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ड्रैगन फ्रूट (Dragon Fruit) की खेती कैसे करें

2019-07-06T09:47:21+05:30Updated on 2019-07-06 2019-07-06T09:47:21+05:30 by bishamber 1 Comment

ड्रैगन फ्रूट मध्य अमेरिका का मूल फल है. लेकिन वर्तमान में थाईलैंड, वियतनाम, इज़राइल और श्रीलंका में इसकी खेती अधिक मात्रा में की जा रही है. और अब भारत में भी इसकी खेती की जाने लगी है. ड्रैगन फ्रूट का खाने में इस्तेमाल किया जाता है. खाने के अलावा इसका इस्तेमाल व्यावसायिक तौर पर भी किया जाता है. ड्रैगन फ्रूट से जैम, आइसक्रीम, जेली, जूस और वाइन बनाई जाती है. ड्रैगन फ्रूट के खाने से मधुमेह और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित किया जा सकता हैं. इसके फल में बीज किवी की तरह काफी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं.

Table of Contents

  • उपयुक्त मिट्टी
  • जलवायु और तापमान
  • उन्नत किस्में
    • सफ़ेद ड्रैगन फ्रूट
    • लाल गुलाबी
    • पीला
  • खेत की तैयारी
  • सपोर्टिंग सिस्टम तैयार करना
  • पौध तैयार करना
  • पौध लगाने का तरीका और टाइम
  • पौधे की सिंचाई
  • पौधे का रखरखाव
  • उर्वरक की मात्रा
  • खरपतवार नियंत्रण
  • अतिरिक्त कमाई
  • पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
  • फलों की तुड़ाई
  • पैदावार और लाभ
ड्रैगन फ्रूट की खेती

इसका पौधा नागफनी की तरह का होता है. लेकिन ये चौड़ाई ना लेते हुए लम्बाई में बढ़ता हैं. इसके पौधे को पानी की कम आवश्यकता होती है. इसकी खेती शुष्क वातावरण वाली जगहों पर की जाती है. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान सामान्य होना चाहिए. इसके पौधे अधिक तापमान पर अच्छे से विकास करते है.

अगर आप भी इसकी खेती कर अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए किसी ख़ास तरह की मिट्टी की जरूरत नही होती. इसकी खेती उचित जल निकासी और अच्छी उर्वरक छमता वाली मिट्टी में की जा सकती है. इसकी खेती जलभराव वाली जमीन में नही की जा सकती. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 7 के आसपास होना चाहिए. भारत में इसे महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और दिल्ली के आसपास उगाया जा रहा है.

जलवायु और तापमान

ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त होती है. भारत में इसे शुष्क और आद्र जगहों पर उगाया जाता है. ड्रैगन फ्रूट के पौधे को बारिश की भी काफी कम जरूरत होती है. लेकिन इसके पौधे को गर्म मौसम की ज्यादा जरूरत होती है. और सर्दियों में पड़ने वाला पाला अगर अधिक दिनों तक गिरता है तो पौधे की पैदावार में नुक्सान होता है.

इसके पौधे को विकास करने के लिए 25 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. और जब पौधे पर फल बन रहे होते हैं, तब इसे 30 से 35 डिग्री तापमान की जरूरत होती है. लेकिन इसका पौधा अधिकतम 40 और न्यूनतम 7 डिग्री तापमान को भी सहन कर सकता है.

उन्नत किस्में

ड्रैगन फ्रूट की किस्में

ड्रैगन फ्रूट की भारत में तीन उन्नत किस्में हैं. इन किस्मों को फलों के रंग के आधार पर बाँटा गया है.

सफ़ेद ड्रैगन फ्रूट

सफ़ेद ड्रैगन फ्रूट भारत में सबसे ज्यादा उगाया जा रहा है. क्योंकि इसके पौधे आसानी से लोगो को मिल जाते हैं. लेकिन इसका बाज़ार भाव बाकी किस्मों से कम पाया जाता है. इसके फल को काटने के बाद अंदर का भाग सफ़ेद दिखाई देता है. जिसमें काले रंग के छोटे छोटे बीज होते हैं.

