जायफल एक सदाबहार वृक्ष है. जिसकी उत्पत्ति इण्डोनेशिया के मोलुकास द्वीप पर हुई थी. वर्तमान में इसे भारत सहित कई देशों में उगाया जाता है. जायफल के सूखे फलों का इस्तेमाल सुगन्धित तेल, मसाले और औषधीय रूप में किया जाता है. जायफल का पौधा सामान्य रूप से 15 से 20 फिट के आसपास ऊंचाई का पाया जाता है. जिस पर फल पौध रोपाई के लगभग 6 से 7 साल बाद लगते हैं. इसके कच्चे फलों का इस्तेमाल अचार, जैम और कैंडी बनाने में किया जाता है. जायफल की काफी प्रजातियाँ पाई जाती हैं. लेकिन मिरिस्टिका प्रजाति के वृक्ष पर लगने वाले फलों को जायफल कहा जाता है. जिससे जायफल के साथ जावित्री भी प्राप्त होती है. इसके पौधों पर फल और फूल गुच्छों में लगते हैं. जिनका आकार नाशपाती की तरह दिखाई देता है. जो पकने के बाद फट जाते हैं. जिनमें से इसका बीज निकलता है.
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जायफल के पौधों के विकास के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु काफी उपयुक्त मानी जाती है. जायफल का पौधा समुद्र तल से 1300 मीटर के आसपास की ऊंचाई तक आसानी से विकास कर सकता है. इसके पौधों को विकास करने के लिए अधिक बारिश की भी जरूरत नही होती. इसकी खेती किसानों के लिए कम खर्च में अधिक लाभ देने वाली मानी जाती है.
अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
जायफल की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली गहरी उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है. लेकिन व्यापारिक रूप से पौधों के जल्द विकास करने के लिए इसके पौधों को बलुई दोमट मिट्टी या लाल लैटेराइट मिट्टी में उगाना चाहिए. इसकी खेती के भूमि का पी. एच. मान सामान्य के आसपास होना चाहिए.
जलवायु और तापमान
जायफल का पौधा उष्णकटिबंधीय जलवायु का पौधा है. इसके पौधे को विकास करने के लिए सर्दी और गर्मी दोनों मौसम की आवश्यकता होती है. लेकिन अधिक सर्दी और गर्मी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नही मानी जाती. सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसकी खेती के लिए नुक्सानदायक माना जाता है. इसके पौधों को विकास करने के लिए सामान्य बारिश की जरूरत होती है. इसके अलावा शुरुआत में पौधों के विकास के दौरान उन्हें हल्की छाया की जरूरत होती है.
इसके पौधों को शुरुआत में अंकुरण के वक्त 20 से 22 डिग्री के बीच तापमान की जरूरत होती है. अंकुरण के बाद इसके पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान (25 से 30) की जरूरत होती हैं. वैसे इसके पूर्ण रूप से तैयार पेड़ गर्मियों में अधिकतम 37 और सर्दियों में न्यूनतम 10 डिग्री के आसपास के तापमान पर अच्छे से विकास कर लेते हैं.
उन्नत किस्में
जायफल की काफी सारी प्रजातियाँ पाई जाती हैं. लेकिन कुछ की किस्में उत्पादन के रूप में उगाई जाते हैं. भारत में इसे दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है.
आई.आई.एस.आर विश्वश्री
जायफल की इस किस्म को भारतीय मसाला फसल अनुसंधान संस्थान, कालीकट द्वारा तैयार किया गया है. इसके पौधे रोपाई के लगभग 8 साल बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. इसके प्रत्येक पौधों से एक बार में 1000 के आसपास फल प्राप्त होते हैं. इसके सूखे छिलके युक्त फलों से का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 3100 किलो के आसपास तब पाया जाता है, जब इसके पौधों की संख्या लगभग साढ़े तीन सो के आसपास की होती है. इसके पौधे से जायफल और जावित्री दोनों प्राप्त किये जाते हैं. जिनमें 70 प्रतिशत जायाफल और 30 प्रतिशत जावित्री प्राप्त होती है.
