सूरजमुखी की खेती कैसे करें

सूरजमुखी की खेती नगदी फसल के रूप में होती है. क्योंकि इसके फूल और बीज दोनों को बाज़ार में बेचकर अच्छी कमाई की जा सकती है. सूरजमुखी के बीजों से तेल निकाला जाता है. जिसका इस्तेमाल खाने और औषधियों में किया जाता है. जबकि तेल निकालने के बाद शेष बचे भाग की खल का इस्तेमाल मुर्गी दाने और पशुओं के खाने में भी किया जाता है.

सूरजमुखी के पौधे का जन्म स्थान अमेरिका को माना जाता है. लेकिन अब इसकी खेती पूरे विश्व में की जा रही है. सूरजमुखी की खेती भारत में भी कई राज्यों में बड़े पैमाने पर की जा रही है. इसकी फसल तीन से चार महीने में ही पककर तैयार हो जाती है.

सूरजमुखी की खेती साल की तीनों ऋतुओं ( खरीफ, रबी, जायद ) में की जा सकती है. इसकी खेती के लिए दोमट मिट्टी की जरूरत होती है. इसकी पैदावार के लिए किसी ख़ास जलवायु की जरूरत नही होती. लेकिन इसके फूल को पकने के लिए ज्यादा धुप की जरूरत होती है.

अगर आप भी इसकी खेती करना चाह रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

सूरजमुखी की खेती ज्यादा जल भराव को सोखने वाली दोमट मिट्टी में की जाती हैं. दोमट मिट्टी के अलावा भी इसे कई तरह की मिट्टियों में आसानी से उगाया जा सकता है. लेकिन उसके लिए मिट्टी अम्लीय और क्षारीय दोनों ही प्रकार की नही होनी चाहिए. इसके लिए सामान्य पी.एच. वाली मिट्टी की जरूरत होती है. जिसका पी.एच. मान 7 के आसपास होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

जैसा की हमने बताया कि सूरजमुखी की पैदावार तीनों ऋतुओं में की जाती है. लेकिन इसके खेती के लिए रबी और जायद का मौसम सबसे उपयुक्त माना जाता है. क्योंकि इस दौरान पौधे को रोग कम लगते हैं. जबकि खरीफ के टाइम इसकी फसल में रोग ज्यादा लगते हैं और पैदावार भी कम होती है.

इसके बीज की बुवाई के टाइम तापमान 15 डिग्री होना चाहिए. ज्यादा तापमान होने पर बीज के अंकुरण पर प्रभाव पड़ता हैं. और कम बीज अंकुरित होते हैं. और पौधे की वृद्धि के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. और इसके फूल को पकने के लिए शुष्क मौसम की सबसे ज्यादा जरूरत होती है.

सूरजमुखी की किस्में

सूरजमुखी की कई किस्में पाई जाती हैं. जिन्हें मुख्य रूप से दो प्रजातियों में बांटा गया है. जिन्हें संकुल और संकर के नाम से जाना जाता है.

संकुल प्रजाति

संकुल प्रजाति

इस प्रजाति की किस्मों को काफी कम ही किसान भाई उगा रहे हैं. इस प्रजाति के पौधे छोटे होते हैं और पैदावार भी कम होती है. इस प्रजाति में मुख्य रूप से मार्डन और सूर्य किस्म को सबसे उपयुक्त माना जाता है.

सूर्या

सूरजमुखी की ये किस्म बीज बोने के बाद 80 से 85 दिन में तैयार हो जाती है. इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 12 क्विंटल के आसपास पाई जाती है. इसके पौधे की लम्बाई लगभग 3 से 4 फिट होती है. इसकी बुवाई पछेती किस्म के रूप में की जाती है.

ज्वालामुखी

संकुल प्रजाति की इस किस्म में तेल की मात्रा 42 से 44 प्रतिशत तक पाई जाती है. इसके पौधे की लम्बाई 4 फिट होती है. इसकी फसल रोपाई के 80 दिन बाद तैयार हो जाती है. एक हेक्टेयर में इसकी पैदावार 20 क्विंटल तक होती है.

मार्डन

इस किस्म के पौधे तीन फिट लम्बे होते हैं. इस किस्म के फूल को पकने में 90 दिन का टाइम लगता हैं. इसके बीज के अंदर तेल की मात्रा 40 प्रतिशत तक पाई जाती है. यह पौधा बहु फसली जगहों के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है.

एम.एस.एफ.एच 4

इस किस्म के बीजों के अंदर तेल की मात्रा 42 प्रतिशत तक पाई जाती है. इसके फूलों को पकने में 90 से ज्यादा दिन का टाइम लगता है. इस किस्म को रबी के टाइम में उगाया जाता है. जिसकी प्रति हेक्टेयर उपज 20 से 25 क्विंटल होती है.

