काली मिर्च का पौधा एक सदाबाहर पौधा है. इसके पत्ते हमेशा हरे दिखाई देते हैं. काली मिर्च का सबसे ज्यादा उपयोग मसाले के रूप में होता है. इसके अलावा काली मिर्च का इस्तेमाल आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा में भी किया जाता है. काली मिर्च के इस्तेमाल से पेट और आँखों से संबंधित बीमारीयां नही होती हैं.
काली मिर्च का जन्म स्थान दक्षिणी भारत को माना जाता है. दक्षिण भारत में इसके सबसे बड़े उत्पादक राज्य केरल, कर्नाटक और तमिलनाडू हैं. इसके अलावा महाराष्ट्र, अंडमान निकोबार द्वीप और उत्तर पूर्वी राज्यों में भी काली मिर्च की खेती आंशिक तौर पर होती है. दक्षिण भारत के हर घर में इसके पेड़ मिल जाते हैं. भारत में इसकी पैदावार बड़े पैमाने पर की जाती है. भारत इसका बड़ा निर्यातक और उपभोगकर्ता देश भी हैं.
काली मिर्च की खेती पर्याप्त वर्षा और आर्द्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है. इसके लिए दक्षिण भारत की मिट्टी सबसे उपयुक्त है. इस कारण दक्षिण भारत में इसकी खेती ज्यादा की जाती हैं. काली मिर्च के पौधों को कलम और बीज दोनों ही तरीके से उगाया जा सकता है. लेकिन इसके पौधों को कलम के माध्यम से उगाना सबसे अच्छा माना जाता है. काली मिर्च का पौधा बेल के रूप में लम्बा बढ़ता है. जबकि मिट्टी में इसकी जड़ें 2 मीटर की गहराई तक जा सकती हैं. काली मिर्च का पौधा तीन साल बाद पैदावार देना शुरू करती है.
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इसकी खेती बागबानी तरीके से की जाती है. जिस कारण काली मिर्च के पौधे को एक बार खेत में लगाने के बाद उससे कई सालों तक फसल प्राप्त की जा सकती हैं. काली मिर्च की रुपाई खेतों में एक बार ही करनी पड़ती है. जिससे बार बार पौधे के लगाने पर आने वाले खर्च भी कम हो जाता है. इसकी खेती से किसानों को काफी मुनाफा मिलता हैं. क्योंकि इसका बाज़ार भाव 400 रूपये प्रति किलो से भी ज्यादा होता है. और एक पेड साल में 6 किलो से भी ज्यादा फल दे सकता है.
अगर आप भी काली मिर्च की खेती करने की सोच रहे हैं तो आज हम आपको इसके बारें में संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
काली मिर्च की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
काली मिर्च की खेती के लिए लाल लैटेराइट मिट्टी और लाल मिट्टी दोनों ही सबसे उपयुक्त मिट्टी हैं. क्योंकि इस प्रकार की मिट्टी में ज्यादा पानी भरने पर पौधों की जड़ें गलने या खराब होने की संभावनाएं काफी कम होती हैं. लाल मिट्टी के अलावा और भी कई तरह की मिट्टी में इसकी खेती की जा सकती हैं. इसके लिए मिट्टी की पी.एच. का मान 5 से 6 के बीच होना चाहिए. काली मिर्च की खेती करते टाइम ध्यान रखे कि इसकी खेती उसी जगह पर करें जहाँ की मिट्टी में पानी के भरने पर पौधों की जड़ें गलने की समस्या ना हो या फिर पानी ना भरता हो.
काली मिर्च की खेती के लिए जलवायु और तापमान
काली मिर्च की खेती पर्याप्त वर्षा वाले आर्द्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है. काली मिर्च की बेल ज्यादा ठंड को सहन नही कर पाती है. जिस कारण इसकी खेती ठंडे प्रदेशों में नही कर सकते. जबकि इसकी खेती गर्म और आद्र जलवायु वाली जगहों पर आसानी से की जा सकती हैं. लेकिन ऐसी जगहों पर सिंचाई की जरूरत ज्यादा होती है. इसके अलावा समुद्रतट से 1500 मीटर ऊचाई वाली जगहों पर भी इसे मिट्टी की गुणवत्ता को देखकर उगाया जा सकता है.
