पशुपालन और खेती दोनों एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं. आज खेती के साथ साथ पशुपालन का काम हर किसान भाई करता है. आज पशुपालन किसानों के लिए आजीविका का मुख्य स्रोत बन चुका है. जिसे काफी किसान भाई अब एक व्यवसाय के रूप में करने लगे हैं. लेकिन किसी भी तरह के पशुपालन का व्यवसाय करने से पहले उसके बारें में सम्पूर्ण जानकारी हासिल कर ही उसे व्यावसायिक रूप देना चाहिए. क्योंकि बिना किसी जानकारी के आप पशुपालन में काफी ज्यादा नुक्सान भी उठा सकते है. किसी भी तरह के पशुपालन के दौरान पशुओं की उन्नत नस्ल और उनकी बिमारियों के बारें में पूरी जानकारी भी होना जरूरी है. ताकि समय आने पर आप अपने व्यवसाय को अधिक नुक्सान से बचा सके.
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पशुपालन के रूप में बात करें भैंस पालन के बारें में तो भैंस पालन का काम कई बरसों पुराना है आज गावों में रहने वाला हर किसान भाई भैंस का पालन जरुर करता हैं. लेकिन भैंस के रखने मात्र से सम्पूर्ण जानकारी किसी को नही होती हैं. इसलिए पशुपालन के रूप में भैंस पालन का व्यवसाय करने के लिए पहले भैंस के बारें में सम्पूर्ण जानकारी होनी चाहिए. जिसमें पशुओं को होने वाली बीमारियाँ और उनकी नस्लों के बारें में पता होना चाहिए. इन सभी की जानकारी आज हम आपको देने वाले हैं.
भैंस पालन शुरू करने के लिए आवश्यक मूलभूत चीजें
किसी भी व्यवसाय को शुरू करने के लिए पहले कुछ आवश्यक चीजों की जरूरत पड़ती हैं. उसी तरह भैंस पालन को शुरू करने के लिए भी काफी मूलभूत चीजों की जरूरत होती है.
जमीन
पशुपालन शुरू करने के लिए सबसे पहले मुलभुत चीजों के रूप में जमीन का सबसे पहले होना जरूरी होता है. अगर किसी किसान भाई के पास खुद की जमीन ना हो तो वो किराए पर भी जमीन ले सकता हैं. भैंस पालन के दौरान जमीन की जरूरत पशुओं की संख्या के आधार पर होती है. एक पशु को रहने के लिए काफी जगह की आवश्यकता होती है.
अगर किसान भाई एक या दो भैसों को रखकर ही इसका व्यवसाय शुरू करना चाहता है तो आपको अधिक जगह की जरूरत नही होगी. किसान भाई दो या तीन भैसों के साथ पशुपालन व्यवसाय अपने घर पर भी आसानी से कर सकता है. लेकिन अगर आप इसे बड़े रूप में करना चाहते है तो आपको जगह की ज्यादा जरूरत होगी. एक भैंस को रोज़ दिन में दो बार परिवर्तित कर रखना पड़ता है. इसके लिए एक भैंस कम से कम औसतन 100 वर्ग फिट जगह को घेरती है.
पशु को रखने के लिए बाड़े का निर्माण
जमीन के बाद बात करें जगह की स्थिति के बारें में तो जगह अच्छी तरह सुखी हुई और भुरभुरी होनी चाहिए. क्योंकि गीली मिट्टी में पशु को कई तरह की बीमारी हो सकती हैं. साथ ही पशु की दुग्ध उत्पादन क्षमता भी घट जाती है. जिससे भैंस पालन के व्यवसाय में हानि देखने को मिलती है. इसलिए बड़ी जगह पर भैंस पालन शुरू करने के लिए उसे ऊपर से ढककर बंद कर दें. और चारों तरफ से खुला रहने दें. ताकि गर्मियों के मौसम में पशुओं को अधिक गर्मी का सामना ना करना पड़े.
भैंस पालन के लिए बाड़े का निर्माण मौसम के आधार पर करना चाहिए. बाड़े के निर्माण के दौरान बड़े का निर्माण इस तरह करें की सर्दियों के मौसम में उसे चारों तरफ से बंद किया जा सके और गर्मियों के मौसम में उसे आसानी से खोला का सके.
