काजू की उन्नत खेती कैसे करें – Cashew Farming Information

काजू की खेती व्यापारिक तौर से बड़े पैमाने पर की जा रही है. काजू का इस्तेमाल कई तरह से किया जाता है. इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल खाने में किया जाता हैं. लोग काजू का इस्तेमाल लगभग सभी तरह की मिठाइयों में सजावट के तौर पर करते है. और काजू कतली पूरी तरह काजू को पीसकर ही बनाई जाती है. काजू का खाने के अलावा शराब ( मदिरा ) बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है.

काजू की खेती

काजू के अंदर बहुत सारे तत्व पाए जाते हैं. जो मनुष्य के शरीर के लिए बहुत उपयोगी होते हैं. काजू को सूखे मेवों में सबसे उपयोगी माना जाता है. काजू के पेड़ की लम्बाई 14 से 15 मीटर तक हो सकती हैं. इसका पेड़ रोपाई के तीन साल बाद फसल देना शुरू कर देता है. काजू के छिलकों का भी इस्तेमाल किया जाता है. इसके छिलकों से पेंट और लुब्रिकेंट्स तैयार किये जाते हैं. फिलहाल काजू की खेती किसान भाइयों के लिए फ़ायदेमंद साबित हो रही है.

काजू की खेती पहली बार ब्राजील में की गई थी. इसकी खेती ऊष्णकटिबंधिय स्थानों पर अच्छी पैदावार देती है. इसकी खेती के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. काजू की खेती समुद्र तल से 750 मीटर ऊँची जगहों पर की जा सकती हैं. फल लगने के दौरान इसकी पैदावार को नमी या सर्दी की जरूरत नही होती. क्योंकि नमी और सर्दी की वजह से इसकी पैदावार में कमी देखने को मिलती है.

अगर आप भी इसकी खेती करना चाहते हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

काजू की खेती के लिए समुद्र तटीय लाल और लेटराइट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. इस कारण भारत में इसकी सबसे ज्यादा पैदावार दक्षिण भारत के समुद्र तटीय इलाकों में की जाती है. समुद्र तटीय लाल और लेटराइट मिट्टी के अलावा इसकी खेती और भी कई तरह की मिट्टी में अच्छी देखभाल कर की जा सकती हैं. इसके लिए पश्चिमी भागों की बालू मिट्टी भी उपयोगी हैं.

जलवायु और तापमान

काजू की खेती के लिए ऊष्णकटिबंधिय जलवायु उपयुक्त होती हैं. इसकी खेती गर्म और आद्र जलवायु वाली जगहों पर अच्छी पैदावार देती हैं. इसके पौधे को ज्यादा बारिश की जरूरत होती हैं. इसके पौधों के लिए 600-4500 मिमी. वार्षिक वर्षा काफी होती है. सामान्य से अधिक गर्मी और सर्दी इसकी पैदावार को नुक्सान पहुँचाती हैं. सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसके फलों को नुक्सान पहुँचाता है.

काजू की खेती के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती हैं. इसके पौधे को शुरुआत में लगाने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. और जब पौधे पर फूल और फल लग रहे हो तब इसे शुष्क मौसम की जरूरत होती है. इसलिए फल पकने के दौरान 30 से 35 डिग्री तापमान उपयुक्त होता है. इससे ज्यादा तापमान होने पर फलों की गुणवत्ता में कमी देखने को मिलती है. और पौधे से फल टूटकर गिरने लगते हैं.

काजू की किस्में

काजू की कई तरह की किस्में मौजूद हैं. जिन्हें उच्च गुणवत्ता और पैदावार के हिसाब से उगाया जाता है.

बी पी पी 1

काजू की इस किस्म की खेती ज्यादातर पूर्वी समुद्र तटीय भागों में की जाती है. इस किस्म के एक पौधे से साल में 15 किलो काजू प्राप्त हो जाते हैं. जिनसे छिल्कन लगभग 30 प्रतिशत तक पाई जाती है. इसके एक बीज का वजन लगभग 5 ग्राम होता है. इसका पौधा एक बार लगाने के बाद लगभग 25 साल तक पैदावार देता है.

बी पी पी 2

इस किस्म की भी पैदावार पूर्वी समुद्र तटीय भागों में की जाती है. इसके पौधे से एक बार में 20 किलो के आसपास काजू प्राप्त होते हैं. इसके बीजों से छिल्कन लगभग 26 प्रतिशत तक पाई जाती है.

