टमाटर की खेती मुख्य रूप से सब्जी फसल के रूप में की जाती है. लेकिन इसका इस्तेमाल सब्जी के अलावा और भी कई तरह से किया जाता है. जिसमें इसका इस्तेमाल कैचप, चटनी और सोस बनाने में किया जाता है. टमाटर की काफी उन्नत किस्में हैं जिन्हें सालभर उगाया जा सकता है. इस दौरान इसकी फसल को देखरेख की ज्यादा जरूरत होती है.
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इसको उगाने के दौरान मौसम में होने वाले परिवर्तन का इसके पौधों पर काफी प्रभाव देखने को मिलता है. मौसम परिवर्तन के दौरान इसके पौधों में कई तरह के रोग लग जाते हैं. जिनकी उचित समय पर रोकथाम ना की जाए तो फसल को काफी नुक्सान पहुँचता है. टमाटर की फसल में लगने वाले सभी रोगों की समय रहते रोकथाम कर किसान भाई अपनी फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकता है.
आज हम आपको टमाटर की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम के बारें में बताने वाले हैं.
सफेद मक्खी
टमाटर के पौधों में सफेद मक्खी का रोग कीट की वजह से फैलता है. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों का रस चूसकर उसे नुक्सान पहुँचाते है. जो पत्तियों की निचली सतह पर दिखाई देते हैं. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती हैं. जो रोग बढ़ने पर पौधों से अलग होकर गिर जाती हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की उचित समय पर रोपाई करनि चाहिए
- पौधों के विकास के दौरान खेत में चार से पांच फेरोमेन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से लगा दें.
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर डाइमेथोएट, मिथाइल डेमेटान 30 ई सी या ब्युप्रोफेजिन की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
- इसके अलावा जैविक तरीके से नियंत्रण के लिए पौधों पर नीम के तेल या नीम के बीजों के आर्क का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
पीला पर्ण कुंचन
टमाटर के पौधों में पीला पर्ण कुंचन रोग वायरस के कारण फैलता है. शुरुआत में इस रोग का प्रभाव पौधे की नई पत्तियों पर दिखाई देता है. जिससे पौधे की शाखाओं का विकास रुक जाता है. इस रोग के बढ़ने से पौधे झाड़ीनुमा दिखाई देने लगते हैं. और पौधे की पत्तियां किनारों पर से मोटी दिखाई देने लगती है. जिनका रंग हल्का हरा पीला दिखाई देता है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए प्रमाणित और रोगरोधी किस्मों के पौधों को उगाना चाहिए.
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर डाईमिथोएट की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
जीवाणु पत्ती धब्बा
टमाटर के पौधों में जीवाणु पत्ती धब्बा रोग वायरस के माध्यम से फैलता है. जो पौधों पर किसी भी अवस्था में दिखाई दे सकता है. इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियों पर छोटे भूरे काले रंग के धब्बे बन जाते हैं. और पत्तियां का रंग हरा, पीला दिखाई देने लगता है. रोग बढ़ने पर इन धब्बों का आकार और संख्या दोनों बढ़ जाती है. और कुछ दिनों बाद रोग लगे पौधे की पत्तियां काली पड़कर नष्ट हो जाती हैं. जिससे पौधों का विकास रुक जाता हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए प्रमाणित और रोगरोधी किस्मों के पौधों को उगाना चाहिए.
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर मेंकोजेब की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
एफिड
टमाटर के पौधों में लगने वाले एफिड रोग को चेपा और माहू में नाम से भी जाना जाता है. पौधों पर इस रोग का प्रभाव वातावरण में तापमान के बढ़ने की वजह से दिखाई देता है. पौधों पर यह रोग कीट की वजह से फैलता है. इस रोग के कीट काले, पीले और हरे रंग के दिखाई देते हैं. जो आकार में काफी छोटे होते हैं. ये कीट पौधों पर एक समूह में पाए जाते हैं. जो पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते हैं. जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की रोपाई समय पर करनी चाहिए.
- पौधों पर रोग दिखाई देने पर फॉस्फोमिडॉन और मिथाइल डिमेटान दवा की उचित मात्रा का छिडकाव तुरंत करना चाहिए.
- जैविक तरीके से रोग नियंत्रण के लिए पौधों पर नीम के तेल या नीम के आर्क का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए. इसके अलावा सर्फ़ के घोल का छिडकाव भी पौधों पर करना लाभकारी होता हैं.