लाल गुलाबी

लाल गुलाबी ड्रैगन फ्रूट भारत में काफी कम देखने को मिलता है. इसके फल बाहर और अंदर दोनों जगहों से गुलाबी रंग का होता है. इसका बाज़ार भाव सफ़ेद से ज्यादा होता है. और खाने में भी स्वादिष्ट होता है.

पीला

पीला ड्रैगन फ्रूट भारत में बहुत कम देखने को मिलता है. इसका रंग बहार से पीला और अंदर से सफ़ेद होता है. इसका स्वाद सबसे अच्छा होता है और इसकी बाज़ार में कीमत भी सबसे ज्यादा पाई जाती है.

खेत की तैयारी

ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए पहले खेत के मौजूद अवशेषों को नष्ट कर खेत की पलाऊ लगाकर गहरी जुताई कर दें. पलाऊ लगाने के कुछ दिन बाद खेत में कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई कर दें. उसके बाद खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा और खेत को समतल बना लें.

ड्रैगन फ्रूट की खेती समतल जमीन में गड्डे बनाकर की जाती हैं. इसके गड्डों को एक पंक्ति में तीन मीटर की दूरी रखते हुए तैयार करें. प्रत्येक गड्डा चार फिट व्यास वाला और डेढ़ फिट गहरा होना चाहिए. पंक्तियों में गड्डे तैयार करने के दौरान प्रत्येक पंक्तियों के बीच चार मीटर की दूरी बनाए रखे.

गड्डों के तैयार होने के बाद उचित मात्रा में गोबर की खाद और रासायनिक उर्वरक को मिट्टी में मिलाकर तैयार किये गए गड्डों में भर दें. गड्डों की भराई के बाद उनकी सिंचाई कर देनी चाहिए. इससे गड्डों की मिट्टी अच्छे से बैठकर कठोर हो जाती है. इन गड्डों के बीच सपोर्टिंग सिस्टम को लगाया जाता है. जिसके चारों तरफ इसके चार पौधे लगाए जाते हैं.

सपोर्टिंग सिस्टम तैयार करना

ड्रैगन फ्रूट का  पौधा लगभग 20 से 25 साल तक पैदावार देता है. इसका पौधा बिना सहारे के विकास नही कर पाता. इस कारण सपोर्टिंग सिस्टम तैयार किया जाता हैं. इसकी खेती में सपोर्टिंग सिस्टम तैयार करने में सबसे ज्यादा खर्च आता है. इसका सपोर्टिंग सिस्टम सीमेंट के पिल्लर द्वारा तैयार किया जाता है. जिसकी उंचाई 7 से 8 फिट तक पाई जाती है. इस पिल्लर को जमीन में दो से तीन फिट गहराई में गाड़ देते हैं. इसके ऊपरी हिस्से पर एक दो फिट व्यास का चक्र बनाया जाता है.

एक हेक्टेयर में इसकी खेती के लिए लगभग 1200 पिल्लर की जरूरत होती है. जिसके चारों तरफ पौध लगाईं जाती है. जब पौधा विकास करता हैं, तब उसे इन पिल्लर के सहारे बाँध दिया जाता है. और आखिरी में पौधे की सभी शाखाओं को ऊपर वाले गोल घेरे के अंदर से निकालकर बहार चारों तरफ लटका दिया जाता है.