पशुओं के लिए संतुलित आहार
जिस तरह किसी भी प्राणी के विकास के लिए संतुलित आहार का होना जरूरी होता है. उसी तरह भैसों को के विकास के लिए भी संतुलित आहार का होना काफी जरूरी होता है. संतुलित आहार के रूप में पशुओं को कई चीजें दी जाती हैं. एक पूरी बड़ी दुधारू भैंस को रोजाना लगभग तीन से चार किलो दाना ( दाने के रूप में गेहूँ, जौ, बाजरा, मक्का या अन्य अनाज ) मौसम के अनुसार देना चाहिए. दाने को हमेशा चक्की की सहायता से छोटे टुकड़ों में तोड़कर ही देना चाहिए. इसके अलावा खल और चोकर भी उचित मात्रा में दी जाती हैं.
संतुलित आहार तैयार करना
पशुओं को दिया जाने वाला संतुलित आहार बनाने के लिए मौसम में अनुसार गेहूँ, मक्का, जौ और बाजरे की लगभग 32 – 32 किलो मात्रा को छोटे टुकड़ों में तोड़कर आपस में मिला दें. इसके अलावा खल के रूप में सरसों, मूंगफली या अलसी की खल की लगभग 32 से 35 किलो मात्रा को भी दानों में मिला दें. उसके बाद प्राप्त मिश्रण में एक किलो नमक मिला दें. इस तरह प्राप्त उक्त मिश्रण में 32 किलो के आसपास चोकर (चुरी) जो गेहूं, चना और दालों से तैयार होती है, उसे मिश्रण में मिला दें. इन सभी के मिलाने से तैयार मिश्रण एक महीने तक एक पशु को दिन में दो बार गर्म कर दिया जाता है. जिसे उचित भागों में बाँट लेना चाहिए.
पानी की व्यवस्था
पशुपालन के दौरान बाकी पशुओं से ज्यादा पानी की जरूरत भैसों को होती है. क्योंकि भैसों को रोज़ निल्हाना पड़ता है. साथ भैसों को गाय और बकरी से ज्यादा पीने के लिए पानी की आवश्यकता होती है. जिसके लिए पशुपालन वाली जगह पर पानी की उचित व्यवस्था बनाने के लिए पम्प का होना जरूरी होता है. या फिर एक बड़े कुंड नुमा बना देना चाहिए.
उन्नत नस्ल की भैसें
भैंस की काफी सारी उन्नत नस्लें मौजूद है. जिन्हें क्षेत्रिय हिसाब से अधिक दूध देने और सुंदर दिखाई देने के लिए तैयार किया है.
मुर्रा
मुर्रा नस्ल की भैंस की उत्पती का स्थान रोहतक, हरियाणा को माना जाता है. इस नस्ल की भैसों की प्रतिदिन दुग्ध उत्पादन क्षमता 12 से 20 लीटर तक पाई जाती है. इस नस्ल की भैसों का रंग गहरा काला पाया जाता है. जिसकी पूंछ, सिर और पैर पर सुनहरी रंग के बाल पाए जाते हैं. इनका सिर पतला और सिंग गोल जलेबी की तरह मुड़े हुए होते हैं. इस नस्ल की भैसों की पूंछ लम्बी पाई जाती है. इसके दूध में प्रोटीन की मात्रा 7 प्रतिशत पाई जाती है. इस नस्ल के पशुओं के दो ब्यांत के बीच का अंतराल 400 से 500 दिन के बीच पाया जाता है.
सुरती
भैंस की ये नस्ल गुजरात में पाई जाती है. इन नस्ल की भैसें कम भूमि या भूमि हिन किसानों के लिए उपयुक्त होती है. क्योंकि इसके खाने पर खर्च कम होता है. इस नसल के पशु आकार में छोटे पाए जाते हैं. जिनका रंग भूरा काला या सिल्वर सलेटी होता है. इस नस्ल के पशुओं का मुख लम्बा पाया जाता है. और आँखें बहार की तरफ निकली हुई दिखाई देती हैं. इसके सींगों का आकार कम गोलाकार होता है. इस नस्ल की भैंस एक ब्यांत में 900 से 1300 लीटर दूध देती है.