चूर्णिल आसिता
टमाटर के पौधों में चूर्णिल आसिता रोग फफूंद की वजह से फैलता है. पौधों पर इस रोग का प्रभाव वातावरण में अधिक नमी के बने रहने पर दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर सफ़ेद भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. रोग बढ़ने पर इन धब्बों का आकार बढ़ जाता है. और पूरी पत्तियों पर सफ़ेद रंग का पाउडर जमा हो जाता है. जिससे पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होनी बंद हो जाती है. और उनका विकास रुक जाता है. जिसके कुछ दिनों बाद पौधे की पत्तियां टूटकर गिर जाती हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए प्रमाणित और रोग प्रतिरोधी किस्म के बीजों को उगाना चाहिए.
- बीजों को खेत में लगाने से पहले उन्हें कार्बेन्डाजिम, थीरम या कैप्टान दवा से उपचारित कर लेना चाहिए.
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर ट्राईफ्लूमिजोल या प्रोपिकोनाजोल की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए. इसके अलावा घुलनशील गंधक और कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिडकाव भी लाभदायक होता है.
- इसके अलावा रोग ग्रस्त पौधे को तुरंत उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए.
कैंकर (फल सडन)
टमाटर के पौधों में कैंकर रोग का प्रभाव पौधों पर फलों के बनने के दौरान नमी और बारिश के मौसम में दिखाई देता है. इस रोग के लगने से टमाटर के फलों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं. जिससे फल सड़कर खराब हो जाता है. रोग बढ़ने पर इसका असर लगभग सभी पौधों पर देखने को मिलता है. जिससे पूरी पैदावार खराब हो जाती है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए फलों को अधिक देर तक भूमि के सम्पर्क में ना रहने दें. इसके लिए पौधों को सहारा देकर खड़े रखना चाहिए.
- बारिश के मौसम के दौरान पौधों पर मैंकोजेब या कापर आक्सीक्लोराइड की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
- इसके अलावा रोग ग्रस्त फलों को एकत्रित कर खेत के बाहर ले जाकर नष्ट कर दें.
तम्बाकू की इल्ली
टमाटर के पौधों में इस रोग का प्रभाव पौधों के विकास के दौरान दिखाई देता है. जो पौधों पर किट के माध्यम से फैलता है. इस रोग की सुंडी पौधे की पत्तियों की तेजी से खाती है. जिससे पौधे की पत्तियों के उतक छिल जाते हैं. रोग बढ़ने से पौधे पत्तियों रहित दिखाई देने लगते हैं. और उनका विकास रुक जाता है. फल आने के दौरान रोग दिखाई देने पर इसका लार्व फलों पर भी आक्रमण करना शुरू कर देता है. जिससे पैदावार को भी नुक्सान पहुँचता है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर स्पाइनोसेड 45 एससी या डेल्टामेथ्रिन की उचित मात्रा का छिडकाव रोग दिखाई देने पर करना चाहिए.
- जैविक तरीके से नियंत्रण के लिए पौधों पर नीम के तेल, नीम के आर्क का छिडकाव 10 दिन के अंतराल में दो से तीन बार करना चाहिए.
फल छेदक
टमाटर के पौधों में फल छेदक रोग का प्रभाव कीट की वजह से दिखाई देता है. इस रोग के कीट की इल्ली टमाटर के फलों में छिद्र कर उन्हें खराब कर देते हैं. जिससे फल खाने लायक नही रहते. रोग बढ़ने पर फसल की पैदावार को काफी नुक्सान पहुँचता है.
रोकथाम
- इसकी रोकथाम के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिडकाव रोग दिखाई देने के तुरंत बाद कर देना चाहिए.
- जैविक तरीके से नियंत्रण के लिए पौधों पर फल बनने के बाद से ही नीम के तेल, नीम के बीजों के आर्क का छिडकाव 10 से 15 दिन के अंतराल में दो से तीन बार करना चाहिए.
पछेती अंगमारी
टमाटर के पौधों में पछेती अंगमारी रोग का प्रभाव फाइटोफ्थोरा इन्फेस्टान्स नामक फफूंद की वजह से फैलता है. इस रोग के लगने से पौधों को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचता है. रोग के तीव्र होने से सम्पूर्ण फसल नष्ट हो जाती है. पौधों पर यह रोग अधिक नमी और कम तापमान की वजह से फैलता है. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर अनियमित आकार के गहरे भूरे धब्बे बन जाते है. रोग के बढ़ने पर इन धब्बों का आकार बढ़ जाता है. जिसे पौधे की पत्तियां गहरे काले रंग की दिखाई देने लगती हैं. और पौधे जल्द ही सूखकर नष्ट हो जाते हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए रोग प्रतिरोधी किस्म के बीजों को उचित समय पर उगाना चाहिए.
