अरंडी की फसल खरीफ के मौसम में उगाई जाती है और रबी के मौसम में पूर्णरूप से काटी जाती है. क्योंकि इसके बीज लम्बे वक्त तक पकते रहते हैं. अरंडी की खेती सिर्फ व्यापारिक लाभ के लिए की जाती है. अरंडी के बीज के अंदर 40 से 60 प्रतिशत तेल पाया जाता है. जिसका इस्तेमाल साबुन, कपड़ा रंगाई, हाइड्रोलिक ब्रेक तेल, प्लास्टिक, चमड़ा और वार्निश जैसे और भी कई उद्ध्योंगों में किया जाता है.
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अरंडी का तेल 0 डिग्री से भी कम तापमान पर नही जमता. इस कारण इसका इस्तेमाल फार्मास्यूटिकल्स और विमानन में किया जाता है. भारत अरंडी का सबसे बड़ा निर्यातक देश है. भारत अरंडी का निर्यात 60 से 80 प्रतिशत तक विश्व के अन्य देशों को करता है.
अरंडी की खेती शुष्क और आद्र जलवायु में पैदावार अच्छी देती है. इसका पौधा अधिक तापमान को भी आसानी से सहन कर लेता है. भारत में इसका उत्पादन पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा 60 % किया जाता है. इसके सबसे बड़े उत्पादक राज्य गुजरात, तेलंगाना, राजस्थान और हरियाणा शामिल हैं.
उपयुक्त मिट्टी
अरंडी की खेती किसी भी तरह की मिट्टी में की जा सकती है. इसकी खेती के लिए उचित जल निकासी वाली जमीन की जरूरत होती हैं. अरंडी के पौधे को उर्वरक की ज्यादा आवश्यकता नही होती, इस कारण इसकी खेती बंज़र जमीन में भी की जा सकती हैं. अरंडी की खेती क्षारीय भूमि में नही की जा सकती. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच 5 से 6 के बीच होनी चाहिए.
जलवायु और तापमान
अरंडी का पौधा शुष्क और आद्र जलवायु में अच्छी पैदावार देता हैं. लेकिन अब इसकी खेती लगभग सभी तरह की जलवायु में की जा रही है. अरंडी के पौधे की जड़ें गहराई में जाती हैं. इस कारण इसका पौधा कम बारिश होने पर भी आसानी से वृद्धि कर सकता हैं. सर्दियों में पड़ने वाले पाले की वजह से इसके पौधे की वृद्धि और पैदावार पर फर्क देखने को मिलता है.
अरंडी का पौधा सामान्य तापमान पर ज्यादा पैदावार देता हैं. लेकिन जब इसकी फसल पककर तैयार होती है तो उस वक्त इसके पौधे को अधिक तापमान की जरूरत होती है.
उन्नत किस्में
अरंडी के पौधे की कई तरह की किस्में बाज़ार में मौजूद हैं. लेकिन इन सभी किस्मों को दो प्रजातियों में रखा गया है. जिसे संकर और साधारण प्रजाति के नाम से जाना जाता है.
साधारण प्रजाति
साधारण प्रजाति की किस्मों को देशी किस्म भी कहा जाता है. इस किस्म की फसल को पकने में ज्यादा दिनों का वक्त लगता हैं. और पैदावार भी कम होती हैं.
ज्योति
अरंडी की इस किस्म को राजस्थान ने सबसे ज्यादा उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे को पककर तैयार होने में लगभग 140 से 160 दिन का वक्त लगता हैं. इसकी प्रति एकड़ हेक्टेयर 14 से 16 क्विंटल तक पाई जाती है. इसके पौधे की ऊंचाई 8 फिट के आसपास होती है. इसके बीजों पर काटों की मात्रा ज्यादा पाई जाती है.
अरुणा
अरंडी की इस किस्म का पौधा लगभग 170 दिन बाद पैदावार देना शुरू करता हैं. इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 15 से 20 क्विंटल तक पाई जाती है. इस किस्म के बीजों में तेल की मात्रा 52 % के आसपास पाई जाती है. इसकी पैदावार उत्तर भारत के कुछ राज्यों में ही की जाती है.
भाग्य
अरंडी की इस किस्म के पौधे लगभग 150 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं. इनकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 25 क्विंटल के आस पास पाई जाती है. अरंडी की इस किस्म पर सफ़ेद मक्खी का प्रभाव बहुत कम देखने को मिलता है. इसके बीजों में तेल की मात्रा 54 प्रतिशत तक पाई जाती है.
