कीवी फल की खेती कैसे करें – Kiwi Farming

कीवी फल का जन्म स्थान चीन को माना जाता है. लेकिन वर्तमान में न्यूजीलैंड इसका बहुत बड़ा उत्पादक देश बना हुआ है. कीवी फल में विटामिन सी की मात्रा अधिक पाई जाती है. इसका फल सुनहरी चमकीला, रोएदार दिखाई देता है. जिसका आकार आयताकार होता दिखाई देता है. इसके फल का स्वाद अनोखा होता है. इसके फल को लोग इसके रंग के आकर्षण की वजह से ज्यादा पसंद करते हैं. कीवी फल के खाने से मनुष्य को कई तरह की बीमारियाँ नही होती. इसके फल का छिलका उतारकर खाया जाता है.

कीवी फल की खेती

कीवी फल की खेती के लिए हल्की उपोष्ण और शीतोष्ण जलवायु उपयुक्त होती हैं. वर्तमान में भारत में इसकी खेती हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में की जा रही है. इसके पौधों को विकास करने के लिए सर्दी की जरूरत होती है. कीवी फल को समुद्र तल से एक से दो हज़ार मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है. इसकी खेती से किसान भाइयों की अच्छी खासी कमाई होती है.

अगर आप भी इसकी खेती करने मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त भूमि

कीवी फल की खेती के लिए गहरी दोमट और हल्की अम्लीय भूमि की जरूरत होती है. इसके लिए भूमि का पी.एच. मान 5 से 6 के बीच होना चाहिए. इसके पौधों के अच्छे विकास के लिए भूमि में जल भराव नही होना चाहिए और कार्बनिक पदार्थों की मात्रा ज्यादा होनी चाहिए.

जलवायु और तापमान

कीवी फल की खेती के लिए हल्की उपोष्ण और शीतोष्ण जलवायु उपयुक्त होती हैं. इसके पौधों को वर्षा की अधिक आवश्यकता नही होती. इसके पौधे सर्दी के मौसम में अधिक पैदावार देते हैं. अधिक गर्मी या तेज़ हवा इसके पौधों के लिए नुकसानदायक होती है.

इसके पौधों को अंकुरित होने के लिए 15 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. जबकि गर्मियों में अधिकतम 30 डिग्री तापमान को इसके पौधे सहन कर सकते हैं. इसके पौधों पर फल बनने के दौरान उन्हें 5 से 7 डिग्री तापमान लगभग 100 से 200 घंटों तक मिलना जरूरी होता है.

उन्नत किस्में

कीवी फल की वैसे तो दुनियाभर में 100 से ज्यादा प्रजातियाँ पाई जाती है. लेकिन भारत में इसकी कुछ ही किस्मों को उगाया जाता है. जिन्हें कलम या ग्राफ्टिंग के माध्यम से तैयार किया जाता है.

मोन्टी

इस किस्म के पूर्ण विकसित पौधे 8 मीटर की लम्बाई तक पाए जाते हैं. इसके प्रत्येक पौधों से 90 किलो तक फल प्राप्त किये जा सकते हैं. इसके फल मध्यम आकार वाले होते हैं. जिसके दोनों सिरे थोड़े चपटे दिखाई देते हैं. इस किस्म के पौधों पर फल, फूल खिलने के लगभग 180 से 190 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं.

एलिसन

इस किस्म के पौधे कम ऊंचाई वाली जगहों के लिए उपयुक्त होते हैं. इस किस्म के फल भी मोन्टी की तरह दोनों सिरों से हल्के चपटे होते हैं. इसके फलों का आकार छोटा होता है. जो किसी भी अन्य किस्म से पहले पककर तैयार हो जाते है. इस किस्म के प्रत्येक पौधों से साल में 80 से 100 किलो तक फल प्राप्त किये जा सकते हैं.

ब्रूनो

इस किस्म के फल सबसे अधिक लम्बाई वाले होते हैं. जिनका आकार सामान्य दिखाई देता है. इस किस्म के फलों में विटामिन सी की मात्रा सबसे ज्यादा पाई जाती है. इसके पौधों को सर्दी के मौसम की कम जरूरत होती है. इस किस्म के पौधों की पैदावार सामान्य होती है.

एबाट

उन्नत किस्म

कीवी फल की ये एक जल्दी पैदावार देने वाली किस्म है. इस किस्म के फलों का स्वाद ज्यादा ज्यादा मीठा होता है. इस फल का आकार थोड़ा छोटा होता है. इस किस्म के पौधों पर लगने वाले फल गुच्छों में लगते हैं. इस किस्म के पौधों को अधिक ठंड वाली जगहों पर भी उगाया जा सकता है. जिनका उत्पादन सामान्य होता है.

