अंगूर रसदार फलों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला फल हैं. अंगूर के रस को माँ के दूध के समान बताया गया है. क्योंकि अंगूर के अंदर बहुत सारे तत्व पाए जाते हैं. जो मनुष्य के शरीर के लिए बलवर्धक और सौन्दर्यवर्धक होते हैं. अंगूर के फल को ज्यादा टाइम तक भंडारित करके नही रखा जा सकता, ये बाजार में सिमित समय के लिए उपलब्ध होता है.
अंगूर बीमार व्यक्ति के लिए सबसे अच्छा फल माना जाता है. अंगूर का इस्तेमाल खाने के अलावा दवाइयों और शराब बनाने में भी किया जाता है. अंगूर के फल को सुखाकर इससे किसमिस बनाई जाती है. अंगूर का इस्तेमाल ह्रदय रोग, रक्त चाप, पेट फूलना, बदहजमी जैसी और भी कई तरह की बीमारियों में लाभदायक साबित होता है.
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अंगूर की खेती शुष्क जलवायु में अच्छी पैदावार देती हैं. इसकी खेती के लिए जमीन में पानी का भराव नही होना चाहिए. अंगूर की खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए. अंगूर की खेती के लिए सामान्य तापमान अच्छा होता है. इसकी खेती के लिए ज्यादा बारिश की जरूरत भी नही होती. भारत में इसकी खेती उत्तर भारत में अधिक की जाती है. जिसमें अब लगातार वृद्धि देखने को मिल रही है.
अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसके बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
अंगूर की खेती के लिए किसी ख़ास तरह की मिट्टी की जरूरत नही होती. इसकी खेती किसी भी तरह की अच्छी जल निकासी और उच्च उर्वरक क्षमता वाली मिट्टी में आसानी से की जा सकती है. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए. इसकी खेती ज्यादा अम्लीय और क्षारीय दोनों तरह की मिट्टी में नही की जा सकती है. लेकिन फिलहाल कुछ किस्में तैयार कर ली गई हैं जिन्हें उचित देखरेख से लवणीय भूमि में भी उगाया जा रहा है.
जलवायु और तापमान
अंगूर की खेती शुष्क जलवायु में अधिक पैदावार देती हैं. शुष्क जलवायु में इसका पौधा अच्छे से विकास करता हैं. इसकी खेती के लिए 900 मिलीमीटर वर्षा काफी होती है. अधिक टाइम तक होने वाली बारिश इसकी खेती के लिए हानिकारक होती है. क्योंकि इससे पौधे को कई बीमारियाँ हो जाती हैं. और बारिश फल आने के दौरान हो तो फल बहुत बड़ी मात्रा में खराब हो जाते हैं.
अंगूर के पौधे के लिए सामान्य तापमान सबसे उपयुक्त होता है. लेकिन इसका पौधा 15 से 40 डिग्री तापमान पर भी अच्छे से विकास करता हैं. 14 डिग्री से कम तापमान होने पर इसकी कलियों को नुक्सान पहुँचता है. और 40 डिग्री से अधिक तापमान होने पर इसके फलों का आकार और गुणवत्ता दोनों प्रभावित होते हैं.
उन्नत किस्में
अंगूर का फल कई रंगों और आकार में पाया जाता है. इनके आधार पर ही ज्यादातर किस्मों का निर्धारण किया गया है.
परलेट
अंगूर की ये किस्म जल्दी पकने वाली किस्मों में शामिल है. इसकी ज्यादातर खेती उत्तर भारत में की जाती है. इस किस्म के पौधे पर गुच्छे आकार में बड़े और और गठीले कठोर होते हैं. इस किस्म के अंगूर सफेदी लिए हरे रंग के होते हैं. जिनका आकार गोलाकार होता हैं. इस किस्म के गुच्छों में छोटे फलों का होना सबसे बड़ी समस्या है.
