पालक की खेती कैसे करें – How To Do Spinach Farming

पालक की खेती नगदी फसल के रूप में की जाती है. जिसके सम्पूर्ण भाग का इस्तेमाल सब्जी बनाने में किया जाता है. सब्जी के रूप में भी इसे कई तरह से खाया जाता है. पालक की उत्पत्ति का स्थान ईरान को माना जाता है. पालक को बाकी सब्जी फसलों से ज्यादा गुणकारी माना जाता है. पालक में आयरन की मात्रा सबसे ज्यादा पाई जाती है. जिससे खाने से मनुष्य के शरीर में खून की मात्रा में वृद्धि होती है.

पालक की खेती

पालक की खेती मुख्य रूप से सर्दी के मौसम में की जाती है. इसके पौधे सर्दी के मौसम में अच्छे से विकास करते हैं. पालक की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान सामान्य होना चाहिए. पालक की खेती भारत में लगभग सभी जगहों पर की जाती है. पालक की खेती में किसान भाई इसकी पत्तियों और बीजों को बेचकर दोहरा मुनाफा कमा सकते हैं.

अगर आप भी पालक की खेती कर अच्छी कमाई करना चाहते हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

पालक की खेती लगभग सभी तरह की भूमि में की जा सकती हैं. लेकिन जल भराव वाली भूमि इसके लिए उपयुक्त नही होती. क्योंकि इसकी पत्तियां भूमि की सतह के पास फैलकर अपना विकास करती हैं. इसलिए जल भराव होने पर इसकी पैदावार को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचता हैं. पालक की खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

पालक की खेती के समशीतोष्ण जलवायु को सबसे उपयुक्त माना जाता हैं. भारत में इसकी खेती बारिश और सर्दी के मौसम में रबी की फसलों के साथ अगेती और पछेती पैदावार के रूप में की जाती है. सर्दी के मौसम में इसके पौधे अच्छे से विकास करते हैं. पालक का पौधा सर्दियों में पड़ने वाले पाले को भी सहन कर सकता है. गर्मियों के मौसम में भी इसको उगाया जा सकता है. लेकिन गर्मियों के मौसम में इसमें डंठल बहुत जल्द बन जाते हैं. इसके पौधों को बारिश की ज्यादा जरूरत नही होती.

पालक के पौधों को शुरुआत में अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. अंकुरित होने के बाद इसके पौधों को अच्छे से विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. लेकिन इसके पौधे सर्दियों में न्यूनतम 5 डिग्री और गर्मियों में अधिकतम 30 डिग्री के आसपास तापमान पर भी आसानी से जीवित रहकर विकास कर लेते हैं. और गर्मियों में 30 डिग्री से ज्यादा तापमान होने पर पौधों से डंठल निकलने शुरू हो जाते हैं. जिसका असर इसकी पैदावार पर देखने को मिलता हैं.

उन्नत किस्में

पालक की कई उन्नत किस्में हैं. जिनसे उत्तम पैदावार लेने के लिए इसे अलग अलग जलवायु वाली जगहों पर उगाया जाता है.

अर्का अनुपमा

पालक की ये एक संकर किस्म है, जो कम समय में अधिक कटाई और पैदावार देने के लिए तैयार की गई है. इस किस्म को आईआईएचआर – 10 और आईआईएचआर – 8 के संकरण के माध्यम से तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधों बीज रोपाई के लगभग 40 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनकी प्रत्येक कटाई में औसतन उपज 10 टन प्रति हेक्टेयर पाई जाती है. इसके पौधे की चार से पांच कटाई की जा सकती है.  इस किस्म के पौधों की पत्तियां बड़ी, चौड़ी और गहरे हरे रंग की होती हैं. जिन पर डंठल देरी से बनते हैं.

