ज्वार की खेती मोटे दाने वाली अनाज फसल और हरे चारे के रूप में की जाती है. पशुओं के चारे के रूप में ज्वार के सभी भागों का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा कुछ जगहों पर इसके दानो का इस्तेमाल लोग खाने में भी करते हैं. इसके दानो से खिचड़ी और चपाती बनाई जाती है.
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ज्वार की खेती सिंचित और असिंचित दोनों जगहों पर की जा सकती है. भारत में ज्वार की खेती खरीफ की फसलों के साथ में की जाती है. इसके पौधे 10 से 12 फिट की लम्बाई के हो सकते हैं. जिनको हरे रूप में कई बार काटा जा सकता है. इसके पौधे को किसी विशेष तापमान की जरूरत नही होती. ज्यादातर किसान भाई इसकी खेती हरे चारे के रूप में ही करते हैं. लेकिन कुछ किसान इसे व्यापारिक तौर से उगाते हैं.
अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
ज्वार की खेती वैसे तो किसी भी तरह की मिट्टी में की जा सकती है. लेकिन अधिक पैदावार लेने के लिए इसे उचित जल निकासी वाली चिकनी मिट्टी में उगाना चाहिए. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 5 से 7 के बीच होना चाहिए.
जलवायु और तापमान
ज्वार की खेती खरीफ की फसलों के साथ में की जाती है. इस दौरान गर्मी के मौसम में इसके पौधों की उचित सिंचाई करते रहने पर ये अच्छे से विकास करते हैं. इसके पौधों को बारिश की अधिक सामान्य जरूरत होती है. अधिक तेज़ गर्मी के मौसम में इसके पौधों की सिंचाई ज्यादा करने पर तेज़ गर्मी का असर इसके पौधों पर देखने को नही मिलता. और पौधे विकास ही अच्छे से करते हैं.
ज्वार के बीजों को अंकुरण के वक्त सामान्य तापमान की जरूरत होती हैं. उसके बाद पौधों को विकास करने के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान उपयुक्त होता है. लेकिन इसके पूर्ण विकसित पौधे 45 डिग्री तापमान पर भी आसानी से विकास कर लेते हैं.
उन्नत किस्में
ज्वार की कई उन्नत किस्में हैं जिन्हें उनके अधिक उत्पादन और बार बार कटाई के लिए तैयार किया गया हैं.
पूसा चरी 23
इस किस्म के पौधे पतले, लम्बे और कम रसदार होते हैं. जिनका स्वाद कम मीठा होता है. इस किस्म के इसके पौधे कम समय में अधिक कटाई के लिए जाने जाते हैं. इसके पौधों से प्रति हेक्टेयर 600 किवंटल के आसपास हरा चारा और 160 से 180 किवंटल सुखा चारा प्राप्त हो जाता है. इसकी खेती मुख्य रूप से हरे चारे के लिए ही की जाती है.
सी.एस.बी. 13
ज्वार की इस किस्म के पौधे 110 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं. इसके पौधों की ऊंचाई 10 से 15 फिट के बीच पाई जाती है. ज्वार की इस किस्म को हरे चारे और दानो दोनों के लिए उगाया जा सकता है. इसके बीजों की जल्दी रोपाई के दो कटाई करने के बाद इससे दाने प्राप्त किया जा सकते हैं. इस किस्म के पौधों की दाने के रूप में प्रति हेक्टेयर पैदावार 15 से 20 किवंटल तक पाई जाती है. जबकि सूखे चारे के रूप में इसकी पैदावार 100 किवंटल के आसपास पाई जाती है.
एस.एस.जी. 59-3
ज्वार की इस किस्म को हरे चारे के लिए उगाया जाता है. हरे चारे के रूप में इसके पौधों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 600 से 700 किवंटल के आसपास पाया जाता है. इसके पौधों को अधिक समय तक बार बार कटाई के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे पतले, लम्बे और कम रस वाले होते हैं. इस किस्म के पौधों से सूखे चारे के रूप में 150 किवंटल से भी ज्यादा भूषा प्राप्त होता है. इस किस्म के पौधों पर कई तरह के किट जनित रोग देखने को भी नही मिलते.
सी.एस.एच 16
ज्वार की ये एक संकर किस्म है. जिसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 110 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 30 से 40 किवंटल तक पाया जाता है. इस किस्म के पौधों से सूखे चारे के रूप में 90 किवंटल के आसपास भूषा प्राप्त होता है. इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के पाए जाते हैं.
एम.पी. चरी
ज्वार की इस किस्म को भी मुख्य रूप से हरे चारे के लिए उगाया जाता है. लेकिन इसकी जल्दी रोपाई कर इसकी खेती हरे चारे और दाने दोनों के लिए की जा सकती है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के बाद 120 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं. इसके पौधे पर फूल बीज रोपाई के लगभग 70 दिन बाद बनने शुरू हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों से प्रति हेक्टेयर 500 किवंटल के आसपास हरा चारा और 18 किवंटल के आसपास दाने प्राप्त किये जा सकते हैं.
