोग कीटों के कारण लगता है. इस रोग के दौरान पौधे पर हरे और पीले रंग के छोटे छोटे कीट दिखाई देने लगते हैं. जो पौधे के रस को चूसकर उन्हें ख़तम कर देते हैं.
इसके बचाव के लिए पौधे पर आक्सीडेमेटानमिथाइल 25 ईसी या डायमेथियोट 35 ईसी का छिडकाव करना चाहिए. इसके अलावा गोमूत्र को नीम के तेल में मिलकर छिडकाव करना चाहिए.
उकठा
धनिया के पौधे में लगने वाला उकठा रोग के कवक जनित रोग है जो फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम एवं फ्यूजेरियम कोरिएंडर कवक के माध्यम से फैलता है. इसके लगने पर पौधा संक्रमित होकर जल्द ही सूखने लगता है. जिसके कुछ दिनों बाद ही पौधा पूरी तरह से नष्ट हो जाता है.
इसके बचाव के लिए बीज को खेत में लगाने से पहले कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 3 ग्रा. मात्र को एक किलो बीज में मिला लें. और अगर फसल बोने के बाद इसके लक्षण दिखाई दें तो पौधों पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी के हिसाब से मिलकर पौधों पर छिडकाव करें.
स्टेमगॉल
पौधे को ये रोग फफूंदी की वजह से लगता हैं. जिसे लौंगिया के नाम से भी जाना जाता है. इसके लगने से पैदावार को सबसे ज्यादा नुकसान होता हैं. इसके लगने पर पौधे पर गांठे बनने लगती है. और तने पर सूजन आ जाता है. साथ ही बीजों में भी विकृतियाँ आने लग जाती हैं.
इसके बचाव के लिए स्टेªप्टोमाइसिन 0.04 प्रतिशत की उचित मात्रा को पानी में मिलकर छिडकाव करने से रोग से छुटकारा मिलता है. इसके अलावा कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिडकाव करने से भी रोग दूर हो जाता है.
भभूतिया
यह रोग भी कवक के कारण लगता है. इसके लगने पर पौधे की पत्तियों पर सफ़ेद रंग दिखाई देने लगता है. जिसके बाद जल्द ही पत्तियां पीली पड़कर झड जाती हैं. इसके बचाव के लिए. एजाक्सिस्ट्रोबिन 23 एस सी या ट्रायकोडरमा विरडी का उचित मात्रा में छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
फसल की कटाई और सफाई
धनिया की कटाई दो तरह से की जाती है. इसके लिए कटाई का टाइम अलग अलग होता है. अगर हरी पत्तियों के लिए कटाई करनी हो तो पत्तियों के बड़े होने के साथ ही काटना शुरू कर देना चाहिए. ऐसा करने से फसल की कई कटाई की जा सकती है.
बीज बनाने के दौरान इसकी कटाई में टाइम लगता है. जब पौधे की सभी पत्तियां पीली पड़कर नष्ट हो जाती हैं. तब बीज पकना शुरू हो जाता है. और जब पौधे पर बनी डोडी का रंग हरे रंग से बदलकर चमकीला भूरा पीला दिखाई दे तब इसकी कटाई तुरंत कर देनी चाहिए. क्योंकि अगर ज्यादा दिन तक कटाई नही करते हैं तो बीज का रंग खराब होने लग जाता है. जिसका असर फसल की कीमत पर पड़ता है.
बीज की कटाई करने के बाद उसे कुछ दिनों तक धूप में सुखा देते है. जब बीज पूरी तरह से सुख जाता है तो डंठलों को तोड़कर उनसे बीज अलग किया जाता है. बीज के तैयार होने के बाद उसे बाज़ार में बेच दिया जाता है.
पैदावार और लाभ
धनिये की फसल को उगने में किसान भाइयों का काफी कम खर्च आता है. जबकि इसका बाज़ार भाव 40 रूपये किलो के आसपास रहता है. और एक हेक्टेयर से 15 क्विंटल तक धनिया पैदा हो जाता है. जिससे किसान भाई एक बार में 50 हज़ार से ज्यादा की कमाई कर लेते हैं.
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