फूल गोभी के फल को बड़े फूल वाली सब्जियों में शामिल किया गया है. फूल गोभी मुख्य रूप से सफ़ेद रंग में पाई जाती है. लेकिन आज फूल गोभी नारंगी और बैंगनी रंग में भी मिल रही हैं. फूल गोभी का मुख्य इस्तेमाल सब्जी के रूप में ही किया जाता है. सब्जी के अलावा इसका इस्तेमाल सूप, अचार, सलाद और पकोड़े बनाने में भी किया जाता है.
फूल गोभी के अंदर मानव शरीर के लिए उपयोगी तत्व विटामिन सी, के, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन पाए जाते हैं. फूल गोभी के इस्त्तेमाल से कोलेस्ट्रोल की मात्रा कंट्रोल में रहती है. इसके अलावा फूल गोभी का इस्तेमाल पाचन शक्ति को बढ़ने और कैंसर जैसे रोग की रोकथाम में सहायक होता है.
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फूल गोभी की खेती मुख्य रूप से ठंडे प्रदेशों में की जाती है. लेकिन सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसकी पैदावार को नुक्सान पहुँचाता है. इसकी खेती के लिए निम्न तापमान की जरूरत होती है. फूल गोभी की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी की जरूरत होती है. उत्तर भारत में फूल गोभी की खेती बड़ी मात्रा में की जाती है.
अगर आप भी इसकी खेती करना चाह रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
फूल गोभी की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी की जरूरत होती हैं. बलुई दोमट मिट्टी में इसकी पैदावार अच्छी होती हैं. इसके अलावा इसकी खेती अच्छे जल निकासी और उत्तम जीवाश्म वाली जमीन में भी की जा सकता है. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 5.5 से 6.8 तक होना चाहिए. फूल गोभी की खेती जलभराव वाली मिट्टी में नही की जा सकती. क्योंकि इसके पौधों पर फल मिट्टी की सतह से बिलकुल पास होते हैं. और जलभराव की स्थिति में इसके फल और पौधे दोनों पर कई तरह के रोग लग जाते हैं.
जलवायु और तापमान
फूल गोभी की खेती ठंडे मौसम में अच्छी पैदावार देती है. इस कारण इसकी खेती के लिए ठंडी और नम जलवायु वाले प्रदेश सबसे उपयुक्त होते है. फूल गोभी की खेती गर्म प्रदेशों में नही की जा सकती. क्योंकि ज्यादा गर्मी होने पर इसके फूलों में गुणवत्ता की कमी पाई जाती है. और फूलों का स्वाद ज्यादा तीखा हो जाता है.
फूल गोभी की खेती के लिए अधिक तापमान की जरूरत नही होती. इसके पौधे और फल दोनों को विकास करने के लिए 15 से 18 डिग्री तापमान काफी होता है. तापमान में वृद्धि होने से इसके फूलों का आकार छोटा रह जाता है. जिसका असर इसकी पैदावार पर देखने को मिलता है.
उन्नत किस्में
फूल गोभी की कई उन्नत किस्में बाज़ार में उपलब्ध हैं. लेकिन इन सभी किस्मों को रोपण के हिसाब से अगेती, पछेती और माध्यम श्रेणियों में बांटा गया है.
अगेती प्रजाति की किस्में
अगेती प्रजाति की किस्मों को ज्यादा तापमान पर उगाने के लिए बनाया गया है.
पूसा दीपाली
इसके पौधे सीधे खड़े होते हैं जिन पर 24 से ज्यादा पत्तियां पाई जाती है. इसके पौधों पर फल रोपाई के 60 से 70 दिन बाद आने शुरू हो जाते हैं. जिनकी प्रति एकड़ पैदावार 40 से 60 क्विंटल तक होती है. इस किस्म के फूल सफ़ेद और ठोस गुथे हुए होते हैं.
अर्ली कुंवारी
फूल गोभी की ये किस्म पौध लगाने के 40 से 50 दिन बाद ही पैदावार देना शुरू कर देती है. जिनकी प्रति एकड़ पैदावार 40 से 60 क्विंटल तक पाई जाती है. इस किस्म को उतर भारत में पंजाब और हरियाणा के आसपास ज्यादा उगाया जाता है. इसके फूल सफ़ेद और अर्धगोलाकार होते हैं.
पूसा कार्तिकी
इस किस्म के फूल सफ़ेद और छोटे आकार वाले होते हैं. इस किस्म के पौधे रोपाई के 60 से 80 दिन बाद पककर तैयार होते हैं. एक एकड़ में इस किस्म की पैदावार 60 से 75 क्विंटल तक होती है.