बी पी पी 1, 2 के अलावा इसकी बी पी पी 3, 4, 5, 6 किस्में भी हैं जिन्हें एक सामना वातावरण में उगाया जाता है. लेकिन इनकी पैदावार अलग अलग होती है.

वेंगुरला 1 – 8

काजू की इन किस्मों को पश्चिमी समुद्र तटीय भागों में उगाया जाता है. इन किस्मों का पौधा लगभग 28 से 30 साल तक पैदावार देता है. इनके एक पौधे से सालाना 23 से 25 किलो तक पैदावार ली जा सकती है. जिसके बीजों की छिल्कन 30 से 35 प्रतिशत तक होती है.

गोआ-1

काजू की इस किस्म को भी पश्चिमी समुद्र तटीय भागों में उगाया जाता है. इसके पौधे से एक बार में 25 किलो के आसपास काजू मिल जाते हैं. जिनके छिल्कन की मात्रा 25 से 30 प्रतिशत के बीच पाई जाती है.

वी.आर.आई 1 – 3

काजू की उन्नत किस्म

इन किस्मों का निर्माण तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा किया गया है. इनकी प्रति पौधे औसतन पैदावार 25 किलो के आसपास पाई जाती है. इन किस्मों को तमिलनाडु के अलावा और भी कई जगहों पर लगाया जा सकता हैं.

इन सभी के अलावा 4,5, वी आर आई- 1,2, उलाल- 1, 2, अनकायम 1, मडक्कतरा 1,2, धना , प्रियंका, कनका, अनक्कायम-1, बी ल ए 39-4, क 22-1 और एन डी आर 2-1 जैसी बहुत सारी किस्में मौजूद हैं.

खेत की जुताई

काजू की खेती के लिए पहले खेत में मौजूद सभी तरह के अवशेषों को ख़तम कर खेत की दो तिरछी गहरी जुताई करें. उसके बाद खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा कर खेत को समतल बना देते हैं. समतल बनाए गए खेत में उचित दूरी बनाते हुए पंक्तियों में गड्डे खोद दें. एक हेक्टेयर में लगभग 500 गड्डे तैयार किये जाते हैं. सभी गड्डो को चार मीटर की दूरी रखते हुए तैयार करें.

खेत में बनाए गए गड्डों में उचित मात्रा में गोबर की खाद डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. गोबर की खाद के अलावा कुछ रासायनिक खाद भी गड्डों में उचित मात्रा में मिला दें. सभी खाद को मिलाकर गड्डों की सिंचाई कर दें, और इन सभी गड्डों को ढक दें.

पौध तैयार करना

काजू के बीज को सीधा खेत में भी लगाया जा सकता है. लेकिन बीज से बनने वाले पौधे 6 से 7 साल बाद फल देना शुरू करते हैं. इस कारण इसके पौधों को हमेशा कलम लगाकर ही तैयार करना चाहिए. इसकी खेती के लिए इसके पौधे नर्सरी से भी खरीद सकते हैं और घर पर भी तैयार कर सकते हैं. लेकिन घर पर इनकी तैयार करने में ज्यादा वक्त लगता है इस कारण इसकी खेती के लिए पौध सरकार द्वारा रजिस्टर्ड नर्सरी से खरीदना चाहिए.

घर पर इनकी पौधा ग्राफ्टिंग तरीके से तैयार की जाती हैं. इसके लिए काजू के बीज को लगाने के बाद दो साल इंतजार करना पड़ता है. क्योंकि ग्राफ्टिंग में काम आने वाला पौधा डेढ़ से दो साल पुराना होना चाहिए. दो साल बाद काजू के पौधे को जमीन के पास कुछ उंचाई से काटकर उसे किसी जंगली पौधे के साथ लगाकर पॉलीथीन से बाँध दे. और जब पौधे अच्छे से विकास करने लगे तब उन्हें खेत में लगा दें. कलम द्वारा तैयार किया गया पौधा तीन साल बाद फल देना शुरू कर देता है.

ग्राफ्टिंग के अलावा बडिंग और गुटी बांधने की विधि का भी इस्तेमाल कलम बनाने में किया जा सकता है. इन विधि से तैयार की गई कलम के पौधे भी अच्छे से विकास करते हैं और तीन से चार साल में फल देना शुरू कर देते हैं. कलम द्वारा पौध बनाने के लिए मार्च और अप्रैल का महीन सबसे उपयुक्त होता हैं. क्योंकि इस दौरान बनाई गई कलमों को बारिश के मौसम में उगाया जा सकता है.

