किसी भी जीवित चीज ( मनुष्य, पशु-पक्षी, जानवर, पेड़-पौधे ) को विकास करने के लिए पोषक तत्वों को जरूरत होती है. जो उन्हें भोजन के रूप में मिलता है. इन पोषक तत्वों के सही इस्तेमाल करने से ही सभी चीजें अच्छे से विकास करती हैं. क्योंकि इनकी कमी या अधिकता दोनों ही इनके विकास को काफी ज्यादा प्रभावित करती हैं. बात करें किसी भी तरह की फसल के बारें में तो किसी भी फसल के अंकुरण होने से लेकर उसके पौधे के विकास होने और पैदावार देने तक मुख्य रूप से 16 तरह के पोषक तत्वों की जरूरत होती हैं. जो पौधे की जड़ें भूमि से ग्रहण कर पौधों तक पहुँचाती हैं. जिससे पौधों के विकास और उत्पादन दोनों में बढ़ोतरी देखने को मिलती है.
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भूमि में इन सभी 16 तरह के पोषक तत्वों की कमी या अधिकता होने पर पौधों का विकास अच्छे से नही हो पाता है. और पौधे रोगग्रस्त भी हो जाते हैं. आज हम आपको इन सभी 16 तरह के पोषक तत्वों के भूमि में उपयोग और उनके कार्यों के बारें में बताने वाले हैं. ताकि आप अपनी फसलों में उचित मात्रा में इनका इस्तेमाल कर अच्छा उत्पादन ले सकें.
पौधों की आवश्यकता के आधार पर पोषक तत्वों को तीन वर्गों में बांटा गया है.
- मुख्य पोषक तत्व – मुख्य पोषक तत्व पौधों के विकास के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होते हैं. मुख्य पोषक तत्वों में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश को शामिल किया गया है.
- गौण पोषक तत्व – गौण पोषक तत्वों की जरूरत पौधों को सामान्य रूप से होती है. गौण पोषक तत्वों में कैल्सियम, मैग्नीशियम और गन्धक जैसे तत्व शामिल होते हैं.
- सूक्ष्म पोषक तत्व – सूक्ष्म पोषक तत्वों को पोधों को काफी कम जरूरत होती है. क्योंकि पौधे इनका इस्तेमाल काफी कम करते हैं. जिनमें जिंक, कॉपर, मैंगनीज और आयरन जैसे तत्व पाए जाते हैं.
नाइट्रोजन
नाइट्रोजन पौधों के विकास के लिए मुख्य पोषक तत्व के रूप में कार्य करता है. जिसकी जरूरत पौधों को शुरुआत से लेकर आखिरी तक होती है. इसकी पूर्ति पौधों को उर्वरक देकर की जाती हैं. जिनमें यूरिया, एन.पी.के. और डी.ए.पी. जैसे उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाता है.
- पौधों में नाइट्रोजन की मात्रा का इस्तेमाल पौधों के सभी भागों (जड़, तना, पत्ती) के विकास के लिए जरूरी होता है.
- इसके उचित इस्तेमाल से पौधों का अच्छा विकास होता है. इसकी कमी या अधिकता दोनों ही पौधों का विकास प्रभावित करती हैं. इसका इस्तेमाल जब पौधे की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती हैं तब किया जाता है.
- नाइट्रोजन का बार बार इस्तेमाल हरे चारे और हरे पत्ते वाली फसलों के लिए बहुत उपयोगी होता है.
- यह क्लोरोफिल, प्रोटो प्लाज्मा, प्रोटीन और न्यूक्लिक अमल का मुख्य अवयव है.
पौधों में नाइट्रोजन की कमी के प्रभाव
- नाइट्रोजन की कमी की वजह से पौधों का विकास रुक जाता है.
- पौधे की पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगता हैं.
- पौधों में बनने वाले फूल और फल काफी कम संख्या में बनते हैं. जिनका आकार भी छोटा दिखाई देता है.
फास्फोरस
फास्फोरस पौधों के विकास के लिए मुख्य तत्व के रूप में कार्य करता है. इसकी कमी होने से पौधों की उपज कम प्राप्त होती है.