काली मिर्च की बेल के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान सबसे उपयुक्त होता है. जबकि ये अधिकतम 40 डिग्री तापमान को भी सहन कर सकती है. काली मिर्च के पौधे को वृद्धि के लिए न्यूनतम 10 तापमान की जरूरत होती हैं. लेकिन 10 डिग्री से कम तापमान होने पर इसके पौधे की वृद्धि रुक जाती है. इसके अलावा काली मिर्च के पौधे के लिए साल में 2000 मिलीमीटर बारिश का होना भी जरूरी होता है.
उन्नत किस्में
काली मिर्च को काला सोना कहा जाता है. भारत में काली मिर्च की कई किस्में प्रचलन में हैं. जिनमें दक्षिण केरल की कोट्टनाडन, मध्य केरल की नरायकोडी, केरल की कारीमुंडा सबसे बढ़िया किस्में हैं. इनके अलावा नीलमुंडी, बालनकोट्टा और कुतिरवल्ली किस्में भी बड़ी मात्रा में उगाई जाती हैं. ये सभी किस्में पुरानी परंपरागत किस्में मानी जाती हैं. इन सभी किस्मों में गुणवत्ता के आधार पर दक्षिण केरल की कोट्टनाडन सबसे अच्छी किस्म हैं. इसके अंदर अनिवार्य तेल की मात्रा 17.8 प्रतिशत तक पाई जाती है.
लेकिन अब कई नई प्रजातियाँ आ गई हैं जिन्हें संकरण के माध्यम से तैयार किया गया है. जिनमें कई किस्में शामिल हैं. लेकिन पन्न्युर-1 से पन्न्युर-8 तक की किस्म को सबसे अच्छा माना जाता हैं. इन किस्मों को गुणवत्ता की दृष्टि से उपयुक्त माना जाता हैं. इनसे बड़ी मात्रा में फल प्राप्त होते हैं.
इनके अलावा भारतीय मसाला फसल अनुसंधान संस्थान कोझीकोड के द्वारा भी दो किस्मों (आईआईएसआर–गिरी मुंडा, आईआईएसआर–मालाबार एक्सल) का विकास किया गया हैं. इनकी एक हेक्टेयर में पैदावार 1440 किलो तक हो जाती है. इसके अंदर 4.9 प्रतिशत तक पिपेरीन, 14.9 प्रतिशत तक ओलियोरेसिन और 4.1 प्रतिशत तक अनिवार्य तेल पाया जाता है. इन्हें ऊचाई वाली जगहों पर आसानी से उगाया जा सकता है.
खेत की जुताई
काली मिर्च के पौधे को एक बार ही खेत में बोया जाता है. जिसके बाद इसकी बेल 25 से 30 साल तक फल देती हैं. इस कारण जब इसकी खेती शुरू करें तो खेत की अच्छे से जुताई कर दें. और जुताई करने के बाद उसमें एक सामान दुरी पर लाइन में गड्डे बना दे. इन गड्डों के सहारे लम्बे बांस गाड दें ताकि बेल उन पर आसानी से चढ़ सके. इन गड्डों के बीच की दूरी 10 से 12 फिट तक होनी चाहिए. ताकि बाद के खरपतवार होने पर बीच से खेत की जुताई कर सकें.
पौध तैयार करना
काली मिर्च के बीज को सीधा खेत में नही लगा सकते, इसके लिए पहले पौध तैयार की जाती है. जिसके बाद उसे खेतों में लगाया जाता है. इसके लिए कई विधि उपयोग में ली जाती हैं. इन सभी विधियों के बारे में हम आपको बताने वाले हैं.
