मूंग की खेती दलहनी फसल के रूप में की जाती है. इसके दानो का इस्तेमाल सब्जी और मिठाई बनाने में किया जाता है. इसके अलावा मूंग दाल को भिगोकर भी खाया जाता है. मूंग दाल छिल्के के साथ और बिना छिलके के दो प्रकार में पाई जाती है. इसके दाने हरे रंग के दिखाई देते हैं. मूंग का पौधा दो से तीन फिट की ऊंचाई का पाया जाता है. मूंग के पौधे भूमि में नाइट्रोजन की आपूर्ति करते हैं. जिससे भूमि की उर्वरक क्षमता बढती है. मूंग की खेती मुख्य रूप से उत्तर पश्चिम भारत में अधिक की जाती है.
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मूंग की खेती खरीफ और जायद की फसल के रूप में की जाती है. लेकिन बड़े पैमाने पर लोग इसे खरीफ की फसलों के समय ही उगाते हैं. इसकी खेती सहफसली खेती के रूप में भी कर सकते हैं. जिससे उसकी आय में वृद्धि होती है. मूंग की अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों का चयन कर किसान भाई अपनी कमाई को और भी बढ़ा सकते हैं.
आज हम आपको मूंग की कुछ उन्नत किस्मों के बारें में जिनसे किसान भाई कम समय में अधिक उत्पादन ले सकता है.
पूसा रत्ना
मूंग की इस किस्म को खरीफ के मौसम में उगाने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म को दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 65 से 70 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 12 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधे एक साथ पककर तैयार होते हैं. जिन पर पीली चित्ती का रोग देखने को नही मिलता.
टॉम्बे जवाहर मूंग – 3
मूंग की इस किस्म को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर, मध्य प्रदेश के द्वारा तैयार किया गया है. जिसे टी. जे. एम – 3 के नाम से भी जाना जाता है. इस किस्म के पौधों को जायद और खरीफ दोनों मौसम में उगाया जा सकता है. इसके पौधों पर फलियाँ गुच्छों में लगती हैं. इसकी प्रत्येक फलियों में 8 से 10 दाने पाए जाते हैं. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के 60 से 70 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 10 से 12 क्विंटल तक पाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर पीला मोजेक और पाउडरी मिल्ड्यू जैसे रोग काफी कम देखने को मिलते हैं.
आई. पी. एम. 02-03
मूंग की इस किस्म को कृषि विज्ञान केंद्र, प्रतापगढ़ द्वारा कम समय में अच्छी उपज देने के लिए तैयार किया गया है. मूंग की इस किस्म के पौधे खरीफ और जायद दोनों मौसम में उगाये जा सकते हैं. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 62 से 68 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 11 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के दाने अन्य किस्मों की तुलना में मोटे दिखाई देते हैं. इसके पौधे पर पीतशिरा मोजेक रोग का प्रभाव देखने को नही मिलता.
एस एम एल 668
मूंग की इस किस्म को खरीफ और जायद दोनों मौसम में आसानी से लगाया जा सकता है. इस किस्म के पौधों पर फलियाँ गुच्छों में पाई जाती हैं. जिनके दानो का आकार मोटा दिखाई देता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 60 से 65 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 15 से 20 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.
मुस्कान
मूंग की इस किस्म को एम एच 96-1 के नाम से भी जाना जाता है. जिसे चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के पाए जाते हैं. इसके पौधे पर फलियाँ एक साथ पकती है. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 15 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधे पर पीला मोजेक का रोग देखने को नही मिलता. इसके पौधे बीज रोपाई के दो से ढाई महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं.
आई. पी. एम. 02-14
मूंग की इस किस्म को कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इसको सबसे ज्यादा राजस्थान और गुजरात में उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 60 से 65 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 11 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर पीतशिरा मोजेक रोग का प्रभाव देखने को नही मिलता.
पूसा 9531
मूंग की इस किस्म को मैदानी और पहाड़ी दोनों दोनों जगहों पर खरीफ के मौसम में उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के 60 से 65 दिन में बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 12 से 15 क्विंटल के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधे की फलियाँ पकने के बाद हल्के भूरे रंग की दिखाई देती हैं. इसके पौधों पर पीली चित्ती का रोग देखने को नही मिलता.
के – 851
मूंग की इस किस्म को चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म को जायद और खरीफ दोनों समय की फसल लेने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 65 से 80 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 से 12 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.
एस. एम. एल.
मूंग की इस किस्म के पौधे कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 68 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 15 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधे सामान्य लम्बाई के होते हैं. जिन पर पीले मोजेक रोग का प्रभाव काफी कम देखने को मिलता है.
जवाहर मूंग – 721
मूंग की इस किस्म को कृषि महाविद्यालय, इंदौर द्वारा मध्य समय में पैदावार देने के लिए तैयार की गई है. इस किस्म को खरीफ और जायद दोनों मौसम में उगाया जा सकता है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 70 से 75 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 12 से 14 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इसकी फलियों के एक गुच्छे में चार से पांच फलियाँ पाई जाती है. इसके पौधों पर पीला मोजेक और पाउडरी मिल्ड्यू रोग का प्रभाव देखने को नही मिलता.
एच. यू. एम. 1
मूंग की इस किस्म को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के 65 से 70 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में पीला मोजेक और पर्ण दाग रोग का प्रभाव काफी कम देखने को मिलता है. इस किस्म के पौधों पर फलियाँ काफी कम मात्रा में पाई जाती है.
