प्याज का उपयोग मसाले और सब्जी दोनों रूप में किया जाता है. प्याज़ पौधे के जड़ वाले भाग में लगती है. जिसको लोग खाने में इस्तेमाल करते हैं. प्याज के अंदर विटामिन की बड़ी मात्र पाई जाती है. जो शरीर के लिए लाभदायक होती है. सब्जी और मसाले के अलावा प्याज़ का इस्तेमाल लोग सलाद, सूप और अचार के रूप में भी करते हैं. प्याज को खाने से गर्मियों में लू नही लगती है.
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प्याज को कई जगहों पर कांदा के नाम से भी जाना जाता है. प्याज़ के अंदर कई औषधिय गुण भी पाए जाते हैं. जिस कारण प्याज का इस्तेमाल लोग दवाइयों में भी करते हैं. प्याज का सबसे महत्वपूर्ण उपयोग रेडिएशन को कम करने में किया जाता है.
प्याज की खेती मुख्य रूप से सर्दी के मौसम में की जाती हैं. इसकी अच्छी पैदावार लेने के लिए इसे बलुई दोमट मिट्टी में उगाना चाहिए. प्याज की खेती को पानी की काफी ज्यादा जरूरत होती हैं. भारत में प्याज़ की खेती महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश में बड़ी मात्रा में की जाती है.
अगर आप भी प्याज की खेती करना चाहते हैं तो हम आपको इसकी पैदावार के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
प्याज की खेती के लिए बलुई और बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है. प्याज़ की खेती कंद के रूप में होती है. इसलिए मिट्टी में पानी का भराव नही होना चाहिए. प्याज़ को बलुई मिट्टी के अलावा भी कई तरह की मिट्टी में उगाया जा रहा है. जिसके लिए मिट्टी का पी.एच. मान 5 और 6 के आसपास होना चाहिए. क्योंकि ज्यादा अम्लीय और क्षारीय मिट्टी में इसकी पैदावार नही की जा सकती.
जलवायु और तापमान
प्याज की खेती मुख्य रूप से तो सर्दियों में की जाती है. लेकिन कई जगहों पर इसे गर्मियों में भी उगाया जा रहा है. सर्दियों में उगाई जाने वाली फसल की पैदावार ज्यादा होती है. लेकिन सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसके लिए हानिकारक होता है.
प्याज़ की खेती के लिए शुरुआत में तापमान 15 डिग्री के आसपास होना चाहिए. जिसके बाद प्याज के कंद को अच्छे से विकसित होने के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान की जरूरत होती है. प्याज की खेती के लिए सूर्य का प्रकाश सबसे महत्वपूर्ण होता है. कंद के तैयार होने के दौरान पौधे को दिन में 10 घंटे सूर्य की धूप मिलना अच्छा होता है. इसलिए प्याज की खेती उसी जगह करें जहाँ सूर्य का प्रकाश अच्छे से पहुँचता हो.
प्याज की किस्में
प्याज़ की आज कई तरह की किस्में बाज़ार में पाई जाती हैं. जिन्हें सर्दी और गर्मियों के मौसम में उगाया जाता है. जबकि कुछ किस्में ऐसी हैं जिन्हें दोनों मौसम में अलग अलग जगहों के हिसाब से उगाया जा सकता है. प्याज की किस्मों को रबी और खरीफ की प्रजातियों में बाँटा गया है.
रबी के टाइम की प्याज
रबी के टाइम उगाई जाने वाली प्याज अधिक पैदावार देती हैं. रबी की प्याज सर्दी के टाइम में उगाई जाती हैं. इन्हें उगाने का उचित टाइम नवम्बर और दिसम्बर का महीना होता है. इस टाइम सबसे ज्यादा प्याज उगाई जाती हैं. रबी की प्याज में एग्रीफाउंड लाइट रेड, भीमा शक्ति, पूसा रेड, पूसा रतनार, एग्रीफाउंड रोज और भीमा रेड जैसी किस्में शामिल हैं.
खरीफ के टाइम की प्याज
खरीफ के टाइम प्याज की कम मात्रा में उगाई जाती है. खरीफ की प्याज की रोपाई मई माह के आखिरी सप्ताह से जून माह के मध्य तक की जाती हैं. खरीफ के टाइम एग्रीफाउंड डार्क रेड, भीमा सुपर, भीम डार्क रेड और पूसा व्हाइट राउंड किस्मों को उगाया जाता है.
एग्रीफाउंड डार्क रेड
प्याज की ये किस्म गर्मियों के टाइम में उगाई जाती है. इस किस्म को भारत के लगभग सभी हिस्सों में आसानी से उगाया जा रहा है. इसके कंद गोलाकार होते हैं. जो 100 से 110 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं. इसकी पैदावार 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है.
भीमा सुपर
प्याज की इस किस्म को पछेती किस्म माना जाता है. जो खरीफ की फसलों के टाइम उगाई जाती है. इसकी पैदावार एक हेक्टेयर में 250 से 300 क्विंटल तक हो सकती है. इसके कंद को तैयार होने में 110 से 115 दिन का वक्त लगता है.
