तुलसी की खेती कैसे करें – Tulsi Farming

हिन्दू समाज में तुलसी के पौधे को माता की संज्ञा दी गई है. जिसकी लोग पूजा करते हैं. तुलसी का पौधा तीन से चार फिट लम्बा झाड़ीनुमा होता है. इसकी पत्तियों का इस्तेमाल लोग चीजों को खूशबूदार बनाने में करते हैं. इसके पौधे का इस्तेमाल पुराने वक्त से यूनानी और आयुर्वेदिक चिकित्सा में होता रहा है. तुलसी के पौधे का इस्तेमाल दवाइयों को बनाने में भी किया जाता है.

तुलसी के पौधे के सभी भागों ( जड़, पत्ती, तना, फूल, बीज ) का इस्तेमाल किसी ना किसी रूप में किया जाता है. इसकी खेती से लोगो को कम समय में अच्छा मुनाफा मिल जाता है. तुलसी का इस्तेमाल बुखार, सर्दी-जुकाम, खांसी, दांतों से संबंधित रोग और श्वास संबंधी रोग में लाभदायक होता है. तुलसी के पौधे में विषाणुओं और जीवाणुओं से लड़ने की प्रबल क्षमता होती है. इस कारण इसके पौधे के आसपास का वातावरण स्वच्छ रहता है.

तुलसी की खेती

तुलसी की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त होती है. इसके पौधे के लिए ज्यादा बारिश की भी जरूरत नही होती. तुलसी की खेती क्षारीय मिट्टी में नही की जा सकती. इसके पौधों पर सर्दी के मौसम में फूल अच्छे खिलते हैं. भारत में इसकी खेती कई राज्यों में की जा रही है. जिनमें बंगाल, बिहार और मध्यप्रदेश में ज्यादा की जा रही है.

अगर आप भी तुलसी की खेती करना चाह रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

तुलसी की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. बलुई दोमट मिट्टी में इसकी पैदावार अधिक होती है. इसके पौधे को बलुई दोमट मिटटी के अलावा उचित जल निकासी वाली कम उपजाऊ जमीन में भी उगाया जा सकता है. इसके लिए जमीन का पी.एच. मान 5.5 से 7 के बीच होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

तुलसी की खेती उष्णकटिबंधीय जलवायु में अधिक की जाती है. भारत में इसके पौधे को बारिश के मौसम में उगाया जाता है. लेकिन इसके पौधे को ज्यादा बारिश की जरूरत नही होती. तुलसी के पौधे पर फूल सर्दी के वक्त अधिक और अच्छे से खिलते हैं. लेकिन सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसकी पैदावार को नुक्सान पहुँचाता है.

तुलसी के पौधे को किसी ख़ास तापमान की जरूरत नही होती. इसका पौधा सामान्य तापमान पर आसानी से उगाया जा सकता है.

तुलसी की किस्में

तुलसी की कई तरह की किस्में बाज़ार में पाई जाती है. जिन्हें लोग उनकी उपज के आधार पर उगाते हैं.

कर्पूर तुलसी

इस प्रजाति को अमेरिका में तैयार किया गया है. इसके सूखे पत्तों का इस्तेमाल चाय को खूशबूदार बनाने में किया जाता है. इसके अलावा इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल कपूर बनाने में किया जाता है. इसका पौधा दो से तीन फिट लम्बा होता हैं. इनकी पत्तियों का रंग हरा और फूलों का रंग बैंगनी भूरा होता है.

रामा तुलसी

रामा तुलसी को गर्म मौसम में उगाने के लिए तैयार किया गया है. दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में इसको उगाया जाता है. इसके पौधे भी दो से तीन फिट लम्बे होते हैं. जिनके पत्तों का रंग हल्का हरा और फूलों का रंग बिलकुल सफ़ेद होता है. इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल औषधियों में किया जाता है. इस पौधे से खुशबू की मात्रा कम पाई जाती है.

श्याम या कृष्ण तुलसी

काली तुलसी

वर्तमान में इसे काली तुलसी के नाम से भी जाना जाता है. इस किस्म के पौधे की पत्तियों और तने का रंग हल्का जामुनी होता है. और इसके फूलों का रंग हलका बैंगनी होता है. इसके पौधे की लम्बाई तीन फिट तक पाई जाती है. इसके पत्ते आयताकार होते हैं. इसका इस्तेमाल कफ की बीमारी में सबसे उपयुक्त होता है.

