मूँग की खेती मुख्य दलहनी फसल के रूप में की जाती है. इसकी खेती ज्यादातर जगहों पर खरीफ के मौसम में की जाती है. मूँग की खेती किसानों के लिए अधिक लाभकारी मानी जाती है. मूँग का उद्गम स्थान भारत है. और भारत में इसकी सबसे ज्यादा पैदावार होती है. लेकिन इसकी फसल में रोग लग जाने की वजह से इसकी पैदावार को काफी नुक्सान पहुँचता है. मूँग की फसल में विभिन्न प्रकार के विषाणुओं, कवकों और जीवाणुओं जनित रोग लगते हैं. जिनका उचित टाइम रहते प्रबंधन ना किया जाये तो इसकी पैदावार में 30 से 50 प्रतिशत तक गिरावट देखने को मिलती है. और कभी कभी सम्पूर्ण फसल ही नष्ट हो जाती है.
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आज हम आपको मूँग की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम के बारें में बताने वाले हैं.
दीमक
मूँग की फसल में लगने वाला दीमक का रोग कीट की वजह से फैलता है. जो पौधों पर किसी भी वक्त दिखाई दे सकता है. लेकिन इस रोग का अधिक प्रभाव पौधे की शुरुआती अवस्था में देखने को मिलता है. इस रोग के लगने से पौधे अंकुरण से पहले ही नष्ट हो जाते हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए खेत की तैयारी के वक्त खेत में फोरेट की उचित मात्रा को छिड़क कर मिट्टी में मिला दें.
- जिस खेत में दीमक का प्रकोप अधिक रहता हो उसमें ताजे गोबर की खाद को बिलकुल नही डालना चाहिए.
- बीज की रोपाई से पहले उसे क्यूनालफास या क्लोरोपाइरीफॉस की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए.
एन्थ्रेक्नोज
मूँग के पौधों में यह रोग कवक के माध्यम से फैलता है. पौधों पर इस रोग का प्रभाव उसकी पत्तियों पर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियों पर भूरे रंग के गोल धसे हुए धब्बे दिखाई देते हैं. रोग बढ़ने पर इन धब्बों का आकार बढ़ जाता है. और धब्बों का रंग चमकीला लाल दिखाई देने लगता है. कुछ समय बाद रोगग्रस्त पौधे की पत्तियां टूटकर गिरने लगती हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए शुरुआत में खेत की गहरी जुताई कर उसे धूप लगने के लिए खुला छोड़ देना चाहिए.
- प्रमाणित बीजों का चयन कर उगाना चाहिए.
- इसके अलावा बीजों की रोपाई से पहले थीरम या कैप्टान दवा की दो से तीन ग्राम मात्रा को प्रति किलो की दर से मिलाकर उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए.
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर जिनेब या थीरम की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए. इसके अलावा मेन्कोजेब या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिडकाव करना भी लाभदायक होता है.
सफेद मक्खी
मूँग के पौधों में सफेद मक्खी रोग का प्रभाव पौधों के विकास के दौरान इसकी पत्तियों की निचली सतह पर दिखाई देता है. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों की निचली सतह पर रहकर उनका रस चूसते हैं. जिससे पौधों का विकास रुक जाता है. रोग के बढ़ने से पौधों की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती है. और कुछ दिन बाद सूखकर गिर जाती हैं. इस रोग के कीट पत्तियों का रस चूसने के बाद चिपचिपे पदार्थ का उत्सर्जन करते हैं. जो नीचे की पत्तियों पर जमा हो जाता है. जिससे पौधों पर काली फफूंद जमा हो जाती है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए रोग दिखाई देने पर क्यूनालफास की एक लीटर मात्रा को 500 से 700 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकना चाहिए.
- इसके अलावा जैविक तरीके से रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल का छिडकाव करना चाहिए.
लीफ माइनर
मूँग की खेती में यह रोग कीट की वजह से फैलता है. जिसका प्रभाव पौधों की पत्तियों पर अधिक देखने को मिलता है. इस रोग के कीट पौधों की पत्तियों के हरे भाग को खा जाते हैं. जिससे उन पर सफ़ेद भूरे रंग की लाईने दिखाई देने लगती है. रोग बढ़ने पर लाइनों की संख्या बढ़ जाती है और पूरी पत्तियां पारदर्शी दिखाई देने लगती है. जो कुछ दिनों बाद टूटकर गिर जाती हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एमिडाक्लोरपिड की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
एफिड
मूँग के पौधों में माहू रोग का प्रभाव मौसम में होने वाले अनियमित परिवर्तन के दौरान दिखाई देता है. पौधों पर यह रोग कीट की वजह से फैलता है. इस रोग के कीट काले, पीले और हरे रंग के पाए जाते हैं. जो आकार में काफी छोटे दिखाई देते हैं. इस रोग के कीट पौधे पर एक समूह में जमा होकर पौधे के कोमल भागों का रस चूसते हैं. जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की रोपाई समय पर करनी चाहिए.
