गन्ना की खेती व्यापारिक फसल के रूप में की जाती है. भारत में गन्ने का सबसे ज्यादा उत्पादन उत्तर भारत में किया जाता है. गन्ने का इस्तेमाल ज्यादातर चीनी और गुड बनाने में किया जाता है. इसके अलावा गन्ने का इस्तेमाल इसका जूस निकालने और सीधा चूसने में भी किया जाता है. गन्ने की खेती वर्तमान में कई अलग अलग तरीकों से की जा रही है. लेकिन गन्ने की खेती ज्यादातर किसानों के लिए नुकसानदायक ही साबित हो रही है. इसकी उन्नत किस्म के बीज (गल्ले) और उचित समय पर उन्नत तरीके से लगाकर किसान भाई अच्छी पैदावार ले सकते हैं. जिससे फसल का उत्पादन काफी ज्यादा मिलता है.
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आज हम आपको गन्ने की कुछ उन्नत किस्मों के बारें में बताने वाले है. जिन्हें आप उचित तरीके से उगाकर अधिक उत्पादन हासिल कर सकते हैं.
को 0238
गन्ने की इस किस्म को करन 4 के नाम से जाना जाता है. जो गन्ने की उत्तम पैदावार देने वाली एक संकर किस्म है. इसके पौधों को Co LK 8102 और Co 775 के संकरण से तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे में लाल सडन का रोग देखने को नही मिलता. इस किस्म के पौधे में मिठास की मात्रा 20 प्रतिशत के आसपास पाई जाती है. इसके पौधों की लम्बाई काफी ज्यादा पाई जाती है. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 80 टन से ज्यादा पाया जाता है.
को सी 671
गन्ना की ये एक शीघ्र पकने वाली किस्म है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 10 महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधे गुड बनाने में सबसे उपयोगी होते हैं. इसकी पैदावार उन्नत तरीके से करने पर इसके पौधों की लम्बाई 12 फिट से ज्यादा पहुँच जाती है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 90 से 100 टन तक पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में मिठास की मात्रा 22 प्रतिशत तक पाई जाती है. इस किस्म के पौधों में कई तरह के कीट और रेडराट जैसे रोग देखने को नही मिलते.
को. 6304
गन्ने की इस किस्म को माध्यम समय में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म का उत्पादन ज्यादातर मध्य प्रदेश में किया जाता है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 12 महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते है. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 100 से 120 टन तक पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में रेडराट और कंडुवा जैसे रोग देखने को नही मिलते. इस किस्म के गन्नों के रस में शक्कर की मात्रा 19 प्रतिशत पाई जाती है.
को. जे. एन. 9823
इस किस्म के पौधे माध्यम समय में पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इसके पौधे रोपाई के लगभग एक साल बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 100 से 110 टन तक पाया जाता है. इस किस्म के पौधे से प्राप्त होने वाले रस में शक्कर की मात्रा 20 प्रतिशत तक पाई जाती है. इसके पौधों में लाल सडन का रोग काफी कम देखने को मिलता है.
को. 8209
गन्ने की ये एक जल्दी पकने वाली नई किस्म है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 9 से 10 महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधे के रस में मिठास की मात्रा 20 प्रतिशत पाई जाती हैं. इस किस्म का उत्पादन इसकी जड़ी के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है. इस किस्म की खेती मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और झारखंड में अधिक की जाती है. इस किस्म के पौधों की लम्बाई 12 फिट से ज्यादा पाई जाती है. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 90 से 110 टन के आसपास पाया जाता है.
को. जवाहर 94-141
गन्ने की इस किस्म को मध्य देरी से पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 14 महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 120 से 150 टन के बीच पाया जाता है. इसके पौधों में कई तरह के कीट, रेडराट और कंडवा जैसे रोग देखने को कम मिलते हैं.
सी ओ 1007
गन्ने की इस किस्म को उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे मध्य समय में पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 90 से 100 टन के बीच पाया जाता है. इसके पौधे पर कीट रोगों का प्रभाव कम देखने को मिलता है. इस किस्म के पौधे आधार से काफी मजबूत होते है. जिस कारण इसके पौधे आड़े बहुत कम गिरते हैं.
को. 7704
गन्ने की इस किस्म के पौधे जल्दी पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 280 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके पौधों की लम्बाई 12 फिट से ज्यादा पाई जाती है. इस किस्म के पौधों के रस में शक्कर की मात्रा 20 प्रतिशत तक पाई जाती है. इसके पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 80 से 100 के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में लाल सड़न और कडुवा जैसे रोग कम देखने को मिलते हैं.
को जे एन 9505
गन्ने की इस किस्म के पौधे मध्य समय में पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 110 टन के आसपास पाया जाता है. इसके पौधे रोपाई के लगभग एक साल के आसपास कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. गन्ने की इस किस्म के पौधों में शक्कर की मात्रा 20 से 22 प्रतिशत तक पाई जाती हैं. इस किस्म के पौधे में उक्ठा और लाल सड़न जैसे रोग बहुत कम देखने को मिलते हैं.