ऑल ग्रीन

पालक की इस किस्म के पौधों एक समान हरे रंग के होते हैं. जिनके पत्ते चौड़े और मुलायम होते हैं. इस किस्म के पौधों को सर्दियों के मौसम में उगाने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के 35 से 40 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधे  एक बार कटाई के 15 दिन बाद फिर से कटाई के लिए तैयार हो जाते है. इसके पौधों की 5 से 7 बार कटाई की जा सकती हैं. इसके पौधों पर डंठल देरी से बनते हैं.

पूसा ज्योति

पालक की इस किस्म को अधिक पैदावार देने के लिए जाना जाता है. इस किस्म के पौधे की पत्तियां चौड़ी, बड़ी और गहरे हरे रंग की होती हैं. जिनका आकार एक समान होता है. इसके पौधों बहुत कम समय में फिर से कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनकी एक बार रोपाई करने के बाद 7 से 10 बार कटाई की जा सकती हैं. जिनसे प्रति हेक्टेयर 45 टन के आसपास उत्पादन प्राप्त होता हैं. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 45 दिन बाद पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म को अगेती और पछेती दोनों पैदावार के लिए उगा सकते हैं.

पूसा हरित

उन्नत किस्म का पौधा

पालक की इस किस्म के पौधों की पत्तियां बड़ी और गहरे हरे रंग की होती है. जो उपर की तरफ बढती हैं. इस किस्म के पौधों को सितम्बर माह में उगाकर मार्च माह तक काटा जा सकता हैं. जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में इसे पूरे साल भर उगाया जा सकता हैं. पालक की इस किस्म के पौधों को अधिक पैदावार देने के लिए जाना जाता है. इसके पौधों में फूल देरी से बनते हैं. इस कारण इनकी कई बार कटाई की जा सकती हैं.

पंजाब ग्रीन

पालक की इस किस्म को पंजाब के आसपास वाले राज्यों में अधिक उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे कम समय में ज्यादा पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 35 से 40 टन के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 30 दिन बाद पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनकी एक बार रोपाई कर 6 से 7 बार कटाई की जा सकती हैं. इस किस्म के पौधों की पत्तियां चमकीली हरे रंग की होती हैं. जिनमें ऑक्जेलिक एसिड की मात्रा ज्यादा पाई जाती हैं.

पंजाब सिलेक्शन

पालक की इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के बाद 40 दिन के आसपास पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 25से 30 टन तक पाया जाता है. इस किस्म के पौधे की पत्तियां कम चौड़ी, पतली और लम्बी होती हैं. जिनका रंग हल्का हरा दिखाई देता हैं. जबकि इनके तने का रंग जामुनी दिखाई देता है. इसके पत्तों का स्वाद हल्का खट्टा होता है. जो इसकी एक ख़ास पहचान है.

हिसार सिलेक्शन 23

पालक की इस किस्म को कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधों की पत्तियां बड़ी और गहरे हरे रंग की होती हैं. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 30 दिन बाद पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 35 टन के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधे 15 दिन के अंतराल में फिर से कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

जोबनेर ग्रीन

पालक की इस किस्म को हल्की क्षारीय भूमि में उगाने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 30 टन के आसपास पाया जाता है. जो बीज रोपाई के लगभग 40 दिन बाद पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों की पत्तियां बड़ी, चौड़ी और गहरे हरे रंग की होती है.

इनके अलावा और भी कई किस्में हैं जिनको अलग अलग जगहों पर अधिक उत्पादन और देर तक कटाई के लिए उगाया जाता है. जिनमें पूसा भारती, हाइब्रिड एफ 1, एलएस 2 एफ 1 संकर, लाल पत्ती पालक, एसएक्सएस संख्या 7, वर्जीनिया सेवॉय, आस्‍ट्रेलियन, पालक नं. 51-16, लाग स्टैंडिंग, बनर्जी जाइंट और अर्ली स्मूथ लीफ जैसी बहुत सारी किस्में शामिल हैं.