पी.सी.एच. 106
ज्वार की इस किस्म को हरे चारे के लिए उगाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर फूल बीज रोपाई के 50 से 60 दिन बाद बनने शुरू हो जाते हैं. इस किस्म के पौधे मध्यम मोटाई लिए हुए लम्बे दिखाई देते हैं. जिनमे रस की मात्रा सामान्य रूप से कम पाई जाती है. इस किस्म के पौधों से 800 किवंटल तक हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है. इसके पौधों की कई बार कटाई की जा सकती है.
हरा सोना
ज्वार की इस किस्म को सबसे ज्यादा पंजाब के आसपास वाले राज्यों में उगाया जा सकता है. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर हरे चारे के रूप में उत्पादन 650 किवंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधे तीन से चार कटाई दे सकते हैं. इसके एक पौधे से 6 से 8 कल्ले निकलते हैं. इस किस्म के पौधे पतले, लम्बे और कम रसदार होते हैं.
खेत की तैयारी
ज्वार की खेती के लिए शुरुआत में खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर उसमें उचित मात्रा में गोबर की खाद डाल दें. उसके बाद फिर से खेत की जुताई कर खाद को मिट्टी में मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी छोड़कर उसका पलेव कर दे. पलेव करने के तीन से चार दिन बाद जब खेत सूखने लगे तब रोटावेटर चलाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना लें. उसके बाद खेत में पाटा चलाकर उसे समतल बना लें. ज्वार की रोपाई समतल खेत में की जाती है.
बीज रोपाई का तरीका और टाइम
ज्वार के बीजों की रोपाई ड्रिल और छिडकाव दोनों विधियों से की जाती है. इसके बीजों की रोपाई से पहले उन्हें कार्बेंडाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए या फिर सरकार द्वारा प्रमाणित बीजों को उगाना चाहिए. जवार के दानो के उत्पादन के रूप में इसकी रोपाई के वक्त प्रति हेक्टेयर 12 से 15 किलो बीज काफी होता है. लेकिन हरे चारे के रूप में रोपाई के लिए लगभग 30 किलो के आसपास बीज की जरूरत होती है.
छिडकाव विधि से रोपाई के दौरान किसान भाई समतल खेत में इसके बीजों को छिड़ककर कल्टीवेटर के माध्यम से खेत की दो हल्की जुताई कर देते हैं. छिडकाव विधि से बीजों की रोपाई के दौरान खेत की जुताई हलों के पीछे हल्का पाटा बांधकर करते हैं. जिससे बीज मिट्टी में अच्छे से मिल जाता है. जबकि ड्रिल के माध्यम से इसके बीजों की रोपाई पंक्तियों में की जाती है. पंक्तियों में रोपाई के दौरान प्रत्येक पंक्तियों के बीच एक फिट की दूरी रखी जाती है. जबकि पंक्ति में बीजों के बीच 5 सेंटीमीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए. इन दोनों विधियों से रोपाई के दौरान इसके बीजों को जमीन में तीन से चार सेंटीमीटर नीचे उगाया जाना चाहिए. इससे बीज का अंकुरण अच्छे से होता है.
ज्वार के बीजों की रोपाई खरीफ की फसलों के साथ की जाती है. लेकिन हरे चारे के रूप में इसकी खेती करते वक्त इसे बारिश के मौसम से पहले अप्रैल माह के लास्ट या मई के शुरुआत में उगाना अच्छा होता है. इस दौरान ज्वार की रोपाई करने से इसकी कई बार कटाई की जा सकती हैं. जबकि दानो के रूप में खेती करने के लिए इसे बाजरे के साथ पहली बारिश होने पर उगाना चाहिए.
पौधों की सिंचाई
ज्वार की खेती इसकी पैदावार के रूप में करने पर सिंचाई की सामान्य जरूरत होती है. इस दौरान इसके पौधों को तीन से चार सिंचाई की जरूरत होती है. जबकि हरे चारे के रूप में इसकी खेती करने पर इसके पौधों को अधिक सिंचाई की जरूरत होती है. हरे चारे के रूप में खेती करने पर इसके पौधों की तीन से चार दिन के अंतराल में सिंचाई करते रहना चाहिए. इससे पौधों का विकास अच्छे से होता है. और पौधा जल्द कटाई के लिए तैयार हो जाता है.
उर्वरक की मात्रा
ज्वार की खेती में उर्वरक की सामान्य जरूरत होती है. लेकिन हरे चारे के रूप में खेती करने के लिए उर्वरक की जरूरत ज्यादा होती है. ज्वार की खेती के लिए शुरुआत में खेत की जुताई के वक्त लगभग 10 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर उसे मिट्टी में मिला दें. जैविक खाद के अलावा रासायनिक खाद के रूप में एक बोरा डी.ए.पी. की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में छिड़क दें. इसके अलावा हरे चारे के रूप में खेती करने पर इसके पौधों की हर कटाई के बाद 20 से 25 किलो यूरिया प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में छिडक देना चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
हरे चारे के रूप में ज्वार की खेती करने पर इसके पौधों को खरपतवार नियंत्रण की जरूरत नही पड़ती. लेकिन इसकी पैदावार के रूप में खेती करने पर इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए. ज्वार की खेती में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक और रासायनिक दोनों तरीके से किया जाता है. रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके बीजों की रोपाई के तुरंत बाद एट्राजिन की उचित मात्रा का छिडकाव कर देना चाहिए. जबकि प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके बीजों की रोपाई के 20 से 25 दिन बाद एक बार पौधों की गुड़ाई कर देनी चाहिए. इसके पौधों की एक गुड़ाई काफी होती है.
पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
ज्वार के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जो इसकी पैदावार और पौधों को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं. जिनकी उचित टाइम रहते देखभाल करने पर पैदावार में होने वाले नुक्सान से बचा जा सकता है.
पत्ती झुलसा
ज्वार के पौधों में पत्ती झुलसा रोग का प्रभाव मौसम परिवर्तन और पानी भराव की वजह से देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधों की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती है. जो धीरे धीरे सिराओं से सूखने लगती है. रोग बढ़ने पर सम्पूर्ण पौधा नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में जलभराव ना होने दे.
तना छेदक
ज्वार के पौधों में तना छेदक रोग का प्रभाव पौधों के अंकुरित होने के बाद उनके विकास के दौरान कभी भी दिखाई दे सकता हैं. ज्वार के पौधों पर लगने वाला ये एक कीट जनित रोग हैं. इस रोग की सुंडी पौधों के तने में छेद कर उसे अंदर से नष्ट कर देती हैं. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है. और जल्द ही सूखकर नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए इसके पौधों पर कार्बोफ्युरॉन की उचित मात्रा का छिडकाव 10 दिन के अंतराल में दो बार करना चाहिए.
टिड्डियों का आक्रमण
इसके पौधों पर टिड्डियों का आक्रमण फसल के पकने के दौरान अधिक देखने को मिलता है. टिड्डी इसके पौधे की पत्तियों को खाकर पौधों के विकास को प्रभावित करती हैं. जिससे पौधे की पैदावार पर फर्क देखने को मिलता है. इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में दानेदार फोरेट की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
पायरिला
ज्वार के पौधों में लगने वाला ये एक कीट जनित रोग हैं. इस रोग के कीट पौधों के कोमल भागों का रस चूसकर उनके विकास को प्रभावित करते हैं. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है. इस रोग के लगने पर पौधा जल्द ही सूखकर नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफॉस या प्रोफेनोफॉस की उचित मात्रा का छिडकाव सिंचाई कर करना चाहिए.
सफेद लट
ज्वार के पौधों में सफ़ेद लट के कीट का प्रभाव पौधों के अंकुरण के बाद कभी भी दिखाई दे सकता है. इस रोग के कीट ज्वार के पौधों की जड़ों को काटकर ज्यादा नुक्सान पहुँचाते है. जिससे पौधा जल्दी ही सुखकर नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की जड़ों में क्लोरोपाइरीफॉस को बारिश के टाइम डालना चाहिए. इसके अलावा फॉरेट की उचित मात्रा का छिडकाव खेत की जुताई के वक्त कर देना चाहिए.
जड़ विगलन
ज्वार के पौधों में जड़ विगलन रोग का प्रभाव किसी भी समय दिखाई दे सकता है. पौधों पर इस रोग का प्रभाव की वजह से उनका विकास रुक जाता है. और पत्तियां पीली पड़कर मुड़ने लग जाती है. रोग के बढ़ने पर पूरा पौधा पीला होकर नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर थीरम या केप्टान की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
ज्वार का माईट
ज्वार के पौधों में लगने वाला ये एक कीट रोग है. जो पौधों की पत्तियों को अधिक नुक्सान पहुँचाता है. इस रोग के कीट पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर जाल बनाकर रहते हैं. जो इसकी की पत्तियों का रस चूसते हैं. जिससे पत्तियां लाल दिखाई देने लगती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल का छिडकाव करना चाहिए.
फसल की कटाई और कढाई
ज्वार के पौधे बीज रोपाई के लगभग 110 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस दौरान इसके दानो में नमी की मात्रा कम हो जाती है. और पौधे की पत्तियां सुखने लगती है. इस दौरान पौधों की कटाई कर लेनी चाहिए. ज्वार के पौधों की कटाई दो बार में की जाती है.
पहले इसके पौधों को जमीन की सतह से काटकर अलग किया जाता है. उसके बाद इसके दाने वाले भाग को पौधों से काटकर अलग किया जाता है. उसके बाद इसके दानो वाले भाग खेत में एकत्रित कर कुछ दिन सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है. और जब इसके दाने सूख जाते हैं तब उन्हें मशीन की सहायता से निकालकर अलग कर लिया जाता है.
पैदावार और लाभ
ज्वार की विभिन्न किस्मों के पौधों की प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 25 किवंटल तक पाई जाती है. जबकि इसके पौधों से सूखा चारा 100 से 150 किवंटल तक प्राप्त होता है. इसके दानो का बाज़ार भाव ढाई हज़ार रूपये प्रति किवंटल के आसपास पाया जाता है. जिस हिसाब से किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से 60 हज़ार के आसपास कमाई कर लेता है.