को. जवाहर 86-600
गन्ने की इस किस्म को देरी से पैदावार लेने के लिए तैयार किया गया है. इसके पौधे रोपाई के लगभग एक साल बाद कटाई के लिए तैयार होते हैं. इस किस्म के पौधों की लम्बाई 12 फिट के आसपास पाई जाती है. जिनमें शक्कर की मात्रा सबसे ज्यादा 22 प्रतिशत से भी ज्यादा पाई जाती है. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 130 से 160 टन के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में रेडराट और कंडवा जैसे रोग देखने को कम मिलते हैं.
को. 6217
गन्ने की इस किस्म के पौधे अधिक देरी तक पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इस किस्म के पौधे काफी नर्म पाए जाते हैं. इस कारण इनका इस्तेमाल चूसने के लिए सबसे बेहतर होता है. इस किस्म के पौधों में कई तरह के कीट रोग काफी कम देखने को मिलते हैं. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 100 से 110 टन के आसपास पाया जाता है.
सी ओ 1148
गन्ने की इस किस्म के पौधे सूखे और पाले के प्रति सहनशील होते हैं. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 10 से 12 महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 80 से 100 टन के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधे ठोस पाए जाते हैं. जिनके रस में शक्कर की मात्रा 17 प्रतिशत तक पाई जाती है. गन्ने की इस किस्म के पौधे 10 से 12 फिट लम्बे पाए जाते हैं. इस किस्म के पौधों में लाल सडन का रोग काफी कम देखने को मिलता है.
को. जवाहर 86-2087
गन्ने की इस किस्म के पौधे देरी से पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 150 टन के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों की लम्बाई काफी ज्यादा पाई जाती है. इसके पौधों के रस में मिठास की मात्रा 20 प्रतिशत पाई जाती है. इस किस्म के पौधे गुड बनाने के लिए सबसे उत्तम होते हैं. इसके पौधों में कई तरह के कीट रोग देखने को नही मिलते.
को. 7318
गन्ने की इस किस्म के पौधे काफी नर्म होते हैं. जिस कारण इस किस्म के गन्ने चूसने में काफी अच्छे होते हैं. इसके पौधे की लम्बाई 12 फिट के आसपास पाई जाती है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 12 महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 120 से 140 टन के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में मिठास की मात्रा 18 प्रतिशत तक पाई जाती हैं. इसके पौधों में रेडराट और कंडवा जैसे रोग देखने को कम मिलते हैं.
सी.ओ. 7717
गन्ने की इस किस्म के पौधे मध्यम समय में पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इस किस्म के पौधे बसंतकालीन रोपाई के लिए सबसे उपयुक्त होते हैं. इसके पौधे हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में आसानी से उगाये जा सकते हैं. इस किस्म के पौधे सीधे बढ़ने वाले होते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 110 टन के आसपास पाया जाता हैं.
को. 94008
गन्ने की इस किस्म को कम समय में ज्यादा पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इसके पौधों की लम्बाई 10 फिट के आसपास पाई जाती है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 100 टन के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में शक्कर की मात्रा 18 से 20 प्रतिशत पाई जाती है. इस किस्म के पौधों पर उकठा और कंडवा रोग नही लगता.
सी ओ जे 64
गन्ने की ये एक अगेती रोपाई वाली किस्म है. इस किस्म के पौधे चूसने के लिए काफी उपयुक्त होते हैं. लेकिन इसके पौधों में तना छेदक रोग काफी जल्दी लगता है. इसलिए इसकी रोकथाम करना जरूरी होता है. इस किस्म के पौधे रोपाई के 10 से 12 महीने बाद ही पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 80 टन के आसपास पाया जाता है.
सी ओ एच 128
गन्ने की इस किस्म के पौधे बसंतकालीन रोपाई के लिए सबसे उपयुक्त होते हैं. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग एक साल के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं. इसके पौधों में फुटाव अच्छा पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में मिठास की मात्रा 17 से 18 प्रतिशत के बीच पाई जाती है. इस किस्म के पौधों में लाल सडन का रोग काफी कम देखने को मिलता है. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 90 से 100 टन के आसपास पाया जाता हैं.
सी ओ एस 8436
गन्ने की इस किस्म के पौधे मध्यम समय में पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 10 से 12 महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 80 से 100 टन के बीच पाया जाता है. इसके पौधे ठोस पाए जाते हैं, जिनमें मिठास की मात्रा 18 से 20 प्रतिशत के बीच पाई जाती है. गन्ने की इस किस्म के पौधे 10 से 12 फिट लम्बे पाए जाते हैं. इस किस्म के पौधों में कई तरह के कीट जनित रोग काफी कम देखने को मिलते हैं.
को.सी. 671
गन्ने की इस किस्म के पौधे 10 से 12 महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इनसे प्राप्त होने वाले रस में 22 प्रतिशत शक्कर की मात्रा पाई जाती है. इस का सबसे ज्यादा इस्तेमाल गुड बनाने में किया जाता है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 100 टन तक पाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर रेडराट का रोग नही लगता है.
गन्ना की ये वो उन्नत किस्में हैं जिन्हें लगभग उत्तर भारत के सभी राज्यों में अलग अलग तरह की भूमि में उगाया जाता है. इनके अलावा कुछ और किस्में हैं जिन्हें किसान भाई क्षेत्रीय आधार पर उगाते हैं.
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