खेत की तैयारी

पालक की खेती के लिए खेत का साफ और मिट्टी का भुरभुरा होना जरूरी हैं. इसलिए शुरुआत में खेत की तैयारी के दौरान खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को खेत से हटाकर नष्ट कर दें. उसके बाद खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर दें. खेत की जुताई के बाद उसे कुछ दिन धूप लगने के लिए खुला छोड़ दें. और फिर खेत में जैविक खाद के रूप में पुरानी गोबर की खाद को डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दें. इसके लिए खेत की कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई कर दें.

खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी चलाकर उसका पलेव कर दें. पलेव करने के दो से तीन दिन बाद जब मिट्टी की ऊपरी सतह हल्की सूखने लगे तब खेत खेत की फिर से जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना ले. मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल बना दें. ताकि खेत में जल भराव की समस्या का सामना ना करना पड़ें.

बीज का उपचार और मात्रा

पालक की रोपाई दो तरीकों से की जाती है. जिसमें मेड़ों पर रोपाई के लिए प्रति हेक्टेयर 25 किलो और छिडकाव विधि से रोपाई के लिए 30 से 35 किलो बीज की जरूरत होती है. पालक के बीजों को रोपाई से पहले उपचारित कर लेना चाहिए. बीजों को उपचारित करने के लिए बाविस्टिन या कैप्टान दावा की उचित मात्रा का इस्तेमाल करना चाहिए. इसके अलावा बीजों को दो से तीन घंटे गोमूत्र में भिगोकर भी उपचारित कर सकते हैं.

बीज रोपाई का तरीका और टाइम

रोपाई का तरीका

पालक के बीजों की रोपाई किसान भाई समतल भूमि में क्यारी और मेड़ बनाकर करते हैं. मेड बनाकर रोपाई के दौरान इसे पंक्तियों में उगाया जाता है. इसके लिए प्रत्येक पंक्तियों के बीच लगभग एक फिट के आसपास दूरी होनी चाहिए. और पंक्तियों में बीजों के बीच 10 से 15 सेंटीमीटर के बीच दूरी बेहतर होती है. मेड पर रोपाई के दौरान इसके बीजों की रोपाई लगभग एक से दो सेंटीमीटर की गहराई में करनी चाहिए. ताकि बीजों का अंकुरण अच्छे से हो सके.

जबकि छिडकाव विधि से रोपाई के दौरान इसके बीजों को समतल भूमि में उचित आकार की क्यारी बनाकर उनमें छिड़क देते हैं. उसके बाद हाथ या दंताली से इसके बीजों को मिट्टी में मिला देते हैं. जिससे बीज एक से डेढ़ सेंटीमीटर नीचे चला जाता है. और बीजों का अंकुरण जल्दी होता है. लेकिन छिडकाव विधि से रोपाई के दौरान अधिक मेहनत की जरूरत होती है.

पालक की रोपाई वैसे तो सम्पूर्ण भारत में पूरे साल भर अलग अलग जगहों पर की जाती है. लेकिन इसकी रोपाई का सबसे उपयुक्त टाइम सितम्बर से लेकर नवम्बर माह तक का होता है. इसके अलावा पालक को बारिश के मौसम में जुलाई महीने के शुरुआत में भी आसानी से उगा सकते हैं. और पहाड़ी इलाकों में इसकी रोपाई पूरे साल भर की जाती है.

पौधों की सिंचाई

पालक के पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है. मेड पर रोपाई के दौरान इसे गीली भूमि में उगाया जाता हैं. इसलिए बीज रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई की जरूरत नही होती लेकिन छिडकाव विधि में इसकी रोपाई सुखी भूमि में की जाती हैं. इसलिए बीजों के अंकुरण तक हल्की हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए. इसके पौधों को शुरुआत में 5 से 7 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए.

जब पौधे कटाई के लिए तैयार हो जाएँ तब पौधों को हर कटाई के बाद पानी देना चाहिए. गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को सप्ताह में दो बार पानी देना चाहिए. और सर्दियों के मौसम में 10 से 12 दिन के अंतराल में पौधों को पानी देना उचित होता है. वही बारिश के मौसम में इसके पौधों को पानी की जरूरत कम होती हैं. इस दौरान पौधों को पानी उनकी आवश्यकता के अनुसार ही देना चाहिए.

