भारत में गेहूँ की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. भारत में गेहूँ को सबसे ज्यादा उत्तर भारत के राज्यों में उगाया जाता है. गेहू की खेती मुख्य रूप से आटे के लिए की जाती है. जिससे रोटी बनाई जाती है. गेहूँ के आटे से रोटी के अलावा और भी कई तरह की चीजें बनाई जाती है. जिनका इस्तेमाल लोग खाने में ही करते हैं. जबकि ग्रामीण लोग गेहूँ का इस्तेमाल पशुओं के खाने के रूप में भी करते हैं.
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गेहूँ की खेती समशीतोष्ण जलवायु वाले प्रदेशों में की जाती है. इसकी खेती के लिए दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना गया है. गेहूँ की खेती को सिंचाई की जरूरत होती है. इस कारण इसकी खेती के लिए बारिश की जरूरत ज्यादा होती है. गेहूँ की खेती सर्दी के मौसम में उगाई जाती है.
अगर आप भी गेहूँ की खेती करना चाह रहे हैं तो हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
गेहूँ की खेती के लिए चिकनी दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है. लेकिन वर्तमान में गेहूँ की अच्छी देखरेख कर इसकी खेती और भी कई तरह की मिट्टी में की जा रही है. इसकी खेती के लिए अधिक अम्लीय या क्षारीय जमीन की जरूरत नही होती. इसके लिए सामान्य पी.एच. वाली भूमि उपयुक्त होती है.
जलवायु और तापमान
गेहूँ की खेती समशीतोष्ण जलवायु वाली जगहों पर की जाती है. भारत में इसकी बुवाई अक्टूबर और नवम्बर माह में की जाती है. इसकी खेती सर्दियों के टाइम में की जाती है. और सर्दियों में होने वाली मावठ इसकी खेती के लिए बहुत उपयोगी होती है. लेकिन फसल की कटाई के वक्त होने वाली बारिश इसकी फसल को नुक्सान पहुँचाती है.
इसके पौधों को वृद्धि करने के लिए सर्दी की जरूरत होती हैं. सर्दियों में पड़ने वाली ओस इसके पौधों के लिए बहुत उपयोगी होती है. लेकिन सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसकी फसल को नुक्सान पहुँचाता है. गेहूँ की फसल को पकने के दौरान भी हलकी ठंड की जरूरत होती है. हल्की ठंड में इसके बीज अच्छे से पकते हैं.
गेहूँ की खेती के लिए सामान्य तापमान सबसे उपयुक्त होता है. बीज की बुवाई के वक्त इसकी खेती के लिए 20 से 25 डिग्री तापमान उपयुक्त होता है. और फसल के पूरी तरह से तैयार होने के बाद कटाई के वक्त 30 डिग्री के आसपास तापमान होना चाहिए.
उन्नत किस्में
गेहूँ की वर्तमान में कई तरह की किस्में प्रचलन में हैं. जिन्हें भूमि और जलवायु परिस्थितियों को देखते हुए उगाने से अच्छी पैदावार ली जा सकती हैं. गेहूँ की इन किस्मों को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में रखा गया हैं.
सिंचित जगहों के लिए
सिंचित जगहों की किस्मों को भी दो प्रजातियों में रखा गया हैं. जिनकी बुवाई अलग अलग वक्त पर की जाती है.
अगेती किस्म
अगेती किस्मों की बुवाई अक्टूबर माह के लास्ट और नवम्बर माह के शुरुआत में कर दी जाती है. जिससे इनकी पैदावार जल्दी प्राप्त हो जाती हैं. इस श्रेणी की किस्मों को अधिक सिंचाई की जरूरत होती है. इस किस्म की पैदावार भी अधिक पाई जाती है. इस प्रजाति की किस्मों में देवा के 9107, एच पी 1731, राज्य लक्ष्मी, एचयूडब्लू468, एचयूडब्लू510, नरेन्द्र गेहूँ 1012, उजियार के 9006, डी एल 784-3, एच डी2888, एच डी2967, यूपी 2382, पी बी डब्लू443, पी बी डब्लू 343, एच डी 2824 जैसी कई किस्में शामिल हैं.
