टमाटर की खेती किसान भाई सब्जी फसल के रूप में करते हैं. टमाटर के इस्तेमाल से लगभग सभी सब्जियां बनाई जाती हैं. सब्जी के अलावा टमाटर का इस्तेमाल सोस, चटनी और सलाद बनानें में भी किया जाता है. टमाटर की खेती साल भर किसी भी मौसम में की जा सकती है. टमाटर मानव शरीर के लिए बहुत उपयोगी होता है. क्योंकि टमाटर के अंदर प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन सी जैसे तत्व पाए जाते हैं.
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टमाटर उष्णकटिबंधीय जलवायु की फसल है, इसके पौधे सर्दी और गर्मी दोनों मौसम में आसानी से विकास कर लेते हैं. लेकिन सर्दियों में पड़ने वाले पाले से इसके पौधे शीघ्र नष्ट हो जाते है. टमाटर की खेती में लगातार इस्तेमाल किये जाने वाले रासायनिक कीटनाशक और उर्वरक की वजह से इसके फलों की गुणवत्ता काफी कम हो चुकी हैं. और पौधों की देखभाल में भी काफी ज्यादा खर्च आता है. जिस कारण अब लोग इसकी जैविक तरीके से खेती करने की तरफ ज्यादा ध्यान दे रहे हैं.
अगर आप भी टमाटर की खेती करते हैं या जैविक तरीके से खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी जैविक खेती करने के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिटटी
टमाटर की खेती एक लिए अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त है. क्योंकि भराव वाली भूमि में टमाटर के पौधे और फल बहुत जल्द खराब हो जाती है. दोमट मिट्टी के अलावा इसकी खेती और भी कई तरह की भूमि में की जा सकती है. इसके लिए भूमि में पौषक तत्व उचित मात्रा में होने चाहिए. और मिटटी का पी.एच. मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए.
जलवायु और तापमान
टमाटर उष्णकटिबंधीय जलवायु की फसल है. भारत में इसकी खेती सर्दी और गर्मी दोनों मौसम में आसानी से की जा सकती है. इसकी खेती के लिए सामान्य मौसम सबसे उपयुक्त होता है. सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसकी खेती को काफी नुक्सान पहुँचाता है. इसकी खेती के लिए अधिक बारिश की जरूरत नही होती. पौधों पर फूल या फल बनने के दौरान होने वाली अधिक बारिश इसकी फसल के लिए नुकसानदायक होती है.
टमाटर के पौधों को शुरुआत में अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. अंकुरित होने के बाद टमाटर के पौधे 25 से 30 डिग्री तापमान पर अच्छे से विकास कर लेते हैं. इसके पौधे गर्मियों में अधिकतम 38 और सर्दियों में न्यूनतम 15 डिग्री तापमान पर भी जीवित रह सकते हैं.
उन्नत किस्में
टमाटर की काफी सारी उन्नत किस्में हैं. जिन्हें किसान भाई अलग अलग जगहों पर अलग अलग मौसम में आधार पर उगाकर अच्छा उत्पादन ले सकता है. वर्तमान में टमाटर की काफी ऐसी संकर किस्में भी बन चुकी हैं जिन्हें अधिक उत्पादन लेने के लिए दोनों मौसम में भी उगाया जा सकता हैं. टमाटर की सभी उन्नत किस्मों के बारें में अधिक जानकारी के लिए आप हमारे इस आर्टिकल से इसकी जानकारी हासिल कर सकते हैं.
खेत की तैयारी
टमाटर की खेती के लिए खेत की मिट्टी भुरभुरी और साफ-सुथरी होनी चाहिए. इसके लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर दे. उसके बाद खेत को कुछ दिन के लिए तेज़ धूप लगने के लिए खुला छोड़ दें. खेत को खुला छोड़ने के बाद खेत में उचित मात्रा में जैविक खाद के रूप में पुरानी गोबर की खाद को मिट्टी में डालकर अच्छे से मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की दो से तीन बार तिरछी जुताई कर दें.
टमाटर की खेती के लिए मिट्टी को भुरभुरी बनाने के लिए खेत में पानी छोड़कर उसका पलेव कर दें. पलेव करने के बाद जब खेत में खरपतवार नजर आने लगे तब खेत की अच्छे से जुताई कर उसमें रोटावेटर चला दें. इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी दिखाई देने लगती है. मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद खेत में पाटा लगा दें. जिससे खेत की मिट्टी समतल हो जाती है.
बीज की मात्रा और उपचार
टमाटर की जैविक तरीके से खेती के लिए इसके बीजों का जैविक तरीके से उपचार किया जाना चाहिए. इसके बीजों का जैविक तरीके से उपचार करने के लिए नीम के तेल या गोमूत्र का इस्तेमाल करना चाहिए. एक हेक्टेयर में जैविक तरीके से खेती के लिए टमाटर की देशी किस्म के लगभग आधा किलो और संकर किस्म के लगभग 300 ग्राम बीज काफी होते हैं.