खेत तैयार करना

कीवी फल की खेती के लिए शुरुआत में खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को हटाकर उन्हें नष्ट कर देना चाहिए. उसके बाद खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर देनी चाहिए. खेत की जुताई करने के बाद उसमें पाटा चलाकर भूमि को समतल बना देना चाहिए.

भूमि की समतल बनाने के बाद उसमें एक मीटर चौड़े और दो फिट गहराई के गड्डे तैयार करते हैं. इन गड्डों को खेत में पंक्ति में तैयार किया जाता है. प्रत्येक पंक्तियों के बीच लगभग 4 मीटर की दूरी रखी जाती है. जबकि पंक्तियों में गड्डों के बीच 5 से 7 मीटर की दूरी उपयुक्त होती है. इन गड्डों के तैयार होने के बाद इनमें जैविक उर्वरक की उचित मात्रा को मिट्टी में मिलाकर भर देते हैं. और उसके बाद गड्डों की गहरी सिंचाई कर उन्हें पुलाव से ढक देते हैं. इन गड्डों को पौध रोपाई से दो से तीन महीने पहले तैयार किया जाता है.

पौध तैयार करना

कीवी फल के पौधों को बीज के रूप में उगाकर कलम और ग्राफ्टिंग की विधि से पौध तैयार की जाती हैं. इसके पौधों की तैयार करने के लिए इसके बीजों को फलों से निकालकर डेढ़ से दो महीने तक फ्रिज जैसी ठंडी जगह में ढककर रख देते हैं. उसके बाद इन बीजों को निकालकर नर्सरी में तैयार की गई क्यारियों में लगा देते हैं. इन क्यारियों में बीजों को पंक्ति में उचित दूरी पर या प्रो-ट्रे में लगाकर रखते हैं.

जिसके दो से तीन महीने बाद इनसे अंकुर निकलकर पौध बनना शुरू हो जाती है. इसके बाद ग्राफ्टिंग विधि से इसकी पौध तैयार कर ली जाती है. इसके अलावा इसके पौधों की डालियों से भी पौध तैयार की जाती है. डालियों से कलम तैयार करने की विधि को कलम रोपण के नाम से जाना जाता है. इन दोनों विधियों के बारें में अधिक जानकारी आप हमारे इस आर्टिकल से ले सकते हैं.

पौध रोपण का तरीका और टाइम

कीवी फल की रोपाई खेत में तैयार किये गए गड्डों में की जाती है. इसके लिए पहले गड्डों के बीचोंबीच एक छोटा गड्डा तैयार किया जाता है. इन छोटे गड्डों में नर्सरी में तैयार किये गए पौधों को लगा देते हैं. लेकिन इन गड्डों में पौध लगाने से पहले उन्हें बाविस्टिन से उपचारित कर लेना चाहिए. पौधों की रोपाई के बाद उनके चारों तरफ मिट्टी डालकर अच्छे से दबा दें.

इसके पौधों को खेत में दिसम्बर और जनवरी के माह में लगाना चाहिए. पौधों को लगाने के तुरंत बाद उनकी सिंचाई कर दें. इसके पौधों को लगाने के बाद उन्हें पाले से बचाकर रखना जरूरी होता है. इसलिए इसके लिए पौधों को सर्दियों में पुलाव से ढक दिया जाता है.

पौधों की सिंचाई

कीवी के पौधों में सिंचाई का विशेष ध्यान रखा जाता है. इसके पौधों को सिंचाई की काफी ज्यादा जरूरत होती है. इसके पौधों की पहली सिंचाई पौध रोपाई के तुरंत बाद कर देनी चाहिए. उसके बाद इसके गर्मियों के मौसम में तीन से चार दिन के अंतराल में पानी चाहिए. और सर्दियों में 8 से 10 दिन के अंतराल में पानी देना अच्छा होता है. जबकि बारिश के मौसम में पानी की कमी दिखाई देते ही तुरंत सिंचाई कर देनी चाहिए. इसके पौधे को एक साल में कम से कम 18 सिंचाई की जरूरत तो होती ही है.

