किसी भी जीवित प्राणी को विकास करने के लिए पोषक तत्वों की जरूरत होती है. हर प्राणी के लिए पोषक तत्व अलग अलग प्रकार के होते हैं. बात करें पेड़ पौधों के बारें में इनको जिंक, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, कॉपर, मैंगनीज, कैल्शियम, मैग्नीशियम और गंधक जैसे कई तरह के पोषक तत्वों की जरूरत होती है. इन पोषक तत्वों की कमी और अधिकता होने पर पौधे में कई तरह के परिवर्तन देखने को मिलते हैं. आज हम आपको पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की जरूरत और कमी होने से पौधों में उत्पन्न होने वाले प्रभावों के बारें में बताने वाले हैं.
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नाइट्रोजन
नाइट्रोजन पौधों के लिए एक बहुत ही आवश्यक तत्व है. जमीन में नाइट्रोजन की आपूर्ति के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए. फसल चक्र के दौरान फली वाली फसलों को उगाने से जमीन में नाइट्रोजन की आपूर्ति बनी रहती है. पौधों में नाइट्रोजन के इस्तेमाल से पौधे की जड़, तना और पत्तियों में विकास देखने को मिलता है. इसके अलावा हरे चारे और सब्जी वाली फसलों में इसके इस्तेमाल से कई बार पैदावार ली जा सकती है.
नाइट्रोजन की कमी के प्रभाव
- नाइट्रोजन की कमी की वजह से पौधों की बढ़वार रुक जाती है.
- पौधों पर बनने वाले फूल और फल कम मात्रा में बनते हैं.
- नाइट्रोजन की कमी की वजह से अनाज वाली फसलों में दाने कम मात्रा में बनते हैं.
- इसकी कमी की वजह से पौधों की पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती है. जिससे पौधे का विकास रुक जाता है.
नाइट्रोजन की अधिकता के प्रभाव
- इसकी मात्रा अधिक होने पर फसल की लम्बाई अधिक होने पर बारिश के टाइम में टूटकर गिर जाती है. जिससे पैदावार कम होती है.
- नाइट्रोजन की मात्रा जमीन में अधिक होने पर सिंचाई की जरूरत ज्यादा होती है. और पौधों में सूखे को सहन करने की क्षमता में कमी आती है.
- इसकी अधिकता होने पर पौधे पैदावार कम देते हैं. और उनका विकास असामान्य रूप से होता है.
- इसकी अधिकता के कारण पौधों में कई तरह के रोग भी पौधों में लग जाते हैं.
फास्फोरस
फास्फोरस भी पौधों के लिए काफी उपयोगी होता है. फास्फोरस पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में सहायक होता है. फास्फोरस की उचित मात्रा पौधों को मिलने पर फलों का विकास अच्छे से होता है. इसके अलावा पौधे की जड़ें भी अच्छे से विकास करती हैं.
फास्फोरस की कमी के प्रभाव
- फास्फोरस की कमी से पौधा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया अच्छे से नही कर पते. जिससे पौधों का विकास रुक जाता है.
- इसकी कमी की वजह से पौधों की जड़ों का विकास रुक जाता है. जिससे पौधा अधिक तेज़ हवा चलने पर गिर जाता है.
- इसकी कमी होने पर पत्तियां सिरों पर से सूखने लगती है. और उनका रंग बैंगनी दिखाई देने लगता हैं.
- इसकी कमी होने पर पौधों की वृद्धि रुक जाती है.
फास्फोरस की अधिकता के प्रभाव
- इसकी अधिकता होने से पौधों की लम्बाई कम बढ़ती है.
- इसकी अधिकता होने पर भूमि में अम्लीय गुण बढ़ने लगता है. जिससे भूमि की उर्वरक शक्ति में परिवर्तन आता है.
- इसकी अधिकता से पौधों में कई तरह के मृदा जनित रोग भी लग जाते हैं.
पोटेशियम
पोटेशियम के इस्तेमाल से पौधे प्रतिकूल मौसम में भी अच्छे से विकास करते हैं. इसकी के इस्तेमाल से पौधों पर अधिक बारिश और सर्दी का असर कम देखने को मिलता हैं. भूमि में इसकी मात्रा संतुलित होने पर पौधा आसानी से विकास करता है. पोटेशियम भूमि में एंजाइमो की क्रियाशीलता को नियंत्रित करता है.