एग्रीफाउंड लाइट रेड
प्याज की इस किस्म की रोपाई रबी के टाइम में की जाती है. इसके कंद गोलाकार और हलके लाल रंग के होते हैं. यह किस्म रोपाई के 120 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है. अच्छी देखभाल करने पर इसकी पैदावार 300 से 375 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो जाती है.
पूसा रेड
प्याज की ये किस्म भी रबी के टाइम ही उगाई जाती है. इसके कंद गोलाकार होते है. जिनका रंग हल्का लाल पीला होता है. पूसा रेड रोपाई के 125 से 140 दिन बाद पककर तैयार होती है. इसकी प्रति हेक्टेयर उपज 250 से 300 क्विंटल तक हो जाती है.
पूसा व्हाइट राउंड
प्याज की ये किस्म खरीफ फसल के साथ उगाई जाती है. इसको तैयार होने में 135 से ज्यादा दिन लगते हैं. एक हेक्टेयर में इसकी पैदावार लगभग 300 क्विंटल तक हो जाती है. इसके कंद का रंग सफ़ेद होता है.
भीमा श्वेता
प्याज की इस किस्म को रबी और खरीफ दोनों टाइम में अलग अलग जगहों के हिसाब से लगा सकते हैं. खरीफ के टाइम में इसको महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक और तमिलनाडु में लगा सकते हैं. जबकि रबी के टाइम में इसे उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, दिल्ली और पंजाब में लगा सकते हैं.
पौध तैयार करना
प्याज के बीज को सीधा खेतों में नही लगाया जा सकता. इसके बीजों से पहले पौध तैयार की जाती है. पौध के तैयार होने में 2 महीने से भी ज्यादा का टाइम लगता है. पौध के तैयार होने के बाद उन्हें उखाड़कर सुखाया जाता है. रबी और खरीफ की फसल की बुवाई के वक्त के हिसाब से इनकी पौध तैयार की जाती है. रबी में प्रति हेक्टेयर रोपाई के लिए 8 से 10 किलो बीज की जरूरत होती है. जबकि खरीफ की बुवाई के लिए 15 से 20 किलो बीज की जरूरत होती हैं.
इनके बीज को क्यारियों में उगाया जाता है. जिसके लिए पहले मिट्टी में गोबर की पुरानी खाद डालते हैं. उसके बाद उसे अच्छे से मिट्टी में मिला देते हैं. गोबर की खाद को मिलाने के बाद मिटटी को थायरम या कैप्टन से उपचारित कर लेना चाहिए. ताकि पौध को कवक से लगने वाले रोग ना लगे.
उसके बाद बीज को मिट्टी डालकर मिला देते हैं. अगर हो सके तो बीज को लाइन में लगाये. और प्रत्येक लाइन के बीज 7 सेंटीमीटर की दूरी रखे. बीज की रोपाई करने और पानी देने के बाद क्यारियों को पुलाव या किसी सुखी घास से ढक दें. जब बीज अंकुरित हो जाए उसके बाद पुलाव या घास को हटा लें. उसके बाद पौधों को आवश्यकता के अनुसार पानी देते रहे. और जब पौध पूरी तरह से तैयार हो जाये उसके बाद उन्हें उखाडकर किसी हवादार छाया वाली जगहों पर गुच्छे बनाकर लटका दें. ध्यान रखे की पौध पर नमी ना आ पाए. क्योंकि नमी के आने पर पौध अंकुरित होना शुरू हो जायेंगी.
खेत की जुताई
प्याज की खेती के लिए पहले खेत की दो से तीन अच्छी जुताई करें उसके बाद खेत को कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें. उसके बाद खेत में गोबर की खाद डालकर उसकी फिर अच्छे से जुताई कर दें. जुताई करने के बाद खेत में पानी छोड़ दें. जब खेत में खरपतवार निकल आयें तब उसकी फिर अच्छे से जुताई कर दें. और पाटा लगाकर खेत में मौजूद सभी ढेलो को फोड़ दें. जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है. उसके बाद जमीन को कवकनाशी दवाइयों से उपचरित कर लें. और खेत में एक एक फिट की दूरी पर मेड बना दें.
बीज की रोपाई का तरीका और टाइम
खेत में बीज की रोपाई मेड के दोनों तरफ करनी चाहिए. प्रत्येक पौध के बीज 5 से 7 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए. खरीफ के टाइम उगाई जाने वाली किस्मों की रोपाई अगस्त माह में कर देनी चाहिए. जबकि रबी के टाइम उगाई जाने वाली किस्मों को दिसंबर के आखिर और जनवरी के शुरुआत में लगा देना चाहिए. पौध को खेत में लगाने से पहले उसकी जड़ों को कार्बेन्डाजिम और मोनोक्रोटोफॉस के घोल में डूबा लेना चाहिए. ताकि पौधे को संक्रमित रोग ना लगे.