पूसा अर्ली सिंथेटिक
इस किस्म के पौधे रोपाई के 70 से 75 दिन बाद फल देना शुरू कर देते हैं. इनकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 120 से 150 क्विंटल तक पाई जाती है. इसके पौधे की पत्तियां सीधी और नीला हरा रंग लिए होती है. इस किस्म के फूल ठोस और क्रीमी सफ़ेद रंग के होते हैं.
पछेती प्रजाति की किस्में
इस प्रजाति की किस्मों को फरवरी और मार्च महीने में पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है.
स्नोबाल 16
इस किस्म के पौधे रोपाई के 90 दिन बाद पैदावार देना शुरू करते हैं. इसके फूलों का आकर बड़ा और रंग सफ़ेद होता है. जिनकी प्रति हेक्टेयर कुल पैदावार 220 से 250 क्विंटल तक होती है. इस किस्म की बाहरी पत्तियां सीधी खड़ी दिखाई देती हैं.
पूसा स्नोबॉल-1
इस किस्म के फूल पौधे की रोपाई के 90 दिन बाद पक्कर तैयार हो जाते हैं. इसके फूलों का आकार बड़ा और ठोस होता है. इसके फूल बहुत ज्यादा सफ़ेद होते हैं. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 200 से 250 क्विंटल के आसपास होती है.
पूसा स्नोबॉल के.-1
इस किस्म के फूलों को भी पककर तैयार होने में 90 से ज्यादा दिन लगते हैं. जिनका रंग बर्फ की तरह सफ़ेद होता है. इसके फूल आकर में बड़े होते हैं. जो 24 से 28 पत्तियों से ढके होते हैं. इसकी पत्तियों का रंग हल्का हरा होता है. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 250 क्विंटल के आसपास होती है.
मध्यम प्रजाति की किस्में
माध्यम प्रजाति की किस्में सर्दियों के मौसम में फल देती हैं. इसके पौधे सामान्य तापमान पर अच्छे से वृद्धि करते हैं.
पूसा शुभ्रा
माध्यम प्रजाति की इस किस्म के पौधे लम्बे और फूल बड़े डंठल वाले होते हैं. इसके फूल सफ़ेद और माध्यम आकर के होते हैं. इसकी पत्तियां नीलापन लिए होती है. इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 200 से 250 क्विंटल तक होती है. इसके पौधों को तैयार होने में 90 दिन से ज्यादा का वक्त लगता है.
पूसा केतकी
इस किस्म की पैदावार 120 से 150 क्विंटल के आसपास होती है. इसके पौधे मध्यम आकार वाले होते हैं. जिनकी पत्तियां नीलापन लिए होती है. इस किस्म के पौधे रोपाई के 60 से 70 दिन बाद फल देना शुरू कर देते हैं. इसके फूलों का रंग सफ़ेद क्रीम जैसा होता है.
पूसा हिम ज्योति
फूल गोभी की इस किस्म की पैदावार 200 क्विंटल के आसपास होती है. इसके पौधे 60 से 65 दिन बाद फल देने के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधे की पत्तियों का रंग हरा नीला होता है, जिन पर मोम के जैसा आवरण बना होता है. इसके फूल सफ़ेद रंग के होते हैं.
खेत की जुताई
फूल गोभी की खेती के लिए जुताई से पहले खेत में मौजूद पुरानी फसलों के सभी अवशेष नष्ट कर दें. उसके बाद खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर खेत को धूप लगने के लिए खुला छोड़ दें. उसके कुछ दिन बाद खेत में पुरानी गोबर की खाद डालकर उसे रोटावेटर से अच्छे से मिट्टी में मिला दें.
गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में नमी बनाने के लिए पानी चला दें. पानी चलने के बाद खेत में जब खरपतवार अंकुरित होने लगे तब फिर से रोटावेटर चलाकर खेत की दो बार जुताई कर दें. इससे खेत समतल भी हो जाता हैं.
पौध तैयार करना
फूल गोभी के पौधे बीज के रूप में खेत में नही लगाये जाते. इसके लिए पहले नर्सरी में पौध तैयार की जाती है. जिन्हें रोपाई से लगभग एक महीने पहले तैयार किया जाता है. एक हेक्टेयर में अगेती किस्म के लिए 600 से 700 ग्राम बीज की जरूरत होती है. जबकि पछेती और मध्यम किस्म के लिए आधा किलो बीज काफी होता है.
इसके बीज को कोकोपीट ट्रे या क्यारियाँ बनाकर नर्सरी में उगाया जाता है. क्यारियों में पौध बनाने के लिए क्यारियों में पहले 20 से 25 किलो गोबर की खाद डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला देते हैं. उसके बाद दो से तीन सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए बीज को क्यारियों में पंक्ति में लगाते हैं.