पूसा नवरंग
अंगूर की ये एक संकर किस्म है. जिसको हाल में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली ने मेडी लाइन ज्वाइन और रुबीरेड के संकरण द्वारा तैयार किया है. इसके गुच्छे माध्यम आकार के होते हैं. इसके गुच्छों में फल अधिक मात्रा में पाए जाए हैं जो बीज रहित होते हैं. इस किस्म को भी जल्दी तैयार होने वाली किस्मों में शामिल किया गया है.
ब्यूटी सीडलेस
अंगूर की इस किस्म के फल भी जल्दी पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के फल आकार में अधिक मोटे और बैंगनी रंग में पाए जाते हैं. इस किस्म को उत्तर और मध्य भारत में उगाया जाता है. इसके फल रस बनाने में सबसे ज्यादा उपयोग में लिए जाते हैं. इसके रस से वाइन बनाई जाती है.
पूसा सीडलेस
अंगूर की इस किस्म के फल जून के तीसरे सप्ताह में ही पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म को उत्तर भारत के हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में अधिक मात्रा में उगाया जाता है. इस किस्म को जल्द अधिक पैदावार देने के लिए विकसित किया गया है. इसके गुच्छों का आकार बड़ा होता है. इसके फल बीज़ रहित हरे रंग के होते हैं. जिनके गुदे का स्वाद बड़ा रसीला होता है.
पूसा उर्वशी
अंगूर की ये एक संकर किस्म है. जिसको भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली ने हर और ब्यूटी सीडलेस के संकरण के माध्यम से तैयार किया है. इसके पौधे बहुत जल्द पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधे पर गुच्छों की मात्रा अधिक पाई जाती है. जो आकार में मध्यम और को खुले हुए होते हैं. जिन पर हरे पीले बीज रहित फल पाए जाते हैं. पीला रंग इनके पकने के बाद बनता है.इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 30 टन के आसपास पाई जाती है.
पर्लेट
अंगूर की ये एक विदेशी किस्म हैं. जिसको उतर भारत में उगाने के लिए कैलिफोर्निया से लाया गया है. इस किस्म के फल बीज रहित और जल्दी पकने वाले मध्यम प्रबल होते हैं. इसके फल पर आने वाला छिलका बिलकुल पतला और हरे रंग का होता है. अंगूर की ये किस्म जून के दूसरे सप्ताह में ही पैदावार देना शुरू कर देती है.
सुल्ताना ( थॉमसन सीडलेस )
इस किस्म को दक्षिण पश्चिमी राज्यों के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म की बेल का आकार बड़ा होता है. जिनके गुच्छे लम्बे और खुले हुए होते हैं. इनके फलों का आकार अंडाकार गोल होता हैं. इस किस्म के फल हल्की सफेदी लिए हुए हरे रंग के होते है. इसका फल बीज रहित पाया जाता है. इसकी प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 20 से 25 टन पाई जाती है.
फलेम सीडलेस
फ्लेम सीडलेस भी एक संकर किस्म है. जिसको अधिक उत्पादन देने के लिए तैयार किया गया है. इसके गुच्छे लम्बे और गुथे होते हैं. जिन पर लगने वाले फलों का रंग हल्का जामुनी होता है. इस किस्म के फल बीज रहित और और छिलका कठोर होता है. इस किस्म के पौधों पर फल जून के दूसरे सप्ताह में पककर तैयार हो जाते हैं.
अरका कृष्णा
अंगूर की ये एक संकर किस्म है, जिसको ब्लैक चंपा और थॉम्पसन सीडलेस के संकरण से तैयार किया गया है. इस किस्म के फल बीज रहित काले रंग के होते हैं. इस किस्म के पौधों पर लगने वाले गुच्छे आकार में बड़े और गुथे हुए होते हैं. इसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 33 टन के आसपास पाया जाता है.
इसके अलावा और भी कई किस्में हैं. इनमें अरका कंचन, भोकरी, शरद सीडलेस, परलेटी और काली शाहबी जैसी कई किस्में मौजूद हैं. जिन्हें अधिक उत्पादन के लिए तैयार किया गया है.
