कटहल की खेती कैसे करें – पूरी जानकारी यहाँ लें

कटहल की खेती भारत में बड़े पैमाने पर की जा रही है. इसके पौधे को एक बार लगाने के बाद 30 साल तक फल देता हैं. कटहल को दुनियाभर में सबसे बड़ा फल माना जाता है. कटहल का इस्तेमाल फल और सब्जी दोनों रूपों में किया जाता हैं. इस कारण इसे फल और सब्जी दोनों की श्रेणी में रखा जाता है. कटहल के फल की ऊपरी सतह पर छोटे छोटे काटें पाए जाते हैं.

कटहल के अंदर विटामिन ए, सी, आयरन, कैल्शियम और पोटेशियम जैसे तत्व पाए जाते हैं जो शरीर के लिए लाभदायक होते हैं. कटहल खाने के बाद कभी भी पान नही खाना चाहिए. इससे पेट फूलकर बहुत मोटा हो जाता है. खाने और सब्जी के अलावा कटहल का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाइयों में भी किया जाता है.


कटहल की खेती उष्णकटिबंधीय जलवायु में की जाती हैं. इसके लिए ज्यादा सर्दी का मौसम अच्छा नही होता. इसको उगाने के लिए बलुई दोमट मिट्टी की जरूरत होती है. कटहल का पौधा साल में दो बार फल देता हैं. इसके एक फल का वजन 20 से 30 किलो तक पाया जाता है.

अगर आप भी इसकी खेती करना चाह रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

कटहल की खेती के लिए गहरी दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती हैं. इसके अलावा इसे लगभग सभी तरह की मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता हैं. जहाँ इसके पौधे को लगाये वहां का जल स्तर ज्यादा ऊँचा नही होना चाहिए. और मिट्टी में जलभराव नही होना चाहिए. अगर मिट्टी में जलभराव की स्थिति बनती है तो इसका पौधा एक सप्ताह में नष्ट हो जाता है. इसके लिए जमीन का पी.एच. मान 7 के आसपास ही होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

कटहल उष्णकटिबंधीय जलवायु का फल होने के कारण गर्म और आद्र जलवायु में आसानी से वृद्धि कर पाता हैं. सामान्य से थोड़ी ज्यादा वर्षा और गर्मी इसके लिए सबसे उपयुक्त होती हैं. जबकि ज्यादा ठंड और पाला इसको नुक्सान पहुँचाता हैं.

इसके पौधे के लिए किसी ख़ास तापमान की जरूरत नही होती. लेकिन सर्दियों में 10 डिग्री से नीचे तापमान जाने पर इसके पौधे और फल दोनों पर प्रभाव पड़ता हैं.

कटहल की किस्में

कटहल की खेती के लिए कई तरह की किस्में तैयार की गई हैं. जिनको इसके फल की गुणवत्ता के आधार पर तैयार किया गया है.

स्वर्ण मनोहर

उन्नत किस्म का कटहल

इसके पेड़ लम्बाई में कम बढ़ते हैं. 15 साल का पौधा भी मुश्किल से 5 मीटर लम्बा हो पाता है. इसके पौधे की लम्बाई कम होने के बाद भी इस पर फल अधिक मात्रा में लगते हैं. इस किस्म के पौधे पर फल फरवरी के पहले सप्ताह में ही आने शुरू हो जाते हैं. जो 20 से 25 दिन बाद सब्जी के लिए तैयार हो जाते हैं जिन्हें तोड़कर बाज़ार में बेचा जा सकता हैं. इसके फल को पकने में 2 महीने का टाइम लग जाता है. पके हुए फल का वजन 15 से 20 किलो तक पाया जाता हैं. इसके एक पौधे से एक बार में 300 से 500 किलो तक फल प्राप्त किये जा सकते हैं.

सिंगापुरी

कटहल की ये किस्म पके हुए फलो के लिए ज्यादा उपयुक्त होती हैं. इसके एक फल का वजन 7 से 10 किलो तक पाया जाता हैं. इसके पौधे को लगाने के लगभग दो से तीन साल बाद ये फल देना शुरु कर देता हैं. इसके फल सबसे ज्यादा दिनों तक पौधे पर लगे रहते हैं. जिनका गुदा फुरफुरा मीठा और पीले रंग का होता है.

रूद्धाक्षी

इस किस्म के एक फल का वजन 5 किलो के आसपास पाया जाता है. जो छोटे और ज्यादा काटें वाले होते हैं. यह सब्जी के लिए सबसे उपयुक्त किस्म है. जिसको दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा उगाया जाता है. इसके पूर्ण विकसित पौधे से 500 किलो तक फल प्राप्त किये जा सकते हैं.