संकर प्रजाति

संकर प्रजाति

संकर प्रजाति की किस्मों को आज सबसे ज्यादा पसंद किया जा रहा है. इस प्रजाति की पैदावार संकुल से ज्यादा होती है. और इसके पौधों की लम्बाई ज्यादा होती है. इस प्रजाति की किस्मों में एस एच-1, एस एच 3322 और ऍफ़ एस एच-17 प्रमुख रूप से हैं.

के.वी. एस.एच 1

इस किस्म के पौधों की लम्बाई 5 फिट के आसपास होती है. जिनको पकने में 90 दिन से ज्यादा का टाइम लगता है. इसकी प्रति हेक्टेयर उपज 30 क्विंटल तक हो जाती है. इसको पछेती फसल के रूप में उगाते हैं.

एस.एच.-3322

इस किस्म के पौधों की पैदावार 25 क्विंटल के आसपास रहती हैं. इनके बीजो के अंदर तेल की मात्रा 40 से 42 प्रतिशत तक पाई जाती है. जिनको पकने में 95 दिन का टाइम लगता है.

ऍफ़ एस एच-17

इस किस्म के पौधों को तैयार होने में 90 दिन का टाइम लगता है. इसके बीज में तेल की मात्रा 35 से 40 प्रतिशत तक पाई जाती है. इसके पौधों की लम्बाई 5 फिट तक होती हैं. इसकी पैदावार 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

कावेरी 618

इस किस्म की बुवाई पछेती किस्म के रूप में की जाती है. जिसकी पैदावार 20 क्विंटल से ज्यादा होती है. इसको पकने में 80 से 90 दिन का टाइम लगता है. इसके पौधे की लम्बाई 4 से 5 फिट तक होती है.

खेत की जुताई

खेत की जुताई

सूरजमुखी की खेती के लिए पहले खेत की अच्छे से जुताई करें. उसके बाद खेत में बुवाई से 15 दिन पहले गोबर की खाद डालकर उसकी अच्छे से जुताई कर खाद को मिट्टी में मिला दें. सूरजमुखी की पैदावार के लिए खेत में नमी का होना जरूरी है. इसलिए खेत में पानी छोड़कर खेत की फिर से जुताई करें. ताकि खेत की मिट्टी में नमी भी बनी रहे और मिट्टी भुरभुरी हो जाए. खेत की जुताई रोटावेटर से करने से खेत जल्दी तैयार होता है. खेत के तैयार होने के बाद उसमें 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर मेड बना दें.

उर्वरक की मात्रा

खेत में बीज को लगाने से 15 पहले 10 से 15 गाडी पुरानी गोबर की खाद प्रति एकड़ के हिसाब से डालनी चाहिए. उसके बाद खेत की जुताई कर उसे मिट्टी में अच्छे से मिला दें. खेत में बीज को लगाने से पहले आखिरी जुताई के वक्त एन.पी.के. की उचित मात्रा खेत में डालनी चाहिए.

इसके अलावा खेत में 80 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से जिप्सम देना चाहिए. क्योंकि सूरजमुखी की खेती के लिए जिप्सम की जरूरत सबसे ज्यादा होती है. इससे पौधों को वृद्धि करने में मदद मिलती है.

बीज की रोपाई का तरीका और टाइम

ज्यादातर किसान भाई बीज की रोपाई समतल भूमि में कर देते हैं. लेकिन इससे पैदावार अच्छे से नही मिलती. इसलिए बीज को हमेशा मेड पर ही लगाए. मेड पर बीज लगाते टाइम बीजों के बीच की दूरी 15 से 17 सेंटीमीटर होनी चाहिए. जबकि इनको 4 सेंटीमीटर की गहराई में ही उगाना चाहिए. एक एकड़ में संकुल प्रजाति का 4 से 5 किलो और संकर प्रजाति का 3 किलो बीज काफी होता है.

बीज को खेत में लगाने से पहले उसे 10 घंटे तक पानी में भिगोकर रखना चाहिए. उसके बाद 2 घंटे छाया में सुखाकर उगाना चाहिए. क्योंकि इसके बीज के बाहर का आवरण बहुत मजबूत होता है. इस कारण भिगोने से अंकुरित होने में ज्यादा मदद मिलती है. बीज को खेत में उगाने से पहले उसे थीरम या बाविस्टिन की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए.

सूरजमुखी की जायद के टाइम खेती के लिए बीज रोपाई का सबसे उपयुक्त टाइम फरवरी माह का होता है. जिससे पौधा बारिश के मौसम से पहले ही पककर तैयार हो जाता है. लेकिन अगर इसकी बुवाई देरी से की जाती है तो बारिश के मौसम में इसकी पैदावार पर फर्क देखने को मिलता है.