- फास्फोरस का इस्तेमाल पौधों के द्वारा उन पर फूल और फल बनने के वक्त किया जाता है. फूल और फल बनने के दौरान फास्फोरस की कमी होने से पौधों पर फूल और फलों की मात्रा कम पाई जाती हैं.
- इसका इस्तेमाल पौधों में कोशिका विभाजन और जड़ों के विकास के लिए सहायक माना जाता है.
- यह न्यूक्लिक, प्रोटीन, फास्फोलिपिड और अमीनों अम्ल का मुख्य अवयव है.
पौधों में फास्फोरस की कमी के प्रभाव
- पौधों की जड़ों का विकास कम होता है और पौधों का विकास रुक जाता है.
- पुरानी पत्ती सिरों के पास से सूखने लगती हैं. जिनका रंग बैंगनी और पीला दिखाई देता है.
- पौधों पर फल काफी कम मात्रा में लगते हैं. और अनाज वाली फसलों में दानो का आकार छोटा और कम मात्रा में प्राप्त होते हैं.
- अधिक मात्रा में कमी होने पर पौधों का तना पीला दिखाई देने लगता है.
पोटेशियम
पोटेशियम का इस्तेमाल रबी की फसलों में मुख्य अवयव के रूप में किया जाता है. इसके इस्तेमाल से पौधों की गुणवत्ता में सुधार देखने को मिलता है.
- पोटेशियम के इस्तेमाल से पौधों के दानो का आकार बड़ा हो जाता है. और उनकी गुणवत्ता में भी वृद्धि देखने को मिलती हैं.
- पोटेशियम ठण्डे और नमीयुक्त मौसम में पौधों के द्वारा प्रकाश के उपयोग की वृद्धि दर को बढ़ा देता है. जिससे पौधों में ठंड के मौसम और अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है.
- इसके इस्तेमाल से पौधों में रोग प्रतिरोधकता की क्षमता बढ़ जाती है.
पौधों में पोटेशियम की कमी के प्रभाव
- पौधों में पोटेशियम की कमी की वजह से पौधे की पत्ती सिरों पर से झुलसी हुई दिखाई देने लगती हैं. जो शुरुआत में सिरों पर से भूरी दिखाई देने लगती हैं.
- इसकी कमी की वजह से पौधे की नई पत्तियों का आकार छोटा दिखाई देने लगता है.
- पौधे का तना कमजोर हो जाता है. और पौधों में रोग लगने की संभावना बढ़ जाती हैं.
- इसके अलावा पौधों में इसकी कमी की वजह से पौधे पर फल और दानो का विकास अच्छे से नही होता.
कैल्शियम
कैल्शियम का इस्तेमाल गौण पोषक तत्व के रूप में किया जाता है. जो पौधों के विकास में सहायक होता है.
- कैल्शियम पौधों में कोशिका झिल्ली की स्थिरता बनाये रखता और एंजाइमों की क्रियाशीलता को बढ़ा देता है. जिससे पौधों का विकास जल्दी से होता है.
- यह पौधों में पाए जाने वाले वाले जैविक अम्लों को उदासीन बना देता है. जिससे उनका जहरीला गुण कमजोर हो जाता है.
- इसके अलावा पौधों में यह कार्बोहाइड्रेट के स्थानांतरण में काफी सहायक होता है.
पौधों में कैल्शियम की कमी के प्रभाव
- इसकी कमी का प्रभाव पौधे की नई पत्तियों पर सबसे पहले देखने को मिलता है. इसकी कमी की वजह से पत्तियां अनियमित आकार और गहरे हरे रंग की दिखाई देने लगती हैं.
- इसकी कमी की वजह से जड़ें गलने और सड़ने लगती हैं. जिससे फसल को काफी नुक्सान होता है.
- इसकी कमी की वजह से पौधे की कलियाँ और पुष्प फल बनने से पहले ही गिरकर नष्ट हो जाते हैं. और पौधे का तना काफी कमजोर हो जाता है.
मैग्नीशियम
किसी भी पौधों के विकास के लिए उन्हें भोजन प्रदान करने वाला ये एक मुख्य तत्व है. क्योंकि इसकी कमी की वजह से पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नही कर पाते हैं. जिससे पौधों को भोजन नही मिल पाता हैं.