पछेती किस्में
इस प्रजाति की किस्मों को नवम्बर माह के आखिरी या दिसम्बर माह के शुरुआत में उगाते हैं. इन किस्मों को ज्यादातर कपास और गाजर उगाई हुई भूमि पर उगाया जाता है. इस किस्म की पैदावार अगेती किस्मों की अपेक्षा कम पाई जाती है. इस प्रजाति की किस्मों में त्रिवेणी के 8020, सोनाली एच पी 1633 एच डी 2643, गंगा, डी वी डब्लू 14, के 9162, के 9533, एचपी 1744, नरेन्द्र गेहूँ1014, नरेन्द्र गेहूँ 2036, नरेन्द्र गेहूँ1076, यूपी 2425, के 9423, के 9903, एच डब्लू2045,पी बी डब्लू373, पी बी डब्लू 16 जैसी कई किस्में मौजूद हैं.
असिंचित जगहों के लिए
इस श्रेणी की किस्मों की पैदावार काफी कम होती है. इस श्रेणी की किस्मों को भारत में उन जगहों पर उगाया जाता हैं, जहां नमी की मात्रा अधिक पाई जाती है. इस श्रेणी की किस्मों में मगहर के 8027, इंद्रा के 8962, गोमती के 9465, के 9644, मन्दाकिनी के 9251, एच डी- 2888, पी बी डब्ल्यू- 396, पी बी डब्ल्यू- 299, डब्ल्यू एच- 533, पी बी डब्ल्यू- 175 जैसी और भी कई किस्में शामिल हैं.
उसरीली भूमि वाली जगहों के लिए
उसरीली भूमि को बंज़र भूमि के नाम से भी जाना जाता है. अब गेहूँ की कुछ ऐसी किस्में तैयार कर ली गई है. जिनकी खेती उसरीली भूमि में भी की जा रही है. कई किस्में हैं जो उसरीली भूमि में अच्छी पैदावार दे रही हैं. जिनमें के आर एल 1, के आर एल 2, के आर एल 3, के आर एल 4, के आर एल 19, लोक 1, प्रसाद के 8434, एन डब्लू 1067 जैसी कई किस्में मौजूद हैं.
खेत की जुताई
गेहूँ की खेती के लिए पहले खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को ख़त्म कर देते हैं. उसके बाद खेत में तवा ( अहरू ) और कल्टीवेटर चलाकर खेत की दो-दो गहरी जुताई 5 दिन के अंतराल में कर दें. उसके बाद खेत को 10 से 15 दिन के लिए खुला छोड़ देते हैं. फिर खेत में 5 गाडी गोबर की खाद प्रति बीघा के हिसाब से डालकर उसमें रोटावेटर चलाकर उसे मिट्टी में अच्छे से मिला देते हैं.
गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी चला देते हैं. पानी चलाने के कुछ दिन बाद जब खेत में खरपतवार निकल आती है, तब खेत की अच्छे से जुताई कर खेत को दो दिन खुला छोड़ दें. इससे खरपतवार फिर से जन्म नही ले पाती है. उसके बाद फिर से खेत में हलका पानी छोड़ दें. और जब जमीन जोतने योग्य हो जाए तो खेत में फिर से कल्टीवेटर और अहरू से एक बार जुताई कर खेत में पाटा लगा दें. इससे जमीन भुरभुरी और समतल हो जाती है.
बीज की रोपाई का टाइम और तरीका
गेहूँ की बिजाई अक्टूबर माह के लास्ट से दिसम्बर माह के शुरूआती सप्ताह तक की जाती हैं. इस दौरान इसकी सभी किस्मों को उगाया जाता हैं. सिंचित क्षेत्र में अगेती किस्म बुवाई अक्टूबर माह के लास्ट और नवम्बर माह के शुरुआत में कर देते हैं. जबकि पछेती किस्मों को दिसम्बर माह तक उगाया जाता है.
