रेशम कीट पालन के लिए शहतूत की खेती कैसे करें – रेशम की खेती

शहतूत की खेती मुख्य रूप से रेशम के उत्पादन के लिए की जाती है. शहतूत को चीन का देशज पौधा माना जाता है. शहतूत का पौधा बहुवर्षीय पौधा होता है. लेकिन बाकी अधिक उम्र वाले वृक्षों की अपेक्षा इसका जीवनकाल कम होता है. भारत में इसकी खेती उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, हिमाचल, हरियाणा और पंजाब में ज्यादा की जाती है.

शहतूत की खेती

शहतूत की खेती रेशम कीट पालन के अलावा फलों के रूप में भी की जाती है. इसके फलों का इस्तेमाल कई तरह से किया जाता है. जिसमें इसके फलों के रस से जूस, जैली और कैंडी बनाये जाते है. इसके फलों में औषधीय गुण भी पाया जाता है. इस कारण इसका इस्तेमाल कई तरह की औषधीयों को बनाने में भी किया जाता है.

शहतूत के पौधे सामान्य तापमान पर बारिश के मौसम में अच्छे से विकास करते हैं. इसके पौधे अधिक सर्दी के मौसम में विकास नही कर पाते. जबकि गर्मियों का मौसम इसके पौधों के विकास के लिए उपयुक्त होता है. इसके पौधों को बारिश की सामान्य जरूरत होती है. और इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान भी सामान्य होना चाहिए.

अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

शहतूत की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है. उचित जल निकासी कर इसे काली चिकनी भूमि में भी उगाया जा सकता है. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

शहतूत की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त होती है. इसके पौधे सर्दी के मौसम में विकास नही कर पाते. और सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसके लिए नुकसानदायक होता है. जबकि गर्मी और बरसात का मौसम इसके पौधों के लिए अच्छा होता है. इस दौरान इसके पौधे अच्छे से विकास करते हैं. इसके फल गर्मी के मौसम में ही पककर तैयार होते हैं. इसके पौधों को सामान्य बारिश की जरूरत होती है.

इसके पौधों की शुरुआत में विकास करने के लिए 20 से 25 डिग्री तापमान की जरूरत होती है. उसके बाद जब पौधा पूर्ण रूप से बड़ा हो जाता है तब इसके पौधे अधिकतम 40 और न्यूनतम 4 डिग्री तापमान को भी सहन कर सकते हैं. लेकिन न्यूनतम तापमान अधिक समय तक बना रहने पर पौधों को नुक्सान पहुँचता है.

उन्नत किस्में

शहतूत की कई किस्में हैं जिन्हें अलग अलग जगहों पर उगाया जाता है.

विक्ट्री 1

इस किस्म को v-1 के नाम से भी जाना जाता है. शहतूत की ये एक संकर किस्म है. जिसको एस-30 और बेर. सी-776 के संकरण से तैयार किया गया है. इसकी पत्तियां चिकनी चमकदार और मोटे आकार वाली होती है. इस किस्म के पौधों की शाखाएं और तने दोनों का रंग भूरा दिखाई देता है. रेशम कीट के पालन के लिए इस किस्म के पौधे सबसे श्रेष्ठ माने जाते हैं.

एस36

शहतूत की इस किस्म के पौधों का तना भूरा गुलाबी रंग का होता है. इस किस्म के पौधे कम उम्र वाले रेशम कीटों के पालन के लिए उपयोगी होते हैं. इसकी पत्तियां छोर रहित चिकनी चमकदार दिखाई देती हैं. जिनका रंग हरा पीला दिखाई देता है. इसकी पत्तियों ने नमी और पोषक तत्वों की मात्रा सामान्य रूप से पाई जाती है. इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के होते हैं.

सहाना

शहतूत की ये एक संकर किस्म है जिसको साल 2000 में तैयार किया गया था. इस किस्म के पौधे जल्दी बढ़ने वाले होते है. जो कम आकार में फैलते हैं. इस किस्म के पौधे की पत्तियां छोर रहित बड़े आकार की होती हैं. जिनका रंग गहरा हरा दिखाई देता है. और इस किस्म के पौधों की शाखाएं गुलाबी भूरे रंग की होती हैं.