पोटेशियम की कमी के प्रभाव
- भूमि में इसकी कमी होने पर पौधे झाड़ीनुमा दिखाई देने लगते हैं. क्योंकि इसकी कमी से पौधों में कल्ले अधिक मात्रा में निकलते हैं.
- इसकी कमी से पौधे का तना कमजोर हो जाता है.
- पोटेशियम की कमी की वजह से पत्ती झुलसा जैसी कई तरह की बिमारी पौधों में लग जाती है.
- इसकी कमी की वजह से अनाज वाली फसलों में दानो का आकार छोटा दिखाई देता है. जिसका असर उनकी पैदावार पर देखने को मिलता है.
पोटेशियम की अधिकता के प्रभाव
- पोटेशियम की अधिकता होने से मिट्टी का क्षारीय गुण बढ़ता है.
- इसकी अधिकता की वजह से भूमि में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती हैं. जिससे पौधों की लम्बाई भी ज्यादा बढती है. और पैदावार देरी से प्राप्त होती है.
- पोटेशियम फलों की वृद्धि को बढाता है. जिस कारण इसकी अधिकता होने से फलों का आकार अधिक बड़ा होने पर फल फटन की समस्या उत्पन्न हो सकती है.
जिंक ( जस्ता )
जिंक के इस्तेमाल से पौधे अच्छे से विकास करते हैं. जिंक भूमि में एंजाइम की क्रियाशीलता को बढ़ा देती है. इसकें अलावा इसका इस्तेमाल क्लोरोफिल के निर्माण में उत्प्रेरक की तरह होता है. जिससे पौधा अच्छे से विकास करने लगता है.
जिंक की कमी के प्रभाव
- इसकी कमी होने पर पत्तियां मुड़ने लगती है. और उनके बीच का तंतु पीला दिखाई देने लगता है.
- इसकी कमी होने पर फलों का आकार छोटा दिखाई देता है. जिसका प्रभाव पैदावार पर दिखाई देता है.
- इसकी कमी की वजह से पौधों में खेरा रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है.
- इसकी कमी होने से खरीफ के समय उगाई जाने वाली अनाज फसलों की पत्तियां सफ़ेद दिखाई देने लगती है.
कॉपर ( तांबा )
कॉपर भूमि में इंडोल एसिटिक अम्ल की वृद्धि में सहायक होता है. जिससे भूमि में कार्बनिक पदार्थोँ की मात्रा नियंत्रित रहती है. और पौधे भी अच्छे से विकास करते हैं.
कॉपर की कमी के प्रभाव
- कॉपर की कमी होने पर भूमि में कार्बनिक पदार्थों की कमी हो जाती है. जिसका असर पौधों के विकास और पैदावार पर देखने को मिलता है.
- मिट्टी में कॉपर की कमी होने पर रसदार फलों में रस की मात्रा कम पाई जाती है.
- भूमि में इसकी अधिक कमी होने पर अनाज वाली फसलों में रिक्लेमेशन नामक बीमारी का ख़तरा बढ़ जाता है. जिससे पौधों की पैदावार प्रभावित होती है.
बोरान
बोरान अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों से ज्यादा जरूरी होता है. क्योंकि इसकी कमी होने पर पौधों में प्रजनन की क्रिया नही हो पाती जिससे पैदावार काफी कम प्राप्त होती है. बोरान पौधों में आंतरिक पानी की मात्रा के संतुलन का काम करता है. जिसकी कमी होने से पौधे का विकास रुक जाता है. बोरान भूमि में कैल्शियम और पोटैशियम के अनुपात को नियंत्रित करता है. इसके अलावा यह डी.एन.ए., आर.एन.ए. और प्रोटीन के संश्लेषण में भी सहायक होता है.
बोरान की कमी के प्रभाव
- पौधों में बोरान की कमी होने का प्रभाव फलों पर देखने को मिलता है. इसकी कमी होने पर फलों पर काले धब्बे का रोग लग जाता है.
- बोरान की कमी होने पर पौधों में प्रजनन की क्रिया कम हो जाती है. जिस कारण पौधों से पैदावार कम प्राप्त होती है.
- इसकी कमी होने पर पौधों का विकास रुक जाने की वजह से पौधे बौने दिखाई देने लगते हैं.
- इसकी कमी होने से सब्जी वाली फसलों में कई तरह के रोग लग जाते हैं. जिससे पैदावार को काफी नुक्सान पहुँचता है.