केरलाश्री
जायफल की इस किस्म को भी भारतीय मसाला फसल अनुसंधान संस्थान, कालीकट द्वारा केरल और तमिलनाडु के क्षेत्रों में उगाने के लिए तैयार किया गया है. इसके पौधे रोपाई के लगभग 6 साल बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. जिन पर पहली बार फूल रोपाई के लगभग चार साल बाद ही आना शुरू हो जाते हैं. पौध रोपाई के लगभग 25 साल बाद जब पौधा पूरी तरह वृक्ष बन जाते हैं तब इस किस्म के पौधों का सालाना प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 3200 किलो के आसपास पाया जाता है.
इनके अलावा भी कुछ उन्नत किस्में हैं जिन्हें उत्तम पैदावार लेने के लिए उगाया जाता हैं.
खेत की तैयारी
जायफल के पौधों की रोपाई खेत में गड्डे तैयार की जाती है. उससे पहले खेत को पेड़ लगाने के लिए अच्छे से तैयार किया जाना जरूरी होता है. क्योंकि जायफल के पौधों को एक बार लगाने के बाद कई सालों तक पैदावार देते हैं. इसकी खेती के शुरुआत में खेत की अच्छे से सफाई कर खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर दें. उसके बाद खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर दें. जुताई के बाद कुछ दिन खेत को खुला छोड़ दें. ताकि मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीट शुरुआत में ही नष्ट हो जाएँ.
खेत को खुला छोड़ने के कुछ दिन बाद खेत की कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई कर दें. उसके बाद खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना ले. मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद खेत में उचित दूरी पर पंक्तियों में गड्डे बना दें. पंक्तियों में गड्डे बनाने के दौरान प्रत्येक गड्डों के बीच 20 फीट के आसपास दूरी होनी चाहिए. और साथ ही प्रत्येक पंक्तियों के बीच भी 18 से 20 फिट की दूरी होनी चाहिए. गड्डों की खुदाई के वक्त उनका आकार डेढ़ से दो फिट गहरा और दो फीट चौड़ा होना चाहिए. गड्डों की खुदाई करने के बाद उनमें उचित मात्रा में जैविक और रासायनिक उर्वरकों को मिट्टी में मिलाकर भर दें. इन गड्डों को पौध रोपाई के लगभग एक से दो महीने पहले भरकर तैयार किया जाता है.
पौध तैयार करना
जायफल की खेती के लिए इसकी पौध बीज और कलम दोनों के माध्यम से नर्सरी में तैयार की जाती है. बीज के माध्यम से पौधा तैयार करने में सबसे बड़ी समस्या इसके नर और मादा पेड़ों के चयन में होती है. क्योंकि बिना फलों के लगे इसके पौधों में नर और मादा का चयन करना काफी कठिन होता है. इसलिए बीज से तैयार करने पर काफी बार ज्यादातर पौधे नर के रूप में प्राप्त हो जाते हैं. इस कारण इसकी पौध कलम रोपण के माध्यम से तैयार की जाती है. बीज के माध्यम से पौध तैयार करने के दौरान इसके बीजों को उचित मात्रा में उर्वरक मिलाकर तैयार की गई मिट्टी से भरी पॉलीथीन में लगा दें. और पॉलीथीन को छायादार जगह में रख दें. जब इसके पौधे अच्छे से अंकुरित हो जाए. तब उन्हें लगभग एक साल बाद खेत में लगा दें.
कलम के माध्यम से पौध तैयार करने की सबसे अच्छी विधि कलम दाब और ग्राफ्टिंग होती है. लेकिन ग्राफ्टिंग विधि से पौध तैयार करना काफी आसान होता है. ग्राफ्टिंग विधि से पौध तैयार करने के लिए अच्छे से उत्पादन देने वाली किस्म के पौधों की शाखाओं से पेंसिल के सामान आकार वाली कलम तैयार कर लें. उसके बाद इन कलमों को जंगली पौधों के मुख्य शीर्ष को काटकर उनके साथ वी (<<) रूप में लगाकर पॉलीथीन से बांध दें. इनके अलावा कलम के माध्यम से पौध तैयार करने की अन्य विधियों की अधिक जानकारी आप हमारे इस आर्टिकल से ले सकते हैं.