आरसी 1

रेशम कीट पालन हेतु उन्नत किस्म

शहतूत की इस किस्म को संसाधन बाधा 1 के नाम से भी जाना जाता है. शहतूत की इस संकर किस्म को 2005 में तैयार किया गया था. इस किस्म के पौधे काफी तेज़ी से वृद्धि करते हैं. इस किस्म के पौधों को शाखाएं गुलाबी रंग की होती हैं. इस किस्म के पौधों की पत्तियां सिरे युक्त और मोटे आकर की चमकदार होती हैं. जिनका रंग गहरा हरा दिखाई देता है.

जी 2

शहतूत की इस किस्म को साल 2003 में एम. मल्टीकाउलिस और एस 34 के संकरण के माध्यम से तैयार किया गया था. इस किस्म के पौधों की पत्तियां चिकनी, चमकदार और बड़े आकार की होती हैं. जिनका रंग गहरा हरा दिखाई देता हैं. इस किस्म के पौधे रेशम कीट पालन के लिए अनुकूल होते हैं.

इनके अलावा और भी कई किस्में हैं. जिन्हें अलग अलग जगहों पर रेशम उत्पादन के लिए लगाया जाता हैं.

खेत की तैयारी

शहतूत के पौधे एक बार लगाने के बाद कई साल तक पैदावार देते हैं. इसके पौधों को खेत में लगाने से पहले खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर खेत में पलाऊ चलाकर खेत की अच्छे से जुताई कर दें. उसके कुछ दिन बाद खेत की कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई कर दें. कल्टीवेटर से जुताई करने के बाद खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लें. मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल बना दें. ताकि बारिश के वक्त खेत में पानी भराव की समस्या का सामना ना करना पड़े.

खेत की तैयारी के बाद खेत में गड्डे तैयार किये जाते हैं. इन गड्डों को तैयार करते वक्त प्रत्येक गड्डों के बीच लगभग 3 मीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए. गड्डों को तैयार करते वक्त उन्हें पंक्तियों में तैयार करें. इस दौरान प्रत्येक पंक्तियों के बीच ढाई से तीन मीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए. गड्डों के तैयार होने के बाद उनमें उचित मात्रा में जैविक और रासायनिक उर्वरक मिट्टी में मिलाकर गड्डों में भर देते हैं. इन गड्डों को पौध रोपाई के लगभग एक महीने पहले तैयार किया जाता है.

पौध तैयार करना

रेशम के पौधों को जड़, शाखा और बीज के माध्यम से तैयार किया जाता है. बीज के माध्यम से पौध तैयार करने के लिए इसके बीजों को उपचारित कर नर्सरी में प्रो-ट्रे में उगा दिया जाता है. जिसके बाद उन्हें उचित मात्रा में पोषक तत्व देकर उनका विकास किया जाता है. जब पौधे पूर्ण रूप से बड़े हो जाते हैं तब उन्हें उखाड़कर खेतों में लगा देते हैं.

जबकि जड़ और शाखाओं से पौध तैयार करने के लिए इसकी शाखाओं की कटिंग तैयार कर नर्सरी में लगाई जाती है. इनकी कटिंग के दौरान शाखाओं की लम्बाई आधा फिट के आसपास होनी चाहिए. पौध तैयार करने के लिए शाखाओं को रूटीन हार्मोन में डुबोकर नर्सरी में लगभग 6 इंच की दूरी रखते हुए पंक्तियों में लगाया जाता है. कटिंग को नर्सरी में लगाने के बाद उन्हें उचित मात्रा में पोषक तत्व देते रहते हैं. जिससे पौधा विकास करता हैं. नर्सरी में जब इसका पौधा लगभग 6 महीने पुराना हो जाता है तब उसे खेतों में तैयार किए गए गड्डों में लगाया जाता है.

पौध रोपाई का टाइम और तरीका

शहतूत के पौधे

शहतूत की पौध खेत में तैयार किये गए गड्डों में लगाई जाती है. पौध रोपाई के दौरान इन गड्डों के बीचोंबीच एक और छोटा गड्डा तैयार कर उसमें नर्सरी में तैयार किये गए पौधों को लगाया जाता है. गड्डों में पौधों को लगाने के बाद उसके तने को एक इंच तक अच्छे से मिट्टी से ढक देते हैं.

