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मेथी की उन्नत खेती कैसे करें – पूरी जानकारी

2019-08-16T10:07:38+05:30Updated on 2019-08-16 2019-08-16T10:07:38+05:30 by bishamber Leave a Comment

मेथी की खेती मसाला फसल के रूप में की जाती है. इसके बीज और छोटे पौधे दोनों का ही इस्तेमाल खाने में किया जाता है. इसकी हरी पत्तियों का इस्तेमाल खाने में सब्जी के रूप में किया जाता है. जबकि इसके दानों का इस्तेमाल दवाइयों, सौंदर्य प्रसाधन की चीजों और अचार में मसाले के रूप में किया जाता है. इसके अलावा मेथी के दानो का इस्तेमाल पशुओं को खिलाने में भी किया जाता हैं. मेथी के इस्तेमाल से पेट संबंधित कई तरह की बीमारियों से छुटकारा मिलता है.

Table of Contents

  • उपयुक्त मिट्टी
  • जलवायु और तापमान
  • उन्नत किस्में
    • हिसार सोनाली
    • लेम सेलेक्शन 1
    • ए एफ जी 1
    • राजेंद्र क्रांति
    • आर एम टी 1
    • आर एम टी 305
  • खेत की तैयारी
  • बीज रोपाई का तरीका और टाइम
  • पौधों की सिंचाई
  • उर्वरक की मात्रा
  • खरपतवार नियंत्रण
  • पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
    • जड़ गलन
    • चेपा
    • पाउडरी मिल्ड्यू
  • फसल की कटाई और मढ़ाई
  • पैदावार और लाभ
मेथी की खेती

मेथी का पौधा एक से दो फिट लम्बाई का होता है. जिसका आकार झाड़ीनुमा दिखाई देता है. मेथी की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त होती है. इसकी खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है. जबकि इसके पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. भारत में मेथी की खेती ज्यादातर राजस्थान और गुजरात में की जाती है.

अगर आप भी मेथी की खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

मेथी की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली रेतीली बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. जबकि जल भराव वाली काली भारी मिट्टी में इसकी खेती नही की जा सकती. क्योंकि जल भराव होने की स्थिति में इसके पौधे खराब हो जाते हैं. इसकी खेती के लिए मिट्टी का पी.एच. मान 5.5 से 7 के बीच होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

इसकी खेती रबी की फसलों के साथ की जाती है. इसके पौधों को बारिश की ज्यादा जरूरत नही होती. मेथी की खेती के लिए सर्दी का मौसम सबसे उपयुक्त होता है. सर्दी के मौसम में इसके पौधे आसानी से विकास कर लेते हैं. इसके पौधे सर्दियों में पड़ने वाले पाले जो भी कुछ हद तक सहन कर लेते हैं. इसकी फलियों के पकने के दौरान नमी बने से फसल को काफी नुक्सान पहुँचता है. क्योंकि नमी बने रहने पर फलियाँ कमजोर पड़कर फटने लगती है.

इसके पौधे को शुरुआत में अंकुरित होने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. पौधों के अंकुरित होने के बाद विकास करने के लिए 15 से 20 डिग्री के आसपास का तापमान उपयुक्त होता है. जबकि इसकी फलियों के पकने के दौरान अधिक तापमान अच्छा होता है. इससे इसके दानो में नमी की मात्रा कम हो जाती है.

उन्नत किस्में

मेथी की कई तरह की उन्नत किस्में हैं. जिनको अलग अलग स्थानों पर अधिक पैदावार लेने के लिए उगाया जाता है.

हिसार सोनाली

मेथी की इस किस्म के पौधों में जड़ गलन का रोग देखने को बहुत कम मिलता है. मेथी की इस किस्म को राजस्थान और हरियाणा में अधिक उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे अधिक लम्बाई के होते हैं. जो बीज रोपाई के लगभग 140 से 150 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों की पत्तियां गहरी हरे रंग की होती है. और इसके दानो का रंग सुनहरी पीला होता है. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 17 से 18 क्विंटल तक पाया जाता है.

लेम सेलेक्शन 1

मेथी की ये एक अगेती किस्म है. इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 70 दिन के आसपास पककर कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके पौधे सामान्य ऊंचाई के पाए जाते हैं. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 8 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.