खाजा

कटहल की ये किस्म सबसे ज्यादा उपज देने के लिए जानी जाती हैं. इसके एक फल का वजन 25 से 30 किलो तक पाया जाता है. इसके कोय पकने के बाद सफ़ेद, कोमल और रसदार हो जाते हैं. जो फल के रूप में सबसे उपयुक्त होते हैं.

स्वर्ण पूर्ति

कटहल की इस किस्म को सब्जी के रूप में ज्यादा उपयोग में लिया जाता हैं. इसके फलो का वजन 3 से 4 किलो के आसपास पाया जाता है. इसके फल का रंग गहरा हरा होता है. जिसके अंदर बीज छोटे और पतले आवरण वाले होते हैं. इसके फल में कोया की मात्रा ज्यादा होती है. और इसके फल पकने में सबसे ज्यादा टाइम लेते हैं. इस कारण इसके फलो को सब्जी के रूप में ज्यादा दिनों तक इस्तेमाल कर सकते हैं.

खेत की जुताई

कटहल का पौधा कई सालों के लिए एक बार उगाया जाता है. इसलिए खेत की शुरुआत में एक बार अच्छी जुताई कर उसे समतल कर देना ही काफी होता है. जिसके बाद खेत में 10 मीटर की दूरी पर एक मीटर चोडा और गहरा खड्डा बना लें. इन गड्डों को पौध लगाने के एक महीने पहले तैयार किया जाता है. उसके 15 बाद इन गड्डों में गोबर की खाद और उर्वरक डालकर खुला छोड़ दिया जाता हैं. जिसके 15 दिन बाद इनमें पौधे लगाये जाते हैं.

पौध तैयार करना

कटहल के पौधे को पौध और बीज के रूप में लगा सकते हैं. बीज से पौधे को उगाने पर लगभग 5 से 6 साल बाद फल लगने लगते हैं. बीज के रूप में पौधे लगाने के लिए बीजों को कटहल से निकालते ही मिट्टी में उगा देना चाहिए. इसके बीज को कटहल से बाहर निकालने के बाद ज्यादा देर बाहर रखा जाता है तो अंकुरण में परेशानी आती है.

इसकी पौध बनाने के लिए दो विधि का इस्तेमाल करते हैं.

गूटी बाधना

गूटी बाधने वाली विधि से पौधा तीन साल बाद फल देना शुरू कर देता हैं. इस विधि में पौध पेड़ की डालियों पर ही तैयार की जाती हैं. इसके लिए पेड़ पर लगी पतली डालियों पर गोल छल्ला बना लेते हैं. छल्ला बनाने वाली जगह से डाली की छाल हटा देते हैं जिससे डाली के अंदर वाला भाग दिखाई देने लगता है. इस भाग पर रूटीन हार्मोन लगाकर उसे गोबर मिलाई मिट्टी लगाकर पॉलीथीन से ढक देते हैं. यहाँ विधि बारिश के टाइम में करना सबसे अच्छा होता है. क्योंकि इससे मिट्टी में नमी बनी रहती हैं. जिससे जड़ें जल्दी निकल आती हैं. जब डाली से जड़ें निकल आयें तब डाली को अलग कर उसे गड्डों में लगा देना चाहिए.

ग्राफ्टिंग विधि

ग्राफ्टिंग विधि से पौध तैयार करना

इस विधि से मूल पौधे के पकी हुई शाखा को काटकर अलग कर लेते हैं. उसके बाद उसे एक तरफ से वी (v) आकर में छिल लेते हैं. जिसे हम किसी भी तरह के पौधे पर लगा सकते हैं. इस शाखा को दूसरे पौधे में लगाने के लिए पहले दूसरे पौधे की सभी पत्तियां निकल कर उसकी मुख्य शाखा को काटकर अलग कर देते हैं. उसके बाद उसके मूल तने को बीच से दो बराबर भागों में चीर देते हैं. इस चीरे भाग में हमारी कलमी शाखा को लगाकर उसे पॉलीथीन से बांधकर ढक देते हैं. और जब इसमें जड़ें निकल आयें तब इसे काटकर खेतों में लगा देना चाहिए.

पौधे की रोपाई का तरीका और टाइम

जब पौधे की कलम तैयार हो जाती है तो उन्हें खेतों में लगा देते हैं. इसके लिए पहले तैयार किये गए गड्डों में खाद और मिट्टी को अच्छे से मिक्स कर देते हैं. जिसके बाद पौधे को इन गड्डों में लगाकर उन्हें मिट्टी से 2 से 4 सेंटीमीटर तक ढक देते हैं. इन पौधों को अक्सर बारिश के मौसम में लगाना चाहिए. इसे पौधा अच्छे से वृद्धि करता है.