बीज को लगाने के बाद उसमें हजारे के माध्यम से आवश्यकता के अनुसार पानी देते हैं. और क्यारियों को बीज के अंकुरित होने तक पुलाव से ढक देते हैं. इसका पौधा 20 से 25 दिन में पूरी तरह से तैयार हो जाता है. जब पौधा तैयार हो जाता है तब उसे खेत में लगाते हैं. पौध को क्यारियों से उखाड़ने से पहले पानी देकर मिट्टी को नर्म बना लेते हैं. ताकि पौध को उखाड़ने में आसानी रहे और ज्यादा पौध नष्ट ना हो पायें.
पौध लगाने का टाइम और तरीका
फूल गोभी की पौध खेत में मेड पर लगाई जाती है. इसके लिए खेत में पौध लगाने से पहले मेड बना लें. अगेती प्रजाति के लिए एक से सवा फिट की दूरी पर और पछेती व मध्यम प्रजाति के लिए डेढ़ से दो फिट की दूरी पर मेड बनाये. जब पौधे की रोपाई मेड पर करें तो प्रत्येक पौधों के बीच एक फिट की दूरी बनाकर लगाए. पौधे को हमेशा शाम के वक्त ही खेत में लगाना चाहिए. इससे पौधे की अंकुरण की क्षमता अधिक होती है.
अगेती किस्म के पौधों को रोपाई जून और जुलाई के महीने में की जानी चाहिए. इससे पौधे से पैदावार उचित टाइम पर मिलती है. और बाज़ार में पैदावार की कीमत अच्छी मिलती हैं. पछेती किस्म की रोपाई अक्टूबर महीने में की जानी चाहिए. जबकि मध्यम प्रजाति की रोपाई सितम्बर माह में की जाती है. इन दोनों किस्मों की पैदावार सर्दी के पूरे मौसम में चलती है.
पौधों की सिंचाई
फूल गोभी के पौधों की सिंचाई पौध लगाने के तुरंत बाद कर देनी चाहिए. अधिक पैदावार के लिए इसके पौधों को नमी की जरूरत होती है. इस कारण इसके पौधे की उचित टाइम पर सिंचाई की जानी चाहिए. गर्मी के मौसम में इसके पौधे को तीन से चार दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए. बारिश के मौसम में इसके पौधे को पानी की जरूरत नही होती. बारिश का मौसम समाप्त हो जाने के बाद इसके पौधे को 10 से 15 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए.
उर्वरक की मात्रा
फूल गोभी के पौधों को जल्दी वृद्धि करने के लिए उर्वरक की उचित मात्रा की जरूरत होती है. इसलिए खेत की जुताई के वक्त खेत में 20 से 25 गाडी पुरानी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालकर मिट्टी में मिला दें. गोबर की खाद डालने के बाद खेत में आखिरी जुताई के वक्त लगभग 40 किलो पोटाश, 60 किलो फास्फोरस और 100 किलो नाइट्रोजन को आपस में मिलाकर खेत में छिड़क दें.
पौध को खेत में लगाने के लगभग 20 दिन बाद खेत में नाइट्रोजन आधी मात्रा को दो भागों में बांटकर उसे सिंचाई के साथ दें. दूसरी बार नाइट्रोजन फूल बनने से पहले ही दें. इससे फूल अच्छे और बड़े बनते हैं.
खरपतवार नियंत्रण
फूल गोभी की खेती में खरपतवार नियंत्रण सबसे ज्यादा जरूरी हैं. क्योंकि खरपतवार में पनपने वाले कीटों की वजह से पौधे में कई तरह के रोग तो लगते ही हैं और साथ में पौधे को पौषक तत्व भी उचित मात्रा में नही मिल पाते. पौषक तत्व नही मिल पाने की वजह से पौधे की वृद्धि रुक जाती है और फूल अच्छे से बड़े नही हो पाते है.
फुलगोभी की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए खेत की नीलाई गुड़ाई कर खरपतवार को निकाल देना चाहिए. लेकिन गुड़ाई करते वक्त ध्यान रहे की गुड़ाई ज्यादा गहराई में नही करें. ज्यादा गहराई में गुड़ाई करने से पौधे के नष्ट होने की संभावना होती है. क्योंकि इसके पौधे की जड़ें ज्यादा गहराई में नही जाती.
पौधे की पहली नीलाई गुड़ाई पौध लगाने के 20 से 25 दिन बाद कर देनी चाहिए. उसके बाद दूसरी गुड़ाई पहली गुड़ाई के 15 दिन बाद करनी चाहिए. दूसरी गुड़ाई के वक्त पौधों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ा दें. ताकि जब पौधे पर फूल का वजन बढ़ने लगे तब पौधा गिरे नही. क्योंकि फूल लगने के वक्त पौधा गिरता है तो फूल में मिट्टी जाने पर रोग लगने और गुणवत्ता में कमी आने का डर रहता है.