- मैग्नीशियम कार्बोहाइड्रेट के उपापचय और न्यूक्लिक अम्ल के संश्लेषण में भाग लेने वाले एंजाइमों की कार्यशीलता को बढ़ा देता है. जिससे पौधे अच्छे से विकास करते हैं.
- मैग्नीशियम पौधों में फास्फोरस की मात्रा का संचारण (स्थानान्तरण) और अवशोषण का कार्य करता है.
पौधों में मैग्नीशियम की कमी के प्रभाव
- मैग्नीशियम की कमी की वजह से पौधों पर शुरुआत में पीले धब्बे दिखाई देने लगते हैं. अधिक कमी के होने पर पत्तियां सूख जाती हैं.
- पौधे की शाखाएं कमजोर पड़ जाती हैं. और उन पर फफूंद जनित रोग दिखाई देने लगता है.
- सब्जी वाली फसलों में नसों के बीच पीले धब्बे बन जाते हैं. जो रोग बढ़ने के बाद चमकीले लाल, गुलाबी दिखाई देने लगते हैं.
गंधक
गंधक एक गौण पोषक तत्व है जिसकी जरूरत पौधों को काफी कम मात्रा में होती है.
- घुलनशील गंधक का इस्तेमाल पौधों में रोग रोकथाम के रूप में किया जाता है.
- गंधक पौधों में प्रोटीन संरचना को स्थिर बनाए रखता है.
- इनके अलावा गंधक पौधों में तेल संश्लेषण और क्लोरोफिल निर्माण में सहायक के रूप में काम करता है.
पौधों में गंधक की कमी के प्रभाव
- गंधक की कमी की वजह से शुरुआत में ही पौधे की नई पत्तियां पीली दिखाई देने लगती हैं.
- पौधे का विकास रुक जाता है. और तना पतला दिखाई देने लगता है.
जस्ता
जस्ता का इस्तेमाल पौधों के विकास में सहायक होता है. जो अन्य पोषक तत्वों के के साथ सहायक के रूप में काम करता हैं. पौधे जस्ता का इस्तेमाल काफी कम मात्रा में करते हैं.
- जस्ता फास्फोरस और नाइट्रोजन के उपयोग में सहायक के रूप में काम करता है.
- जस्ता पौधों में न्यूक्लिक अम्ल और प्रोटीन संश्लेषण के साथ साथ हामोर्नों के जैव संश्लेषण के रूप में कार्य करता हैं.
पौधों में जस्ता की कमी के प्रभाव
- पौधों में जस्ता की कमी का प्रभाव मक्का और धान जैसी फसलों में अधिक देखने को मिलता है. इसकी कमी की वजह से धान के पौधों की पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जो एक महीने बाद सुख जाते हैं.
- मक्के के पौधे इसकी कमी की वजह से उसकी पत्तियों पर शुरुआत में हल्की पीली धारियां बन जाती हैं. जो अधिक कमी होने पर बाद में सफ़ेद भूरे या पीले रंग के धब्बों में बदल जाती हैं.
तांबा
तांबा को कॉपर के नाम से जाना जाता है. जो 16 पोषक तत्वों में सूक्ष्म पोषक तत्व के रूप में कार्य करता है. इसका इस्तेमाल पौधे सामान्य रूप से करते हैं.
- कॉपर पौधों में विटामिन ए के निर्माण के सहायक के रूप में कार्य करते हैं.
- इसके अलावा यह अनेक प्रकार के एंजाइमों के घटक के रूप में कार्य करता है.
पौधों में कॉपर की कमी के प्रभाव
- इसका प्रभाव गेहूं की फसल में अधिक देखने को मिलता है. इसकी कमी की वजह से पौधे की नई पत्तियां पीली दिखाई देने लगती हैं. और उनके किनारे फट जाते हैं.
- इसकी कमी के कारण पौधों के तने की गाठों के बीच का भाग छोटा दिखाई देता है.
आयरन
आयरन पौधों के विकास में सहायक सूक्ष्म तत्व के रूप में कार्य करता है. आयरन पौधों में पायें जाने वाले तत्वों के साथ कार्य कर उनके विकास को बढाता है.