पौध रोपण का तरीका और टाइम

काजू की पौध तैयार करने के बाद इन्हें खेत में बनाए गड्डों में लगाया जाता है. इसके लिए गड्डों को एक महीने पहले तैयार कर उन्हें ढक दिया जाता है. और जब पौधे को खेत में लगाने का टाइम आता है तब इन्हें खोलकर गड्डों में मौजूद खरपतवार को गुड़ाई कर बाहर निकाल दें. और गड्डों के बीच में एक और छोटे आकार का गड्डा तैयार कर उसमें पौधे को लगा दें. पौध को गड्डे में लगाने के बाद उसे चारों तरफ से अच्छे से मिट्टी से दबा दें.

काजू के पौधों को बारिश के मौसम में उगाना चाहिए. बारिश के मौसम में इन्हें खेत में उगाने से पौधों को शुरूआती सिंचाई की जरूरत नही होती. बारिश के मौसम में इनकी वृद्धि अच्छे से होती है और पौधा जल्द बड़ा होता है.

उर्वरक की मात्रा

काजू के पौधे को पोषक तत्वों की ज्यादा जरूरत होती है. इसलिए इसके पौधों को विकास करने के लिए उर्वरक की उचित मात्रा जरूरी होती है. काजू के पौधों को खेत में लगाने से पहले 10 से 15 किलो पुरानी गोबर की खाद गड्डों में डालकर उन्हें भर देना चाहिए. इसके अलावा गड्डों में लगभग आधा किलो एन.पी.के. की मात्रा डालकर मिट्टी में मिला दें. ये सभी मात्रा गड्डों में पौधे के लगाने से एक महीने पहले डाली जाती है. एक महीने पहले डालने से मिट्टी में खाद के पोषक तत्व अच्छे से मिल जाते हैं. और मिट्टी अपघटित हो जाती है, जो पौधे के लिए बहुत उपयोगी बन जाती है.

पौधे के लगाने के एक साल बाद पौधे की हल्की गुड़ाई कर फिर से खाद की मात्रा पौधे की जड़ों के पास डाल दें. और हर साल उर्वरक की मात्रा में उचित वृद्धि कर पौधों को देने पर अच्छी पैदावार मिलती है. और पौधा अच्छे से विकास करता है.

पौधों को सिंचाई

बारिश के मौसम में लगाने की वजह से इसके पौधों को शुरूआती सिंचाई की जरूरत नही होती है. बारिश के मौसम के बाद इसके पौधे की सर्दियों में 10 से 12 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए. और गर्मी के मौसम में तीन से चार दिन के अंतराल में इसकी सिंचाई करना अच्छा होता है.

जब पौधे पर फूल बन रहे हो तब पौधे को पानी कम मात्रा में दें. क्योंकि ज्यादा पानी देने पर फूल झड़ने लग जाते हैं. इसके फलों को पकने के लिए शुष्क मौसम की जरूरत होती हैं. इस कारण फूल से फल बनने तक इसके पौधों की 10 से 15 दिन के अंतराल में हलकी सिंचाई करनी चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण

काजू की खेती में खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई के माध्यम से करना अच्छा होता है. इसलिए पौधों की पहली गुड़ाई एक से डेढ़ महीने बाद कर देनी चाहिए. उसके बाद आगे की गुड़ाई 2 से 3 महीने के अंतराल में करनी चाहिए. साल में पौधे की तीन से चार गुड़ाई करने पर पौधा अच्छी पैदावार देता है. जब बारिश का मौसम समाप्त हो जाए तब खेत में पंक्तियों के बीच शेष बचे भाग की जुताई कर नई उगने वाली खरपतवार को ख़तम कर दें.

अतिरिक्त कमाई

काजू के पौधों को तीन से चार मीटर की दूरी पर पंक्तियों में लगाया जाता हैं. और काजू का पौधा खेत में लगाने के तीन से चार साल बाद पैदावार देना शुरू करता है. इस दौरान किसान भाई बीच में बची अपनी भूमि पर दलहन और सब्जियों की फसल उगाकर अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं.

पौधे की देखरेख

काजू के पौधे को खेत में लगाने के बाद जब पौधे में शाखाएं बनना शुरू हो तब पौधे पर दो मीटर पर बनने वाली सभी शाखाओं को नष्ट कर दें. इससे पौधे का अच्छा ढांचा तैयार होता है. जिससे पौधे का जल्द और अच्छे तरीके से विकास होता है. फल की तुड़ाई के बाद पौधे से सुखी हुई डालियों की काटकर हटा देना चाहिए. इससे नई शाखाओं का निर्माण होता है.