पौधे में लगने वाले रोग
फूल गोभी में कई तरह के रोग लगते हैं. जो पत्तियों और पौधे के फूलों को नुक्सान पहुँचाते हैं.
झुलसा रोग
पौधों पर ये रोग ज्यादातर गर्म मौसम में देखने को मिलता हैं. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियां किनारे पर से जली हुई दिखाई देती हैं. जिसके कुछ दिन बाद पूरी पत्ती जलकर नष्ट हो जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर स्टिकर के साथ मैनकोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
पौध गलन
फूल गोभी के पौधों पर ये रोग नर्सरी में उगाये गए पौधों पर ज्यादा देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधे का तना जमीन के पास से काला पड़ने लगता हैं जिसके बाद जल्द ही पौधा सड़कर गिर जाता है. इस रोग से बचाव के लिए बीज को खेत में लगाने से पहले थाइरम, बाविसिटन या कैप्टान से उपचारित कर लेना चाहिए. पौध के अंकुरण के बाद इसके लक्षण दिखाई दे तो पौध पर बोर्डों मिश्रण का छिडकाव करना चाहिए.
ब्लैक राट
फूल गोभी पर लगने वाले इस रोग को काला सडन रोग भी कहते हैं. इस रोग के लगने पर पत्तियों के किनारे पर वी आकर के पीले धब्बे बनने लगते हैं. जिसके कुछ दिन बाद पत्तियां सड़कर नष्ट हो जाती हैं. इस रोग से पौधों को बचाने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिडकाव करना चाहिए.
मृदु रोमिल फफूंद
फूल गोभी के पौधों पर ये रोग सबसे ज्यादा देखने को मिलता हैं. इस रोग के लगने पर पौधे की पातियों की निचली सतह पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. और पत्ती नीचे से बैंगनी रंग धारण करने लगती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर दो बार मैन्कोजेब का छिडकाव लगातार सात दिनों के अंतराल में करें.
पत्ती धब्बा रोग
पौधों पर इस रोग के लक्षण पत्तियों की निचली सतह पर देखने को मिलते हैं. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों की निचली सतह पर सफ़ेद और बादामी रंग के धब्बे बनने लगते हैं. वक्त के साथ साथ इन धब्बों का आकार बड़ा होता जाता है. और कुछ दिन बाद पूरी पत्ती नष्ट हो जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर मेटालेक्सिल और मैन्कोजेब की उचित मात्रा को पानी में मिलाकर छिडकना चाहिए.
सुंडी रोग
पौधों पर ये रोग किसी भी अवस्था में लग सकता हैं. इस रोग के लगने से पौधे को सबसे ज्यादा नुकसान होता है. इस रोग का किट पौधों की पत्तियों को खाकर उन्हें नष्ट कर देता है. जिससे पौधा अच्छे से विकास नही कर पाता. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर स्पोडोपटीरा या थायोडीकार्ब 75 डब्ल्यू पी का छिडकाव करना चाहिए.
फूलों पर चमकीला कीट रोग
पौधे पर ये रोग फूल बनने के दौरान लगता हैं. इस रोग का कीड़ा पौधे की पत्तियों और फूल के नीचे की सतह पर अपने अंडे देता है. फूलों में पाए जाने वाला ये कीड़ा सफ़ेद और हरे रंग का होता है. ये पौधों को सबसे ज्यादा नुक्सान पहुँचाता हैं. इस रोग के लगने पर पौधे पर नीम अर्क या नीम के तेल का छिडकाव करना चाहिए.
भूरी गलन
पौधों पर ये रोग जमीन में बोरोन तत्व की कमी की वजह से लगता है. इस रोग के लगने पर फूल पर धब्बे बनने लगते हैं. और फूल जल्द ही सड़ जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर बोरेक्स का छिडकाव करना चाहिए.
फूलों की तुड़ाई
फूल गोभी का पौधा रोपाई के लगभग 60 दिन बाद पककर तैयार हो जाता है. अच्छी तरह पककर तैयार हुआ फूल आकर्षक और ठोस होता है. जब फूल आकर्षक दिखाई देने लगे तभी फूल की कटाई कर लेनी चाहिए. फूल की कटाई करते वक्त उसे कुछ नीचे से काटे जिससे फल जल्दी खराब नही होता है.
पैदावार और लाभ
फूल गोभी की प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 200 क्विंटल तक हो जाती है. जबकि बाज़ार में इसका थोक भाव 10 रूपये प्रति किलो के आसपास रहता है. जिससे किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से लगभग डेढ़ से दो लाख तक की कमाई कर लेता हैं.