नर्सरी में पौध तैयार करना
टमाटर के बीजों की रोपाई पहले नर्सरी में की जाती है. नर्सरी में इसके बीजों को क्यारियों में उगाया जाता है. क्यारियों में उगाने के दौरान क्यारियों की मिट्टी को उपचारित कर लेना चाहिए. और उनमें उचित मात्रा में उर्वरक डालना चाहिए. इस पौध तैयार करने के लिए शुरुआत में क्यारियों की तैयारी के वक्त उनमें लगभग 25 किलो पुरानी गोबर की खाद को डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. उसके बाद क्यारियों की मिट्टी को रोगमुक्त किया जाता हैं. क्यारियों को रोगमुक्त करने के लिए सौर उर्जा विधि का इस्तेमाल किया जाता हैं.
सौर उर्जा विधि से क्यारियों को रोगाणु मुक्त करना
सौर उर्जा विधि पूरी तरह से मिट्टी को रोगाणु मुक्त करने की जैविक विधि है. इस विधि के माध्यम भूमि को बिना पैसे खर्च किये उपचारित किया जाता है. इस विधि में क्यारियों को गर्मियों के मौसम में लगभग एक महीने तक सफ़ेद पॉलीथीन से ढककर छोड़ दें. इससे मिट्टी सूर्य के ताप से गर्म हो जाती है. और भूमि में मौजूद हानिकारक कीट नष्ट हो जाते हैं. जिससे इसके बीजों का अंकुरण अच्छे से होता है. मिट्टी उपचार की ये विधि नर्सरी के लिए ही अधिक लाभदायक मानी जाती है.
मिट्टी को उपचारित करने के बाद इसके बीजों की रोपाई की जाती है. क्यारियों में इसकी रोपाई करने के दौरान इसके बीजों को पंक्तियों में लगाया जाता है. पंक्तियों में इसके बीजों की रोपाई दो सेंटीमीटर के आसपास दूरी छोड़ते हुए करें. बीजों की रोपाई के बाद उनके विकास के लिए क्यारियों की उचित मात्रा में सिंचाई करते रहें. जब इसके पौधे 20 से 30 दिन बाद रोपाई के लिए तैयार हो जाएँ तब क्यारियों में पानी चलाकर उन्हें सावधानीपूर्वक उखाड़ा लें. पौधों को उखाड़ने के दौरान उनकी जड़ें टूटनी नही चाहिए.
पौध रोपाई का तरीका और टाइम
टमाटर के पौधों की रोपाई खेत में उचित दूरी पर मेड बनाकर की जाती है. मेड़ों पर रोपाई के दौरान प्रत्येक मेड़ों के बीच एक से डेढ़ फिट की दूरी होनी चाहिए. और मेड पर पेड़ों के बीच एक फिट की दूरी रखनी चाहिए. इसके अलावा कुछ किसान भाई इसे समतल भूमि में भी उगाते हैं. समतल भूमि में उगाने के दौरान इसके पौधों को क्यारियों में एक फीट के आसपास दूरी छोड़ते हुए पंक्तियों में उगाते हैं. इसके पौधों की रोपाई से पहले उन्हें राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर लेना चाहिए. ताकि पौधों पर शुरुआत में अंकुरण के वक्त किसी भी तरह की कोई बीमारी का प्रभाव दिखाई ना दें. टमाटर के पौधों की रोपाई शाम के वक्त खेतों में करनी चाहिए. क्योंकि इस दौरान रोपाई करने पर पौधों का अंकुरण अच्छे से होता है.
टमाटर की खेती मुख्य रूप से सर्दी और बारिश के मौसम में की जाती है. सर्दियों की फसल लेने के लिए इसके पौधों की रोपाई अगस्त माह के प्रथम सप्ताह से अक्टूबर के पहले सप्ताह तक कर देनी चाहिए. जबकि जायद की फसल लेने के लिए इसके पौधों की रोपाई दिसम्बर और ग्रीष्म कालीन फसल लेने के लिए फ़रवरी के शुरुआत में इसके पौधों की रोपाई करनी चाहिए.
पौधों की सिंचाई
टमाटर के पौधों को सिंचाई की सामान्य जरूरत होती है. इसके पौधों की पहली सिंचाई पौधा रोपाई के तुरंत बाद कर देनी चाहिए. उसके बाद पौधे के विकास करने तक खेत में उचित मात्रा में नमी बनाए रखे. और जब इसके पौधे अच्छे से विकास करने लगे, तब इसके पौधों को सर्दियों के मौसम में 15 से 20 दिन के अंतराल में और गर्मियों के मौसम में 4 से 5 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए. इसके पौधों पर फूल खिलने के दौरान पौधों को पानी उचित मात्रा में देना चाहिए. क्योंकि फूल आने के दौरान अधिक पानी देने पर फूल खराब हो जाते हैं.