साधारण विधि (स्कोरेफिकेशन)
इस विधि के माध्यम से हम बीज से पौधा तैयार करते हैं. इसके लिए उपजाऊ मिट्टी को किसी पॉलीथिन या गमले में भरकर उसमें बीज डाल देते हैं. बीज को गमलें में उगने से पहले उसे एक रात सिरका मिले पानी में डालकर रखते हैं. पानी में डालते वक्त जो बीज पानी की ऊपरी सतह पर आ जाते हैं उन्हें निकालकर फेंक देते हैं. जिसके बाद बाकी बचे बीजों को गमलों में रोपित कर देते हैं. और मिट्टी में पानी डालते रहते हैं. इस विधि से बीज से पौधा निकलने में एक महीने का भी टाइम लग सकता हैं.
परंपरागत विधि
इस विधि के माध्यम से उच्च गुणवत्ता वाले पौधों के प्ररोह को मिट्टी में लगाकर पौध तैयार करते हैं. इसके लिए मिट्टी में समान मात्रा में गोबर की खाद डालकर मिक्स कर लेते हैं. जिसके बाद प्ररोह के मिट्टी में लगाये जाने वाले भाग को रूटीन हार्मोन लगाकर मिट्टी में गाड़ देते हैं. जिसेक बाद ध्यान रखे कि जहाँ पौधे को रख रहे हैं वहां सूर्य का प्रकाश सीधा पौधे को नही लगना चाहिए.
इसको लगाने का सबसे सही टाइम मार्च और अप्रैल का माना जाता है. पौधे में नमी बनाये रखने के लिए उसे रोज़ हल्का पानी देते रहना चाहिए. और जब प्ररोह से जड़ें बनना शुरू हो जाएं और शाखाएं बहार निकल आयें तो उन्हें खेतों में लगा सकते हैं. पौधों को खेत में लगाने से पहले पॉलीथिन को हटा दें. लेकिन इस दौरान ध्यान रहे कि पॉलीथिन हटाते टाइम जड़ों के पास वाली मिट्टी नही टूटनी चाहिए.
सर्पेंनटाइन विधि
इस विधि के माध्यम से एक बेल से कई पौधे विकसित कर सकते हैं. काली मिर्च के रोपण की ये विधि सबसे सस्ती विधि हैं. इस विधि में मुख्य पौधे को एक बड़ी पॉलीथिन में 500 ग्राम उपजाऊ मिट्टी डालकर लगा देते हैं. जिसके बाद उसे किसी छायादार जगह पर रख देते हैं. और जब पौधे से बेल बनना शुरू हो जाती हैं तो उसमें कुछ कुछ दुरी पर गांठे बनने लगती हैं. इन गाठों को हम फिर से बिना काटें छोटी पॉलीथिन में मिट्टी डालकर उसमें दबा देते हैं. लेकिन इसके लिए दो गाठों के बीच एक गांठ छोडकर उन्हें मिट्टी में दबाना चाहिए. और उनमें भी उचित मात्रा में पानी डालते रहना चाहिए. कुछ दिन बाद इन गांठों में भी जड़ें बनना शुरू हो जाती हैं और नई शाखा बनने लग जाती हैं. इस प्रक्रिया के माध्यम से जल्द ही कई पौधे बनकर तैयार हों जाते हैं. जिन्हें मूल तने से अलग कर खेतों में आसानी से लगा सकते हैं. इसको खेतों में लगाने का सबसे अच्छा समय सितम्बर माह का होता है.