- खेत की तैयारी के दौरान खेत को गहरी जुताई करने के साथ साथ खेत में जल निकासी का उचित प्रतिबंध करना चाहिए.
- फसल चक्र अपनाकर खेती करनी चाहिए.
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर पौधों पर मैंकोजेब या जिनेब की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
अगेती अंगमारी
टमाटर के पौधों में अगेती अंगमारी रोग का प्रभाव आल्टरनेरिया सोलेनाई नामक फफूंद की वजह से फैलता है. पौधों पर इस रोग का प्रभाव शुरुआत में उसकी पत्तियों पर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के गोलाकार धब्बे बन जाते हैं. रोग बढ़ने पर इन धब्बों का आकार बढ़ जाता है. और पौधे की पत्तियां हल्की पीली दिखाई देने लगती हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए रोग प्रतिरोधी किस्म के बीजों का चयन कर सही समय पर उगाना चाहिए.
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर मैंकोजेब या कापर आक्सीक्लोराइड की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
लीफ माइनर
टमाटर के पौधों में लीफ माइनर रोग कीट की वजह से फैलता है. पौधों पर इस रोग का प्रभाव उसकी पत्तियों पर देखने को मिलता है. इस रोग के कीट पौधों की पत्तियों के हरे भाग को खाकर उनमें सुरंग नुमा नली बना देते हैं. जिससे पत्तियों पर भूरे रंग की पारदर्शी लाईने दिखाई देने लगती है. रोग बढ़ने पर लाइनों की संख्या बढ़ जाती है और पूरी पत्तियां पारदर्शी दिखाई देने लगती हैं, जो कुछ समय बाद टूटकर गिर जाती हैं. जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं. और उन पर फल बहुत कम मात्रा में आते हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर स्पाइनटोरम या क्लोरनट्रेनिलिप्रोलकी उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
- जैविक तरीके से नियंत्रण के लिए नीम के तेल और नीम के बीजों के आर्क का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
फलों पर सफ़ेद धब्बा
पौधों पर यह रोग तापमान में वृद्धि होने पर दिखाई देता है. इसके लगने पर पौधे की पत्तियां शुरुआत में मुरझा जाती हैं. और किनारों पर झुलसे धब्बे बन जाते हैं. और टमाटर के फलों पर सफेद रंग के धब्बे बन जाते हैं. जिन्हें सनस्कैल्ड कहा जाता है. इस रोग के लगने से टमाटर के फल समय से पहले पक जाते हैं. और उनका आवरण काफी कठोर हो जाता है.
रोकथाम
- इसकी रोकथाम के लिए अधिक तापमान में विकास करने वाली किस्मों का चयन करना चाहिए.
- खेत में नमी की मात्रा बनाए रखने के लिए पौधों की सिंचाई उचित समय पर आवश्यकता के अनुसार करनी चाहिए.
पौध सड़न
टमाटर के पौधों में पौध सडन रोग का प्रभाव बीजों के अंकुरण के वक्त नर्सरी में पौध तैयार करने के दौरान दिखाई देता है. पौधों में यह रोग फफूंद की वजह से फैलता है. इस रोग के लगने पर अंकुरित हुए पौधों के तनो पर पानी से भरे फफोले नजर आते है. जिसके कुछ दिनों बाद पौधे नष्ट होकर गिर जाते है. जिससे पूरी फसल बर्बाद हो जाती है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए शुरुआत में मिट्टी को उपचारित करने के लिए उसमें फोरेट या बाविस्टिन का छिडकाव कर अच्छे से मिला देना चाहिए.
- बीजों की क्यारियों में रोपाई से पहले उन्हें कैप्टान या मेंकोजेब की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए.
- पौधों के अंकुरण के चार से पांच दिन बाद उन पर कापर आक्सीक्लोराइड या मेटालेक्जिल की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों की जड़ों में करना चाहिए.
- पौधों की सिंचाई आवश्यकता के अनुसार करनी चाहिए. और क्यारियों में पानी भरा नही होना चाहिए.
ये टमाटर की फसल में लगने वाले वो कुछ प्रमुख रोग हैं, जिनकी रोकथाम उचित समय रहते करने पर पौधों को रोग ग्रस्त होने से बचाया जा सकता है.