बसन्ती
मूंग की इस किस्म को खरीफ और बसंत ऋतू में उगाने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 65 से 70 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 15 से 20 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों की लम्बाई अधिक पाई जाती है. जिस पर बनने वाली लगभग सभी फलियाँ एक साथ पककर तैयार होती हैं.
सत्या ( एम एच 2-15 )
मूंग की इस किस्म को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 70 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 18 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर फलियाँ गुच्छों के रूप में पाई जाती हैं. इसके दाने चमकदार और हरे रंग के पाए जाते हैं. इस किस्म के पौधों पर कीट और जीवाणु जनित रोग काफी कम देखने को मिलते हैं.
पी. डी. एम – 11
मूंग की इस किस्म को भारतीय दलहन अनुसंधान केंद्र, कानपुर द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 65 से 70 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 10 से 12 क्विंटल के बीच पाया जाता है. मूंग की इस किस्म के पौधों को ग्रीष्म और खरीफ दोनों मौसम में उगाया जा सकता है. इसके पौधे पर पाई जाने वाली फली लम्बाई के छोटी दिखाई देती है. इसके पौधे पर पीला मोजेक रोग का प्रभाव देखने को नही मिलता.
एम यू एम 2
मूंग की इस किस्म के पौधों की ऊंचाई तीन फिट के आसपास पाई जाती है. जो बीज रोपाई के लगभग 80 दिन बाद कटाई के लिए तैयार होते है. इसके पौधों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 20 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में पीला मोजेक का रोग देखने को नही मिलता.
पूसा विशाल
मूंग की इस किस्म को कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान केन्द्र, नई दिल्ली ने तैयार किया है. इस किस्म को सम्पूर्ण भारत में उगाया जा सकता है. इसके पौधों पर पीला मोजेक रोग का प्रभाव देखने को नही मिलता. इसके पौधे की फलियों की लम्बाई 10 सेंटीमीटर से भी ज्यादा पाई जाती है. इसके दाने चमकीले हरे दिखाई देते हैं. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 60 से 65 दिन में भी कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 15 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.
आर एम जी – 62
मूंग की इस किस्म को सिंचित और असिंचित दोनों जगहों पर लगाने के लिए तैयार किया गया है. जिस पर फली छेदक रोग का प्रकोप देखने को नही मिलता. इसके पौधों पर सभी फलियाँ एक साथ पकती हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 60 से 70 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं.
एम एच 421
मूंग की इस किस्म को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा कम समय में अधिक उत्पादन देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के पाए जाते हैं. जिनकी फलियाँ बहुत कम झड़ती हैं. इस किस्म के पौधों को ग्रीष्म और खरीफ दोनों मौसम में आसानी से उगाया जा सकता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 60 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 12 से 15 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इसके पौधे पर पत्ती धब्बा, पीला मोजेक और वेब ब्लाईट रोगों का प्रभाव बहुत कम देखने को मिलता हैं.
कल्याणी
मूंग की इस किस्म को कुदरत कृषि शोध संस्था, वाराणसी द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे सबसे जल्दी पककर तैयार होते हैं. जो बीज रोपाई के लगभग 50 से 55 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों पर कीट और जीवाणु जनित रोगों का प्रभाव काफी कम देखने को मिलता है. इसके पौधे सामान्य ऊंचाई के होते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 18 से 20 क्विंटल तक पाया जाता है.
पूसा 672
मूंग की इस किस्म के पौधे पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए तैयार किया गया है. इसके पौधे रोपाई के दो से तीन महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इसके दाने चमकदार और आकर्षक दिखाई देते हैं. इसके पौधों पर पीली चित्ती और कई तरह के जीवाणु जनित रोग कम देखने को मिलते हैं.
एम एच 318
मूंग की इस किस्म को खरीफ और जायद दोनों मौसम में आसानी से उगाया जा सकता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 60 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 12 से 17 क्विंटल तक पाया जाता है. इसके दाने मध्यम आकार के चमकीले हरे दिखाई देते हैं. इसके पौधों पर पत्ती धब्बा और पीले पत्ते का मोजेक रोग का प्रभाव काफी कम देखने को मिलता है.
आर एम जी – 268
मूंग की इस किस्म के पौधे सूखे के प्रति सहनशील पाए जाते हैं. इस किस्म के पौधों पर सभी फलियाँ एक साथ पककर तैयार होती हैं. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 60 से 70 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.
टी 44
मूंग की इस किस्म को खरीफ और जायद दोनो मौसम में आसानी से उगाया जा सकता है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 60 से 70 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 8 से 10 क्विंटल के बीच पाया जाता है.
सोना 12/333
मूंग की इस किस्म को जायद के मौसम में उगाने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग दो महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.
टाइप 1
मूंग की इस किस्म के पौधे सीधे बढ़ने वाले होते है, जिन पर फलियाँ सीधी पाई जाती है. इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 60 से 65 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 8 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.
पन्त मूंग 1
मूंग की इस किस्म के पौधे जायद और खरीफ दोनो मौसम में आसानी से उगाये जा सकते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 से 12 क्विंटल तक पाया जाता है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 60 से 70 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते है. इस किस्म के पौधों पर कई तरह के जीवाणु जनित रोगों का प्रभाव काफी कम देखने को मिलता है.
ये मूंग की कुछ उन्नत किस्में हैं, जिन्हें भारत के विभिन्न हिस्सों में उगाया जाता है. इसके अलावा कुछ और भी क्षेत्रिय किस्में हैं, जिन्हें अलग अलग जगहों के आधार पर अधिक उत्पादन लेने के लिए उगाया जाता है.
Kuldeep Rathaur/rathaurKuldeep
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