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हल्दी की खेती कैसे करें – पूरी जानकारी यहाँ लें

2019-06-19T18:04:58+05:30Updated on 2019-06-19 2019-06-19T18:04:58+05:30 by bishamber Leave a Comment

हल्दी की पैदावार मिट्टी के अंदर कंद के रूप में होती है. हल्दी का ज्यादा इस्तेमाल मसाले के रूप में होता है. हल्दी का इस्तेमाल हिन्दू समाज में धार्मिक रीति रिवाज़ों में भी होता है. और शादी विवाह के टाइम हल्दी की खास रस्म भी निभाई जाती है. मसाले और धर्मिक कार्यों के अलावा हल्दी का इस्तेमाल दवाइयों और सौंदर्य प्रसाधन की चीजों में भी किया जाता है. हल्दी के इस्तेमाल से कई तरह की बीमारियों से निजात मिलती है. जबकि दूध में मिलाकर पीने से अंदरूनी चोट सही हो जाती है.

Table of Contents

  • उपयुक्त मिट्टी
  • जलवायु और तापमान
  • हल्दी की उन्नत किस्में
    • राजेन्द्र सोनिया
    • सोरमा
    • आर.एच. 5
    • सगुना
    • आरएच 13/90
  • खेत की जुताई
  • बीज की रोपाई का टाइम और तरीका
  • हल्दी की सिंचाई
  • उर्वरक की मात्रा
  • खरपतवार नियंत्रण
  • फसल को लगने वाले रोग
    • थ्रिप्स
    • लीफ ब्लाच
    • प्रकंद विगलन
    • पत्ती धब्बा
    • तना छेदक
  • हल्दी की खुदाई और सफाई
  • पैदावार और लाभ

आयुर्वेद चिकित्सा में हल्‍दी को हमेशा एक महत्वपूर्ण औषधि‍ माना गया है. आज आयुर्वेदिक चीजों में हल्दी का इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा है. ज्यादातर लोग सिर्फ पीली हल्दी के बारें मे ही जानते हैं. लेकिन पीली हल्दी के अलावा काली हल्दी भी पाई जाती है. बिमारियों के उपचार में काली हल्दी, पीली हल्दी से ज्यादा बेहतर मानी जाती है. वैसे हल्दी के गुणों के बारें में जितना बताया जाए उतना कम है.

हल्दी की पैदावार गर्म और आर्द्र जलवायु में की जाती है. इसकी खेती के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. इसकी पैदावार पानी भरने वाली मिट्टी में नही की जा सकती. इसके लिए जल निकासी वाली मिट्टी ही सबसे उपयुक्त होती है. इसकी खेती छायादार जगह में की जाती है.

अगर आप भी हल्दी की खेती करना चाहते हैं तो आज हम आपको इसके बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

हल्दी की पैदावार के लिए उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. इसके अलावा इसे हल्की दोमट मिट्टी और उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि में भी लगाया जा सकता है. इसके लिए जमीन की पी.एच. मान 5.5 से 7.5 तक होना चाहिए. जलभराव वाली काली भारी मिट्टी में इसकी खेती नही की जा सकती.

जलवायु और तापमान

हल्दी की खेती को गर्म और आर्द्र जलवायु की जरूरत होती है. ज्यादा सर्दी और गर्मी इसकी फसल के लिए नुकसानदायक होती है. इसलिए इसकी खेती छायादार जगह पर की जाती है. इसकी पैदावार सालभर में एक बार ली जाती है. जब इसका कंद पकता है तब इसे ज्यादा गर्मी की जरूरत होती है.

हल्दी के बीज को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री तापमान की जरूरत होती है. उसके बाद पौधे को वृद्धि करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है.

हल्दी की उन्नत किस्में

हल्दी की कई तरह की किस्में पाई जाती है. जो हल्दी की उपज और पीलेपन के आधार पर विकसित की गई हैं.