कटहल के पौधों को जून या जुलाई के महीने में लगाना सबसे बेहतर होता है.

पौधे की सिंचाई

कटहल के पौधे को ज्यादा पानी की जरूरत नही होती है. इस कारण बारिश के मौसम में इसे पानी नही देना चाहिए. अगर बारिश टाइम पर ना हो तो पौधों को आवश्यकता के अनुसार पानी देना चाहिए. बिना बारिश के मौसम में पौधों को 15 से 20 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण

कटहल के पौधों के गड्डों में नियमित अंतराल पर नीलाई गुड़ाई करते रहना चाहिए. और जब पौधा बड़ा हो जाए तब साल में दो से तीन बार गुड़ाई कर देनी चाहिए. इसके अलावा बारिश के मौसम के बाद खेत की जुताई कर देनी चाहिए. जिससे खरपतवार पर जन्म लेने के बाद खत्म हो जाती हैं.

उपरी कमाई

कटहल का पौधा तीन साल से भी ज्यादा टाइम बाद फल देना शुरू करता हैं. ऐसे में किसान भाई इसके पेड़ो के बीच बची हुई भूमि में कई तरह की फसल कर कमाई कर सकते हैं. जिससे किसानों को आर्थिक परेशानी का सामना भी नही करना पड़ता है. और उनकी कमाई भी हो जाती है.

पौधों को लगने वाले रोग

कटहल के पौधे को कई तरह के रोग लगते हैं. जिन्हें सही वक्त पर नही देखा जाए तो पौधा जल्द ही नष्ट हो जाता है.

फल सडन

रोगग्रस्त फल

पौधों पर ये रोग फल लगने के टाइम दिखाई देता है. इसके लगने पर फल डंठल के पास से सड़ना शुरू हो जाते हैं. कटहल पर ये रोग राइजोपस आर्टोकार्पी नामक फफूंद की वजह से लगता है. इसकी रोकथाम के लिए पौधे पर ब्लू कॉपर की उचित मात्रा को पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए.

तना छेदक

पौधे पर ये रोग किसी भी अवस्था में लग सकता हैं. इस रोग के लगने पर किट पौधे के तने में सुरंग बना देते हैं. और पौधे के जीवित भाग को खाकर पौधे की वृद्धि को रोक देते हैं. जिससे पौधा जल्द सूखने लगता हैं और पत्तियां पीली पड़कर गिर जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए तने पर दिखाई देने वाले छिद्रों में केरोसिन (मिट्टी का तेल) से भीगी रुई भर दें. या छिद्रों पर चिकनी मिट्टी का लेप कर दें.

गुलाबी धब्बा

इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों के नीचे की तरफ गुलाबी रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. इसके लगने पर पौधा अच्छे से विकास नही कर पाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर कॉपर आक्सीक्लोराइड या ब्लू कॉपर की उचित मात्रा के घोल को छिड़कना चाहिए.

बग

पौधों पर ये रोग ज्यादातर पत्तियों और नई शाखाओं पर लगता है. इस रोग के लगने पर पत्तियां पीली पड़ने लग जाती हैं. और पौधे की वृद्धि रुक जाती है. इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान 0.5 प्रतिशत की उचित मात्रा को पानी में मिलकर पौधे पर छिडकाव करना चाहिए.

उर्वरक की मात्रा

कटहल के पौधों को खेत में लगाते टाइम हर गड्डे में 20 किलो गोबर की खाद, 100 ग्राम एन.पी.के. की मात्रा मिट्टी में मिला देनी चाहिए. उसके बाद साल दर साल इसकी मात्रा बढ़ाते रहना चाहिए.

पैदावार और लाभ

कटहल का फल

कटहल का पौधा लगाने के लगभग तीन से चार साल बाद पैदावार देना शुरू कर देता है. जबकि कुछ किस्में इससे भी ज्यादा टाइम लेती हैं. हर किस्मों के आधार पर इसकी अलग अलग पैदावार ली जाती है. जिससे साल भर में 500 से 1000 किलो तक फल प्राप्त हो जाते हैं. बाज़ार में इसकी अच्छी कीमत मिल जाती है. जिससे हर पौधे से साल में तीन से चार हज़ार की कमाई हो जाती है. और एक हेक्टेयर में इसके 150 से ज्यादा पौधे लगाये जा सकते हैं. जिसने साल भर में तीन से चार लाख तक की पैदावार ली जा सकती है.

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