उर्वरक की मात्रा

इसके पौधों को उर्वरक के रूप में जैविक और रासायनिक दोनों खाद देने चाहिए. इसके लिए शुरुआत में पौध रोपाई के लिए तैयार किये गए गड्डों में 20 किलो पुरानी गोबर की खाद और 50 ग्राम एन.पी.के. की मात्रा को मिट्टी में मिलकर गड्डों में भर देना चाहिए. पौधों को ये मात्रा शुरूआती दो साल तक ही देनी चाहिए. उसके बाद पौधों की वृद्धि के साथ साथ इसकी मात्रा को भी बढ़ा देना चाहिए. पूर्ण विकसित पौधे को साल में 50 किलो गोबर की खाद और एक किलो एन.पी.के. की मात्रा को साल में दो बार देना चाहिए. उर्वरक देने के तुरंत बाद पौधों की सिंचाई कर देनी चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण

कीवी फल की खेती में खरपतवार नियंत्रण काफी अहम होता है. इसके लिए पौधों की रोपाई के लगभग 20 से 25 दिन बाद पौधों की पहली गुड़ाई कर देनी चाहिए. उसके बाद हर महीने पर पौधों की गुड़ाई कर देनी चाहिए. इससे पौधा अच्छे से विकास करते हैं. इसके अलावा बारिश के मौसम के बाद खाली पड़ी जमीन के सूखने के बाद उसे भी जोत दें. जिससे खेत में अनावश्यक खरपतवार नष्ट हो जाती है.

अतिरिक्त कमाई

कीवी फल के पौधे खेत में लगाने के चार साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं. इस दौरान किसान भाई इसके पौधों के बीच खाली बची जमीन में औषधीय, मसाला और कम समय अवधि में तैयार होने वाली सब्जियों को उगाकर अतिरिक्त कमाई कर सकता है. जिससे किसान भाई को आर्थिक परेशानियों का सामना भी नही करना पड़ेगा. और उन्हें खेत से पैदावार भी मिलती रहती है.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

कीवी फल के पौधे में अभी तक कोई ख़ास रोग देखने को नही मिला है. लेकिन जड़ गलन का रोग पौधों में जल भराव की वजह से दिखाई दे सकता है. इसके लिए पौधों को जड़ों में बाविस्टिन की उचित मात्रा का छिडकाव जलभराव समाप्त होने के बाद तुरंत कर देना चाहिए.

पौधों की देखरेख

कीवी फल की खेती में पौधों की देखरेख करना काफी जरूरी होता है. इसके पौधे लता के रूप में बड़े होते हैं. इसलिए इसके पौधों को फैलने के लिए सहारे की जरूरत होती है. इसके पौधों को सहारा देने के लिए Y आकार की लोहे की एंगल को पंक्तियों में पौधों के साथ गाड देना चाहिए. ताकि पौधा उन पर चढ़कर आसानी से अपना विकास कर सके. इसके अलावा पौधों से फलों की तुड़ाई के बाद सूखी दिखाई देनी वाली शाखाओं को काट देना चाहिए. जिससे पौधे पर नई शाखाओं का जन्म होता है.

फलों की तुड़ाई

कीवी फल

कीवी फल के पौधे खेत में लगाने के चार साल बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. इसके पौधे पर फरवरी माह के बाद फूल खिलने शुरू होते हैं. जो अक्टूबर से नवम्बर माह तक पककर तैयार हो जाते हैं. इसके फल तीन चार सप्ताह तक खराब नही होते हैं. जब इसके फल पकने के बाद नर्म और आकर्षक सुनहरी रंग में दिखाई देने लगे तब इन्हें तोड़ लेना चाहिए. इसके फलों को तोड़कर उन्हें छायादार जगहों में रखना चाहिये. उसके बाद हवादार कार्टून में पैक कर बाज़ार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए.

पैदावार और लाभ

कीवी फल की खेती से किसान भाइयों की अच्छीखासी कमाई हो जाती है. क्योंकि इसके फलों का बाज़ार में अच्छा भाव मिलता है. और इसके फल बाज़ार में उस वक्त आते हैं जब बाज़ार में काफी कम फल मौजूद होते हैं. इसके प्रत्येक पौधे से एक बार में 100 किलो के आसपास फल प्राप्त होता है. जबकि एक हेक्टेयर में इसके 400 से ज्यादा पौधे लगाए जा सकते हैं. जिनसे एक बार में 40000 से 50000 किलो फल प्राप्त होते हैं. जिनका बाज़ार भाव 70 रूपये प्रति किलो से लेकर 250 रुपये प्रति किलो तक पाया जाता है. जिससे किसान भाइयों की एक हेक्टेयर से 20 लाख तक की सालाना कमाई हो जाती है.

 

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