जाफराबादी
भैंस की यह एक अधिक दूध देने वाली नस्ल है. जो गुजरात में पाई जाती है. जिसका उद्गम स्थान कच्छव, जामनगर जिला है. इस नस्ल की भैंस की लम्बाई अधिक पाई जाती हैं. जिनके सिंग नीचे की तरफ बढ़कर गोल घूमते हैं. इस नस्ल के पशुओं का मुख काफी छोटा होता है. और सिर पर सफ़ेद टिका पाया जाता हैं. इस नस्ल के पशु एक ब्यांत में 2500 लीटर तक दूध देती है.
संबलपुरी
संबलपुरी भैंस सबसे ज्यादा दूध देने वाली नसल है. इस नस्ल के पशु आकार में बड़े दिखाई देते हैं. इस नस्ल की भैंस के पैर नीचे से भूरे दिखाई देते हैं और इनका सिर भी भूरा पाया जाता है. इस नस्ल के पशुओं की ख़ास पहचान इनके सींग होते हैं. जो दराती के आकार में ऊपर की तरफ उठे हुए होते है. इस नस्ल की भैसें एक ब्यांत में औसतन 2600 लीटर दूध देती है. इस नस्ल का उद्गम स्थान उड़ीसा का सम्बलपुर जिला है.
गोदावरी
गोदावरी नस्ल की भैंसों को ग्रेडिंग अप तकनीकी से बनाया गया है. इस नस्ल की भैसें आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिले में पाई जाती हैं. जो मुर्रा नस्ल के नर से तैयार की गई हैं. इस नस्ल के दूध में वसा की मात्रा ज्यादा पाई जाती है. इस नस्ल के पशुओं में प्रजनन क्षमता सालाना पाई जाती हैं. जिनकी प्रति ब्यांत औसतन दुग्ध उत्पादन क्षमता 2100 से लेकर 2500 लीटर तक पाई जाती है.
इनके अलावा और भी कई किस्में हैं, जिन्हें अलग अलग क्षेत्रों के आधार पर पाला जाता हैं. जिनमें नागपुरी, मेहसाना, तराई, टोड़ा और साथकनारा जैसी कई नस्लें शामिल हैं.
भैंस के प्रजनन के दौरान उनकी देखरेख
भैंस पालन के दौरान पशुओं के बयाने के दौरान उन्हें अच्छी देखरेख की जरूरत होती है. जो मौसम के अनुसार की जाती है. अधिक सर्दी के मौसम में भैंस के बयाने पर पशु और नए जन्मे बच्चे को अधिक सुरक्षा की जरूरत होती है. क्योंकि नई ब्याई भैंस को सर्दी लगने की वजह से उसकी दुग्ध उत्पादन क्षमता कमजोर हो जाती है. और उसके रोग भी लग जाता है. इसके अलावा पशु के ब्याने से पूर्व उसे एक किलो देशी घी और एक किलो सरसों का तेल देने से पशु को प्रजनन के दौरान कठिनाई का सामना नही करना पड़ता.
नवजात शिशु (काटड़े) के जन्म लेने के बाद उसके मुख को साफ कर देना चाहिए. और सुंड (नाभि के नीचे पाया जाने वाला नाडू) को चार से पांच सेंटीमीटर नीचे धागे से बांधकर काट देना चाहिए. जिसके बाद सुंड के सूखने तक उसका पक्षी और पशुओं से बचाव करना चाहिए. इसके अलावा शुरुआत में लगने वाले टिके भी तुरंत लगवा देना चाहिए.
भैंस पालन शुरू करने में लागत और सरकारी अनुदान
पशुपालन को छोटे रूप में शुरू करने के लिए लगभग चार या पांच लाख तक की जरूरत होती है. क्योंकि आज एक भैंस की कीमत के बारें में बात करें तो एक सामान्य भैंस भी 50 हजार से कम की नही होती. ऐसे में अगर किसान भाई चार या पांच भैसों के साथ पशुपालन करना चाहता है तो उसे कम से कम चार या पांच लाख की जरूरत होती है. जो पशु खरीदने और उसके रहने और खाने के लिए उपयोग में लिए जाते हैं.