राजेन्द्र सोनिया

उन्नत किस्म का पौधा

राजेन्द्र सोनिया हल्दी की उन्नत किस्म है. इसके कंद में पीलेपन की मात्रा 8 से 8.5 प्रतिशत तक पाई जाती हैं. इस किस्म के पौधे की लम्बाई तीन फिट तक पाई जाती है. इसके पौधे को तैयार होने में 7 से 8 महीने का टाइम लगता है. एक हेक्टेयर में इसके ताज़े कंद की पैदावार 400 से 450 क्विंटल तक हो जाती है.

सोरमा

हल्दी की इस किस्म को तैयार होने में 7 महीने का टाइम लगता है. प्रति हेक्टेयर इसके ताज़े कंदों की पैदावार 350 से 400 क्विंटल तक हो जाती है. इसके पौधों को रोग कम लगते हैं. इसके कंद के अंदर पीलेपन की मात्रा 9 प्रतिशत तक पाई जाती है.

आर.एच. 5

इस किस्म के पौधों की लम्बाई तीन फिट तक पाई जाती है. इसके कंदों को तैयार होने में 7 महीनों से ज्यादा का टाइम लगता है. जिनमें पीलेपन की मात्रा 7 प्रतिशत तक पाई जाती है. इस किस्म के ताज़े कंदों की प्रति हेक्टेयर पैदावार 500 क्विंटल से ज्यादा होती है.

सगुना

हल्दी की इस किस्म को तैयार होने में 7 महीने से भी ज्यादा का वक्त लगता है. इसके पौधे ज्यादा लम्बे नही होते बल्कि इनकी शाखाएं निकलती है. इसके ताज़े कंदों की पैदावार 600 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. जिनके अंदर पीलेपन की मात्रा 6 प्रतिशत तक पाई जाती है.

आरएच 13/90

इस किस्म के पौधों की लम्बाई चार फिट तक पाई जाती है. जिनके कंद को तैयार होने में 7 महीने का टाइम लगता है. इसके ताज़े कंदों की प्रति हेक्टेयर पैदावार 500 क्विंटल के आसपास होती है.

खेत की जुताई

हल्दी की खेती के लिए शुरुआत में पलाऊ लगाकर कुछ दिनों के लिए खेत को खुला छोड़ दें. उसके बाद खेत में गोबर की खाद डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें और खेत में पानी छोड़ दे. जिसके कुछ दिनों बाद खेत की फिर अच्छे से जुताई करें. इससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है. उसके बाद खेत में पाटा लगाकर उसे समतल बना दें. खेत के समतल बन जाने के बाद उसमें एक फिट की दूरी पर मेड बना दें.

बीज की रोपाई का टाइम और तरीका

हल्दी के पौधे की रुपाई

हल्दी की खेत में रोपाई मई महीने में करना सबसे उपयुक्त माना जाता है. इसके अलावा इसे जून के पहले सप्ताह में भी उगा सकते हैं. मई जून के बाद बारिश का मौसम होने की वजह से तापमान ज्यादा नही होता है. और बारिश के होने पर सिंचाई की भी ज्यादा जरूरत नही पड़ती.

हल्दी के बीज की रोपाई दो तरीकों से की जाती है. पहले तरीके में इसे खेत में मेड पर लगाया जाता हैं. मेड पर लगते टाइम बीजो के बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. इसके लिए 7 से 8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत पड़ती हैं.

दूसरे तरीके में समतल भूमि में बीज को एक लाइन में 18 से 20 सेंटीमीटर की दूरी पर डाल देते हैं. प्रत्येक दो लाइनों के बीच एक फिट की दूरी रखते हैं. उसके बाद इन दो लाइनों पर बड़े हल से मिट्टी चढ़ा देते हैं.

