खेती पर निर्भर रहने की वजह से अभी तक भारत का किसान आर्थिक मोर्चे पर काफी पिछड़ चुका है. जिसकी मुख्य वजह किसान का जागरूक ना हो पाना है. आज अगर सामान्य रूप खेती के साथ साथ पशुपालन पर ध्यान दिया जाए तो इसका व्यापार बहुत ही ज्यादा लाभ देने वाला बन सकता है. क्योंकि खेती के साथ साथ किसान भाई पशुओं को शुरुआत से ही पालता आया है. लेकिन इसको एक बड़े अवसर के रूप में नही बदल पाया. जबकि पशुपालन को व्यापार के तौर पर करने से किसान भाई अच्छीखासी कमाई कर सकता है.
Table of Contents
माना की पशुपालन को शुरू करने के लिए शुरुआत में थोड़ी अधिक पूंजी की जरूरत होती है. लेकिन वर्तमान में सरकार द्वारा काफी ऐसी योजनायें चलाई जा रही हैं. जिनके माध्यम से सरकार किसान भाइयों को आर्थिक मदद प्रदान करती है. आज हम आपको पशुपालन में ही बकरी के पालन के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं. जो वर्तमान में किसान भाइयों के लिए बहुत ही लाभदायक और आर्थिक मजबूती देने वाला व्यापार बन सकता है.
बकरी पालन उद्योग
बकरी पालन का व्यवसाय भारत में दुनिया में सबसे ज्यादा किया जाता है. बकरी पालन के माध्यम से किसान भाई एक व्यापार में कई तरह से कमाई करता हैं. बकरी पालन करने के दौरान किसान भाई इसके बाल, दूध और इसके अपशिष्ट से जैविक खाद बनाकरअतिरिक्त लाभ कम सकता हैं. बकरी पालन के व्यवसाय में किसान भाई को शुरुआत में अधिक खर्च करना पड़ता है. लेकिन शुरू करने के बाद किसान भाई इसके माध्यम से बार बार कमाई करता है. बकरी पालन में मुनाफा दो से तीन गुना तक मिलता है. बकरी पालन को किसान भाई खेती के साथ साथ छोटे पैमाने पर भी शुरू कर सकता हैं.
बकरी पालन को शुरू करने में अनुमानित लागत
बकरी पालन वैसे तो सामान्य तौर पर शुरू किया जा सकता है, लेकिन इसको व्यापारीक तौर पर शुरू करने के लिए पहले इसके बारें में सम्पूर्ण जानकारी हासिल कर लेना ज्यादा बेहतर होता है. क्योंकि इसके बारें में उचित जानकारी हासिल कर किसान भाई कम खर्च में अधिक लाभ कमा सकता है. बकरी पालन के दौरान पशुओं में कई तरह की बीमारियाँ बहुत तेजी से फैलती हैं.
पशुओं में होने वाले रोगों की रोकथाम के लिए पालक का अनुभवी होना जरूरी है. क्योंकि अगर पालक उचित समय पर पशुओं में दिखाई देने वाली बिमारियों के लक्षणों के बारें में पता नहीं लगा पायेगा तो उसे इसमें अधिक नुक्सान उठाना पड़ सकता है. इसके अलावा पालक को पशुओं को दिया जाने वाला चारा और उनके रख-रखाव संबंधित पूरी जानकारी का होना जरूरी होता है. ताकि पशु स्वस्थ रहे और अच्छे से विकास करें. इन सभी की जानकारी किसान भाई अपने नजदीकी बकरी पालन करने वाले किसान भाई से ले सकता है या वर्तमान में काफी संस्थाएं हैं जो इसकी जानकारी देती हैं.
बकरी पालन के व्यवसाय को शुरू करने के लिए शुरुआत में अधिक पूँजी की भी जरुरत नही पड़ती. इसे किसान भाई घर पर लगभग 10 के आसपास पशु रखकर भी शुरुआत कर सकता हैं. जिसमें अनुमानित 50 से 70 हजार का खर्च आता है. लेकिन थोड़े बड़े पैमाने पर इसे शुरू करने के लिए अनुमानित चार से पांच लाख तक की जरूरत होती है. जिसमें पशुओं की खरीद के साथ साथ उनके रहने और खाने का सम्पूर्ण खर्च शामिल होता है.
