नीलगिरी (यूकलिप्टस) की खेती कैसे करें – सफेदा से हो सकती है अच्छी कमाई!

नीलगिरी के पौधे को सफेदा और यूकलिप्टस के नाम से भी जाना जाता है. इसकी वर्तमान में 300 से भी ज्यादा प्रजातियाँ मौजूद हैं. इसका पौधा 80 मीटर से भी ज्यादा लम्बाई का हो सकता है. नीलगिरी की खेती मुख्य रूप से व्यापारिक इस्तेमाल के लिए की जाती है. नीलगिरी की लकड़ी का इस्तेमाल पलाईवुड, ईंधन, खम्भा, टिम्बर, बायोमास और तेल के रूप में किया जाता है.

नीलगिरी की खेती

नीलगिरी की लकड़ी से कागज़ की लुगदी भी बनाई जाती है. नीलगिरी की पूर्ण विकसित हुई लकड़ियों का इस्तेमाल फर्नीचर बनाने में किया जाता है. सफेदा का पौधा जल्दी वृद्धि करता है. इसका पौधा 8 से 10 साल में पूर्ण रूप से तैयार हो जाता है. जबकि पौधे को लगाने के चार साल बाद इसे बल्लियों और ईंधन के लिए काटा जा सकता है. सफेदे की लकड़ियों में एक विशेष प्रकार का तेल पाया जाता है. जिसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाइयों में किया जाता हैं. ये तेल बहुत ज्यादा ज्वलनशील होता हैं.

नीलगिरी के पौधे को उष्ण और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र का पौधा माना जाता है. लेकिन इसको किसी ख़ास जलवायु की जरूरत नही होती. भारत में इसको किसी भी तरह की जलवायु में आसानी से उगाया जा सकता है. इसका पौधा उच्च तापमान को भी सहन कर सकता है. इसकी खेती क्षारीय जमीन में नही की जा सकती.

अगर आप भी नीलगिरी की खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

सफेदा की खेती के लिए उचित जल निकासी और जैविक तत्वों से भरपूर मिट्टी की जरूरत होती हैं. इसकी खेती के लिए क्षारीय भूमि उपयुक्त नही होती. क्षारीय भूमि में इसका पौधा अच्छे से विकास नही कर पाता. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

सफेदा की खेती के लिए किसी ख़ास जलवायु की जरूरत नही होती. इसका पौधा सर्दी, गर्मी और बरसात तीनों ही मौसम में आसानी से विकास कर सकता हैं. लेकिन शुरुआत में इसके पौधे को सर्दियों में पड़ने वाले पाले से बचाकर रखना चाहिए. सफेदा के पौधे को ज्यादा बारिश की भी जरूरत नही होती.

सफेदा का पौधा सामान्य तापमान पर अच्छे से वृद्धि करता है. इसका पौधा सर्दियों में 8 डिग्री से कम और गर्मियों में 40 डिग्री से अधिक तापमान पर भी आसानी से रहा सकता है. शुष्क मौसम इसकी वृद्धि में सहायक होता है.

उन्नत किस्में

उन्नत किस्म का पौधा

सफेदा की कई किस्में मौजूद हैं. जिनकी लम्बाई 30 मीटर से लेकर 99.6 मीटर तक पाई जाती हैं. सेंचुरियन और कोस्ट रेडवुड अब तक की सबसे लम्बी प्रजाति के पौधे हैं. भारत में इन प्रजातियों के पौधे नही मिलते. भारत में सफेदा की मुख्य रूप से 6 प्रजातियाँ पाई जाती है. जिनकी अधिकतम उंचाई 80 मीटर तक होती हैं. इन किस्मों में नीलगिरी ऑब्लिक्वा, नीलगिरी डेलीगेटेंसिस, नीलगिरी डायवर्सीकलर, नीलगिरी निटेंस, नीलगिरी ग्लोब्युल्स और नीलगिरी विमिनैलिस प्रमुख हैं. इन सभी को भारत के विभिन्न हिस्सों में उगाया जाता हैं.

खेत की जुताई

सफेदा की खेती के लिए शुरुआत में खेत की पलाऊ की सहायता से गहरी जुताई करें. उसके बाद खेत में कल्टीवेटर चलाकर दो तिरछी जुताई कर दें और खेत में पाटा मार दें. जिससे खेत समतल हो जाए. खेत समतल होने के बाद 5 फिट की दूरी पर एक फिट चौड़ाई और गहराई के गड्डे पंक्तियों में तैयार कर लें. प्रत्येक पंक्तियों के बीच 5 से 6 फिट की दूरी रखे.