बीज को खेत में लगाने से पहले मैंकोजेब और कार्बेन्डाजिम के घोल में 30 मिनट तक डूबाकर रखते हैं. उसके बाद उसे छाया में सुखा लेते हैं. फिर बीज की गाठों को तोड़कर खेत में उगाते हैं. लेकिन बीज की गाठों को तोड़ते वक्त ध्यान रखे की हर बीज में 2 से 3 आँख होनी चाहिए. बीज रोपाई के बाद हो सके तो खेत को पुलाव से ढक दें. जिससे खरपतवार नियंत्रित होता हैं. और बीज अच्छे से अंकुरित होता है.

हल्दी की सिंचाई

हल्दी की फसल को बारिश के मौसम में उगाया जाता हैं. इस कारण इसकी फसल को शुरुआत में पानी की जरूरत नही होती है. लेकिन अगर बारिश ना हो तो फसल को आवश्यकता के अनुसार पानी देना चाहिए. बारिश के टाइम पर होने से इसकी खेती को सिर्फ 4 या 5 सिंचाई की ही जरूरत होती है. जब बारिश का मौसम समाप्त हो जाये तो इसकी सिंचाई 25 दिन के अंतराल में करनी चाहिए.

उर्वरक की मात्रा

बीज की बुवाई के एक महीने पहले लगभग 25 गाडी गोबर का खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दें. उसके बाद पोटाश 80 किलो, नाइट्रोजन 100 किलो, फास्फोरस 40 किलो और जिंक 25 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में आखिरी जुताई के टाइम दें.

बीज के अंकुरित होने के 50 दिन बाद एन.पी.के. के एक बोर को तीन बराबर भागों में बांटकर एक हिस्से को खेत में छिडक दें. उसके बाद दूसरे हिस्से को लगभग डेढ़ महीने बाद पौधों को दे. और बाकी बचे तीसरे हिस्से को उसके दो महीने बाद पौधों को दें.

खरपतवार नियंत्रण

हल्दी की फसल के लिए खरपतवार नियंत्रण जरूरी होता है. क्योंकि खरपतवार में जन्म लेने वाले कीटों की वजह से फसल को कई रोग लग जाते हैं. इसलिए खरपतवार नियंत्रण के लिए इसमें तीन से चार नीलाई गुड़ाई करनी पड़ती है. इसकी पहली नीलाई गुड़ाई एक महीने बाद करनी चाहिए. उसके बाद 30 से 40 दिन के अंतराल में नीलाई गुड़ाई करनी चाहिए. प्रत्येक गुड़ाई के टाइम पौधों पर मिट्टी जरुर चढ़ा दें.

फसल को लगने वाले रोग

रोगग्रस्त पौधा

हल्दी के पौधे को कई तरह के रोग लगते हैं. जो पौधे की अलग अलग अवस्थाओं पर लगते हैं. जो इसकी पैदावार पर असर डालते हैं.

थ्रिप्स

पौधों पर थ्रिप्स का रोग कीटों की वजह से लगता है. इस रोग वाले कीट पौधे की पत्तियों का रस चूसकर उन्हें नष्ट कर देते हैं. ये कीट चितकबरे होता हैं जिन पर लाल, काला रंग पाया जाता हैं. इसकी रोकथाम के लिए पौधे पर कार्बाराइन या डाई मिथियोट का छिडकाव 15 दिन के अंतराल में तीन बार करें.

लीफ ब्लाच

लीफ ब्लाच रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. जो बाद में बड़े होने लगते हैं. इससे पैदावार पर असर पड़ता हैं. इनकी रोकथाम के लिए पौधों पर मैकोजेब का छिडकाव करें.