पौध तैयार करना

इसकी पौध नर्सरी में तैयार की जाती है. इसकी पौध तैयार करने के लिए लगभग 20 सेंटीमीटर लम्बी कलम लेनी चाहिए. इन कलमों को दो से तीन दिन तक जमीन में दबा दें. उसके बाद इन्हें गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद और मिट्टी के 1:1:2 अनुपात में मिश्रण तैयार कर उसमें लगा दें. और पौधों की सिंचाई कर दें. इन पौधों को सूर्य की सीधी किरणों से बचाकर रखे. और जब इन पौधों में जड़ें बनना शुरू हो जाएँ तब इन्हें खेत में लगा देना चाहिए. इसकी पौध को तैयार होने में तीन महीने से ज्यादा का वक्त लगता है.

पौध लगाने का तरीका और टाइम

ड्रैगन फ्रूट की खेती

ड्रैगन फ्रूट के पौधे बीज और पौध दोनों रूप से लगाए जाते हैं. इसके पौधों को पौध के माध्यम से लगाना बेहतर होता है. क्योंकि पौध के रूप में लगाने पर पौधा दो साल बाद पैदावार देना शुरू कर देता है. जबकि बीज के माध्यम से तैयार पौधा सात से आठ साल बाद पैदावार देने लगता है. अगर आप इसकी पौध नर्सरी से खरीद रहे हैं, तो इन्हें किसी रजिस्टर्ड नर्सरी से खरीदनी चाहिए. इसकी पौधा भारत में अभी भी काफी मुश्किल से मिल पाती हैं.

इसके पौधों को खेत में लगाने के दौरान तैयार किये हुए गड्डों में चार छोटे छोटे गड्डे बनाकर सपोर्टिंग सिस्टम के चारों तरफ लगाया जाता हैं. पौधों को लगाने के बाद उन्हें समतल से थोडा नीचे तक जमीन में लगाते हैं. ड्रैगन फ्रूट का पौधा खेत में जून और जुलाई के महीने में लगाया जाता हैं. क्योंकि इस दौरान बारिश का मौसम होने की वजह से पौधा अच्छे से विकास करता हैं. लेकिन जहां सिंचाई की उचित व्यवस्था हो वहां इसके पौधे फरवरी और मार्च माह में भी लगाए जा सकते हैं. एक हेक्टेयर में इसके लगभग 4450 पौधे लगाए जाते हैं. जिनका कुल खर्च दो लाख के आसपास आता है.

पौधे की सिंचाई

ड्रैगन फ्रूट के पौधों को अन्य फसलों की तुलना में कम पानी की जरूरत होती है. जबकि बारिश के मौसम में इसके पौधों को पानी की जरूरत नही होती. सर्दियों के मौसम में इसके पौधे को महीने में दो बार पानी देना चाहिए. और गर्मियों में इसके पौधे को सप्ताह में एक बार पानी देना उचित होता है.

जब पौधे पर फूल बनने का वक्त आयें तब पौधे को पानी देना बंद कर देना चाहिए. लेकिन फूल से फल बनने के बाद पौधों में उचित नमी बनाए रखे. इससे फल का आकार और रंग अच्छा बनता है और पैदावार भी अधिक मिलती है. इसकी सिंचाई के लिए ड्रिप पद्धति का इस्तेमाल करना सबसे उचित होता है.

पौधे का रखरखाव

ड्रैगन फ्रूट का पौधा तीन से चार साल में पूरी तरह से तैयार हो जाता है. इस दौरान पौधे की कटाई छटाई करते रहना चाहिए. क्योंकि कटाई ना करने की वजह से पौधे में बहुत सारी शाखाएं निकल आएँगी. जिससे पौधे का आकार बहुत बड़ा हो जायेगा. इस कारण इसकी उचित टाइम पर कटाई छटाई करते रहना चाहिए. कटाई छटाई कर पौधे पर मुख्य शाखा के साथ सिर्फ दूसरी और तीसरी पीढ़ी की ही शाखाओं को रखना चाहिए.