असिंचित और उसरीली भूमि वाली जगहों पर इसे अगेती और पछेती फसल के साथ उगाया जाता है. अगेती के साथ में उगाने पर इन किस्मों से अच्छी पैदावार प्राप्त होती है. गेहूँ की फसल दो तरीके से उगाई जाती है. कुछ लोग इसके बीजों को खेत में छिड़कर हल चलाकर उन्हें मिट्टी में मिला देते हैं. लेकिन इस विधि का उपयोग बहुत कम किया जाता हैं. क्योंकि इस विधि में सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है. इस तरह बुवाई के कुछ दिन बाद ही पानी की जरूरत हो जाती हैं.
दूसरे तरीके में इसकी बिजाई मशीन के माध्यम से पंक्तियों में की जाती है. पंक्तियों में इसके बीज को जमीन में 3 से 5 सेंटीमीटर नीचे लगाया जाता है. और इन पंक्तियों के बीच पांच से सात सेंटीमीटर की दूरी पाई जाती है. पंक्ति में इसके बीजों के बीच लगभग एक से दो सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए. ये सभी दूरियां मशीन में नम्बरों के आधार पर फिक्स की जाती हैं. मशीनों में लगाईं जाने वाली पत्तियों में छिद्र के हिसाब से बीज की मात्रा का निर्धारण होता है.
एक बीघा में लगभग एक मण (40 किलो) बीज की जरूरत होती हैं. लेकिन अगर बीज का साइज़ बड़ा या छोटा हो तो बीज ज्यादा और कम भी लग सकता हैं. बीजों की बुवाई से पहले उन्हें मैन्कोजेब और क्लोरोपाइरीफॉस से उपचारित कर लेना चाहिए.
गेहूँ के बीज को बाज़ार में से खरीदकर उगा सकते हैं. इसके अलावा आप पुराने उगाये बीज को भी फिर से उगा सकते हैं. अगर आप अपने पुराने बीज को खेत में उगाते हैं तो बीज को बिलकुल साफ कर खेत में बोना चाहिए. और बीज को खेत के लगाने से पहले देख लें की उसमें कटे हुए बीजों की मात्रा ज्यादा तो नही है. अगर ज्यादा हो तो बीज को बड़ी जाली में से छान ले. इससे कटे हुए बीजों की मात्रा अलग हो जाती है.
उर्वरक की मात्रा
गेहूँ की खेती के लिए ज्यादा उर्वरक की जरूरत नही होती. इसकी खेती के लिए शुरुआत में 8 से 10 गाडी पुरानी गोबर का खाद को खेत में डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. उसके बाद खेत में आखिरी जुताई के साथ 10 से 15 किलो डी.ए.पी. प्रति बीघा के हिसाब से खेत में छिड़क दें. डी.ए.पी. की जगह एन.पी.के. को भी छिड़क सकते हैं.
खेत की पहली सिंचाई के वक्त खेत में यूरिया का छिडकाव जिंक के साथ करें. एक बीघा में 20 किलो यूरिया और 3 किलो जिंक को मिलाकर छिड़कने से पौधा अच्छे से वृद्धि करता हैं. उसके बाद जब पौधे में बाल बाहर निकलने का वक्त आयें तब खेत में फिर 20 किलो यूरिया और 3 किलो जींक को मिलाकर दें. इससे बाल में बीजों की मात्रा में वृद्धि होती हैं. और बीज अच्छे से पकते हैं.
पौधे की सिंचाई
सिंचित जगहों पर इसके पौधे की 8 से 10 सिंचाई करना अच्छा होता है. लेकिन असिंचित जगहों पर इसकी 5 से 6 सिंचाई काफी होती है. गेहूँ की पहली सिंचाई उसकी बुवाई के लगभग 25 से 30 दिन बाद करनी चाहिए. गेहूँ की पहली सिंचाई ज्यादा पानी देकर करनी चाहिए. उसके बाद खेत में 10 से 15 दिन के अंतराल में नियमित सिंचाई करते रहना चाहिए.