पौध रोपाई का तरीका और टाइम
जायफल के पौधों की रोपाई खेत में तैयार किये गए गड्डों में की जाती है. लेकिन पौधों की रोपाई से पहले गड्डों के बीचोंबीच एक और छोटे आकार का गड्डा बना लें. गड्डे को बनाने के बाद उसे गोमूत्र या बाविस्टीन से उपचारित कर लेना चाहिए, ताकि पौधे को शुरूआती दौर में किसी तरह की बीमारियों का सामना ना करना पड़े. गड्डों को उपचारित करने के बाद पौधे की पॉलीथीन को हटाकर उसमें लगा दें. उसके बाद पौधे के तने को दो सेंटीमीटर तक मिट्टी से दबा दें.
इसके पौधों की रोपाई का सबसे उपयुक्त समय बारिश का मौसम होता है. इस दौरान इसके पौधों की रोपाई जून के मध्य से अगस्त माह के शुरुआत तक कर देनी चाहिए. क्योंकि इस दौरान पौधों को विकास करने के लिए उचित वातावरण मिलता है. इससे पौधों का विकास अच्छे से होता है. इसके अलावा किसान भाई इसके पौधों को मार्च के बाद भी उगा सकते हैं. इस दौरान रोपाई करने पर इसके पौधों को देखभाल की ज्यादा जरूरत होती है.
पौधों की सिंचाई
जायफल के पौधों को सिंचाई की जरूरत शुरुआत में अधिक होती है. शुरुआत में इसके पौधों की गर्मियों के मौसम में 15 से 17 दिन के अंतराल में सिंचाई कर देनी चाहिए. और सर्दियों के मौसम में 25 से 30 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए. बारिश के मौसम में पौधों को पानी की आवश्यकता नही होती. लेकिन बारिश सही वक्त पर ना हो और पौधों को पानी की जरूरत हो तो पौधों को पानी आवश्यकता के अनुसार देना चाहिए. जब पौधा पूरी तरह बड़ा हो जाता है तब पौधे को साल में पांच से सात सिंचाई की ही जरूरत होती है, जो पौधों की गुड़ाई और फल लगने के दौरान की जानी चाहिए.
उर्वरक की मात्रा
जायफल के पौधों को उर्वरक की जरूरत बाकी पौधों की तरह ही होती है. शुरुआत में इसके पौधों की रोपाई से पहले गड्डों की तैयारी के वक्त प्रत्येक गड्डों में 10 से 12 किलो जैविक खाद के रूप में गोबर की खाद और 200 ग्राम एन. पी. के. की मात्रा को मिट्टी में मिलाकर भर दिया जाता है. पौधों को उर्वरक की ये मात्रा लगातार तीन से चार साल तक देनी चाहिए. उसके बाद पौधों के विकास के साथ साथ उर्वरक की मात्रा को बढ़ा देना चाहिए.
जायफल के एक पूर्ण रूप से तैयार पेड़ को सालाना 20 से 25 किलो गोबर की खाद और आधा किलो रासायनिक खाद देना चाहिए. इसके पेड़ों को उर्वरक की ये मात्रा पौधों पर फूल बनने से पहले देनी चाहिए. इसके लिए पौधे के तने से दो फिट की दूरी छोड़ते हुए आधा फिट गहरा और डेढ़ से दो फिट चौड़ा एक घेरा पौधे के चारों तरफ तैयार कर लें. इस घेरे में जैविक और रासायनिक उर्वरक को मिट्टी में मिलाकर भर दें. उसके बाद उस पर मिट्टी डालकर दबा दें. इस तरह उर्वरक देने से पौधे की सभी जड़ों को सामान रूप से उर्वरक मिलता है. जिससे पौधे अच्छे से विकास करते हैं.
खरपतवार नियंत्रण
जायफल के पौधों में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से किया जाता है. प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके पौधों की रोपाई के 25 से 30 दिन बाद पौधों की हल्की गुड़ाई कर गड्डों में मौजूद खरपतवार को निकाल देना चाहिए. उसके बाद जब भी गड्डों में किसी भी तरह की खरपतवार दिखाई दे तो उसे निकाल देना चाहिए.
इसके पौधों को शुरुआत में खरपतवार नियंत्रण के लिए साल में 7 से 8 गुड़ाई की जरूरत होती है. लेकिन जब पौधे पूरी तरह पेड़ का आकार धारण कर लेते हैं तब उन्हें दो से तीन गुड़ाई की ही जरूरत होती है. इसके अलावा खाली बची जमीन में अगर किसी भी तरह की फसल ना उगाई गई हो तो उसमें खरपतवार नियंत्रण के लिए खेत की पावरटिलर के माध्यम से जुताई कर दें. खेत की जुताई बारिश होने के बाद जब उसमें खरपतवार दिखाई देने लगे तब करनी चाहिए.