खेत की जुताई
अंगूर की खेती के लिए शुरुआत में खेत में मौजूद सभी तरह के अवशेषों को काटकर खेत से अलग कर दें. उसके बाद खेत में रोटावेटर चलाकर खेत की अच्छे से जुताई करें. इससे खेत की मिट्टी बिलकुल भुरभुरी हो जायेगी. और खेत समतल हो जाएगा.
खेत समतल होने के बाद खेत में 3 से 4 मीटर की दूरी रखते हुए गड्डों की पंक्तियाँ तैयार करें. पंक्तियों में गड्डे बनाते टाइम प्रत्येक गड्डों के बीच दो से तीन मीटर की दूरी रखे. सभी गड्डों को एक से डेढ़ फिट को चौड़ाई और एक फिट की गहराई रखते हुए तैयार करें. जब गड्डे तैयार हो जाएँ तो इनमें उर्वरक की उचित मात्रा को मिट्टी में डालकर उसे अच्छे से मिला दें. उसके बाद इन गड्डों में पानी डालकर इनकी सिंचाई कर दे. जिससे गड्डे की मिट्टी अच्छे से जम जाती हैं.
बेलों की रोपाई का टाइम और तरीका
अंगूर के बीज सीधे खेत में नही उगाए जाते. इसकी खेती के लिए नर्सरी में से पहले से तैयार की हुई एक साल पुरानी पौधों को खरीदकर गड्डों में लगाया जाता है. अंगूर की पौध नर्सरी से खरीदते वक्त ध्यान रखे की हमेशा स्वस्थ और एक साल पुरानी पौध ही खरीदे. क्योंकि एक साल पुरानी पौध जल्द फल देना प्रारम्भ कर देती है. और पौध हमेशा कलम से तैयार की हुई ही खरीदे. क्योंकि कलम से तैयार पौध जल्दी फल देती है. और इसके फल गुणवत्ता में भी अच्छे होते हैं.
नर्सरी से खरीदी गई इन पौध को खेत में बनाए गए गड्डों में एक और छोटा गड्डा बनाकर उसमें लगाये. गड्डों में बेल लगाने से पहले गड्डों की खरपतवार निकालकर उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए. ताकि पौधों को किसी तरह का रोग ना लगे. पौध लगाने के बाद उसे चारों तरफ से मिट्टी से अच्छे से दबा दें. पौधों की खेत में रोपाई दिसम्बर माह के लास्ट या जनवरी माह में करनी चाहिए.
पौधों की सिंचाई
अंगूर के पौधे की सिंचाई बेल लगाने के तुरंत बाद ही कर देनी चाहिए. सर्दियों के मौसम में इसके पौधे की 10 से 15 दिनों के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए. और गर्मियों के मौसम में इसकी सिंचाई तीन से चार दिन के अंतराल में करनी चाहिए. जबकि बारिश के वक्त इसे सिंचाई की जरूरत नही होती. लेकिन अगर बारिश टाइम पर ना हो और पौधे को पानी की जरूरत हो तो आवश्यकता के अनुसार पौधों को पानी देना चाहिए.
अंगूर के पौधों की सिंचाई के लिए ड्रिप पद्धति सबसे उपयुक्त होती है. क्योंकि इससे पौधों को उचित मात्रा में पानी मिलता है. जिससे पौधा अच्छे से विकास करता हैं. और फल भी अच्छे प्राप्त होते हैं.
उर्वरक की मात्रा
अंगूर की खेती रासायनिक उर्वरक की सहायता के बिना की जा सकती है. इसके लिए खेत में बनाए गए गड्डों के भराव के वक्त गड्डों में देशी गोबर का खाद 20 से 25 किलो मिट्टी में मिलाकर भर दें. उसके बाद खेत में 5 से 6 महीने बाद फिर से पौधे की हलकी नीलाई गुड़ाई कर उसकी ऊपरी मिट्टी को हटाकर उसमें फिर से गोबर की खाद डाल दें. जिससे पौधे को किसी और रसायनिक खाद की जरूरत नही होती. लेकिन अगर कोई किसान भाई रसायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहे तो इसके लिए पहले खेत की मिट्टी की जांच करा कर पता लगा लें की खेत को कौन से पौषक तत्वों की जरूरत है.