शहतूत के पौधों को ज्यादातर बारिश के मौसम में खेतों में लगाना चाहिए. इस दौरान इनका रोपण जून या जुलाई के महीने में करना उपयुक्त होता है. क्योंकि इस दौरान मौसम सुहाना बना रहता है. इसलिए इस वक्त पौधों के रोपण से पौधों का अंकुरण भी प्रभावित नही होता और पौधे अच्छे से विकास भी करते हैं.

पौधों की सिंचाई

शहतूत के पौधों को शुरुआत में सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती हैं. इसके पौधों को सर्दी के मौसम में पानी की सामान्य जरूरत होती है. इस दौरान पौधों को 15 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए. जबकि गर्मियों के मौसम में इसके पौधे को सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है. इसलिए गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को सप्ताह में एक बार पानी देना चाहिए. और बारिश के मौसम में इसके पौधे को आवश्यकता के अनुसार पानी देना उचित होता है. शहतूत के पूर्ण रूप से विकसित पौधों को सिंचाई की सामान्य आवश्यकता होती है.

उर्वरक की मात्रा

शहतूत की खेती में उर्वरक की जरूरत सामान्य से ज्यादा होती है. शुरुआत में इसकी खेती के लिए गड्डों की तैयारी के वक्त प्रत्येक गड्डों में 15 से 20 किलो पुरानी गोबर की खाद तथा रासायनिक उर्वरक के रूप में लगभग 100 ग्राम एन.पी.के. की मात्रा को मिट्टी में मिलकर गड्डों में भर दें. पौधों को उर्वरक की ये मात्रा लगभग तीन से चार साल तक देनी चाहिए.

जब पौधे लगभग पांच साल का हो जायें तब उसे दी जाने वाली उर्वरक की मात्रा में वृद्धि कर देनी चाहिए. पूर्ण रूप से विकसित एक पौधे को सालाना 25 किलो जैविक और एक किलो रासायनिक उर्वरक की मात्रा देनी चाहिए. इससे पौधों का विकास अच्छे से होता है.

खरपतवार नियंत्रण

शहतूत की खेती में खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई के माध्यम से ही किया जाता है. शहतूत के पौधों की नीलाई गुड़ाई शुरुआत में हल्के रूप में करनी चाहिए. ताकि पौधे को किसी तरह का कोई नुक्सान ना पहुँचे. इसके पौधे की पहली गुड़ाई खेत में रोपाई के लगभग 20 दिन बाद कर देनी चाहिए. इसके पौधों की साल में पांच से सात गुड़ाई काफी होती है.

पौधों की देखभाल

शहतूत के पौधों को खेत में लगाने के बाद उनकी देखभाल अच्छे से की जानी चाहिए. इसके पौधों को खेतों में लगाने के बाद अगर कोई पौधा अंकुरित नही हो पता है तो उसकी जगह दूसरे पौधे को लगाकर रिक्त स्थान की पूर्ति की जाती है.

जब शहतूत का पौधा खेत में लगाने के बाद पूर्ण रूप से विकसित हो जाते हैं तब उनमें दिखाई देने वाली रोगग्रस्त और सुखी हुई डालियों की छटाई कर देनी चाहिए. जिससे पौधों में नई डालियाँ विकसित होती हैं. जिन पर ताज़ा पत्तियां अच्छे से निकलती हैं.

अतिरिक्त कमाई

शहतूत के पौधे खेत में लगाने के दो से तीन साल बाद पूर्ण रूप से विकसित होते हैं. इस दौरान किसान भाई खेत में बाकी बची खाली जमीन में सब्जी, मसाला और औषधीय फसलों को उगा सकता हैं. जिससे किसान भाइयों को उनकी भूमि से उपज भी मिलती रहेगी. और उन्हें किसी तरह की आर्थिक परेशानियों का सामना भी नही करना पड़ेगा.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

शहतुत के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जो इसके पौधों और पत्तियों को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं. जिनकी उचित टाइम रहते देखभाल करना जरूरी होता है.