सूरजमुखी के पौधे की सिंचाई

सूरजमुखी के पौधे को पानी की ज्यादा जरूरत होती है. इस कारण इसकी पहली सिंचाई बीज रोपाई के तुरंत बाद कर देनी चाहिए. उसके बाद बीज के अंकुरित होने तक नमी बनाए रखने के लिए आवश्यकता के अनुसार पानी देते रहना चाहिए. बीज के अंकुरित होने के बाद इसके पौधे को 4 से 5 सिंचाई की जरूरत होती है. जबकि भारी भूमि में इसकी 3 से 4 सिंचाई ही काफी होती हैं. लेकिन जब पौधे के फूल में दाने बनने लगे तब खेत में नमी बनाए रखने से पैदावार में फर्क देखने को मिलता है.

खरपतवार नियंत्रण

सूरजमुखी में खरपतवार नियंत्रण के लिए उसकी 2 से 3 गुड़ाई जरूरी है. पहली गुड़ाई बीज लगाने के 20 दिन बाद कर देनी चाहिए. जिसके बाद 15 से 20 दिन बाद फिर से गुड़ाई कर देनी चाहिए. और साथ में पौधों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए.

रसायानिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डिमेथालिन 30 ई.सी. की उचित मात्रा का छिडकाव बुवाई से पहले या बुवाई के दो दिन बाद खेत में करना चाहिए.

पौधों पर लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

खरीफ के समय फसल उगने पर पौधों में कई तरह के रोग लगते हैं. जबकि रबी और जायद के टाइम काफी कम रोग फसल को लगते हैं. पौधों पर ज्यादातर रोग कीटों के कारण लगते हैं.

पत्ती धब्बा व झुलसा

पौधों पर ये रोग शुरूआती अवस्था में ज्यादा देखने को मिलता है. पौधे के ऊपरी भाग पर इसके लक्षण देखने को मिलते हैं. इसके लगने पर पत्तियों पर पीले और हलके भूरे धब्बे बनने लगते हैं. जो बाद में बड़े होकर फैलने लगते हैं. इसकी रोकथाम के लिए पौधों पर मैंकोजेब 2.0 का छिडकाव करना चाहिए. इसके अलावा बीज को रोपाई से पहले थाइरम या बाविस्टीन से उपचारित कर बोना चाहिए.

रतुआ रस्ट

पौधे पर ये रोग किसी भी अवस्था में देखने को मिल जाता है. इसके लक्षण पहले नीचे की पत्तियों पर देखने को मिलता है. पत्तियों पर लालभुरे रंग के धब्बे बनने लगते जो बाद में तने तक पहुँचकर पौधे को नुक्सान पहुँचाते हैं. इनकी रोकथाम के लिए पौधे पर मैंकोजेब 2.0 का छिडकाव करना चाहिए.

मृदुरोमिल आसिता

पत्तियों पर रोग

इस रोग के लगने से पैदावार पर सबसे ज्यादा असर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधे की वृद्धि रुक जाती है. नई पत्तियां पीली दिखाई देती हैं. उन पर धब्बे बनने लगते हैं. इसकी रोकथाम के लिए मेरालेकिसल एपरान 35 एसडी का छिडकाव करना चाहिए. और प्रमाणिक बीज ही खेत में लगाने चाहिए.

परिषेचन की क्रिया

सूरजमुखी परिषेचित फसल हैं. जिसके लिए परिषेचन क्रिया का कराना जरूरी होता है. प्राक्रतिक रूप से मधुमक्खियों की वजह से ये क्रिया पूर्ण होती है. लेकिन ऐसा ना हो तो इसका परिषेचन कराया जाता है. इसके लिए हाथ में किसी रोयेदार कपड़े को पहनकर सुबह 7 बजे के आसपास फूलों पर घुमा देना चाहिए. परिषेचन होने पर फसल से पैदावार अधिक मात्रा में मिलती है.

फसल की कटाई

सूरजमुखी की फसल लगभग तीन महीने में पककर तैयार हो जाती है. इसके बाद इसके फूलों को तोड़कर छायादार जगह पर एकत्रित कर लेना चाहिए. जिसे सुखाकर बाद में मशीनों की सहायता से बीज निकाल लेना चाहिए.

पैदावर और लाभ

सूरजमुखी की प्रति हेक्टेयर पैदावार औसतन 20 से 25 क्विंटल तक हो जाती है. जबकि इसका बाज़ार भाव 4 हज़ार प्रति क्विंटल के आसपास होता है. ऐसे में किसान भाई तीन महीनों में एक हेक्टेयर से एक लाख तक की कमाई कर लेते हैं.

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