लौंग की खेती मसाला फसल के रूप में की जाती है. इसके फलों का मसाले में बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. मसालों के अलावा इसका इस्तेमाल आयुर्वेद चिकित्सा में भी किया जाता है. इसके फलों की तासीर बहुत ही गर्म होती है. इस कारण इसका ज्यादा इस्तेमाल सर्दियों के मौसम में किया जाता है. सर्दियों के मौसम में सर्दी जुकाम लगने पर इसके काढ़े को पिने से आराम मिलता है. इसके अलावा हिन्दू धर्म में इसका इस्तेमाल हवन पूजा में भी किया जाता है.
Table of Contents
लौंग का पौधा एक सदाबाहर पौधा है. इसका पौधा एक बार लगाने के बाद कई वर्षों तक पैदावार देता है. इसके पौधों को विकास करने के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु की जरूरत होती है. भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में की जाती है. इसका पौधा लगाने के बाद 150 साल से भी ज्यादा टाइम तक जीवित रह सकता है. इसके पौधों की खेती के लिए मिट्टी का पी.एच. मान सामान्य होना चाहिए.
अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
लौंग की खेती के लिए नम कटिबंधीय क्षेत्रों की बलुई मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. इसके पौधे को जल भराव वाली मिट्टी में नही उगाया जाता. जल भराव की स्थिति में इसका पौधा खराब हो जाता है. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान सामान्य के आसपास होना चाहिए.
जलवायु और तापमान
लौंग की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु की जरूरत होती है. इसके पौधों को बारिश की सामान्य रूप से जरूरत होती है. लौंग के पौधे अधिक तेज़ धूप या अधिक तेज़ सर्दी दोनों को सहन नही कर पाते हैं. अधिक तेज़ सर्दी या गर्मी में इसके पौधों का विकास रुक जाता है. इसके पौधों को विकास करने के लिए छायादार जगहों की ज्यादा जरूरत होती हैं.
इसके पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. लेकिन गर्मियों में अधिकतम 30 से 35 और सर्दियों में न्यूनतम 20 तापमान पर इसका पौधा विकास कर सकता है.
खेत की तैयारी
लौंग के पौधे एक बार लगाने के बाद लगभग 150 साल तक पैदावार देते हैं. लेकिन उत्तम पैदावार 26 साल की उम्र तक ही देते हैं. इसके पौधों को खेत में लगाने से पहले खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर खेत में मौजूद सभी तरह के अपशिष्ट को नष्ट कर देना चाहिए. उसके बाद खेत में लगभग 15 से 20 फिट की दूरी छोड़ते हुए एक मीटर व्यास और डेढ़ से दो फिट की गहराई के गड्डे तैयार कर लें. इन गड्डों में जैविक और रासायनिक उर्वरक की उचित मात्रा को मिट्टी में मिलाकर गड्डों में भर देते हैं. मिट्टी को गड्डों में भरने के बाद उनकी गहरी सिंचाई कर उन्हें उपर से ढक देते हैं.
पौध तैयार करना
लौंग की खेती करने से पहले इसके बीजों से नर्सरी में पौध तैयार की जाती है. इसके लिए बीजों को पहले उपचारित कर लगाना चाहिए. इसके बीजों को नर्सरी में लगाने से पहले एक रात तक पानी में डालकर रखना चाहिए. उसके बाद इसके बीजों की रोपाई नर्सरी में जैविक खाद के मिश्रण से तैयार की हुई मिट्टी में 10 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए पंक्तियों में करनी चाहिए.
इसके बीजों से पौध तैयार होने में दो साल के आसपास टाइम लगता हैं. और उसके चार से पांच साल बाद पौधा फल देना शुरू करता है. जिससे किसान भाई को पैदावार प्राप्त होने में 7 साल के आसपास का टाइम लगता है. लेकिन किसान भाई इसके पौधों को नर्सरी से खरीदकर भी खेतों में लगा सकते हैं. ऐसा करने से किसान भाइयों के टाइम की काफी ज्यादा बचत होती है और पैदावार भी जल्द मिलना शुरू हो जाती है. किसी भी रजिस्टर्ड नर्सरी से इसकी पौध खरीदते टाइम ध्यान रखे कि पौधा चार फिट से ज्यादा लम्बाई और दो साल पुराना होना चाहिए.
पौध रोपाई का टाइम और तरीका
लौंग के पौधे खेतों में तैयार किये हुए गड्डों में लगाए जाते हैं. पौधों को गड्डों में लगाने से पहले गड्डों के बीचोंबीच खुरपी की सहायता से एक और छोटा गड्डा तैयार किया जाता है. इस गड्डे में लौंग के पौधों को लगाया जाता है. पौधों को गड्डों में लगाने के बाद चारों तरफ से उसे मिट्टी से अच्छे से दबा दिया जाता है. इसकी खेती मिश्रित खेती के रूप में अच्छी होती है. इसके लिए इसके पौधों को अखरोट या नारियल के बगीचों में उगाना चाहिए. जिससे पौधों को छायादार जगह भी मिल जाती है.
इसके पौधों को खेतों में बारिश के मौसम में ही लगाना चाहिए. क्योंकि इस दौरान मौसम में नमी और आद्रता बनी रहती है. जो पौधे को अंकुरती होने और विकास करने में सहायक होती है. इसके अलावा बारिश के मौसम के दौरान बादलों के रहने से पौधों को तेज़ धूप का भी सामना कम करना पड़ता है.