रसायनिक खाद के लिए प्रत्येक गड्डों में एन.पी.के. की आधा किलो मात्रा को गड्डों में डालकर उसे मिट्टी में मिला दें. इसके अलावा अगर मिट्टी में जींक और आयरन की कमी दिखाई दे तो पौधे में 20 ग्राम प्रति गड्डे के हिसाब से जिंक डालकर उसकी सिंचाई कर दें.
बेल की देखरेख
अंगूर की खेती के लिए बेल की देखरेख करना सबसे उपयुक्त है. बेल पर शुरुआत में तीन से चार फिट तक कोई शाखा ना बनने दें. ऐसा करने से पौधे की नीचे से उचित देखभाल की जा सकती है. अंगूर की बेल को फैलने के लिए किसी सहारे की जरूरत होती हैं. इसके लिए लोग कई तरह की विधियाँ अपनाते हैं. लेकिन इसके लिए Y विधि सबसे उपयुक्त होती हैं.
Y विधि में लोहे की एंगल को Y आकार में बना लें. इन लोहे की एंगल को खेत में अंगूर के गड्डों के पास 15 से 20 फिट की दूरी पर जमीन में अच्छे से गाड़ दें. और इसके दोनों सिरों पर 5 से 6 इंच की दूरी बनाते हुए छेद कर दें. इन छेदों में से लोहे के तार को डालकर एक जाल तैयार कर लें.
यह विधि इस फसल के लिए सबसे लाभदायक और सस्ती होती हैं. इस विधि से अंगूर के गुच्छों को तेज़ धुप नही लगती जिससे पैदावार अच्छी होती है. और फलों में गुणवत्ता भी बनी रहती है. इसके अलावा ट्रेलिस सिस्टम, हैड सिस्टम, बॉवर, परगोला और पंडाल सिस्टम से भी अंगूर की बेल की सुरक्षा की जाती हैं.
खरपतवार नियंत्रण
अंगूर के पौधे को खेत में लगाने के बाद गड्डों की उचित टाइम पर नीलाई गुड़ाई कर खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए. इसके लिए पौध लगाने के लगभग 20 दिन बाद गड्डों की हल्की नीलाई गुड़ाई करनी चाहिए. उसके बाद पौधे की हर महीने एक बार गुड़ाई करना अच्छा होता हैं. बारिश के मौसम के बाद पौधे के बीच बची हुई जमीन की जुताई कर उसमें मौजूद सभी खरपतवार को नष्ट कर दें.
पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
अंगूर के पौधों में कई तरह के रोग पाए जाते हैं. जो अंगूर के पौधे और फल दोनों को नुक्सान पहुँचाते हैं.
एन्थ्रेकनोज
इस रोग के कीट पौधे के नर्म भागों पर ज्यादा आक्रमण करते हैं. इस रोग की शुरुआत में पौधे की पत्तियों पर भूरे काले धब्बे दिखाई देने लगते हैं. इसके कुछ वक्त बाद सभी पत्तियों में छोटे छोटे छेद बनने लग जाते हैं. अगर ये रोग फल आने के दौरान पाया जाता है तो फलों के बीज छिलके को फाड़कर बहार आ जाते हैं. पौधों पर ये रोग नमी के मौसम में ज्यादा देखने को मिलता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर कॉपर हाइड्रॉक्साइड, बोर्डो मिश्रण या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
बैक्टीरियल लीफ स्पॉट
पौधों पर ये रोग भी अधिक आद्रता के वक्त देखने को मिलता हैं. इस रोग की वजह से नई कलियाँ सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं. कलियों पर काले रंग के धब्बे बन जाते हैं जो बाद में सुख जाते हैं. इस रोग से बचाव के लिए पौधों पर स्ट्रेप्टोमाइसिन 500 पीपीएम का छिडकाव करना चाहिए.