बाबई तुलसी

तुलसी की इस किस्म का इस्तेमाल सब्जियों को खूशबूदार बनाने के लिए किया जाता है. इसके पौधों एक से 2 फिट लम्बे होते हैं. इनकी पत्तियों की लम्बाई सामान्य से ज्यादा होती है. और ये आकर में नुकीली होती है. भारत में इसको ज्यादातर बंगाल और बिहार में उगाया जाता है.

अमृता तुलसी

तुलसी की ये किस्म लगभग पूरे भारत में पाई जाती है. इसके पत्तों का रंग गहरा जामुनी होता है. इसके पौधे अधिक शाखाओं वाले होते है. तुलसी की इस किस्म का इस्तेमाल कैंसर, डायबिटीज, पागलपन, दिल की बीमारी और गठिया रोग को दूर करने में किया जाता है.

खेत की जुताई

तुलसी का पौधा एक बार लगाने पर लगभग तीन साल तक पैदावार दे सकता है. इसकी खेती के लिए शुरुआत में खेत की तीन से चार जुताई कर उसे कुछ वक्त के लिए खुला छोड़ देते हैं. उसके बाद खेत में गोबर की खाद डालकर उसे रोटावेटर की सहायता से मिट्टी में मिला दे. उसके बाद खेत में पानी छोड़कर कुछ दिनों बाद फिर रोटावेटर चलाकर खेत की मिट्टी को समतल बना दें. इसकी खेती के लिए खेत को पौध लगाने से लगभग एक महीने पहले तैयार किया जाता है.

पौध तैयार करना

तुलसी के बीजों को सीधा खेतों में नही उगाया जाता है. इसके बीजों को पहले नर्सरी में तैयार किया जाता है. उसके बाद इन्हें खेतों में पौध के रूप में लगाते हैं. इसके पौधे बीज लगाने के एक महीने बाद तैयार हो जाते हैं. उसके बाद इनके पौधों को उखाडकर उन्हें खेतों में लगा देते हैं.
बीज को क्यारियों में उगाने के लिए क्यारियों में गोबर की खाद डालकर उसे मिट्टी में मिला देते हैं. उसके बाद बीज को मैनकोजेब या गोमूत्र से उपचारित कर उसे क्यारियों में लगाते हैं. एक एकड़ के लिए 120 ग्राम बीज काफी होता है.

तुलसी के पौधे नर्सरी में कोकोपिट ट्रे या क्यारियों में तैयार किये जाते हैं. क्यारियों में इन्हें दो से तीन सेंटीमीटर की दूरी पर लगाते हैं. इसके बीज को लगाने के बाद उनमे हजारे की सहायता से पानी देकर उन्हें अंकुरित होने तक पुलाव या सुखी हुई घास से ढक देते हैं. बीज के अंकुरित होने के बाद पुलाव को हटाकर पौधों की नियमित सिंचाई करते हैं.

पौध रोपण का तरीका और टाइम

तुलसी की खेती का तरीका

पौध के तैयार होने के बाद उसे खेत में लगाते हैं. तुलसी के पौधों को समतल और मेड दोनों पर लगा सकते है. मेड पर लगाने के लिए खेत में मशीन की सहायता से मेड तैयार की जाती है. प्रत्येक मेड में बीच एक फिट की दूरी होनी चाहिए. मेड पर इन पौधों को एक से सवा फिट की दूरी पर लगाते हैं.

समतल में रोपाई करते वक्त इन्हें क्यारी बनाकर उगाया जाता है. समतल में पौधों की रोपाई पक्तियों में की जाती है. पौधे को पंक्ति में लगते वक्त प्रत्येक पंक्ति के बीच लगभग डेढ़ से दो फिट की दूरी रखते हैं. और पंक्ति में प्रत्येक पौधे के बीच की दूरी 40 सेंटीमीटर होनी चाहिए.

तुलसी की अगेती खेती के लिए इसके बीजों की नर्सरी में बुवाई फ़रवरी के लास्ट में कर देनी चाहिए. जिससे पौधा अप्रैल माह के शुरुआत में तैयार हो जाता है. तुलसी की अगेती फसल सिंचित जगहों के लिए उपयुक्त है. जहां बारिश के मौसम में इसकी खेती की जाती है, वहां इसे नर्सरी में मध्य अप्रैल से मध्य मई तक लगाना चाहिए. जिसके एक महीने बाद बारिश के मौसम तक इसकी पौधा तैयार हो जाती हैं.

पौधे की सिंचाई

तुलसी का पौधा सुखी हुई जमीन में लगाया जाता है. इस कारण इसकी पहली सिंचाई पौध लगाने के तुरंत बाद ही कर देनी चाहिए. अगर इसकी खेती अगेती फसल के रूप में करते हैं तो खेत में नमी बनाए रखने के लिए 4 से 5 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए. और बारिश के मौसम में पानी नही देना चाहिए. उसके बाद इसे आवश्यकता के अनुसार पानी देना चाहिए.