क्रांति
अरंडी की इस किस्म के पौधे 180 दिन से भी ज्यादा दिनों में पककर तैयार होते हैं. इनकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 18 क्विंटल के आसपास पाई जाती है. इसके बीजों में तेल की मात्रा 50 प्रतिशत तक पाई जाती हैं. इसके पौधे की लम्बाई 5 से 10 फिट तक होती है. इस किस्म के पौधे पर उकठा रोग बहुत कम लगता हैं.
ज्वाला 48-1
अरंडी की इस किस्म को दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में अधिक उगाया जाता है. इसका पौधा पूर्ण रूप से पकने में 160 से 190 दिन का वक्त लेता हैं. इसकी प्रति हेक्टेयर औसत पैदावार 18 क्विंटल के आसपास पाई जाती है. इस किस्म के बीजों पर कांटे बहुत कम आते हैं. इसके बीजों में तेल की मात्रा 49 प्रतिशत तक पाई जाती हैं.
संकर प्रजाति
संकर प्रजाति की किस्में साधारण प्रजाति की किस्मों से ज्यादा पैदावार देती हैं. इन किस्मों को बीटी किस्मों के नाम से भी जाना जाता हैं. वर्तमान में अरंडी की संकर किस्मों को बड़ी मात्रा में उगाया जा रहा है.
आर एच सी 1
अरंडी की इस किस्म को सिंचित और असिंचित दोनों जगहों पर उगाया जाता है. इसके बीजों का रंग हल्का चॉकलेटी होता हैं. जिन पर काटें की मात्रा ज्यादा पाई जाती हैं. इसके बीजों को पूर्ण रूप से पकने में 100 दिन से भी ज्यादा दिन का वक्त लगता हैं. इस किस्म की औसत पैदावार 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के आसपास रहती है.
जी सी एच 4
अरंडी की इस किस्म के पौधे 90 से 110 दिन में तैयार हो जाते हैं. जिनकी प्रति एकड़ पैदावार 20 क्विंटल से भी ज्यादा पाई जाती है. इसके बीजों में तेल की मात्रा 48 प्रतिशत तक ही पाई जाती है. इसके दाने का रंग भूरा और तने का रंग लाल होता है. इस किस्म के पौधों पर उकठा और जड़ विलगन जैसे रोग नही लगते. इसके फलों पर काँटे की मात्रा बहुत कम पाई जाती है.
डी सी एस 9
अरंडी की ये भी एक उन्नत किस्म है. इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 25 से 27 क्विंटल के आसपास होती है. इसके बीजों में तेल की मात्रा 48 प्रतिशत तक पाई जाती है. इस किस्म के पौधे 120 दिन तक फल देना शुरू कर देते हैं. इस किस्म के पौधे पर उकठा रोग बहुत कम लगता है.
खेत की जुताई
अरंडी की खेती के लिए जमीन की गहरी जुताई अच्छी होती है. इसके पौधे की जड़ें जमीन में अधिक गहराई में जाती हैं. जिससे पौधा मजबूत होता है. इसकी खेती के लिए खेत की पहली जुताई पलाऊ लगाकर करें. उसके बाद खेत में दो से तीन तिरछी जुताई करें. उसके बाद खेत की जुताई नमी की अवस्था में करें, जिससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है.
बीज लगाने का तरीका और टाइम
इसके बीज की बुवाई सिड ड्रिल मशीन से चार फिट की दूरी पर पंक्ति में की जाती है. पंक्ति में बीज से बीज के बीच दो से ढाई फिट की दूरी रखी जाती है. जबकि छोटे किसान भाई इसकी रोपाई हाथों से करते हैं. एक हेक्टेयर के लिए साधारण किस्म का बीज 20 किलो और संकर किस्म का 11 से 15 किलों बीज काफी होता है. बीज को खेत में लगाने से पहले उसे कार्बेन्डाजिम से उपचारित कर लेना चाहिए.
अरंडी की पूर्ण फसल 250 दिन की होती हैं. इसके बीजों की बुवाई के लिए जून, जुलाई का महीना सबसे उपयुक्त होता है. क्योंकि इस वक्त बारिश का मौसम होने की वजह से इसके बीजों को अंकुरित होने के लिए सिंचाई की जरूरत नही होती.