पौधों को लगने वाले रोग

काजू के पौधे को कई तरह के रोग लगते हैं जो पौधे और फलों को नुक्सान पहुँचाते हैं. जिसके कारण पैदावार कम मिलती हैं. अच्छी पैदावार लेने के लिए इन रोगों से पौधे को बचाकर रखा जाता है.

स्टेम बोरर

रोग लगा काजू

स्टेम बोरर रोग को तना छेदक के नाम से भी जाना जाता है. इस रोग के किट पौधे और फलों  को बहुत ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं. स्टेम बोरर का लार्वा पौधे के तने को अंदर से खाकर उसे खोखला कर देता हैं. जिससे पौधा जल्द ही नष्ट हो जाता है. इस दौरान पौधे के तने पर छिद्र दिखाई देते हैं. इन छिद्रों को चिकनी मिट्टी के लेप या कैरोसिन में रुई भिगोकर छिद्रों पर लगाने से इसका कीट अंदर ही मर जाता है.

टी मास्किटो बग

काजू के पौधों में टी मास्किटो बग रोग बड़ी समस्या हैं. इस रोग के किट पौधे के नर्म भाग पर आक्रमण करते हैं. ये कीट नई शाखा, पत्ती और कोपल का रस चूसकर उन्हें नष्ट कर देती हैं. जिससे पौधे का विकास रुक जाता हैं. पौधे पर ये रोग किसी भी अवस्था में पाया जा सकता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर पहले मोनोक्रोटोफास का छिडकाव करें और उसके कुछ दिन बाद दो बार कर्वेरिल का छिडकाव करें.

लीफ माइनर

लीफ माइनर किट का लार्वा पौधों की पत्तियों का रस चूसकर उन्हें नुक्सान पहुँचाता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर सफ़ेद रंग की धारियां दिखाई देती हैं. और कुछ दिनों बाद पौधे की पत्तियां पीली पड़कर नष्ट हो जाती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर डूरिवो मिश्रण का छिडकाव करें.

शूट कैटरपिलर

शूट कैटरपिलर का लार्वा सबसे पहले पौधे की पत्तियों पर आक्रमण करता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर काले धब्बे दिखाई देते हैं. जो धीरे धीरे आकार में बड़े होते जाते हैं. और कुछ दिनों बाद पत्ती सुखकर गिर जाती है. जिससे पौधे का विकास रुक जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर नीम के तेल का छिडकाव करना चाहिए.

रूट बोरर

पौधे पर ये रोग सबसे ज्यादा नुक्सान पहुँचाता है. ये रोग पौधे पर किसी भी अवस्था में लग सकता है. इस रोग के किट पौधा की जड़ों में रहकर उसको खाते हैं. जिससे पौधा धीरे धीरे मुरझाने लगता है. और कुछ दिनों बाद सुखकर नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे की जड़ों में मेटाराइजियम का छिडकाव करना चाहिए.

फलों की तुड़ाई

काजू की सफाई

काजू के पोधो पर फूल आने में 3 साल लगते है . फूल आने के बाद काजू के फल दो महीने में पककर तैयार हो जाते हैं. काजू के फलों को कैश्यू एप्पल कहा जाता है. जिनके नीचे काजू की गिरी किडनी के आकार में होती है. इसके फल पकने के बाद गिरी के उपर से लाल पीले दिखाई देने लगते हैं. काजू की पेड़ से तोड़ी हुई गिरी जहरीली होती है. जिसको प्रॉसेसिंग के माध्यम से खाने योग्य बनाई जाती है. इसके फलों की छटाई कर उन्हें धूप में तीन से चार दिन सुखाने के बाद प्रॉसेसिंग के लिए तैयार किया जाता है.

पैदावार और लाभ

काजू का पौधा एक बार लगाने के बाद कई सालों तक पैदावार देता है. जिनको लगाते वक्त ही ज्यादा खर्च आता है. पौधे के लगाने के बाद इसके रखरखाव पर ज्यादा खर्च नही होता. एक हेक्टेयर में लगभग 500 पौधे आसानी से लगाए जा सकते हैं. एक पौधे से औसतन 20 किलो काजू प्राप्त होते हैं. इनकी एक हेक्टेयर में पैदावार लगभग 10 टन तक हो जाती है. जबकि इसका बाज़ार में थोक भाव लगभग 20 रूपये किलो के आसपास पाया जाता है. जिससे किसान भाइयों की एक बार में 2 लाख से ज्यादा की कमाई आसानी से हो जाती है. काजू के प्रॉसेसिंग में खर्चा अधिक होता है. लेकिन प्रॉसेसिंग के बाद इसका बाज़ार भाव कई गुना बढ़ जाता है.

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