मैंगनीज
भूमि में पाई जाने वाली मैंगनीज की मात्रा भी पौधे के विकास में सहायक होती है. मैंगनीज पौधों में ऑक्सीकरण और अवकरण की क्रिया में सहायक होता है. मैंगनीज पौधों में होने वाली प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में भी भाग लेता है. जिससे पौधों को भोजन प्राप्त होता है. मैंगनीज पौधों में कार्बोहाइड्रेट के ऑक्सीकरण के दौरान कार्बन ऑक्साइड और जल के निर्माण में सहायक का काम करता है.
मैंगनीज की कमी के प्रभाव
- इसकी कमी होने पर पौधों की पत्तियों पर मृत उत्तको के धब्बे बन जाते हैं. जिससे पौधों में भूरी चित्ती और अंगमारी जैसे रोग उत्पन्न हो जाते हैं.
- मोटे अनाज वाली फसलों की पत्तियों का रंग भूरा हो जाता है. और पत्तियां पारदर्शी बन जाती है.
क्लोरीन
क्लोरीन पौधों के लिए सूक्ष्म तत्व का कार्य करता है. इसके प्रभाव से पौधों की पत्तियों में पर्णहरित का निर्माण होता है. क्लोरीन पौधों की पंक्तियों में पानी रोकने का भी काम करता है. जिससे पौधों का विकास होता है.
क्लोरीन की कमी के प्रभाव
- इसकी कमी होने पर लता वाली कुछ फसलों की पत्तियां छोटी और मोटी दिखाई देने लगती है.
- इसकी कमी होने से पत्तियों में विल्ट के लक्ष्ण दिखाई देने लगते हैं.
मॉलिब्डेनम
मॉलिब्डेनम दलहनी फसलों में अधिक उपयोग में आता है. मॉलिब्डेनम दलहनी फसलों में नाइट्रोजन की मात्रा को नियंत्रित करता है. इसके अलावा ये पौधों में विटामिन और शर्करा के संश्लेषण में सहायक होता है.
मॉलिब्डेनम की कमी के प्रभाव
- इसकी कमी के प्रभाव से पत्तियों का रंग हरा पीला दिखाई देने लगता है. जिन पर नारंगी रंग के चितकबरे धब्बे बन जाते हैं.
- नींबू जाती के पौधों की पत्तियों में पीले धब्बे का रोग दिखाई देने लगता हैं.
- कुछ सब्जी फसलों की पत्तियां किनारों पर से मुड़ने लगती है.
आयरन ( लोहा )
आयरन पौधों में क्लोरोफिल के संश्लेषण का काम करता है. जिसकी वजह पौधों में सूर्य की प्रकाशीय ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरित होता है. और पौधे विकास करते हैं. इसके अलावा आयरन भूमि में कई तरह के एंजाइमों के लिए आवश्यक तत्व का काम करता है.
आयरन की कमी के प्रभाव
- पौधों में आयरन की कमी होने से पौधों का विकास प्रभावित होता है.
- इसकी कमी होने पर पौधे की पत्तियां किनारों पर से अधिक समय तक हरी बनी रहती है.
- इसकी कमी होने से पौधे का तना विकास नही करता जिससे पौधा बौना दिखाई देता है.
गंधक
गंधक का इस्तेमाल से तिलहनी फसलों में तेल की मात्रा अधिक पाई जाती है. भूमि में इसकी कमी होने पर प्याज, सरसों और लहसुन जैसी फसलों की पैदावार कम प्राप्त होती है. तम्बाकू की खेती में इसकी पूर्ति होने से पैदावार 30 प्रतिशत तक बढ़ जाती हैं.
गंधक की कमी के प्रभाव
- इसकी कमी होने से सरसों की पत्तियों का आकार प्याले की तरह दिखाई देने लगता है.
- गंधक की कमी से पत्ती और ताने दोनों का रंग पीला पड़ जाता है. और उनका विकास भी रुक जाता है.
- भूमि में गंधक की कमी होने पर कपास, मक्का, तोरिया और टमाटर के पौधों के तनो का रंग लाल दिखाई देने लगता है.
इनके अलावा वैनेडियम, कोबाल्ट, सोडियम और सिलिकॉन जैसी सूक्ष्म तत्व भी भूमि में पाए जाते हैं. जो पौधों के विकास के लिए सहायक होते हैं. लेकिन पौधों को इनकी कम मात्रा की जरूरत होती है. इन पोषक तत्वों में किसी की भी कमी होने से पौधों का विकास प्रभावित हो जाता है.