गेहूँ की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम

गेहूँ को रबी की फसल के रूप में सर्दियों के मौसम में लगाया जाता हैं. इसकी रोपाई बीज के माध्यम से की जाती है. चावल के बाद गेहूँ भारत की मुख्य खाद फसल हैं. इसकी फसल में कीट, फफूंद और जीवाणु जनित रोग पौधे के अंकुरण के वक्त से ही काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं. गेहूँ की फसलों में लगने वाले इन शुरूआती रोगों का बचाव बीजों को उपचारित कर भी किया जा सकता हैं. आज हम आपको गेहूँ की खेती में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम के बारें में बताने वाले हैं.

गेहूँ की फसल में रोग

दीमक


गेहूँ के पौधों में दीमक का प्रभाव बीजों के अंकुरण से लेकर फसल के तैयार होने तक दिखाई दे सकता हैं. लेकिन बीजों के अंकुरण और फसल के पकने के दौरान इसका प्रभाव अधिक देखने को मिलता है. इस रोग के कीट पौधे की जड़ों पर आक्रमण कर पौधे को अंकुरित होने से पहले ही नष्ट कर देते हैं.

रोकथाम

  1. इसकी रोकथाम के लिए बीजों की रोपाई से पहले उन्हें फिप्रोनिल 5 एफ.एस. की 6 मिलीलीटर प्रति किलो की दर से उपचारित कर लेना चाहिए.
  2. इसके अलावा जिस खेत में दीमक का प्रभाव अधिक हो उस खेत में गोबर की खाद का इस्तेमाल नही करना चाहिए.
  3. खड़ी फसल में इस रोग दिखाई देने पर इमिडाक्लोप्रिड 200 एस.एल. का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

पीला रतुआ


गेहूँ के पौधों में लगने वाला पीला रतुआ का रोग पौधे के विकास के दौरान देखने मिलता ही. इस रोग के लगने पौधे की पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगता है. और पत्तियों पर हाथ फिराने पर हाथ पर पीले रंग का पाउडर जमा हो जाता हैं. इस रोग के लगने से पौधे अच्छे से विकास नही कर पाते हैं.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर प्रोपिकोनाजोल की 500 मिलीलीटर मात्रा को पानी में मिलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करने.
  2. गेहूँ की बुवाई टाइम पर करनी चाहिए. और फसल में दिए जाने वाले उर्वरक को उचित मात्रा में ही खेतों में डालना चाहिए.

चूर्णिल आसिता


चूर्णिल आसिता को चूर्ण फफूंदी के नाम से भी जाना जाता है. इस रोग के लगने पर पौधों पर सफ़ेद रंग का पाउडर जमा हो जाता हैं. जो शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर दिखाई देता है. लेकिन रोग बढ़ने की अवस्था में सम्पूर्ण पौधे पर फैल जाता हैं. जिससे पौधा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देता हैं. और उसका विकास रुक जाता है.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. की 500 मिलीलीटर मात्रा को पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करना चाहिए.
  2. इसके अलावा पौधों पर सल्फर की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

पहाड़ी बंट


गेहूँ की फसल में पहाड़ी बंट रोग का प्रभाव बालियों के पकने के दौरान दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर पौधे समय से पहले पककर तैयार हो जाते हैं. और पौधों का आकार भी छोटा रह जाता हैं. इसके अलावा रोगग्रस्त पौधे की बालियों का रंग हरा दिखाई देता है. जो फैली हुई होती हैं. जिनको दबाने पर उनमें से काला पाउडर निकलता है. जिसमें से बहुत बुरी दुर्गंध आती हैं.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए बीजों की रोपाई से पहले उन्हें एग्रोसन जी एन या गोमूत्र से उपचारित कर लेना चाहिए.
  2. इसके अलावा उत्तम किस्म के प्रमाणित बीजों को ही खेतों में उगाना चाहिए.

पर्ण झुलसा


गेहूँ के पौधों में लगने वाले पर्ण झुलसा रोग को अंगमारी के नाम से भी जाना जाता हैं. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधों की नीचे वाली पतीयों पर पीले भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. रोग के बढ़ने पर ये पत्ती के अधिकाँश भाग को ढक लेता हैं. जिससे पौधों को सूर्य का प्रकाश अच्छे से नही मिल पता और पौधे विकास करना बंद कर देते हैं.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए मैन्कोजेब की दो किलो मात्रा या प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. की 500 मिलीलीटर मात्रा को पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से पौधों पर छिडकना चाहिए.
  2. इसके अलावा थिरम एवं डाइथेन जेड-78 का छिडकाव भी रोग की रोकथाम के लिए उपयुक्त होता है.