बकरी पालन के लिए सरकारी अनुदान
बकरी पालन के व्यवसाय को शुरू करने के लिए अलग अलग राज्यों की सरकारों के द्वारा अलग अलग योजनाएँ चलाई जा रही हैं. जिनके माध्यम से सरकार अलग अलग तरह से बकरियों की राशि पर अनुदान देती है. उदाहरण के तौर पर राजस्थान की बात करें जहाँ सबसे ज्यादा बकरी पालन का काम किया जाता है, ऐसे में राजस्थान में बकरी पालन के लिए सरकार की तरफ से 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती है. जैसे की कोई किसान भाई एक लाख रुपये लगाकर इसका व्यवसाय शुरू करता है. ऐसे में किसान भाई 50 हजार तक की सब्सिडी सरकार की तरफ से दी जाती है. इसके अलावा राजस्थान में इसको शुरू करने के लिए लोन की व्यवस्था भी दी गई है. जिसके माध्यम से किसान भाई को कुल राशि का 10 प्रतिशत भरना होता है. जिसके बाद बाकी की राशि किसान भाई बैंकों से लोन के माध्यम से ले सकता हैं. जिसमें से कुल राशि की 50 प्रतिशत सब्सिडी किसान भाई को मिल जाती है.
बकरी पालन के लिए आवश्यक चीजें
बकरी पालन व्यवसाय को शुरू करने के लिए कुछ मूलभूत सुविधाओं की जरूरत होती हैं.
जमीन
किसी भी व्यवसाय को शुरू करने के लिए जमीन की जरूरत सबसे पहले होती है. छोटे पैमाने पर बकरी पालन शुरू करने के लिए लगभग एक हजार वर्ग फिट के आसपास जमीन की जरूरत होती हैं. ऐसे में अगर जमीन खुद की है तो कोई दिक्कत नही होती. लेकिन अगर खुद की जमीन ना हो तो किसान भाई जमीन किराए पर लेकर भी इसका व्यवसाय शुरू कर सकता है.
पशुओं के रखने का स्थान
बकरियों को रखने के लिए मौसम में अनुसार हवादार मकान की जरूरत होती हैं. इसके लिए किसान भाई लोहे की जाली और कंकरीट के माध्यम से टीन सेड बनवाकर रहने की व्यवस्था बनवा सकता है. जिसमें मौसम के आधार पर परिवर्तन भी आसानी से किया जा सकता है. और पशुओं को भी मौसम परिवर्तन के दौरान किसी तरह की दिक्कत नही होती हैं.
पशुओं का खान
पशुओं के विकास के लिए भोजन सबसे मुख्य स्रोत होता है. अगर किसान भाई के पास खाली खेत हैं तो उन्हें खेतों में छोड़कर खाना खिला सकता हैं. लेकिन व्यापार के तौर पर घर पर रखने के दौरान उन्हें उचित मात्रा में पोषक तत्व देना होता है. जिसे हरे चारे और सूखे चरें के रूप में दिया जाता है. इसके अलावा दुधारू पशुओं को अनाज दाना भी दिया जाता हैं.
बकरी पालन के दौरान कुछ महत्वपूर्ण बातें
बकरी पालन को शुरू करने के दौरान कई महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना सबसे जरूरी है. जिससे किसान भाई बकरी पालन के दौरान अधिक लाभ कमा सकता है.
उत्तम नस्ल का चुनाव
बकरी पालन के दौरान सबसे पहले पशु की नस्ल का चुनाव करना जरूरी होता है. ताकि उन्नत नस्ल का चयन कर किसान भाई कम समय में अधिक लाभ अर्जित कर सके. उन्नत नस्ल में बकरी की बारबरी, सिरोही, ब्लैक बंगाल, सोजत, जमनापरी और बीटल जैसी नस्लें शामिल हैं. इन सभी नस्ल की बकरियों से दूध और मॉस अच्छी मात्रा में प्राप्त होता है. और इन नस्ल की बकरियां प्रजनन के दौरान दो से तीन बच्चों को जन्म देती हैं. ये सभी नस्ल की बकरियां साल में लगभग दो बार प्रजनन की क्षमता रखती है. इन सभी नस्लों में सिरोही ब्रीड में सबसे ज्यादा मास की मात्रा पाई जाती है.