ए एफ जी 1

मेथी की इस किस्म एक पौधे बीज रोपाई के लगभग 130 से 140 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 20 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. अगर इसकी खेती किसान भाई हरी पत्तियों के रूप में करता है तो इसका पौधा तीन कटाई दे सकता है. इसके दाने आकार में बड़े और मोटे होते है. जिनका स्वाद कम कड़वा होता है.

राजेंद्र क्रांति

मेथी की इस किस्म के पौधे अधिक शाखाओं युक्त सामान्य ऊंचाई के होते हैं. जिनका आकार झाड़ीनुमा होता है. इसके दानो का रंग गहरा पीला दिखाई देता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 120 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 12 से 15 क्विंटल के बीज पाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर पत्ती धब्बा रोग दिखाई नही देता.

आर एम टी 1

मेथी की इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 140 से 150 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों पर चूर्ण फफूंदी का रोग देखने को नही मिलता. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 15 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इसके दानो का रंग पीला दिखाई देता है. जो आकार में सामान्य दिखाई देते हैं.

 

आर एम टी 305

मेथी की इस किस्म के पौधों की फलियाँ एक साथ पककर तैयार होती है. इस किस्म के पौधे बौने दिखाई देते हैं. जो बीज रोपाई के लगभग 100 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 13 से 15 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.

इनके अलावा और भी कई किस्में मौजूद हैं. जिनमें हिसार सुवर्णा, ए एफ जी- 2, 3, हिसार माधवी, आर एम टी- 143, को- 1 और पूसा कसूरी जैसी किस्में मौजूद है.

खेत की तैयारी

मेथी की खेती के लिए शुरुआत में खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें. उसके बाद खेत में जैविक खाद के रूप में कम्पोस्ट या पुरानी गोबर की खाद डालकर उसे मिट्टी में मिला दें. उसके बाद खेत में पानी चलाकर उसका पलेव कर दें. पलेव करने के बाद जब मिट्टी की ऊपरी सतह सूखने लगे तब खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लें. उसके बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल बना लें.

बीज रोपाई का तरीका और टाइम

मेथी के बीजों की रोपाई बाकी अनाज वाली फसलों की तरह ड्रिल और छिडकाव विधि से की जाती है. इसके बीजों की रोपाई से पहले उन्हें बाविस्टिन से उपचारित कर लेना चाहिए. एक हेक्टेयर ड्रिल विधि से बीजों की रोपाई के लिए 25 से 30 किलो जबकि छिडकाव विधि से रोपाई के लिए 35 किलो बीज की जरूरत होती है.

मेथी की की खेती

छिडकाव विधि से रोपाई के वक्त इसके बीजों को समतल भूमि में छिड़क दिया जाता है. उसके बाद कल्टीवेटर के माध्यम से खेत की दो बार हल्की तिरछी जुताई कर देते हैं. जिससे इसका बीज जमीन में तीन से चार सेंटीमीटर नीचे चला जाता है. जबकि ड्रिल के माध्यम से इसके बीजों की रोपाई पंक्तियों में की जाती है. प्रत्येक पंक्तियों के बीच 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए. और पंक्तियों में इसके बीजों के बीच लगभग 10 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए.

मेथी के बीजों की रोपाई रबी की फसलों के साथ की जाती है. इस दौरान इसके बीजों की रोपाई मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक कर देनी चाहिए. जबकि पछेती खेती के लिए इसके बीजों की रोपाई नवम्बर माह के लास्ट तक भी कर सकते हैं. दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में इसकी खेती खरीफ की फसल के साथ भी की जाती है. जिसका इस्तेमाल इसकी हरी पत्तियों के रूप में ही किया जाता है.

पौधों की सिंचाई

मेथी के पौधों को सिंचाई की अधिक जरूरत नही होती. लेकिन बीजों के अंकुरण के वक्त खेत में नमी की मात्रा पर्याप्त होनी चाहिए. इसलिए अगर अंकुरण के वक्त खेत में नमी की कमी दिखाई दे तो हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए. अन्यथा इसके पौधों की पहली सिंचाई बीज रोपाई के लगभग एक महीने बाद की जाती है. मेथी के पौधों को 5 से 6 सिंचाई की ही जरूरत होती है. मेथी के पौधों की पहली सिंचाई के बाद बाकी की सिंचाई 20 दिन के अंतराल में कर देनी चाहिए. पौधों में फली बनने के बाद नमी बनाए रखने से दानो का आकार अच्छा बनता है. जिससे इसकी पैदावार में फर्क देखने को मिलता है.