भैंस पालन शुरू करने के लिए सरकार की तरफ से भी आर्थिक मदद दी जाती है. जिसमें सरकार की तरफ से दी जाने वाली मदद की राशि अनुसूचित जाती, अनुसूचित जनजाति के लिए अधिक और बाकी के लिए कम रुपये दिए जाते हैं. अनुसूचित जाती, अनुसूचित जनजाति के लोगों को एक भैंस की खरीद पर 23300 और बाकी श्रेणी के लोगों को 17750 दिए जाते हैं. इसकी अधिकतम राशि डेढ़ लाख तक होती हैं.
भैंस पालन के लाभ
भैंस पालन के दौरान सीधा भैंस के दूध को बेचकर लाभ कमाया जा सकता है. इसके अलावा दूध ना बचकर उसका घी निकालकर भी अच्छी कमाई की जा सकती हैं. इसके अलावा लगभग सभी नस्लों के बच्चे तीन से चार साल बाद प्रजनन के लिए तैयार हो जाते हैं. जिससे तीन साल बाद ही पशुओं की कुल संख्या दुगनी के करीब हो जाती हैं. जिन्हें बेचकर अच्छा मुनाफा मिलता है.
भैसों में लगने वाली बीमारियाँ
भैसों में कई तरह की बीमारियाँ देखने को मिलती हैं. जिनकी उचित समय पर देखभाल ना की जाये तो भैंस पालन में अधिक नुक्सान देखने को मिलता है.
गलघोटू रोग
भैसों में गलघोटू रोग संक्रमण के माध्यम से फैलता है. जो मुख्य रूप से बारिश के मौसम दिखाई देता हैं. इसके लगने से पशुपालक को अधिक नुक्सान का सामना करना पड़ता हैं. क्योंकि पशुओं इस रोग के लगने पर पशुओं की मृत्यु बहुत जल्द हो जाती है. इस रोग के लगने से पशुओं को तेज़ बुखार आता है और उनके मुख से लार टपकने लगती है. पशु खाना पीना बंद कर देता है. जिसके कारण जल्द ही पशु की मृत्यु हो जाती है. पशु को इस रोग से बचाने के लिए उचित समय पर उसका टीकाकरण करवा लेना चाहिए. और रोग के लक्ष्ण दिखाई देने पर तुरंत चिकित्सक को दिखाना चाहिए.
मुंहपका खुरपका
भैंसों में मुंहपका खुरपका रोग काफी खतरनाक रोग है. इस रोग के लगने से पशुओं की बहुत जल्दी मृत्यु हो जाती हैं. इस रोग के लगने पर पशु खाना कम कर देता है. उसको बुखार आने लगता हैं. मुख में छाले बन जाते हैं. कुछ दिनों बाद छाले घाव में बदल जाते हैं. खुरपका रोग बह्दने पर पशु लंगडाकर चलता है. रोग के बढ़ने पर पशु खड़ा होना बंद कर देता है. इसकी रोकथाम के लिए पशु में रोग दिखाई देने के तुरंत बाद उसे चिकित्सक को दिखाना चाहिए. और समय समय पर इसका टीका करण करवाते रहना चाहिए.
पैरों का गलना
भैसों में पैर गलन का रोग गर्म और नमी वाले वातावरण में अधिक देखने को मिलता हैं. यह रोग पशुओं में कीटाणु के माध्यम से फैलता है. इस रोग के कीटाणु पशु के पैरों की त्वचा में चले जाते हैं. जिससे पशुओं के पैर सूजने लगते हैं और उनसे चला नही जाता. इसकी रोकथाम के पशुओं के घाव पर नीला थोथा के घोल को डालना चाहिए.
भैंस पालन के दौरान सावधानियां
- पशुओं को गीली मिट्टी में अधिक समय तक ना रखे. इसके लिए मिट्टी सूखी हुई होनी चाहिए.
- पशुओं में टीकाकरण उचित समय पर करवाते रहना चाहिए.
- पशुओं में रोग दिखाई देने पर तुरंत चिकित्सक को दिखाना चाहिए.
- पशुओं को भोजन उचित मात्रा में देना चाहिए.
- नए पशु को खरीदते वक्त स्वस्थ और अच्छी नस्ल के दुधारू पशु को खरीदना चाहिए.
Nice post
हम भी पसु पालन करना चाहते हैं
I like
me bhains palna chahta hoon
Main buffolo palan karna chahte hai