प्रकंद विगलन

हल्दी के पौधों में ये रोग ज्यादातर उन जगहों पर होता है जहाँ पानी का भराव ज्यादा होता है. इसके लिए खेत में पानी का भराव नही होने दें. ये रोग पौधे की जड़ों में लगता हैं. इसके लगने पर कंद सड़कर ख़तम हो जाता है. जिससे पत्तियों का रंग पीला पड़ने लगता है और जल्द ही पूरा पौधा सुखकर नष्ट हो जाता है. इस रोग से पौधों को बचाने के लिए इंडोफिल एम – 45 और वेभिस्टीन के मिश्रण में बीज को बोने से पहले उपचारित कर लेना चाहिए. खेत में उगी फसल पर जब ये रोग लगे तो इस मिश्रण का छिडकाव पौधे पर और उसकी जड़ों पर करना चाहिए.

पत्ती धब्बा

पौधों पर ये रोग किसी भी अवस्था में लग सकता है. इसके लगने पर पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बनने लगते हैं. इससे हल्दी की गाठें अच्छे से विकास करना बंद कर देती है. जिसका असर पैदावार पर पड़ता हैं. इसकी रोकथाम के लिए ब्लाइटाक्स का छिडकाव पौधे पर एक सप्ताह के अंतराल में करना चाहिए.

तना छेदक

पौधे पर ये रोग कीट की वजह से लगता हैं. ये रोग पौधों पर शुरूआती अवस्था में ही ज्यादा देखने को मिलता हैं. इसके कीट पौधे के तने के अंदर जाकर उसको खाते हैं. जिससे पौधा जल्द पीला पड़ने लगता है और सुखकर नष्ट हो जाता है. इसकी रोकथाम के लिए पौधे पर ट्राइजोफास की 2 मिलीग्राम मात्रा को प्रति लीटर की दर से पानी में मिलाकर छिड़कना चाहिए.  और छेदों पर चिकनी मिट्टी का लेप कर देना चाहिए.

हल्दी की खुदाई और सफाई

हल्दी की गांठो को तैयार होने में लगभग सात महीने का टाइम लगता है. इसके कंद पकने पर पौधे की पत्तियां सुखने लगती हैं. जब इसके कंद पूरी तरह से पक जाते हैं तो उन्हें खेत से बाहर निकाल लिया जाता है. इसके कंदों को अगर व्यापारिक तौर से बेचने के लिए बाहर निकलते है तो, कंद के पकने के बाद बहार निकाल लेते हैं. लेकिन अगर कंद को बीज बनाने के लिए बाहर निकालते है तो इन्हें तब तक बाहर ना निकाले जब तक पौधे की सारी पत्तियां सुखकर खत्म ना हो जाए.

खेत से निकली गई हल्दी

कंद की सफाई के लिए उसे मिट्टी से निकालकर अच्छे से पानी से धोया जाता हैं. जिसके बाद उसको छाया में सुखाया जाता हैं. उसके बाद उसे बाज़ार में बेच दिया जाता है.

कंद से हल्दी की गाठें बनाने के लिए पहले उसे पानी में डालकर उबाला जाता है. उबलते हुए पानी मे 10 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से सोडियम बाइकार्बोनेट उसमें डालते हैं जिससे हल्दी का रंग और भी आकर्षक हो जाता है. उबली हुई हल्दी को छायादार जगह में 2 से 3 घंटे सुखाने के बाद उसके छिलके को उतारकर गाठों को तोड़ देते हैं. उसके बाद गांठो को धुप में सुखा देते हैं.

पैदावार और लाभ

हल्दी की अलग अलग किस्मों से प्रति हेक्टेयर 200 से 500 क्विंटल तक पैदावार हो जाती है. जो सुखाने के बाद 20 से 25 प्रतिशत रह जाती है. जिसका बाज़ार भाव 6 से 10 हज़ार तक पाया जाता है. जिससे किसान भाई प्रति हेक्टेयर 5 लाख तक की कमाई सालभर में कर सकते हैं.

Filed Under: मसाले Tagged With: haldi, Turmeric, हल्दी

Comments

  1. Ramkesh Meena says

    October 28, 2020 at 1:53 pm

    haldi ka bij kaisa hota hai

    Reply

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