सफ़ेद धब्बे का रोग

शहतूत के पौधों में लगने वाला सफ़ेद धब्बे का रोग एक जीवाणु जनित रोग हैं. इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर सफ़ेद धब्बे दिखाई देने लगते हैं. जिनका आकार रोग बढ़ने पर बढ़ता जाता है. इस रोग के बढ़ने पर पौधों की पत्तियां समय से पहले ही पीली होकर गिरने लग जाती है. जिससे रेशम कीट के पालन में परेशानियां आती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर सलफैक्स 80 डब्लयु पी की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

तना छेदक रोग

शहतूत के पौधों में तना छेदक रोग का प्रभाव कीटों की वजह से देखने को मिलता है. इस रोग के कीट का लार्वा पौधों के तने और शाखाओं में छिद्र बनाकर उन्हें अंदर से खाकर नष्ट कर देते हैं. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है. और रोग बढ़ने पर सम्पूर्ण पौधा नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए तने पर दिखाई देने वाले छिद्रों में क्लोरपायरीफॉस की उचित मात्रा को डालकर उसे रुई या चिकनी मिट्टी से बंद कर दें.

छाल भक्षक सुंडी

छाल भक्षक सुंडी

शहतूत के पौधों में लगने वाला छाल भक्षक सुंडी का रोग कीट जनित रोग है. इस रोग की सुंडी पौधे की छाल और तने को खाकर उसे कमजोर बना देती है. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफॉस या मिथाइल पैराथियॉन की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

पत्ती झुलसा

शहतूत के पौधों में पत्ती झुलसा रोग का प्रभाव मौसम परिवर्तन के साथ देखने को अधिक मिलता है. इस रोग के लगने से पौधों की पत्तियां विभिन्न स्थानों पर से सूखकर पीली पड़ने लगती है. रोग बढ़ने पर धीरे धीरे सभी पत्तियां सूखकर गिरने लगती है. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर बविस्टन की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

कुंगी रोग

शहतूत के पौधों में कुंगी रोग का असर पौधे की पत्तियों पर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियों पर लाल भूरे रंग की चित्ती दिखाई देने लगती हैं. रोग का प्रभाव बढ़ने से पत्तियां पीली दिखाई देने लगती है. और कुछ समय बाद पौधों से अलग होकर गिर जाती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए बाविस्टिन या ब्लाइटॉक्स की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

फसल की कटाई

शहतूत की खेती मुख्य रूप से इसकी पत्तियों के लिए की जाती है. जिनका इस्तेमाल रेशम कीट पालन में किया जाता है. रेशम के कीट इसकी पत्तियों का इस्तेमाल अपने भोजन के रूप में करते हैं. इसलिए इसकी पत्तियों में पोषक तत्वों का होना जरूरी होता है. जिसके लिए इसके पौधों को उर्वरक अधिक मात्रा में देना चाहिए. इसकी पत्तियों को तोड़ने के बाद काटकर रेशम कीटों के भोजन के लिए तैयार किया जाता है.

इन पत्तियों का इस्तेमाल रेशम कीट के खाने बाद जैविक खाद बनाने में भी किया जा सकता है. शहतूत के पौधों को उर्वरक देने के लगभग 20 से 25 दिन बाद इसकी पत्तियों की चुनाई करनी चाहिए. एक हेक्टेयर में इसके पूर्ण रूप से विकसित पौधों से सालाना 8  से 10 हज़ार किलो तक पत्तियों का उत्पादन हो जाता है. जिनसे 800 से 900 डी.एफ.एल्स. का कीट पालन किया जा सकता हैं.

पत्तियों के अलावा शहतूत की खेती इसके फलों की पैदावार के लिए भी की जाती है. इसके फल पकने के दौरान गहरे लाल रंग के दिखाई देते हैं. जिन्हें तोड़ने के बाद एकत्रित कर बाज़ार में बेच देते हैं. इसके फलों को तोड़ने के लिए इसके पेड़ों के नीचे बड़े कपड़े बिछाकर फिर पेड़ को हिला देते हैं जिससे पके हुए फल टूटकर गिर जाते हैं. इसके फलों को तोड़ने के बाद ठंडे पानी से धोकर बाज़ार में बेचने के लिए भेज दें.

पैदावार और लाभ

शहतूत के पौधों की खेती इसकी पत्तियों के इस्तेमाल के लिए की जाती है. जिनसे रेशम का उत्पादन होता है. इस कारण किसान भाई इसकी खेती से रेशम कीट का पालन कर अच्छीखासी कमाई कर सकते हैं. इसके अलावा इसके फलों को बाज़ार में बेचने से भी अच्छी कमाई किसान भाई कर लेते हैं. रेशम कीट से साल में तीन से चार बार रेशम का उत्पादन किसान भाई ले सकते हैं.

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