उर्वरक की मात्रा
जैविक तरीके से खेती करने के दौरान इसके पौधों को उर्वरक की सामान्य जरूरत होती है. इसके लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त खेत में 17 गाड़ी के आसपास पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दें. इसके अलावा जब इसके पौधे विकास करने लगे तब राइजोबियम खाद देनी चाहिए. जो पौधों में नाइट्रोजन की आपूर्ति करती है. जिससे पौधे तेजी से विकास करते हैं. राइजोबियम की जगह किसान भाई एजोला खाद को भी खेतों में दे सकते हैं. जिसे किसान भाई अपने घर पर बना सकते हैं.
खरपतवार नियंत्रण
टमाटर की जैविक तरीके से खेती करने के दौरान इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक रूप से नीलाई गुड़ाई कर किया जाता है. इसके लिए इसके पौधों की रोपाई के लगभग 20 दिन बाद उनकी गुड़ाई कर खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए. इससे पौधों की दो से तीन गुड़ाई काफी होती हैं. इसके पौधों की पहली गुड़ाई के बाद बाकी की गुड़ाई 15 से 20 दिन के अंतराल में कर देनी चाहिए. हर गुड़ाई के साथ पौधे की जड़ों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए. ताकि जब पौधों पर टमाटर लगे तब उनके वजन से पौधे टूट ना सके.
पौधों की देखभाल
टमाटर के पौधों को देखभाल की ज्यादा जरूरत होती हैं. क्योंकि इसके पौधे में फल जमीन की सतह के पास लगते हैं. जिनके लगातार भूमि से लगे रहने पर फल खराब होने लगते हैं. इसलिए इसके पौधों की बंधाई की जाती हैं. जिसे पौधों को सहारा देना भी बोलते हैं. इसके लिए खेत में उचित दूरी पर बांस के पॉल गाड़कर उन पर रस्सियों का जाल बना दिया जाता है. जिनके सहारे पौधे अपना विकास करते हैं. और पैदावार भी अधिक खराब नही होती.
पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
टमाटर के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जिनका प्रभाव पौधों के साथ साथ उनकी पैदावार पर देखने को मिलता हैं. जिनकी रोकथाम उचित समय पर ना की जाए तो पैदावार में काफी नुक्सान देखने को मिलता है.
सफेद मक्खी
टमाटर के पौधों पर सफेद मक्खी रोग का प्रभाव किट की वजह से दिखाई देता है. इस रोग के कीटों का रंग सफ़ेद दिखाई देता है. जो पौधे की पत्तियों की निचली सतह पर पाए जाते है. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों का रस चूसकर पौधों को नुक्सान पहुँचाते हैं. इस रोग के लगने से शुरुआत में पौधे की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती हैं. जो कुछ दिन बाद पीली पड़कर नष्ट हो जाती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल या नीम से बने कीटनाशक का छिडकाव करना चाहिए. इसके अलावा खेत में उचित दूरी पर पीला चिपचिपा ट्रैप लगानी चाहिए.
कटवा कीट
टमाटर के पौधों में कटवा कीट का प्रभाव शुरूआत में ही दिखाई देता है. इस रोग के कीट दिन में जमीन के अंदर रहते है. और रात के मौसम में पौधों को जड़ के पास से काट देते हैं. जिससे पौधे पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं. रोग बढ़ने से सम्पूर्ण पैदावार भी नष्ट हो जाती है. इसकी रोकथाम के लिए फसल चक्र अपनाकर खेती करनी चाहिए. इसके अलावा गर्मियों के मौसम में खेत की गहरी जुताई कर धूप लगने के लिए खुला छोड़ दें. और खेत की जुताई के वक्त खेत में जीवामृत का छिडकाव कर दें. खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर पौधों की जड़ों में नीम के तेल का छिडकाव कर दें.
फल छेदक
टमाटर के पौधों में फल छेदक रोग का प्रभाव पौधों के विकास और फलों के बनने के बाद दिखाई देता है. फलों के बनने से पहले इसकी सुंडी पौधे की पत्तियों और कलियों को खाती है. और फल बनने के बाद फलों में छेद बनाकर उन्हें खराब कर देती है. रोग बढ़ने पर पैदावार में काफी फर्क देखने को मिलता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर स्पईनोसैड या नीम के आर्क का छिडकाव करना चाहिए. इसके अलावा इसके कीटों की रोकथाम के लिए खेत में पीला चिपचिपा ट्रैप लगाना चाहिए.