सफेदा की पौध को खेत में लगाने से पहले गड्डों में उचित मात्रा में गोबर की खाद डालकर उसे मिट्टी में मिला दें. इसके अलावा इन गड्डों में 200 ग्राम एन.पी.के. की मात्रा डालकर उसे भी मिट्टी में मिला दें और गड्डों की सिंचाई कर दें. इन गड्डों को पौध लगाने से लगभग 20 दिन पहले तैयार किया जाता हैं.

पौध तैयार करना

सफेदा के पौधे को बीज और पौध दोनों रूप में उगाया जा सकता हैं. लेकिन बीज से पौधे को तैयार होने में ज्यादा वक्त लगता है. इस कारण इसकी पौधों को नर्सरी में तैयार किया जाता हैं. पौध तैयार होने के बाद उन्हें खेतों में लगाया जाता है.

सफेदा की पौध तैयार करने के लिए इसके बीजों को पॉलीथीन में उगाया जाता है. जिसमें गोबर खाद मिली मिट्टी भरी होती हैं. इसकी पौध 5 से 6 महीने में रोपाई के लिए तैयार हो जाती हैं. लेकिन एक साल पुरानी पौध ही खेत में लगानी चाहिए.

पौध लगाने का तरीका और टाइम

नीलगिरी के पौधे

नीलगिरी की पौध को नर्सरी में तैयार करने के बाद उसे गड्डों में लगाया जाता हैं. गड्डों में इन पौध को बारिश के मौसम में लगाना सबसे उपयुक्त होता है. बारिश के मौसम में लगाने पर पौधों को शुरूआती सिंचाई की जरूरत नही पड़ती और पौधा अच्छे से विकास करता हैं. जहाँ सिंचाई की उचित व्यवस्था हो वहां इसकी पौध फरवरी माह में लगा सकते हैं.

गड्डों में पौध लगाने से पहले पौध को गोमूत्र से उपचारित कर लेना चाहिए. उसके बाद गड्डों में एक और छोटा गड्डा बनाकर उसमें पौध को लगाना चाहिए. इन छोटे गड्डों की मिट्टी को क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी से उपचारित कर लेना चाहिए. जिससे पौधे पर जड़ गलन जैसे रोग ना लग पायें. पौधे को गड्डे में लगाने के बाद उसे चारों तरफ से अच्छे से मिट्टी से दबा दें.

पौधे की सिंचाई

नीलगिरी के पौधे की रोपाई बारिश के मौसम में करते हैं. इस कारण पौधे को पहली सिंचाई की जरूरत नही होती. लेकिन अगर इसकी रोपाई बारिश के मौसम से पहले करते हैं तो पौधे की पहली सिंचाई पौध लगाने के तुरंत बाद कर देनी चाहिए. उसके बाद बारिश के मौसम तक पौधे की 40 से 50 दिनों के अंतराल में सिंचाई कर दे. और बारिश के मौसम के बाद भी पौधे की 50 दिन के अंतराल में सिंचाई करें. इसके पौधे को साल में 5 से 6 सिंचाई की ही जरूरत होती है. लेकिन अगर सिंचाई की उचित व्यवस्था हो तो इसकी साल में 12 सिंचाई भी कर सकते हैं. इससे पौधा अच्छे से वृद्धि करता है.

उर्वरक की मात्रा

नीलगिरी के पौधे को ज्यादा उर्वरक की जरूरत नही होती. इसके पौधे को शुरुआत में खेत में लगाते वक्त 8 से 10 किलो गोबर के पुराने खाद की जरुरत होती हैं. गोबर की खाद के अलावा पौधे को 200 ग्राम एन.पी.के. खाद भी देना चाहिए. इससे पौधा अच्छे से वृद्धि करता है. अगले वर्षों के लिए एन.पी.के. और गोबर की खाद की मात्रा को पौधे की उम्र बढ़ने के हिसाब से बढ़ा देनी चाहिए.

पौधे की देखरेख

नीलगिरी के पौधे को ज्यादा देखभाल की जरूरत नही होती. लेकिन पौधे की लम्बाई बढानें के लिए शुरुआत से ही पौधे से निकलने वाली सभी शाखाओं को हटा दें. इससे पौधा अच्छे से विकास करता हैं. और पौधे को तैयार होने में भी काफी कम वक्त लगता है. क्योंकि सहायक शाखाओं के हटाने पर पौधे को मिलने वाले पोषक तत्व पौधे की वृद्धि में बढ़ावा देने में सहायक होते हैं.