खेत की सिंचाई
अरंडी की बुवाई बारिश के मौसम में की जाती है. जिस कारण इसकी फसल को शुरूआती पानी की कोई जरूरत नही होती. लेकिन बारिश के मौसम के समाप्त होने के बाद इसकी सिंचाई 18 से 20 दिन के अंतराल में करनी चाहिए. अरंडी के पौधों की सिंचाई अगर जल्दी कर दी जाती है तो पौधे की जड़ें गहराई में नही जाती है. जिस कारण इसके पौधे को बाद में ज्यादा सिंचाई की जरूरत पड़ती है. इसलिए इसकी सिंचाई आवश्यकता के अनुसार ही करनी चाहिए.
उर्वरक की मात्रा
अरंडी की खेती के लिए शुरुआत में 15 से 20 गाडी पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर उसे मिट्टी में मिला दें. अरंडी की खेती एक तिलहन फसल है. इस कारण इसके बीजों में तेल की मात्रा बढ़ाने के लिए सल्फर 20 किलो प्रति हेक्टेयर और जिप्सम 200 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालें. उसके बाद एन.पी.के. की 40 किलो मात्रा प्रति एकड़ के हिसाब से खेत की गहराई में मशीन के माध्यम से डाल दें. उसके लगभग एक महीने बाद 20 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालें.
खरपतवार नियंत्रण
अरंडी की खेती के लिए शुरुआत में पौधे के पास खरपतवार ना उगने दें. इसके पौधों पर शुरुआत में खरपतवार का असर दिखाई देता है. खरपतवार नियंत्रण के लिए खेत की शुरुआत में दो से तीन नीलाई गुड़ाई कर दें. जब पौधा बड़ा हो जाए और खुद के नीचे की जमीन को ढक लें. उसके बाद इसको नीलाई गुड़ाई की जरूरत नही होती. खेत में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक तरीके से भी किया जा सकता है. इसके लिए खेत में बीज रोपाई से पहले पेंडीमेथालिन का छिडकाव करना चाहिए.
पौधे को लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
अरंडी के पौधे में कई तरह के रोग लगते हैं. जिनकी रोकथाम समय पर ना की जाए तो पैदावार बहुत कम मिलती है.
झुलसा रोग
पौधे पर इस रोग के लक्षण मध्य अवस्था में देखने को ज्यादा मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर अलग अलग आकर के धब्बे बनने लग जाते हैं. धीरे धीरे इन धब्बों का आकर बढ़ने लगता है. जिससे पौधे को सूर्य का प्रकाश अच्छे से नही मिल पाता है. और पत्तियां सुखकर गिरने लग जाती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर मैन्कोजेब की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
उकठा रोग
उकठा रोग ज्यादातर फूल आने के वक्त पौधों पर दिखाई देता है. पौधे को ये रोग फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरियम नामक फफूंदी की वजह से होता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है. और पौधा मुरझाने लगता है. जिसके कुछ दिन बाद पौधा नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में गोबर की खाद के साथ उचित मात्रा में ट्राइकोडर्मा विरिडी मिलाकर छिडकाव करें.
सफेद मक्खी रोग
पौधों में ये रोग पत्तियों पर लगता हैं. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों के नीचे की सतह पर सफ़ेद छोटे छोटे किट नजर आते हैं. ये किट पत्तियों का रस चूसकर उन्हें खराब कर देते हैं. इस रोग के लगने पर पौधे पर नीम के तेल का छिडकाव करना चाहिए. इसके अलावा निम्बीसिडीन का छिडकाव भी पौधों पर कर सकते हैं.
फसल की कटाई
जब पौधे पर आने वाले सीकरों ( बिज़ के टिंडे ) का रंग पीला या भूरा दिखाई देने लगे तब उनकी कटाई कर लेनी चाहिए. क्योंकि ज्यादा सुखाने पर इसके चटकने का डर रहता है. जिसका असर पैदावार पर भी देखने को मिलता है. सिकरे को काटकर तेज़ धुप में सूखा लेते हैं. उसके बाद मशीन की सहायता से इनके बीजों को निकाल लेते हैं.
पैदावार और लाभ
अरंडी के बीजों की बाज़ार में बहुत ज्यादा मांग है. इसकी बाज़ार में कीमत लगभग 5 हज़ार के आसपास होती है. जबकि एक हेक्टेयर से इसकी औसत पैदावार 25 क्विंटल तक हो जाती है. जिससे किसान भाइयों की एक बार में एक से सवा लाख तक की कमाई हो जाती है.