सेहूं रोग


गेहूँ के पौधों में लगने वाला यह रोग सूत्र कर्मी के द्वारा लगता हैं. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियां सिकुड़कर मुड जाती है. इस रोग के लगने से पौधों से निकलने वाली बालियों का आकार छोटा दिखाई देता हैं. और बालियों में बनने वाले दाने काले रंग के दिखाई देते हैं. जो बाद में कठोर दाने के रूप में बदल जाते हैं.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए गेहूँ के दानों को शुरुआत में नमक मिले पानी से दो से तीन बार धोकर सुखा लेना चाहिए. और दानो को धोने के दौरान पानी में ऊपर दिखाई देने वाले दानो को हटाकर बहार निकाल दें.
  2. इसके अलावा जिस खेत में ये रोग दिखाई दें उसमें तीन से चार साल तक गेहूँ की पैदावार नही करनी चाहिए.

करनाल बंट


गेहूँ के पौधों में लगने वाला करनाल बंट का रोग एक बीज जनित रोग हैं. गेहूँ के पौधों में इस रोग का प्रभाव पौधों में बाली बनने के दौरान दिखाई देता हैं. इस रोग के लगने से गेहूँ के दाने काले पाउडर के रूप में दिखाई देने लगते हैं. जिसका सीधा असर पैदावार पर देखने को मिलता हैं.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए पर प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. की 500 मिलीलीटर मात्रा या मेन्कोजेब की 2 किलों मात्रा का छिडकाव पौधों पर प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में मिलाकर करना चाहिए.
  2. इसके अलावा रोग रोधी किस्म के बीजों का चुनाव कर उगाना चाहिए.

चूहे का प्रकोप

गेहूँ की फसल में चूहे का प्रकोप खड़ी फसल में देखने को मिलता है. चूहे खड़ी फसल को काटकर बहुत ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं. जिस कारण पैदावार भी कम प्राप्त होती हैं.

रोकथाम – गेहूँ की फसल में चूहों की रोकथाम के लिए चूहे मारने की दवा को खेत में तीन चार बार रखना चाहिए.

अल्टरनेरिया पर्ण झुलसा


इस रोग के लगने पर शुरुआत पौधों की पत्तियों के ऊपरी हिस्से पर गोल धब्बे दिखाई देने लगते हैं. जिनका रंग भूरा काला दिखाई देता है. रोग बढ़ने पर धीरे धीरे इन धब्बों का आकार भी बढ़ने लगता हैं. जिससे पौधा जल्द ही नष्ट हो जाता हैं.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मैंकोजेब या कार्बेंडाजिम की 1.5 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर की दर से पानी में मिलाकर छिड़कना चाहिए.
  2. इसके अलावा रोग रहित उन्नत किस्म को ही उगाना चाहिए.

जड़ गलन


गेहूँ के पौधों में लगने वाला जड़ गलन का रोग एक वायरस जनित रोग हैं. पौधों में ये रोग अधिक नमी बनी रहने की वजह से लगता है. इस रोग के लगने से शुरुआत में पौधे की पत्तियां मुरझा जाती है. और कुछ समय बाद पौधा सुखकर नष्ट हो जाता है. इस रोग का सबसे ज्यादा प्रभाव पौधों की पैदावार पर देखने को मिलता है. भारत में गेहूँ की फसलों में ये रोग अधिक जलभराव वाली जगहों पर ही देखने को मिलता है.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की जड़ों में बोर्डो मिश्रण का छिडकाव करना चाहिए.
  2. इसके अलावा खेत में जलभराव ना होने दे.
  3. खेत की तैयारी के वक्त खेत की गहरी जुताई कर उसे कुछ दिन खुला छोड़ दें. ताकि सूर्य की धूप से हानिकारक कीट नष्ट हो जाएँ.

इनके अलावा भी गेहूँ के पौधों में कुछ रोग दिखाई देते हैं. जो क्षेत्रिय हिसाब से देखने को मिलते हैं. आप गेहूँ फसल में लगने वाले अन्य किसी भी तरह के रोग और उनकी रोकथाम संबंधित किसी भी जानकारी के अपनी राय कमेंट बॉक्स में हमारे साथ साझा कर सकते हैं.

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