पौधों की सिंचाई
लौंग के पौधों को खेत में लगाने के तुरंत बाद उनकी सिंचाई कर देनी चाहिए. बारिश के मौसम में इसके पौधों को सिंचाई की जरूरत नही होती. लेकिन अगर बारिश टाइम पर ना हो और पौधों को सिंचाई की जरूरत हो तो पौधों की सिंचाई कर देना चाहिए. गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है. इस दौरान इसके पौधों की सप्ताह में एक बार सिंचाई करनी चाहिए. और सर्दियों के मौसम में इसके पौधों की 15 से 20 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए.
शुरुआत में लौंग के पौधे को ज्यादा सिंचाई की जरूरत होती है. लेकिन जैसे जैसे पौधे की उम्र बढती जाती है, वैसे वैसे ही सिंचाई की दर कम होती जाती है. और जब पौधा 12 साल बाद पूर्ण रूप से विकसित हो जाता है तब इसके पौधे को साल भर में सिर्फ 4 से 5 सिंचाई की ही जरूरत होती है.
उर्वरक की मात्रा
लौंग के पौधे को शुरुआत में कम उर्वरक की जरूरत होती है. इसके लिए गड्डों को तैयार करते समय प्रत्येक गड्डों में 15 से 20 किलो पुरानी गोबर की खाद और लगभग 100 ग्राम एन.पी.के. की मात्रा को गड्डों में पौधों की रोपाई से एक महीने भर दिया जाता है. पौधों को शुरुआत में उर्वरक की मात्रा हमेशा बारिश के मौसम में ही देनी चाहिए.
इसके पौधे की वृद्धि के साथ साथ उर्वरक की मात्रा में भी वृद्धि कर देनी चाहिए. लौंग के पूर्ण रूप से विकसित एक पौधे को 40 से 50 किलो गोबर की खाद और एक किलो रासायनिक खाद की मात्रा सालभर में तीन से चार बार देनी चाहिए. पौधों को खाद देने के तुरंत बाद उनकी सिंचाई कर देनी चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
लौंग की खेती में खरपतवार नियंत्रण की शुरुआत में ज्यादा जरूरत होती है. इसलिए शुरुआत में पौधे की रोपाई के लगभग 20 दिन बाद उनकी हलकी गुड़ाई कर देनी चाहिए. उसके बाद जब भी पौधे की जड़ों के पास खरपतवार ज्यादा नजर आयें तो पौधों की गुड़ाई कर देनी चाहिए. इसके अलावा खेत में बाकी बची जमीन अगर खाली हो तो बारिश के मौसम के बाद जमीन सूखने पर उसकी जुताई कर देनी चाहिए. ताकि खाली जमीन में उगने वाली खरपतवार नष्ट हो जाए.
पौधों की देखभाल
लौंग के पौधे की देखभाल कर उससे अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है. इसके लिए पौधे की शुरुआत से ही देखभाल की जानी जरूरी है. इसके पौधे को खेत में लगाने के बाद एक से डेढ़ मीटर की ऊंचाई तक कोई भी नई शाखा को जन्म ना लेने दें. जिससे पौधे का आकार अच्छा बनता है. उसके बाद पौधों की सूखी हुई और रोगग्रस्त शाखाओं को काटकर हटा दें. इससे पौधे पर और नई शाखाओं का जन्म होता है. जिससे पौधे की पैदावार में भी वृद्धि देखने को मिलती है.
अतिरिक्त कमाई
लौंग के पौधे खेत में लगाने के चार से पांच साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं. इस दौरान किसान भाई इसके पौधों के बीच खाली बची जमीन में कंदवर्गीय औषधीय, मसाला फसलों और कम समय अवधि की सब्जियों को उगाकर अतिरिक्त कमाई कर सकता है. जिससे किसान भाई को आर्थिक परेशानियों का सामना भी नही करना पड़ेगा. और उन्हें खेत से पैदावार भी मिलती रहेगी.
लौंग के पौधे में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
लौंग के पौधे में काफी कम रोग ही देखने को मिलते हैं. लेकिन कुछ किट रोग हैं. जो इसकी पत्तियों को खाकर पौधे को नुक्सान पहुँचाते है. जिनमे सफ़ेद मक्खी, सुंडी जैसे रोग प्रमुख है. इसके अलावा जल भराव की वजह से पौधों में जड़ गलन का रोग भी लग सकता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों में जलभराव की स्थिति उत्पन्न ना होने दें.
फलों की तुड़ाई
लौंग के पौधे खेत में रोपण के लगभग 4 से 5 साल बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. इसके फल पौधे पर गुच्छों में लगते हैं. जिनका रंग लाल गुलाबी होता है. जिनको फूल खिलने से पहले ही तोड़ लिया जाता है. इसकी ताज़ी कलियों का रंग लालिमा लिए हुए हरा होता है. इसके फल की लम्बाई अधिकतम दो सेंटीमीटर होती है. जिसको सुखाने के बाद लौंग का रूप दिया जाता है.
पैदावार और लाभ
लौंग के पौधे रोपाई के लगभग चार से पांच साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं. जिनसे शुरुआत में कम पैदावार प्राप्त होती है. लेकिन जब पौधा पूर्ण रूप से तैयार हो जाता है, तब एक पौधे से एक बार में तीन किलो के आसपास लौंग प्राप्त होता है. लौंग का बाज़ार भाव 800 से हज़ार रूपये प्रति किलो तक पाया जाता है. इस हिसाब से एक पौधे से एक बार में ढाई से तीन हज़ार तक की कमाई हो जाती है. जबकि एक एकड़ में इसके 100 से ज्यादा पौधे लगाए जा सकते हैं. जिससे किसान भाई एक बार में ढाई से तीन लाख तक की कमाई कर सकता है.
Very nice post