- आयरन पौधों में न्यूक्लिक अम्ल के उपापचय में मुख्य भूमिका निभाता है.
- आयरन पौधों में क्लोरोफिल के संश्लेषण के सहायक के रूप में कार्य करता हैं.
पौधों में आयरन की कमी के प्रभाव
- इसकी कमी की वजह से शुरुआत में पौधे की पत्तियों की मध्य शिरा के पास से पत्तियां पीली दिखाई देने लगती हैं.
- अधिक कमी होने पर पत्तियां पीली होकर समय से पहले ही गिर जाती हैं.
बोरॉन
बोरॉन सूक्ष्म पोषक तत्व के रूप में पौधों के विकास में सहायक के रूप में कार्य करता है. यह पौधों के प्रोटीन के संश्लेषण के रूप में काम करता है.
- बोरॉन पौधों में कोशिका विभाजन और पौधों द्वारा कैल्शियम के अवशोषण को प्रभावित करता है.
- यह पौधों में एंजाइमों की क्रियाशीलता में परिवर्तन करता है.
पौधों में बोरॉन की कमी के प्रभाव
- इसकी कमी की वजह से पौधे के शीर्ष भाग सूखने लगते है. और पत्तियां मुड़कर काफी सख्त हो जाती हैं. और पौधे पर फूल और फल नही बनते.
- इसकी कमी की वजह से पौधे की जड़ों का विकास रुक जाता है. अधिक कमी होने से जड़ों फट जाती हैं.
मैंगनीज
मैंगनीज का इस्तेमाल सूक्ष्म पोषक तत्व के रूप में किया जाता है. जो मिट्टी के अंदर उसके पी.एच. मन को कम करने के रूप में कार्य करता है.
- मैंगनीज पौधों की पादप कोशिकाओं में रात और दिन दोनों समय में होने वाली क्रियाओं को संरक्षित होने का कार्य करती हैं.
- यह पौधों में कार्बोहाइड्रेट के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप कार्बन ऑक्साइड और जल का निर्माण करता है.
पौधों में मैंगनीज की कमी के प्रभाव
- इसकी कमी की वजह से शुरुआत में पौधे की पत्तियां मध्य से पीली दिखाई देने लगती है. जो बाद में पूरी तरह नष्ट हो जाती हैं.
- इसकी कमी का असर अनाज फसलों में अधिक देखने को मिलता है.
मोलिब्डेनम
मोलिब्डेनम एक सूक्ष्म पोषक तत्व है जो भूमि में पाया जाता है. मोलिब्डेनम पौधों में कई तरह के एंजाइमों के मुख्य कारक के रूप में कार्य करता हैं.
- मोलिब्डेनम पौधों में नाइट्रोजन के यौगिकीकरण का कार्य करता हैं. जो पौधों के राइजोबियम जीवाणु के आवश्यक होता है.
पौधों में मोलिब्डेनम की कमी के प्रभाव
- इसकी कमी की वजह से फूलगोभी सब्जी की फसल की पत्तियां फट जाती हैं.
- इसकी कमी की वजह से पत्तियां सुखकर अंदर की और मुड़ने लगती हैं.
क्लोरीन
क्लोरीन पौधों में एक सूक्ष्म तत्व के रूप में कार्य करता हैं. यह पौधों में कई तरह के हार्मोन की आपूर्ति करता है.
- क्लोरीन पौधों में एंजाइमों की क्रियाशीलता में परिवर्तन करता है.
पौधों में क्लोरीन की कमी के प्रभाव
- क्लोरिन की कमी की वजह से पौधे की पत्तियों का अग्रभाग मुरझा जाता है.
- अधिक कमी होने पर पत्तियां लाल पडकर सुख जाती हैं.
इनके अलावा निकल, सिलिकॉन और सोडियम भी सूक्ष्म तत्व के रूप में उपयोग आते हैं. जो पौधे भूमि से ही ग्रहण करते हैं. इनकी मात्रा भूमि हमेशा मौजूद रहती हैं. इनकी जरूरत पौधे मिट्टी से पूरी कर लेते हैं. जो पौधों के विकास में सहायक होती हैं.