असिंचित जगहों पर इसकी पहली सिंचाई सिंचित किस्म की तरह ही करनी चाहिए. उसके बाद दूसरी सिंचाई लगभग 20 से 25 दिन बाद करनी चाहिए. और तीसरी सिंचाई जब पौधे में गाठें बनने लगे तब करनी चाहिए. उसके बाद आवश्यकता के अनुसार बाकी तीनों सिंचाई करनी चाहिए. आखिरी सिंचाई बीज के पकने से पहले जब बीज पूरी तरह से पककर मोटे दाने का आकार धारण कर लें तब करनी चाहिए. इस दौरान बीज का रंग हरा होना चाहिए. अगर बीज पीला दिखाई देने लगे तो सिंचाई नही करनी चाहिए. क्योंकि इससे फसल खराब होने की संभावना बढ़ जाती है.
आखिरी पानी हो सके तो रात के टाइम में ही दें. क्योंकि उस दौरान दिन में तेज़ हवाएँ चलती हैं. जिससे पौधा बीज के वजन के कारण गिर सकता है. जिसे गेहूँ का दाना अच्छे से नही पकता और पैदावार को काटने में भी भारी समस्या का सामना करना पड़ता है.
खरपतवार नियंत्रण
गेहूँ की खेती में कई तरह की खरपतवार जन्म लेती हैं. जिनमें बथुआ, सैंजी, हिरनखुरी, जंगली गाजर और चटरी-मटरी मुख्य रूप से पाई जाती हैं. जो पौधे के विकास पर प्रभाव डालती हैं. छोटे किसान भाई गेहूँ खेती में खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई के माध्यम से ही करते हैं. नीलाई गुड़ाई से खरपतवार नियंत्रण सिर्फ छोटे खेतों पर किया जा सकता हैं. लेकिन अधिक क्षेत्रफल में सिर्फ रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण किया जाता है.
गेहूँ की खेती में रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण बीज बुवाई से पहले और बाद में किया जाता हैं. इसके लिए खेत में पेन्डीमेथालीन का छिडकाव बीज रुपाई के 5 से 10 दिन पहले करना चाहिए. और अगर फसल के उगाने के बाद भी खरपतवार अधिक मात्रा में दिखाई दे तो खेत में 2,4-डी इथाइल ईस्टर की उचित मात्रा का छिडकाव कर दें.
फसल को लगने वाले रोग
गेहूँ के पौधे पर कई तरह के रोग लगते हैं. जिसका असर इसकी पैदावार पर देखने को मिलता है.
पीला रतुआ
गेहूँ के पौधों पर ये रोग जनवरी माह में देखने को मिलता है. इस रोग की वजह से गेहूँ के पौधों की पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है. पत्तियों का पीला रंग पीले पाउडर की वजह से पड़ता है. ये पीला पाउडर पत्तियों को हाथ में लेने के बाद हाथ पर भी लग जाता है. इसके लगने पर कुछ पत्तियों पर पीली धारियां भी बनने लग जाती हैं. इस रोग की वजह से पौधा अच्छे से वृद्धि नही कर पाता. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी या पायराक्लोट्ररोबिन के दो छिडकाव 10 से 15 दिन के अंतराल में करने चाहिए.
करनाल बंट
पौधे पर ये रोग बाली आने के वक्त दिखाई देता हैं. इस रोग के लगने पर पौधे की बालियों से काला पाउडर निकलता है. ये एक बीज जनित रोग है जो पैदावार को ज्यादा नुक्सान पहुँचाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर प्रोपिकोनाजोल या मेन्कोजेब का छिडकाव करना चाहिए.