पौधों की देखभाल
किसी भी फसल या पौधों की देखभाल कर उसकी उपज को बढ़ाया जा सकता है. उसी तरह जायफल की खेती में इसके पौधों की देखभाल कर जल्दी और अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है. इसके पौधों को देखभाल की जरूरत शुरुआत से ही होती है. शुरुआत में इसके पौधों के विकास के दौरान उन पर एक से डेढ़ मीटर तक की ऊंचाई पर किसी भी तरह की कोई शाखा का निर्माण ना होने दें. इससे पौधे का तना मजबूत और पौधों का आकार अच्छा बनता है.
उसके बाद जब पौधा पूर्ण रूप से बड़ा हो जाए और फल देने लगे तब उसकी कटाई छटाई करते रहना चाहिए. इसके पौधों की कटाई छटाई फलों के तोड़ने के बाद करनी चाहिए. इस दौरान पौधे सुषुप्त अवस्था में होते है. पौधों की कटाई छटाई के वक्त पौधों पर दिखाई देने वाली रोगग्रस्त और सूखी हुई डालियों के साथ साथ अनावश्यक शाखाओं को भी निकाल देना चाहिए. इससे पौधे में नई शाखाएं बनती है. जिससे पेड़ो की उत्पादन क्षमता बढती है. और किसान भाइयों को अधिक उत्पादन मिलता हैं.
अतिरिक्त कमाई
जायफल के पौधे रोपाई के लगभग 6 से 8 साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं. इस दौरान किसान भाई अपने खेत में मौजूद खाली जमीन पर कम समय की बागवानी, औषधीय, सब्जी और अन्य फसलों को उगाकर अच्छा उत्पादन ले सकता हैं. जिससे किसान भाई को उसकी भूमि से लगातार उचित उत्पादन भी मिलता रहता है और उसे किसी भी तरह की आर्थिक परेशानियों का सामना भी नही करना पड़ता. वैसे इसकी खेती 15 से 20 साल पहले उगाये गए नारियल के खेतों में भी सहफसली के रूप में की जा सकती है.
पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
जायफल के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जिनकी उचित समय रहते देखभाल ना की जाए तो पौधों की पैदावार के साथ साथ उनके विकास को भी काफी हद तक प्रभावित करती है.
डाई बैक
जायफल के पौधों में लगने वाला ये एक कवक जनित रोग है. पौधों पर इस रोग का सबसे ज्यादा प्रभाव उसकी शाखाओं पर देखने को मिलता हैं. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियां पीली होकर गिरने लगती है. और पौधे की रोगग्रस्त शखाएं ऊपर से नीचे की और काली होकर सूखने लगती हैं. रोग बढ़ने पर पौधे में गोंदिया रोग दिखाई देने लगता है. जिससे धीरे धीरे पूरा पौधा सूखकर नष्ट हो जाता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए रोगग्रस्त शाखाओं को काटकर हटा देना चाहिए. और काटे गए भाग पर बोर्डो मिश्रण का लेप कर देना चाहिए. इसके अलावा रोग दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
काला शल्क
जायफल के पौधों में काला शल्क रोग कीट की वजह से फैलता हैं. जिसका प्रभाव पौधे के तने और पत्तियों दोनों पर दिखाई देता है. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों और तने को खाते हैं. और उनका रस चूसते हैं. इसके कीट पत्तियों का रस चूसते वक्त चिपचिपे पदार्थ का उत्सर्जन करते हैं. जिससे पौधे की पत्ती और तने दोनों पर काले रंग की फफूंद दिखाई देने लागती है. रोग बढ़ने पर पौधों का विकास रुक जाता है. और फल अच्छे से नही बन पाते. इस रोग की रोकथाम के लिए कनोला तेल या मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
सफेद अंगमारी
जायफल के पौधों पर सफ़ेद अंगमारी रोग मैरासमिअस पलकीरिमा कवक के माध्यम से फैलता है. जो पौधों के अधिक समय तक छाया में रहने पर भी दिखाई देता है. इस रोग का प्रभाव पौधे के नीचे के भाग पर दिखाई देता है. इस रोग के लगने से पौधों के तने पर सफ़ेद धागे के जाल की तरह दिखाई देते हैं. इस रोग के बढ़ने की मुख्य वजह माईसीलियम युक्त सुखी पत्तियां होती है. जिसकी रोकथाम के लिए रोगग्रस्त पौधों पर बोर्डों मिश्रण का छिडकाव करना चाहिए.