उर्वरक की मात्रा

पालक के पौधों को उर्वरक की ज्यादा जरूरत होती है. क्योंकि इसके पौधों की एक बार रोपाई करने के बाद बार बार कटाई की जाती है. इसलिए हर बार पौधे को विकास करने के लिए पर्याप्त मात्रा में उर्वरक की जरूरत होती है. इसके लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त खेत में 15 से 17 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में फैलाकर मिट्टी में मिला दें.

गोबर की खाद के अलावा रासायनिक खाद के रूप में 30 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फास्फोरस और 40 किलो पोटाश की मात्रा को खेत की आखिरी जुताई के वक्त खेत में छिड़कर मिट्टी में मिला दें. उसके बाद पौधों की प्रत्येक कटाई के बाद लगभग 20 किलो यूरिया का छिडकाव खेत में कर दें. इससे पौधे जल्दी से विकास कर फिर से कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

खरपतवार नियंत्रण

पालक की खेती में खरपतवार नियंत्रण काफी अहम होता है. क्योंकि इसकी पैदावार पत्तियों के रूप में मिलती हैं. ऐसे में खेत में खरपतवार अधिक मात्रा में होने पर पौधों में कई तरह के कीट रोग लग जाते हैं. जिसका असर इसकी पैदावार पर देखने को मिलता है. पालक की खेती में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक और रासायनिक दोनों तरीके से किया जा सकता है.

रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके बीजों की रोपाई के तुरंत बाद पेंडीमेथिलीन की उचित मात्रा का छिडकाव खेत में कर देना चाहिए. इससे खेत में नई खरपतवार जन्म नही ले पाती हैं. और जो जन्म भी लेती है उनकी मात्रा काफी कम होती हैं. जिससे पौधा आसानी से विकास कर सकता हैं. जबकि प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए पौधों की हल्की गुड़ाई की जाती है. इसके लिए पालक के पौधों की शुरुआत में दो गिड़ाई की जाती है. जो बीज रोपाई के बाद 15 दिन के अंतराल में की जाती है. उसके बाद पौधों की प्रत्येक कटाई के बाद एक बार गुड़ाई कर देनी चाहिए. इससे पैदावार भी अधिक मिलती हैं.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

पालक की खेती में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जिनमें कीट जनित रोग इसकी पैदावार को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं. जिनकी रोकथाम वक्त रहते ना की जाए तो पैदावार को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचता है.

चेपा

पालक की खेती में चेपा का रोग हल्की गर्मी के मौसम में देखने को मिलता है. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों पर आक्रमण कर उनका रस चूसकर उन्हें नष्ट कर देते हैं. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियां पीली पड जाती है. और कुछ दिन बाद नष्ट होकर गिर जाती है. जिसका असर पौधों की पैदावार पर देखने को मिलता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए मैलाथियान की उचित मात्रा का छिडकाव करना अच्छा होता है.

पत्ती धब्बा

पालक के पौधों में लगने वाला पत्ती धब्बा का रोग एक फफूंद जनित रोग है. इस रोग के लगने पर पौधों के पत्तियों पर सफ़ेद रंग के धब्बे बन जाते हैं. जो रोग बढ़ने पर आपस में मिलकर बड़े हो जाते हैं. जिससे पौधे की पत्तियां जल्द नष्ट हो जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए बलाईटाक्स की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

पाउडर मिल्ड्यू

पालक के पौधों में पाउडर मिल्ड्यू रोग इसकी पैदावार को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाता हैं. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं. जो रोग के उग्र स्थिति में आने पर सम्पूर्ण पत्तियों पर फैल जाता है. जिससे पौधा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया आसानी से पूर्ण नही कर पता है. और पौधों का विकास रुक जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल या काढ़े का छिडकाव करना चाहिए.