सहूँ रोग
पौधों पर ये रोग किसी भी अवस्था में देखने को मिल सकता हैं. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियां सिकुड़कर मुड़ी हुई दिखाई देती है. और बालियों में बीज काले रंग के दिखाई देते हैं. जो गांठ के रूप में नजर आते है. इस रोग के लगने पर पैदावार पर सीधा असर दिखाई देता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए प्रमाणित बीज को ही खेत में उगाये. अगर घर का बीज खेत में उगा रहे हो तो बीज को नमक से उपचारित कर खेत में उगायें.
दीमक
गेहूँ की फसल में दीमक का रोग अधिक देखने को मिलता है. दीमक का रोग पौधों में किसी भी अवस्था में देखने को मिल सकता है. इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में ताज़ा गोबर की खाद को नही डालना चाहिए. दीमक की रोकथाम के लिए खेत में बीज को बोने से पहले फिप्रोनिल से उपचारित कर लेना चाहिए. लेकिन खड़ी फसल में इस रोग के लगने पर इमिडाक्लोप्रिड 200 एस.एल. का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
पहाड़ी बंट
पौधों पर ये रोग उनके पकने की अवस्था में दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर पौधे आकार में छोटे रह जाते हैं. जो वक्त से पहले पक जाते हैं. और बालियों का रंग हरा दिखाई देता है. जब इसको दबाया जाता है तो काला पाउडर निकलता है. जिसमें से बदबू आने लगती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए बीज को एग्रोसन जी एन से उपचारित कर उगाना चाहिए. इसके अलावा प्रमाणित बीज को ही खेत में उगायें.
अंगमारी
अंगमारी रोग को पर्ण झुलसा के नाम से भी जाना जाता हैं. इस रोग के लगने पर पौधे के नाचे वाली पतीयों पर सफ़ेद रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. जो पत्ती के अधिकाँश भाग को ढक लेते हैं. जिससे पौधे का विकास रुक जाता है. इस रोग के लगने पर पौधे पर थिरम एवं डाइथेन जेड-78 का छिडकाव करना चाहिए.
फसल की कटाई
गेहूँ की कटाई बालों में दाने पकने बाद करनी चाहिए. इसके पके हुए दाने को चबाने पर अगर दाना कठोर लगे तो इसकी कटाई कर लेनी चाहिए. इसकी कटाई जमीन के बिलकुल पास से करनी चाहिए. गेहूँ की कटाई करने के बाद इसकी पुलियों को कुछ वक्त के लिए खेत में ही सुखाना चाहिए. जब इसके पौधे मोड़ने पर टूट जाएँ तब इन्हें मशीन ( थ्रेसर ) से निकलवा लेना चाहिए. गेहूँ के बीज को अच्छे से सुखाकर लम्बे टाइम तक भंडारित किया जा सकता है. गेहूँ को भंडारित करने के लिए उसमें नीम की पत्तियों को डालकर रखने से खराब नही होता. जिसका इस्तेमाल खाने में लम्बे टाइम तक किया जाता है. जबकि इसके भूसे का इस्तेमाल पशुओं के खाने के रूप में किया जाता है.
आजकल गेहूँ की कटाई मशीनों से की जा रही है. जिससे किसान भाइयों को गेहूँ को कटाने में लगने वाली मजदूरी से कम रूपये में उनकी फसल कट जाती है. और फसल खराब होने से भी बच जाती है.
पैदावार और लाभ
गेहूँ की फसल को अच्छे से देखभाल कर की जाए तो इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 50 से 60 क्विंटल तक आसानी से हो सकती है. और 80 से 90 क्विंटल भूसा पशुओं के लिए प्राप्त हो सकता है. गेहूँ का बाज़ार में थोक भाव 1700 रूपये प्रति क्विंटल के आसपास पाया जाता है. जिससे किसान भाई की एक बार में ही 80 हज़ार से एक लाख तक की कमाई आसानी से हो जाती है.
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7428838587
dhan lagane se pahle khet mein Kya lagana chahie jisse ek kharpat nahin nikale
9981161202
good
thainkyu sir