- पौधों पर रोग दिखाई देने पर फास्फामिडॉन और मिथाईल डीमेटान दवा की उचित मात्रा का छिडकाव तुरंत करना चाहिए.
जीवाणु पत्ती धब्बा
मूँग के पौधों में जीवाणु पत्ती धब्बा रोग का प्रभाव इसकी पत्तियों पर दिखाई देता है. इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियों पर भूरे रंग के सूखे हुए धब्बे दिखाई देने लगते हैं. रोग के बढ़ने पर धब्बे पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं. जिससे पौधे की पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगता है. जो कुछ समय बाद टूटकर गिर जाती हैं. जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए बीजों की रोपाई से पहले उन्हें मैनकोजेब की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए.
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की तीन ग्राम मात्रा को प्रति लीटर की दर से पानी में मिलाकर 15 दिन के अंतराल में दो से तीन बार पौधों पर छिडकना चाहिए.
मूँग की फसल में लगने वाले ये कुछ प्रमुख रोग हैं. जिनकी रोकथाम कर किसान भाई उपज के अंतर को घटा सकता है.
फली छेदक
मूँग के पौधों पर फली छेदक रोग का प्रभाव पौधों पर फलियों के बनने के दौरान अधिक दिखाई देता है. इस रोग के लगने से पौधों की पैदावार पर सीधा असर देखने को मिलता है. पौधों पर यह रोग कीट की वजह से फैलता है. इस रोग के कीट की सुंडी जिसका रंग हल्का हरा दिखाई देता है, मूँग की फलियों में छिद्र कर उनके अंदर के दानो को खाकर इसकी फलियों को नष्ट कर देती हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफास या मैलाथियान की उचित मात्रा का छिडकाव रोग दिखाई देने के तुरंत बाद कर देना चाहिए.
- इसके अलावा जैविक तरीके से नियंत्रण के लिए पौधों पर नीम आर्क का छिडकाव 10 से 15 दिन के अंतराल में दो बार करना चाहिए.
पीली चितेरी
मूँग के पौधों पर इस रोग का प्रभाव सफेद मक्खी की वजह से दिखाई देता है. पौधों पर इस रोग का प्रभाव उसकी पत्तियों पर सफेद मक्खी रोग के कारण दिखाई देता है. इस रोग के लगने से पौधों की पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं. रोग बढ़ने पर इन धब्बों का आकार बढ़ने लगता है. और कुछ समय बाद पूरी पत्ती पीली पड़कर गिर जाती है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए इस रोग प्रतिरोधी किस्मों को उगाना चाहिए.
- पौधों पर सफेद मक्खी का रोग दिखाई देने के तुरंत बाद उसका नियंत्रण करना चाहिए.
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर पौधों पर डायमीथोएट और फास्फामिडान की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
चूर्णिल आसिता
मूँग के पौधों में दिखाई देने वाला चूर्णिल आसिता रोग कवक की वजह से फैलता है. पौधों पर इस रोग का प्रकोप इसकी पत्तियों पर दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर सफ़ेद रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. उसके बाद रोग बढ़ने पर इन धब्बों का आकार बढ़ जाता हैं. और सभी पत्तियों पर सफ़ेद रंग का पाउडर जमा हो जाता है. जिससे पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देते हैं. और उसका विकास रुक जाता है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए रोगरोधी किस्मों को उगाना चाहिए.
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर घुलनशील गंधक और कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
- इसके अलावा रोग ग्रस्त पौधे को तुरंत उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए.
अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग
मूँग के पौधों में अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग का प्रभाव इसकी पत्तियों पर दिखाई देता है. इस रोग का प्रभाव मौसम में आद्रता बढ़ने पर अधिक दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पत्तियों पर छोटे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. इन धब्बों का आकार रोग बढ़ने पर बढ़ जाता है. जिससे पत्तियां काली पड़कर गिर जाती हैं. और पौधे विकास करना बंद कर देते हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए शुरुआत में बीजों को थिरम या बाविस्टीन की ढाई ग्राम मात्रा को प्रति किलो की दर से मिलाकर उपचारित कर लेना चाहिए.
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर पौधों पर जिनेब या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
पर्ण संकुचन
मूँग के पौधों में पर्ण संकुचन रोग विषाणु के माध्यम से फैलता है. पौधों पर इस रोग का प्रभाव किसी भी वक्त दिखाई दे सकता है. इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं. और उन पर फफोले की जैसी आकृति दिखाई देने लगती है. रोग बढ़ने पर पत्तियों का रंग पीला दिखाई पड जाता है. रोग से ग्रसित पौधे को थोड़ा हिला दिया जाये तो रोग ग्रस्त पत्तियां टूटकर गिर जाती हैं. जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए प्रमाणित रोगरोधी किस्म को ही उगाना चाहिए.
- इसके अलावा बीज रोपाई से पहले उन्हें इमिडाक्रोपिरिड की 5 ग्राम मात्रा को प्रति किलो की दर से मिलकर उपचारित कर लेना चाहिए.
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर डाइमेथोएट की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए. और रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए.