ड्रिप विधि कम पानी वाली जगहों पर सिंचाई के लिए इजाद की गई एक बहुत ही अच्छी प्रणाली है. जिसके माध्यम से कम पानी होने पर भी पौधों में पानी की आपूर्ति की जा सकती है. और रोज़ पौधों को आवश्यकता के अनुसार पानी दिया जा सकता है. इस विधि के माध्यम से पौधों को पानी उचित मात्रा में सामान तरीके से मिलता है. जिससे पौधों का विकास भी एक सामान होता है. इस विधि को टपक सिंचाई या बूँद-बूँद सिंचाई के नाम से भी जाना जाता है.
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इस विधि में वाल्व, पाइप, नलियों तथा एमिटर को जोड़कर एक नेटवर्क बनाया जाता है. जिसमें पाइप से नलियां जुड़ी होती है. जिनके माध्यम से पानी हर पौधे तक पहुँचता है. वर्तमान में इसका इस्तेमाल काफी बढ़ चुका है. क्योंकि इसके इस्तेमाल से आज किसान भाई कम खर्च पर अधिक पैदावार प्राप्त कर रहे हैं.
ड्रिप विधि से सिंचाई किस तरह से की जाती है और किन कारकों की जरूरत होती है. आज हम आपको इनके बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
ड्रिप विधि के फायदे
ड्रिप विधि के बहुत सरे फायदे है. जिस कारण इसका इस्तेमाल पूरे विश्व में बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है.
- टपक विधि के इस्तेमाल से उन जमीन पर भी खेती की जा सकती है, जो उबड खाबड़ होने की वजह से सिंचाई के उपयोगी नही होती और बंजर हो जाती है. क्योंकि इस विधि से हर पौधे के पास पानी पहुँचाया जाता है. जिस कारण बंजर भूमि में भी पौधा आसानी से विकास करता है.
- इसके इस्तेमाल से पानी की 70 प्रतिशत तक बचत की जा सकती है. क्योंकि साधारण तरीके से सिंचाई करने पर पानी वाष्पन और मिट्टी के सोखने से खराब हो जाता है. जिस कारण पौधों को पानी उचित मात्रा में नही मिल पाता है. और पौधों को जल्द फिर से पानी की जरूरत होने लगती है. जबकि ड्रिप विधि से पौधों को पानी उचित मात्रा में लगातार मिलता है.
- साधारण तरीके से सिंचाई करने पर खेत में खरपतवार अधिक जन्म लेती है. जिससे पौधे को उर्वरक की उचित मात्रा नही मिल पाती. जबकि टपक विधि से सिंचाई करने से पानी सीधा पौधों की जड़ों को मिलता है. जिससे सुखी जमीन में अनावश्यक खरपतवार जन्म नही ले पाती. खरपतवार ना होने की वजह से पौधों को पोष्टिक तत्व और उर्वरक उचित मात्रा में मिलते है. इससे पौधों को ज्यादा उर्वरक की भी जरूरत नही पड़ती. और किसान भाइयों का उर्वरक पर होने वाला ज्यादा खर्च भी कम हो जाता है.
- इस विधि के इस्तेमाल से समय और मजदूरी में होने वाला खर्च भी कम होता है.
- इस विधि के इस्तेमाल से पौधों को पानी, उर्वरक और पोषक तत्व उचित मात्रा में मिलते रहते हैं. जिससे पौधों में तनाव देखने को नही मिलता. और पौधे अच्छे से विकास करते हैं. जिससे पैदावार में भी वृद्धि देखने को मिलती है.
- यह विधि प्राकृतिक वातावरण के लिए भी उपयोगी है. क्योंकि इस विधि से पैदावार करने पर पौधों में उर्वरक और रसायनों का इस्तेमाल कम होता है. जिससे मिट्टी और वातावरण दोनों प्रदूषित होने से बचते है. और इस विधि के इस्तेमाल से भूमी के अंदर पानी का स्तर बना रहता है. जिससे पानी की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है.
किस तरह की फसलों में करें इस्तेमाल
ड्रिप विधि का इस्तेमाल अनाज वाली और सघन बुवाई वाली खेती में नही कर सकते. क्योंकि सघन बुवाई वाली फसलों में पौधे अधिक मात्रा में पाए जाते हैं. जिससे प्रत्येक पौधे के पास अच्छे से पानी नही पहुँच पाता है. इसके अलावा इस तरह की फसल में नलियों की संख्या में बढ़ोतरी होती है. जिससे इसके इस्तेमाल में खर्च भी ज्यादा होता है.
ड्रिप विधि का इस्तेमाल अधिक दूरी पर उगाई जाने वाली फसलों में किया जाता है. इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल बागबानी और सब्जियों वाली फसलों में किया जा रहा है.
ड्रिप विधि के लिए आवश्यक चीजें
ड्रिप विधि के लिए हमें हेडर असेंबली, वाल्व, पाइप, नली और एमिटर की आवश्यकता होती है. वर्तमान में ऐसी नलियाँ आ चुकी हैं, जिनमें एमिटर की जरूरत नही होती. इन नलियों में एमिटर अंदर की तरफ उचित दूरी पर पहले से ही लगे होते हैं. एमिटर को ड्रिपर के नाम से भी जाना जाता है. जो पौधे के पास नली में लगाया जाता है.
ड्रिप फैलाने का तरीका
ड्रिप को खेत में फैलाने का टाइम और तरीके अलग अलग होता है. अगर बीज के माध्यम से फसल की जा रही है तो ड्रिप को बीज की रोपाई के बाद खेत में फैलाना चाहिए. इसके लिए बीज की रोपाई पंक्ति में की जानी जरूरी होती है. लेकिन अगर फसल पौध के रूप में लगाईं जा रही हो तो फसल के आधार पर इसे फैलाना चाहिए. जैसे की सब्जी वाली फसल को रोपाई जिगजैग तरीके से कर रहे हो तो दो नालियों को मेड के बीच आधा से एक फिट की दूरी पर फैलाएं. और बागबानी फसल में इसे जड़ों के पास गोल आकार देते हुए पंक्ति में फैलाया जाता है. मुख्य रूप से ड्रिप का फैलाव इस तरह किया जाता है की पौधों को दिया जाने वाला पानी ख़राब ना जाए.
पौधों के पास पानी नालियों के द्वारा पहुँचाया जाता है. इन नालियों को सबलाइन के नाम से जाना जाता है. जो बाज़ार में कई प्रकार की मिलती है. जिनको मेनलाइन से जोड़ा जाता है. मेनलाइन से सबलाइन में पानी के बहाव को कंट्रोल करने के लिए वाल्व लगा होता है. मेनलाइन का कनेक्सन हेडर असेंबली से होता है. जो मोटर के पानी को कंट्रोल करता है. जिससे मोटर के पानी में दबाव और उसकी गति सामान्य हो जाती है.
हेडर असेंबली और मेनलाइन के बीच फिल्टर और फर्टिलाइजर टैंक लगे होते हैं. फिल्टर का इस्तेमाल पानी के अंदर से धुल मिट्टी को निकलने के लिए किया जाता है. जबकि फर्टिलाइजर टैंक के माध्यम से रसायनों को सीधा पौधों की जड़ों में पानी में मिलाकर पहुँचाया जाता है.
ड्रिप का रखरखाव
अधिक समय तक ड्रिप के इस्तेमाल के लिए इसका रखरखाव करना जरूरी होता है. ड्रिप का अच्छे से रखरखाव करने पर इसका इस्तेमाल 10 से 15 साल तक किया जा सकता है. लेकिन अच्छी देखभाल नही करने पर ये जल्द खराब हो जाती है. इसलिए इसके उपयोग के बाद वापस इसके बंडल बनाकर छायादार जगह में रख देना चाहिए. इसका रखरखाव कर ड्रिप पर आने वाले खर्च को कम किया जा सकता है. जिससे आर्थिक नुक्सान में कमी आती है.