मखाना की खेती मुख्य रूप से पानी की घास के रूप में होती है. इसको कुरूपा अखरोट भी कहा जाता है. मखाना की लगभग 88 प्रतिशत खेती अकेले बिहार में की जाती है. मखाना पोषक तत्वों से भरपूर एक जलीय उत्पाद है. जिसके अंदर प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट काफी मात्रा में मिलते हैं. जो मनुष्य के लिए लाभदायक होते हैं. इसका इस्तेमाल खाने में लोग मिठाई, नमकीन और खीर बनाने में लेते हैं. इसके अलावा दूध में भिगोकर इसे छोटे बच्चों को खिलाया जाता है.
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इसकी खेती के लिए जल भराव वाली भूमि की जरूरत होती है. भारत में इसकी खेती गर्म और शुष्क जलवायु वाले प्रदेशों में की जा सकती है. इसके पौधे पर कांटेदार पत्ते आते हैं. और इन्ही कांटेदार पत्तों पर बीज बनते है. इसके पत्तों से बीज निकलने के बाद वो तालाब की सतह में चले जाते हैं. जिन्हें पानी से निकालकर एकत्रित किया जाता है. वर्तमान में इसकी खेती उत्तर प्रदेश में भी की जा रही है. लेकिन इसकी खेती करने वाले किसान भाइयों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसके फल समय पर प्राप्त नही होने और सतह में चले जाने से लगभग 25 प्रतिशत फल खराब हो जाता है.
अगर आप भी इसकी खेती से अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त वातावरण
मखाने की खेती के लिए जल भराव वाली काली चिकनी भूमि उपयुक्त होती है. क्योंकि इसके पौधे पानी के अंदर ही उगते हैं. इसके लिए जलभराव वाली जमीनों में मिट्टी खोदकर तालाब बनाये जाते हैं. जिनमें पानी अधिक समय तक स्थिर बना रहता है. इसकी खेती उष्णकटिबंधीय भागों में की जाती है. इसके पौधे को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है.
तालाब तैयार करना
मखाना की खेती पूरी तरह से ऑर्गेनिक तरीके से की जाती है. इसके लिए मिट्टी को खोदकर उसमें पानी भर दिया जाता है. उसके बाद मिट्टी और पानी को मिलकर कीचड़ तैयार किया जाता है. इस कीचड़ वाले भाग में इसके बीजों को लगाया जाता है. कीचड़ तैयार करने के बाद तालाब में फिर से पानी भर दिया जाता है. तालाब में पानी की भराई कम से कम 6 से 9 इंच तक की जानी चाहिए. इसके अलावा अधिकतम 4 फिट पानी काफी होता है. इन तालाबों को बीज लगाने के लगभग दो महीने पहले तैयार किया जाता है.
बीज रोपण का तरीका और टाइम
मखाना के बीजों को तालाब की निचली सतह में लगाते हैं. लेकिन बीजों को तालाब में लगाने से पहले पानी में उत्पन्न हुई सभी तरह की खरपतवार को नष्ट कर तालाबों की सफाई कर देनी चाहिए. जिससे पौधे की पैदावार या पौधे पर किसी तरह का कोई रोग या खरपतवार का असर देखने को ना मिले. खरपतवार नष्ट करने के बाद इसके बीजों को तालाब की निचली सतह में 3 से 4 सेंटीमीटर नीचे मिट्टी में लगाते हैं. एक हेक्टेयर में बनाए गए तालाब में लगभग 80 किलो बीज लगाया जाता हैं.
इसके बीजों को सीधा तालाब में उगा सकते हैं. लेकिन कुछ किसान भाई इसके बीजों की पौधा तैयार कर खेतों में लगाते हैं. इसके बीजों से नवम्बर या दिसम्बर माह में ही पौध तैयार कर ली जाती है. उसके बाद इन्हें तालाब में लगाया जाता है. इसके पौधों को तालाब में लगाने का सबसे उपयुक्त टाइम जनवरी और फरवरी का महीना होता है. इस दौरान लगाए गए पौधे जब पानी की सतह पर आते हैं तब उन्हें विकास करने के लिए उचित वातावरण मिलता है.
पौधों का विकास
बीज रोपाई के लगभग एक से डेढ़ महीने बाद इसके पौधे सतह पर कांटेदार पत्तों के रूप में फैलने लगते हैं. जिनसे पूरा तालाब ढक जाता है. इन पत्तियों पर ही इसके फूल खिलते हैं. इसके फूलों के खिलने के लगभग तीन से चार दिन बाद इनमें बीज बनने लगते हैं. पत्तियों पर बीज लगने के लगभग दो महीने बाद ये पककर तैयार हो जाते हैं. पत्तियों पर पककर तैयार हुए बीज पौधे से अलग होकर पानी सतह पे तैरने लगते है. इसके बीज पानी की सतह पर एक से दो दिन तक तैरते रहते हैं. उसके बाद बीज पानी की सतह में चले जाते है. जिन्हें किसान भाई पौधों को हटाने के बाद सतह से निकालते हैं.
पौधों की देखभाल
इसके पौधे शांत रहने वाले पानी में अच्छे से विकास करते हैं. इसके लिए तालाब बनाने के बाद उसे जाल से ढक देना चाहिए. जिससे पौधे खुद अच्छे से विकास करते रहे. और आवारा पशु तालाब में प्रवेश कर पौधों को नुक्सान ना पहुँचा पाए. और जब तालाब में पानी की मात्रा कम हो जाए तो उसमें पानी चला देना चाहिए.
बीजों की पैदावार
इसके पौधे कांटेदार होते हैं जो पूरे तालाब की ढके हुए होते हैं. इस कारण जब इसके बीज पौधे से अलग होते हैं तो उन्हें किसान भाई एकत्रित नही कर पाते. जिसके कारण बीज सतह में चले जाते हैं. उसके बाद जब पौधों पर सभी बीज पककर गिर जाते हैं तब पौधे को हटाकर सतह से इसके बीजों को एकत्रित कर लिया जाता है. इस दौरान इसके बीजों को निकालने में एक से दो महीने का टाइम लग जाता है. जिससे बीजों में काफी ज्यादा नुकसान हो जाता है.
इसके बीजों को पानी से निकालकर उनके छिलके को हटाकर साफ़ किया जाता है. उसके बाद उन्हें लकड़ी की हथोड़ी से पीटकर उनसे लावा निकाल लिया जाता है. तीन किलो कच्चे बीजों से एक किलो मावा प्राप्त होता है. जिससे मखाना तैयार किया जाता है. एक क्विंटल मखाना गुडी से लगभग 40 किलो मावा निकलता है. जिससे किसान भाइयों की अच्छी कमाई हो जाती है.