परिरक्षक शल्क
जायफल के पौधों में यह रोग नर्सरी में पौध तैयार करने के वक्त दिखाई देता है. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों और तने पर पाए जाते हैं, जो अंडाकार रूप में हल्के भूरे रंग के दिखाई देते हैं. रोग बढ़ने पर सम्पूर्ण पौधा नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल का छिडकाव करना चाहिए. इसके अलावा मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिडकाव भी लाभदायक होता है.
होर्स हेयर ब्लाइट
जायफल के पौधों पर फैलने वाला ये एक कवकीय रोग हैं. जो मैरासमिअस इकयीनस के माध्यम से पौधों में फैलता है. इस रोग का प्रभाव पौधे की पत्तियों और तने दोनों पर दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर पर रोगग्रस्त पौधों पर काले रंग की फफूंद दिखाई देने लगती है. जिसे दूर से देखने पर चिड़िया के घोसलें का आकार दिखाई देता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर अधिक समय तक लगातार छाया नही बनी रहनी चाहिए. और रोगग्रस्त पौधों पर बोर्डों मिश्रण या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
शाट होल
जायफल के पौधों में यह कोलिटोट्राइकम गिलाईस्पोरोइडिस कवक के माध्यम से फैलता हैं. पौधों पर इस रोग का प्रभाव उसकी पत्तियों पर दिखाई देता है. इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियों पर गहरे भूरे काले रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. रोग बढ़ने पर इन धब्बों का रंग हल्का लाल हो जाता है. और पत्तियों में छिद्र बन जाते हैं. जिससे पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देते हैं. और उनका विकास रुक जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर 1 प्रतिशत बोर्डिंग मिश्रण का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
सफेद शल्क
जायफल के पौधों में सफेद शल्क रोग का प्रभाव पौधे की पत्तियों पर दिखाई देता है. इस रोग की शल्क पौधे की पत्तियों की निचली सतह पर गुच्छों के रूप में दिखाई देती है. जो भूरे रंग की सपाट दिखाई देती हैं. जिसकी वजह से पौधे की पत्तियां पीली पड जाती हैं. रोग के बढ़ने से पौधे की पत्तियां सूखकर गिर जाती हैं. और पौधों का विकास रुक जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
फलों की तुड़ाई और छटाई
जायफल के पौधे रोपाई के लगभग 6 से 8 साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं. लेकिन पौधों से पूर्ण रूप से पैदावार लगभग 18 से 20 साल बाद मिलती है. इसके पौधे पर फल फूल खिलने के लगभग 9 महीने बाद पककर तैयार होते हैं. इसके फल जून से लेकर अगस्त माह तक प्राप्त होते हैं. इसके फल पकाने के बाद पीले दिखाई देने लगते हैं. फलों के पकने के बाद उनके बाहर का आवरण फटने लगता है. तब इसके फलों की तुड़ाई कर लेनी चाहिए. फलों की तुड़ाई के बाद जायफल को जावित्री से अलग कर लेते हैं. शुरुआत में जावित्री का रंग लाल दिखाई देता हैं. जो सूखने के बाद हल्के पीले रंग में बदल जाता है.
पैदावार और लाभ
जायफल की खेती में पैदावार और लाभ पौधे के विकास के साथ साथ बढ़ता जाता है. इसके पौधे को लगाने में अधिक खर्च शुरुआत में ही आता है. जायफल के पूर्ण रूप से तैयार एक पेड़ से सालाना 500 किलो के आसपास सूखे हुए जायफलों की पैदावार प्राप्त होती है. जिनका बाजार भाव 500 रूपये प्रति किलो के आसपास पाया जाता है. जिससे किसान भाई की एक बार में एक हेक्टेयर से दो से ढाई लाख तक की कमाई आसानी से हो जाती है.
Very nice usefull.
Isake ped kaha milege.or ye hamare yaho ho santa hai ki nahi. Satlasana Mahesana Gujarat.
Sar ji Mujhe Chahe fal ki kheti karni hai mujhe aapka ka contact number chahie WhatsApp number chahie