उर्वरक की मात्रा

ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए 10 से 15 किलो गोबर की खाद और 50 से 70 ग्राम एन.पी.के. की मात्रा को मिट्टी में मिलाकर पौधे की रोपाई से पहले तैयार किये गए गड्डों में भर के उनकी सिंचाई कर दें. जिससे गड्डों की उंचाई समतल के सामान दिखाई देने लगेगी. उसके बाद हर साल उर्वरक की ये मात्रा तीन साल तक पौधों को देनी चाहिए. उसके बाद जैविक खाद की मात्रा को बढ़ा देना चाहिए.

इसके अलावा पौधे पर फूल बनने से फलों की तुड़ाई होने तक एन.पी.के. की 200 ग्राम मात्रा प्रत्येक पौधे को साल में तीन बार देनी चाहिए. पहली मात्रा फूल बनने के दौरान दे. जबकि दूसरी और तीसरी मात्रा फलों के पकने और तुड़ाई के बाद देनी चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण

ड्रैगन फ्रूट के पौधे में पौध रोपण के बाद खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई कर करनी चाहिए. पौधों की पहली गुड़ाई पौध लगाने के एक महीने बाद कर देनी चाहिए. उसके बाद समय समय पर इसकी गुड़ाई कर खरपतवार नियंत्रण करते रहना चाहिए. रासायनिक तरीके से इसकी खरपतवार नियंत्रित नहीं करनी चाहिए. क्योंकि इससे पौधे को नुक्सान पहुँचता है.

अतिरिक्त कमाई

ड्रैगन फ्रूट का पौधा पूरी तरह से विकसित होने के लिए 4 से 5 साल का वक्त लेता है. तब तक खाली बची हुई जमीन में मटर, बैंगन, गोभी, लहसुन, अदरक, हल्दी जैसी मसाला और सब्जी फसलों को उगा सकते हैं. इनके अलावा पपीता की खेती भी इसके साथ कर सकते हैं. जिससे किसान भाइयों को आर्थिक परेशानियों का सामना भी नही करना पड़ेगा और पौधा अच्छे से विकास भी करने लगेगा.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

ड्रैगन फ्रूट के पौधों में अभी तक कोई ख़ास रोग देखने को नही मिला है. लेकिन फलों की तुड़ाई के बाद शाखाओं पर निकलने वाले मीठे रस पर चीटियों का आक्रमण देखने को मिलता है. जिसको रोकने के लिए नीम के तेल या नीम की पत्तियों के पानी का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

फलों की तुड़ाई

तुड़ाई के लिए तैयार ड्रैगन फ्रूट

ड्रैगन फ्रूट के पौधों दूसरे साल में फल देने लग जाते हैं. इसके पौधों पर फूल मई माह से आने शुरू हो जाते हैं. जिन पर दिसम्बर माह तक फल बनते रहते हैं. एक साल में इसके फलों की तुड़ाई लगभग 6 बार की जाती है. इसके फल जब हरे रंग से बदलकर लाल गुलाबी दिखाई देने लगे तब इन्हें तोड़ लेना चाहिए. क्योंकि लाल दिखाई देने पर फल पूर्ण रूप से पक जाते हैं.

पैदावार और लाभ

ड्रैगन फ्रूट के पौधे दूसरे साल में पैदावार देना शुरू कर देते हैं. दूसरे साल में एक हेक्टेयर से इसकी पैदावार लगभग 400 से 500 किलो तक हो जाती है. लेकिन चार से पांच बाद इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 10 से 15 टन तक पाई जाती है. इसके एक फल का वजन 350 ग्राम से 800 ग्राम तक पाया जाता है. इसका बाज़ार भाव 150 से 300 रूपये प्रति किलो के आसपास पाया जाता हैं. जिससे इसकी खेती से पांच साल बाद किसान भाई एक हेक्टेयर से 30 लाख तक की सालाना कमाई आसानी से कर सकता है.

Filed Under: फल

Comments

  1. Ashish kumar says

    January 20, 2020 at 5:28 pm

    I want dragon fruit plants

    Reply

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