उर्वरक की मात्रा

मेथी की खेती के लिए उर्वरक की सामान्य जरूरत होती है. इसकी खेती के लिए खेत की तैयारी के वक्त लगभग 10 से 12 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में एक बोरा एन.पी.के. की मात्रा को खेत की आखिरी जुताई के वक्त खेत में छिड़क देना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण

मेथी की खेती में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक और प्राकृतिक दोनों तरीकों से किया जा सकता है. रासायनिक तरीके से मेथी की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए फ्लूक्लोरेलिन की उचित मात्रा का छिडकाव बीज रोपाई के पहले कर देना चाहिए. जबकि प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण पौधों की नीलाई गुड़ाई कर किया जाता है. इसके पौधों की पहली गुड़ाई बीज रोपाई के लगभग 25 दिन बाद कर देनी चाहिए. पहली गुड़ाई करने के बाद बाकी की गुड़ाई पहली गुड़ाई के बाद 15 दिन के अंतराल में कर देनी चाहिए.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

मेथी के पौधों में काफी रोग देखने को मिलते हैं. जिनकी टाइम रहते देखभाल नही करने पर ये इसकी पैदावार को काफी ज्यादा प्रभावित करते हैं.

जड़ गलन

मेथी की खेती में जड़ गलन रोग पानी भराव की वजह से लगता है. जो एक मृदा जनित रोग है. इस रोग के लगने पर पौधा मुरझाकर सुख जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए थिरम या कैप्टन का छिडकाव पौधों की जड़ों में करना चाहिए.

चेपा

चेपा रोग को माहू के नाम से भी जाना जाता है. इस रोग के कीट बहुत छोटे आकार के होते हैं. इन कीटों का रंग रंग हरा, काला और पीला दिखाई देता है. ये किट पौधों पर एक समूह में पाए जाते हैं. जो पौडॉन के कोमल भागों का रस चूसकर पौधों के विकास को रोक देते हैं. जिससे मेथी की पैदावार काफी कम हो जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफास या डाईमेथोएट की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

पाउडरी मिल्ड्यू

रोग लगा पौधा

पाउडरी मिल्ड्यू रोग छाछया रोग के नाम से भी जाना जाता है. मेथी के पौधों में छाछया रोग फफूंदी की वजह से देखने को मिलता है. इसके लगने से पौधों की पत्तियों पर सफ़ेद रंग के धब्बे दिखाई देने लगता है. रोग के बढ़ने की स्थिति में पौधे की सभी पत्ती सफ़ेद दिखाई देने लगती है. जिसकी वजह पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देते हैं. और उनका विकास रुक जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक या कैराथेन की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

फसल की कटाई और मढ़ाई

मेथी के पौधे बीज रोपाई के लगभग 130 से 140 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस दौरान पौधों की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती हैं. और फलियों में पाए जाने वाले दानो का रंग पीला दिखाई देने लगा जाता है. और दानो में नमी की मात्रा भी बहुत कम रहा जाती है. इसके पौधों की कटाई जमीन के पास से करनी चाहिए. फसल काटने के बाद उसे खेत में एकत्रित कर सूखा लेना चाहिए. फसल के सूख जाने के बाद मशीनों की सहायता से इसके दानो को निकाल लिया जाता है. जिसे किसान भाई बाज़ार में अच्छे भाव मिलने पर बेच सकता है.

पैदावार और लाभ

मेथी की विभिन्न किस्मों की औसतन पैदावार 12 क्विंटल के आसपास पाई जाती हैं. जिसका बाज़ार में थोक भाव 5 हज़ार रूपये प्रति क्विंटल के आसपास पाया जाता है. जिस हिसाब से किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से 50 हज़ार से ज्यादा की कमाई आसानी से कर लेता है.

Filed Under: मसाले

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