लीफ माइनर

पालक के पौधों में लगने वाले इस रोग को पर्ण सुरंगक के नाम से भी जाना जाता है. इस रोग की वजह से पालक के पौधों की पत्तियों को सबसे ज्यादा नुक्सान पहुँचता हैं. इस रोग के लगने पर पालक की पत्तियों में सफ़ेद भूरे रंग की पारदर्शी नालीनुमा धारियां बन जाती है. जिस कारण पालक के पौधों को उचित मात्रा में पोषक तत्व नही मिल पाते हैं. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है. जिस कारण पौधों से पैदावार कम प्राप्त होती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर डायमेथोएट या एन्डोसल्फान की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

बालदार सुंडी

पालक की की खेती में बालदार सुंडी रोग का प्रभाव बारिश के मौसम के बाद दिखाई देता है. इस रोग की सुंडी लाल, काले और पीले रंग की होती है. बालदार सुंडी पालक की पत्तियों को खाकर उन्हें खराब कर देती है. जिसका असर पालक की पैदावार और गुणवत्ता पर पड़ता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर निम के तेल या सर्फ के घोल का छिडकाव करना चाहिए. इसके अलावा रासायनिक कीटनाशक के रूप में इंडोसल्फान की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

पत्ती झुलसा

पत्ती झुलसा रोग

पालक के पौधों में पत्ती झुलसा का रोग फसल को काफी हद तक प्रभावित करता है. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधे की पत्तियां किनारों पर से पीली दिखाई देती हैं. उसके बाद रोग बढ़ने की स्थिति में पौधों  की रोग ग्रस्त पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मेन्कोजेब या बाविस्टिन की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

स्लेटी धब्बा रोग

पालक की खेती में लगने वाला सलेटी धब्बा का रोग एक जीवाणु जनित रोग है. जो पौधों की पैदावार को काफी ज्यादा नुकसान पहुँचाता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर छोटे गोल आकार के धब्बे बन जाते हैं. जो बीच से स्लेटी और किनारों पर से लाल रंग के दिखाई देते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर कार्बेन्डाजिम या इंडोफिल एम 45 की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए. लेकिन रोग उग्र स्थिति में हो तो उक्त दावा का छिडकाव 15 दिन के अंतराल में दो बार करना चाहिए.

फसल की कटाई

पालक के पौधे बीज रोपाई के लगभग 30 से 40 दिन के अंतराल में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जब इसकी पत्तियों का आकार अच्छा दिखाई देने लगे तब इसकी पत्तियों को तेज़ धार वाले हथियार से भूमि की सतह से कुछ दूरी छोड़ते हुए काट लेना चाहिए. पालक के पौधों की एक बार रोपाई करने के बाद 5 से 7 बार कटाई की जाती है. पत्तियों की कटाई के बाद उनका बंडल बनाकर रस्सी से बाँध दे. उसके बाद बंडलों को ठंडे पानी से धोकर बाज़ार में बेचने के लिए भेज दें.

पालक की खेती बीज और पत्ती दोनों के लिए की जाती है. जिनका उत्पादन किसान भाई एक बार उगाकर ही ले सकता है. इसके पौधों से बीज तैयार करने के लिए पौधों की तीन से चार कटाई करने के बाद छोड़ देना चाहिए. उसके बाद जब पौधे पर बीज अच्छे से बनकर तैयार हो जाये तब उन्हें काटकर अलग कर लें. उसके बाद इसके दानो को सुखाकर मशीनों की सहायता से अलग कर लिया जाता है. जिन्हें किसान भाई उचित समय पर बोरे में भरकर बाज़ार में बेच सकता है.

पैदावार और लाभ

पालक की विभिन्न किस्मों के हरे पत्तों की चार से पांच कटाई करने पर 25 टन के आसपास पैदावार प्राप्त होती है. इसके अलावा 10 क्विंटल के आसपास इसके दाने प्राप्त होते हैं. इसकी हरी पत्तियों का बाज़ार भाव 5 रूपये प्रति किलो भी किसान भाई को मिले तो किसान भाई एक बार में आसानी से डेढ़ लाख के आसपास कमाई कर सकता हैं.

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