प्याज की सिंचाई
प्याज को खेत में लगाने के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर देनी चाहिए. जिसके बाद पौधे को लगभग एक महीने तक कम पानी दें. लेकिन जब कंद बढ़ने लगे तो खेत में नमी बनाये रखने के लिए दो से तीन दिन में सिंचाई करते रहना चाहिए. प्याज़ की खेती को 10 से 12 सिंचाई की जरूरत होती है. प्याज की सिंचाई के लिए ड्रिप पद्धति का उपयोग सबसे अच्छा होता है.
खरपतवार नियंत्रण
प्याज की खेती के लिए खरपतवार नियंत्रण सबसे ज्यादा जरूरी हैं. क्योंकि खरपतवार में होने वाले कीटों की वजह से पौधों को रोग लग जाते है. इसलिए प्याज की नीलाई गुड़ाई कर उसकी खरपतवार निकाल देनी चाहिए. लेकिन नीलाई गुड़ाई करते वक्त ध्यान रखे कि ज्यादा गहरी नीलाई गुड़ाई ना करें. क्योंकि इसके कंद की जड़ें ज्यादा नीचे नही जाती हैं.
प्याज की नीलाई गुड़ाई करते वक्त पौधों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए. प्याज की खेती की तीन से चार नीलाई गुड़ाई करनी चाहिए. इसके अलावा ज्यादा खरपतवार होने पर खेत में पेंडीमेथिलीन का छिडकाव करना चाहिए.
उर्वरक की मात्रा
प्याज की पौध को लगाने से पहले 15 से 20 गाडी प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में एक महीने पहले डालकर उसे अच्छे से मिला दें. गोबर की खाद की जगह वर्मी कपोस्ट खाद का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके अलावा पौध की रोपाई से पहले आखिरी जुताई के वक्त नत्रजन 40 किलो, पोटाश 20 किलो, सल्फर 20 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में डालकर जुताई कर दें.
पौधे को लगने वाले रोग
प्याज को कई तरह के रोग लगते हैं जो कवक और फफूंदी जनित होते हैं. इनकी रोकथाम नही करने पर फसल को बहुत नुक्सान पहुँचता है.
थ्रिप्स
प्याज पर ये रोग कीटों की वजह से होता है. जो पौधे की पत्तियों का रस चूसते हैं. जिससे पत्तियों पर सफ़ेद धब्बे बनने शुरू हो जाते हैं. ये आकर में बहुत छोटे होते हैं. इनका रंग पीला होता है. इसकी रोकथाम के लिए इमीडाक्लोप्रि कीटनाशक 17.8 एस.एल. का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
माइट
प्याज पर लगने वाला ये रोग फफूंदी की वजह से लगता है. फसल पर ये रोग ज्यादातर बारिश के मौसम में देखने को मिलता है. इसके अलावा पौधों को ज्यादा पास लगाने पर भी ये रोग होता है. इसके लगने पर पौधे पर डाइमेथोएट का छिडकाव करना चाहिए.
पौध गलन रोग
पौधों पर ये रोग रोपाई के बाद दिखाई देने लगता है. इसके लगने पर शुरुआत में ही पौधा गलकर पीला पड़ने लगता है. जिसके बाद जल्द ही पौधा पूरी तरह से नष्ट हो जाता है. इसकी रोकथाम के लिए 0.2 प्रतिशत थीरम से पौध को खेत में लगाने से पहले उपचारित कर लें.
जड़ सडन रोग
इस रोग के लगने पर पौधे की जड़ें हलकी गुलाबी होकर सड़ने लग जाती हैं. जिसके कुछ टाइम बाद ही पौधा सुखकर नष्ट हो जाता है. इसकी रोकथाम के लिए पौधे पर कार्बेन्डाजिम का छिडकाव करना चाहिए.
प्याज की खुदाई
प्याज के कंद की खुदाई उसके रोपण के लगभग 4 से 5 महीने बाद की जाती है. इस दौरान कंद पूरी तरह से तैयार हो जाता है. कंद पूरी तरह तैयार होने के बाद पौधे की पत्तियां पीली होकर गिरने लग जाती हैं. पौधे पर जब ऐसा प्रकोप दिखने लगे तभी पानी देना बंद कर देना चाहिए. पानी के बंद करने से कंद ठोस बनते हैं.
पानी बंद करने के लगभग दस दिन बाद कंद की खुदाई करनी चाहिए. खुदाई के बाद एक या दो दिन तक कंद को सुखने के लिए खेत में ही छोड़ देते हैं. इसके बाद कंद की जड़ें और पत्तियों को अलग किया जाता है. दोनों को अलग करने के बाद कंद को छायादार जगह पर एक सप्ताह तक सुखा लेते हैं.
जब कंद पूरी तरह सुख जाता है तो उसको कट्टों में भरकर बाज़ार में बेच देते हैं. लेकिन अगर उस टाइम बाज़ार भाव अच्छा ना हो तो इसको कुछ दिन बाद भी बेच सकते हैं.
पैदावार और लाभ
प्याज की अलग अलग किस्मों की पैदावार 250 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है. और अगर किसान भाई इसकी दोनों पैदावार लेना चाहे तो सालभर में कुल 800 क्विंटल तक उपज ले सकता है. जिससे किसान भाई की साल में 3 से 4 लाख तक की कमाई हो जाती है.