गर्भित कराने का समय
बकरी के अंदर साल में दो बार प्रजनन की क्षमता पाई जाती है. बकरी के बच्चे की उचित देखभाल की जाये तो बच्चा डेढ़ साल बाद प्रजजन के लिए तैयार हो जाता है. बकरी के प्रजनन के दौरान इसके बच्चों की मृत्यु दर ज्यादा पाई जाती है. जिसे पशुओं की उचित देखभाल कर कम किया जा सकता है. इसके लिए बकरियों का सही समय पर गर्भित होना जरूरी होता है.
बकरियों को सर्दी के मौसम में गर्भित कराने का सबसे उपयुक्त टाइम मध्य सितम्बर से नवम्बर और गर्मियों में मध्य अप्रैल से जून के शुरुआत तक का होता है. इस दौरान गर्भित कराने से बच्चों की मृत्यु दर में कमी देखने को मिलती है. क्यों इस दौरान गर्भित कराने पर पशुओं का प्रजजन उचित समय पर होता जिस दौरान तापमान सामान्य बना रहता हैं. और बच्चे अच्छे से विकास करते हैं. इसके बच्चों में ज्यादातर बारिश के मौसम में अधिक बीमारियाँ देखने को मिलती है. जबकि इस दौरान पशु के गर्भित होने पर उनका प्रजनन बारिश के मौसम में नही होता है.
प्रजनन के दौरान सुरक्षा
बकरी के पशुओं की मृत्यु दर को कम करने के लिए उनके प्रजनन के दौरान शुरुआत में बच्चों को पहला दूध जिसे खीस बोलते हैं. वो बच्चों को अच्छे से पिलाना चाहिए. इससे बच्चों में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ जाती है. और उनका विकास अच्छे से होता है.
पशुओं का टीकाकरण
बकरी पालन के दौरान पशुओं में मुंहपका, पेट के कीड़े, खुरपका और खुजली का रोग प्रमुख रूप से देखने को मिलता है. पशुओं में ये सभी रोग बारिश के मौसम में अधिक देखने को मिलते हैं. जो पशुओं में बहुत ही तेजी से विकास करते हैं. इन सभी तरह के रोगों की रोकथाम के लिए पशुओं का टीका करण करवाना चाहिए. जो पशुओं की उम्र के हिसाब से अलग अलग वक्त पर किए जाते हैं.
पीपीआर
बारिश के मौसम के दौरान पीपीआर का टीका पशुओं को अगस्त के माह में लगवाना चाहिए. जो पशुओं को हर तीन से चार माह बाद लगता है. यह पशुओं में कई तरह की बिमारियों से बचाता है. अगर पशुपालक बकरी को खरीदता है तो ये पता कर लें की अभी तक पशु को पीपीआर का टिका लगा है या नही. अगर पशु को पीपीआर का टिका नही लगाया गया है तो पशु को तुरंत पीपीआर का टिका लगवा दें.
एफएमडी
पशुओं को एफएमडी का टीका साल में एक बार लगया जाता हैं. जिससे पशुओं में मुहपका और खुरपका की बीमारी देखने को नही मिलती. और पशुओं का विकास अच्छे से होता हैं.
डीवार्मिंग
पशुओं को दी जाने वाली डीवार्मिंग कोई टीका नही है, बल्कि ये एक दवा है जो पशुओं को खाने के साथ दी जाती है. इससे पशुओं के शरीर में पाए जाने वाले कीड़े नष्ट हो जाते हैं. इसका इस्तेमाल पशुओं के डॉक्टर की राय के अनुसार ही करना चाहिए.
एफ.एम.डी और एच.एस
एफ.एम.डी और एच.एस का टीका पशुओं को शुरुआत में ही लगाया जाता है. यह जब पशु की उम्र तीन महीने के आसपास होती है, तब पशु को दिया जाता है. उसके बाद दूसरी बार फिर से तीन से चार महीने बाद दिया जाता है. इसके लगवाने से पशु अच्छे से विकास करता है. और उसमें बीमारी की संभावना भी कम देखने को मिलती है.
बकरी पालन का लाभ
बकरी पालन के काफी लाभ देखने को मिलते हैं. जो सभी प्रत्यक्ष रूप से किसान भाई को फायदा पहुँचाते हैं. बकरी पालन के साथ साथ दुग्ध और ऊन (बकरी के बाल) की प्राप्ति होती है. जिनको बाजार में बेचकर किसान भाई बकरियों पर होने वाले खर्च आसानी से निकाल लेता है. इनके अलावा बकरी साल में दो बार बच्चों को जन्म देती है. और ये बच्चे डेढ़ साल बाद बच्चे देना शुरू कर देते हैं. इस तरह इनकी संख्या में काफी तेजी से बढ़ोतरी होती हैं. जिससे किसान भाई कुछ समय में ही कम पशुओं से बड़ा व्यवसाय शुरू कर सकता है.
बकरी का बाजार भाव दो सो से चार सो रूपये किलो के बीच पाया जाता हैं. अगर एक बकरी का वजन 10 किलो भी माना जाए तो एक बकरी की कीमत दो से चार हजार तक पाई जाती है. अगर किसान भाई साल भर में 30 बकरी बेचता हैं तो साल में एक लाख के आसपास आसानी से कमाई कर लेता है.
बकरी पालन के दौरान रखी जाने वाली सावधानियां
बकरी पालन के दौरान अधिक उत्पादन लेने के लिए कई तरह की सावधानियां रखनी होती हैं. ताकि पशुओं का जल्दी से विकास हो सके.
- बकरियों को बेचने के दौरान कभी भी वजन का अंदाजा नही लगाना चाहिए. इसलिए जानकारी के अभाव में किसान भाई अपने पशु को बिना वजन किये ही बेच देता है. इससे उसे काफी ज्यादा आर्थिक हानि उठानी पड़ जाती है. इसलिए पशु की बिक्री वजन करवाकर ही करनी चाहिए.
- बकरियों के रहने का स्थान ऊंचाई पर बनाए ताकि बारिश के वक्त पशुओं के बाड़े में पानी का भराव ना हो पाए.
- बाड़े के निर्माण के दौरान उसे खुला और हवादार बनाना चाहिए. ताकि गर्मी के मौसम में पशुओं को परेशानी का सामना ना करना पड़े.
- बड़े की साफ़ सफाई रोज़ करनी चाहिए. इससे पशुओं में बीमारी काफी कम देखने को मिलती है. और पशुओं पर खर्च भी कम आता है.
- पशुओं को हमेशा पौष्टिक भोजन देना चाहिए. इससे पशुओं का विकास अच्छे से होता है.
- पशुओं में किसी तरह की बीमारी ना फैले इसके लिए समय समय पशुओं का टीकाकरण करवाना चाहिए.
- पशुओं को उनकी उम्र के हिसाब से अलग अलग रखना चाहिए. इससे उन्हें दिया जाने वाला भोजन उचित पशु को उचित मात्रा में मिलता रहे.
- बकरी के छोटे बच्चों को जंगली जानवरों से बचाकर रखा जाना जरूरी है. इसके बच्चों को कुत्ते भी खा जाते हैं.
- किसी पशु में कोई ख़ास रोग दिखाई दे तो उसकी सलाह तुरंत पशु चिकित्सक से लेनी चाहिए. इसके अलावा रोगग्रस्त पशु को बाकी पशुओं से अलग कर दें ताकि अन्य पशुओं में रोग का प्रसार अधिक ना हो सके. अगर पशु मर जाये तो उसे दूर ले जाकर मिट्टी में दबा दें.
Sir 50 bakri ke liye shed ki Kya size honi chahiye plz reply