अगेती के अलावा जब इसकी खेती बारिश के मौसम में करते हैं तो इसे शुरूआती सिंचाई की जरूरत नही होती. जबकि बारिश के मौसम के बाद इसकी 10 से 15 दिन के अंतराल में सिंचाई कर देनी चाहिए. तुलसी के पौधे को साल में 10 से 12 सिंचाई की जरूरत होती है.

उर्वरक की मात्रा

तुलसी के पौधे का औषधियों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. इसलिए इसकी खेती में रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल कम मात्रा में किया जाता है. इसकी खेती में हमेशा देशी गोबर की खाद या कमपोस्ट खाद का इस्तेमाल करना चाहिए. अगर किसान भाई रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहता है तो खेत में इसकी रोपाई से पहले एक बोरा एन.पी.के. को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालें. उसके बाद खेत की जुताई कर उसे मिट्टी में मिला दें.

जब पौधा पूरी तरह अंकुरित हो जाए तब खेत में 20 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से एक महीने बाद सिंचाई के वक्त डालें. तुलसी की खेती के लिए ज्यादा उर्वरक भी नुकसानदायक होता है. ज्यादा मात्रा में उर्वरक देने से पौधा जल जाता है.

खरपतवार नियंत्रण

तुलसी के पौधे में कभी भी रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण नही करना चाहिए. इसकी खेती में खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई से ही करना चाहिए. तुलसी के पौधे की पहली नीलाई गुड़ाई पौध लगाने के एक से डेढ़ महीने बाद करनी चाहिए. उसके बाद इसकी गुड़ाई एक से दो महीने के अंतराल में कर देनी चाहिए. तुलसी के पौधे की 2 से 3 गुड़ाई करने से पैदावार अच्छी होती है.

पौधे को लगने वाले रोग

तुलसी के पौधे को भी कई तरह के रोग लगते हैं. जिनकी रोकथाम पौधे की उचित देखभाल कर आसानी से की जा सकती है.

पत्ती झुलसा

रोग लगा पौधा

तुलसी के पौधे पर पत्ती झुलसा रोग गर्मियों के मौसम की शुरुआत में ज्यादा देखने को मिलता है. इसके लगने पर पौधे की पतियाँ विकृत आकर धारण कर लेती है. पत्तियों पर जले हुए धब्बे दिखाई देने लगते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए फाइटो सैनिटरी विधि का इस्तेमाल करना चाहिए.

जड़ गलन

पौधों पर ये रोग ज्यादा पानी भराव की वजह से लगता है. इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में पानी का भराव ना होने दे. इस रोग के लगने पर पहले पौधे मुरझाने लगते हैं. उसके बाद पौधे की पत्तियां पीली होकर गिरने लग जाती हैं. पौधे पर जब इस रोग के लक्षण दिखाई दें तो पौधे की जड़ों में बाविस्टिन की उचित मात्रा के घोल का छिडकाव करना चाहिए.

कीट रोग

कीट रोग की वजह से तुलसी की पत्तियों को ज्यादा नुक्सान पहुँचता हैं. इस रोग के कीट पत्तियों का रस चूसकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते हैं. पत्तियों पर इन कीट के पेशाब करने से पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है. जिसके बाद पत्तियां मुरझाकर सुख जाती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर एजाडिरेक्टिन का छिडकाव उचित मात्रा में करना चाहिए.

फसल की कटाई

पौधे पर जब पूरी तरह से फूल आ जाए और पौधे के नीचे के पत्ते पीले पड़कर सूखने लग जाए तब इसकी कटाई कर लेनी चाहिए. इसका पौधा रोपाई के लगभग तीन महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाता है. इसके पौधे की कटाई तेल निकालने के लिए की जाती है. इसके शाकीय भागों की कटाई जमीन की सतह से कुछ ऊंचाई पर 20 से 25 सेंटीमीटर तक करनी चाहिए. जिससे पौधा फिर से नई फसल दे सकता है.

पैदावार और लाभ

तुलसी का पौधा तीन महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाता हैं. इसकी फसल की पैदावार प्रति हेक्टेयर 20 से 25 टन तक हो जाती है. जिसमें तेल की मात्रा 80 से 100 किलो तक पाई जाती है. इसके तेल की बाज़ार में कीमत 450 से 500 रूपये प्रति किलो तक पाई जाती है. जिससे किसान भाइयों की एक बार में 40 से 50 हज़ार तक की कमाई आसानी से हो जाती है.

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