जीवाणु धब्बा रोग
टमाटर के पौधों में जीवाणु धब्बा रोग का प्रभाव पौधे की पत्तियों और फलों पर अधिक देखने को मिलता है. इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियों के किनारे गहरे काले और पीले दिखाई देने लगते हैं. रोग बढ़ने पर इसके फलों पर भी गहरे धब्बे बन जाते हैं. और पत्तियां सूखकर गिरने लगती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर शुरुआत में इसके बीजों की रोपाई के वक्त उन्हें 20 मिनट तक 52 डिग्री तापमान वाले पानी में डुबोकर उपचारित कर लेना चाहिए. इसके अलावा बीजों को 20 प्रतिशत ब्लीच के मिश्रण में आधे घंटे तक डुबोकर रखना चाहिए.
फल सडन
टमाटर के पौधों में फल सडन रोग का प्रभाव कवक के माध्यम से फैलता है. इस रोग के लगने पर टमाटर के फलों पर गोल आकार के गहरे भूरे धब्बे बन जाते हैं. जिससे फल जल्द ही खराब हो जाते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए फलों को अधिक समय तक जमीन के सम्पर्क में ना रहने दें. इसके लिए खाली जगहों पर मल्चिग कर देनी चाहिए. खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर पौधों पर गोमूत्र, पंचगव्य और खट्टी लस्सी का छिडकाव करना चाहिए.
पछेती झुलसा
टमाटर के पौधों में पछेती झुलसा रोग का प्रभाव अगस्त के अंतिम और सितंबर माह के पहले सप्ताह में दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के गोलाकार धब्बे बन जाते हैं. जिनका आकार छोटा दिखाई देता है. रोग बढ़ने पर धब्बों का आकार बढ़ जाता है जिससे पौधे की पत्तियां जली हुई दिखाई देने लगती हैं. जो कुछ दिन बाद खराब होकर गिर जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए फसल चक्र अपनाकर खेती करें. खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर पौधों पर पंचगव्य का छिडकाव करना चाहिए. और रोग ग्रस्त पौधे को निकालकर नष्ट कर दें. इसके अलावा रोगरोधी किस्म का चुनाव करना चाहिए.
पाउडरी मिल्ड्यू
टमाटर के पौधों में पाउडरी मिल्ड्यू रोग फफूंद की वजह से फैलता है. इस रोग का प्रभाव पौधे की पत्तियों पर दिखाई देता हैं. इसके लगने पर पौधों की पत्तियों पर सफ़ेद भूरे रंग के छोटे धब्बे दिखाई देने लगते हैं. रोग के बढ़ने पर पूरी पत्तियों पर सफ़ेद रंग का पाउडर जमा हो जाता है. जिससे पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देते हैं. जिससे पौधों का विकास रुक जाता है. और कुछ दिनों बाद पौधे की पत्तियां टूटकर गिरने लगती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर बेसिलस सबटिलीस या ट्राइकोडर्मा हर्जियाम की उचित मात्रा का छिडकाव रोग दिखाई देने पर करना चाहिए.
मोजेक
टमाटर के पौधों में मौजेक रोग का प्रभाव विषाणु की वजह से दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर हल्के गहरे रंग की चित्तियाँ दिखाई देती हैं. रोग बढ़ने पर पत्तियां विकृत आकार धारण किये दिखाई देने लगती हैं. जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए. और फसल चक्र अपनाकर खेती करें. इसके अलावा रोग रोधी किस्मों का चुनाव कर उगाना चाहिए.
फलों की तुड़ाई
टमाटर के फल पौध रोपाई के लगभग तीन महीने बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. इसके फलों की पहली तुड़ाई के बाद दो से तीन दिन के अंतराल में फलों की बार बार तुड़ाई करनी चाहिए. फलों की तुड़ाई करने के दौरान थोड़े कम पके फलों को भी तोड़ लेना चाहिए. और फलों की तुड़ाई हमेशा शाम के मौसम में करनी चाहिए. क्योंकि इससे फल अधिक देर तक ताजा दिखाई देते हैं.
फलों की तुड़ाई के बाद उनमें से कम और अधिक पके हुए फलों को अलग अलग कर लेना चाहिए. कम पके फलों को दूर के बाजार में बेचने के लिए भेजना चाहिए. जबकि अधिक पके फलों को नजदीकी बाजार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए.
पैदावार और लाभ
टमाटर की सभी अलग अलग किस्मों की प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 50 टन के आसपास पाई जाती है. जिनका बाज़ार में थोक भाव 5 रूपये प्रति किलो से 50 रूपये प्रति किलो तक अलग अलग मौसम में मांग के आधार पर पाया जाता है. अगर किसान भाई को टमाटर का थोक भाव 5 रूपये प्रति किलो के हिसाब से भी मिले तो भी किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से ढाई लाख तक की कमाई कर सकता है.