खरपतवार नियंत्रण

नीलगिरी के पौधों के लिए शुरुआत में खरपतवार नियंत्रण करना अच्छा होता हैं. शुरुआत में खरपतवार नियंत्रण करने से पौधे को पोषक तत्व उचित मात्रा में मिलते हैं. जिससे पौधा अच्छे से वृद्धि करता है. नीलगिरी के पौधे की पहली साल में तीन बार गुड़ाई कर देनी चाहिए. और बारिश के मौसम के बाद पौधों के बीच शेष बची जमीन को जोतकर उसमें जन्म लेने वाली खरपतवार को नष्ट कर दें.

अतिरिक्त कमाई

नीलगिरी के पौधे को तैयार होने में 8 से 10 साल का वक्त लगता हैं. और नीलगिरी के पौधों को खेत में 5 फिट की दूरी पर लगाया जाता हैं. इसलिए दो पंक्तियों के बीच शेष बची जमीन में किसान भाई औषधीय या मसाला फसल उगाकर आर्थिक परेशानियों से बच सकता है. इससे किसान भाई की अतिरिक्त कमाई भी हो जाएगी.

पौधे को लगने वाले रोग

नीलगिरी के पौधे को बहुत कम रोग लगते हैं. लेकिन कुछ रोग ऐसे भी हैं जो पौधे को बहुत ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं.

झुलसा

दीमक का रोग

पौधों पर ये रोग भी गर्मियों के मौसम में दिखाई देता हैं. इस रोग के लगने पर पत्तियां झुलसकर गिर जाती हैं. जिससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर बाविस्टीन या इंडोफिल एम 45 का छिडकाव करना चाहिए.

दीमक

नीलगिरी के पौधे पर दीमक का प्रकोप किसी भी वक्त दिखाई दे सकता है. इसके लगने पर पौधे की शाखाएं और पत्तियां मुरझाने लगती हैं. और इसका प्रकोप बढ़ने पर पौधा सुख जाता हैं. इस रोग के लगाने पर पौधे की जड़ों में क्लोरोपायरीफॉस का छिडकाव करना चाहिए.

पिंक रोग

पौधे पर ये रोग ज्यादातर गर्मियों की शुरुआत में लगता हैं. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर पीले रंग के चित्ते बन जाते हैं, जो उभरे हुए दिखाई देते हैं. इस रोग के लगने पर पत्तियां खराब होकर गिरने लगती हैं. और शाखाएं भी नष्ट होना शुरू हो जाती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर गर्मियों के मौसम से पहले दो बार बोर्डो मिश्रण का छिडकाव करना चाहिए.

पेड़ों की कटाई

नीलगिरी (सफेदा) का पौधा 8 से 10 साल बाद काटने के लिए तैयार हो जाता हैं. इसकी कटाई नवम्बर से फरवरी माह के बीच करनी चाहिए. इसके अलावा बारिश के मौसम में भी इसकी कटाई करना अच्छा होता हैं. क्योंकि इस दौरान लकड़ी के गट्ठे अच्छे बनते हैं.

इसकी कटाई दो से तीन चरणों में कर सकते हैं. अगर लकड़ी का इस्तेमाल बल्लियों और ईंधन बनाने के लिए करना है तो इन्हें 4 से 5 साल बाद काट सकते हैं. लेकिन अगर कागज़ के लिए लुगदी बनानी हो तो इसकी कटाई 8 साल का बाद करनी चाहिए. और फर्निचर बनाने के लिए इसकी कटाई 10 से 12 साल बाद करनी चाहिए.

पैदावार और लाभ

नीलगिरी (सफेदा) का पौधा पूर्णरूप से तैयार होने में 10 से 12 साल का टाइम लेता हैं. इसकी लकड़ी का थोक भाव 2 से 6 रूपये प्रति किलो तक पाया जाता हैं. एक हेक्टेयर में लगभग ढाई से तीन हज़ार पौधे आसानी से लगाए जा सकते हैं. और एक पौधे का वजन 400 किलो तक पाया जाता है. जिससे किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से 20 लाख तक की कमाई आसानी से कर सकता हैं.

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