सफेद चूर्णी
अंगूर के पौधों पर सफेद चूर्णी का रोग गर्मियों के मौसम में देखने को मिलता हैं. इस रोग के लग जाने की वजह से पौधे की पत्ती, फूल और फलों पर सफ़ेद पाउडर के दाग दिखाई देने लगता हैं. जो वक्त के साथ साथ बढ़ते हुए सभी फलों पर लग जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर सल्फर इस्टिंग का छिडकाव करना चाहिए.
भुंडियां
अंगूर के पौधों पर ये रोग कीटों की वजह से फैलता है. इस रोग के कीट हरे लाल और पीले रंग में होते हैं. ये कीट पौधे की नई पत्तियों को ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं. जिससे पौधा पत्तियों रहित दिखाई देने लगता है. इस रोग की वजह से पैदावार पर बहुत ज्यादा असर देखने को मिलता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर मैलाथियान का छिडकाव उचित मात्रा में करना चाहिए.
काली दुर्गन्ध
अंगूर के पौधों आर ये रोग बारिश के वक्त दिखाई देता है. इस रोग के की वजह से पौधे की वृद्धि रुक जाती है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर भूरे लाल रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. और अंगूर के फलों पर काले रंग की पपड़ियाँ बनने लग जाती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर सप्ताह में दो बार बोर्डो मिश्रण का छिडकाव करना चाहिए.
लीफ ब्लाइट एंड बंच निक्रोसिस
पौधों पर ये रोग ज्यादा सर्दी और ज्यादा गर्मी के वक्त दिसम्बर और जून के महीने में देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर धब्बे बनने लगते हैं. जो धीरे धीरे बड़े होते जाते हैं. जिनका रंग भूरा दिखाई देने लगता हैं. इस रोग के लगने के कुछ दिनों बाद पत्तियां पौधे से टूटकर गिर जाती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर सिस्टेमिक कवकनाशी का छिडकाव करना चाहिए.
फलों की गुणवत्ता बढ़ाना
अंगूर के फल कुछ खट्टे स्वाद वाले होते हैं. लेकिन इनकी गुणवत्ता के सुधार के लिए इन के गुच्छों को जिब्रेलिक एसिड में डुबोया जाता है. जिब्रेलिक एसिड की उचित मात्रा को पानी में मिलाकर इसके गुच्छों को आधा मिनट तक इसमें डुबोने से फलों का आकर दुगना मोटा हो जाता हैं. फलों के गुच्छों को इसमें डुबोने के अलावा इसका पौधों पर छिडकाव भी कर सकते हैं. जबकि इथेफोन के घोल में इसके गुच्छों को आधा मिनट तक डुबोने पर फलों के अमलिय गुण कम हो जाते हैं. और फल जल्दी पकता है.
फलों की कटाई
अंगूर के फल कभी भी तोड़ने के बाद नही पकते इस कारण इन्हें पेड़ो से तभी तोड़े जब इसके फल पूरी तरह से पक जाए. अंगूर की कटाई हमेशा शाम के वक्त करनी चाहिए. इससे फल अगले दिन बाज़ार में पहुचने तक ताज़ा दिखाई देते हैं. कटाई के बाद गुच्छों से टूटे हुए और खराब हुए फलों को अलग कर लेना चाहिए.
पैदावार और लाभ
अंगूर की अलग अलग किस्मों की पैदावार अलग अलग पाई जाती है. इसके प्रत्येक पौधे से पहले साल में 10 किलो के आसपास पैदावार पाई जाती है. जबकि एक साल बाद इसकी पैदावार में लगातार वृद्धि होती रहती है. एक हेक्टेयर में अंगूर की खेती से औसतन पैदावार 30 से 50 टन तक हो जाती है. जिससे किसान भाई एक बार में 5 लाख से ज्यादा की कमाई कर लेता है. जो पौधे की वृद्धि के साथ बढती हैं. क्योंकि एक बार पौध लगाने के बाद पौधा कई साल तक फल देता है और उसकी देखरेख पर खर्च बहुत कम होता है.
Is jankari ke liye aapka dhanewad Hume ek jankari chahiye grapes ki market Nasik me kis kis area me h