प्लग ट्रे प्रवर्धन (बिना मिट्टी के उपयोग) से पौध उगाना
इस विधि में पौधे को उगाने के लिए मिट्टी की आवश्यकता नही होती. इस विधि में नारियल के जुट और केचुए की खाद (वर्मी कम्पोस्ट) की आवश्यकता होती हैं. जिसके लिए इन दोनों को 75:25 के अनुपात में मिला लिया जाता हैं. जिसके बाद इसमें ट्राइकोडरमा आधारित टालक पाउडर की 10 ग्राम मात्रा इसमें डालकर मिश्रण तैयार कर लेते हैं. जिसके बाद इस मिश्रण को प्लग ट्रे में भरकर पौधा रोपण के लिए तैयार कर लेते हैं. इस मिश्रण से ट्रे में 15 सेंटीमीटर मोटी बेड तैयार करते हैं. जिसमें पौधे को लगा देते हैं. पौधे को लगाने के बाद ट्रे को समान ताप वाले पॉलीहाउस में रख देते हैं. और टाइम टाइम पर उसमें पानी देते रहते हैं. जिससे कुछ दिनों बाद ही पौधे में नोड बनना शुरू हो जाती हैं. लेकिन इन सभी नोड को रुटेड मीडियम की सहायता से दबा देते हैं. जिससे नई पौध तैयार हो जाती हैं. जब इन सभी नोड पर नई पत्तियां बनने लगती हैं तब इन्हें बहार निकालकर प्राक्रतिक हवा वाली छायादार जगह में रख देते हैं. और जब इनसे पौध पूरी तरह से तैयार हो जाती हैं, तब इन्हें काटकर अलग अलग जगह रोपित कर देते हैं.
पौध के रोपण का टाइम और तरीका
काली मिर्च की पौध शुरुआती टाइम में ज्यादा धूप को सहन नही कर सकती, इस कारण शुरूआती तेज़ धूप से बचाव के लिए इन्हें सितम्बर माह के बाद खेतों में लगाना चाहिए. पौधे को खेत में लगाने के बाद इन्हें दो साल तक धूप से बचाकर रखा जाता है. ऐसे में पौधों को धूप से बचने के लिए उसे किसी बड़े तिरपाल से ढक देना चाहिए. इसके अलावा इसे मानसून के शुरु होने के साथ भी लगा सकते हैं. उस टाइम इसे सहायक पौधों के पास उत्तर दिशा में लगाना चाहिए.
पौधों का रोपण करते टाइम ध्यान रखे की हर पौधे के बीच 3 मीटर से ज्यादा की दूरी रखनी चाहिए. और इसे कुछ ढलान वाली भूमि पर लगाने से पौधों को लाभ मिलता हैं. जिससे सीधी धूप पौधों को नही लगती है. बांस के अलावा इसका रोपण हम सहायक पौधा लगाकर भी कर सकते हैं. काली मिर्च का पौधा बेल के रूप में बढ़ता है. इस कारण इसकी रुपाई से पहले सहायक पौधों को तीन तीन मीटर की दूरी पर लगा दें. और जब सहायक पौधा बड़ा होने लगे तब काली मिर्च के पौधे को सहायक पौधे के पास लगा दें. पौधों को खेत में सहायक पौधों के साथ में लगाने के लिए 50 सेंटीमीटर का गड्डा खोदकर नीचे लगाना चाहिए. इस दौरान पौधे की एक और गांठ (नोड) को मिट्टी के अंदर दबा देना चाहिए. इससे पौधे की स्थापना और भी अच्छे से हो जाती है.
काली मिर्च की खेती के लिए एक हेक्टेयर में बिना सहायक पौधे के 1600 से ज्यादा पौधे लगाये जा सकते हैं. जबकि सहायक पौधों के साथ 1100 पौधे लगाये जा सकते हैं. काली मिर्च की बेल 30 मीटर से भी लम्बी बन सकती हैं. लेकिन किसान भाइयों को बेल की लम्बाई 8 से 10 मीटर तक ही रखनी चाहिए. इससे फल तोड़ने में आसानी रहती है.
उर्वरक की मात्रा
काली मिर्च के पौधे को खेत में लगते टाइम गड्डों में उर्वरक उचित मात्र में ही डालना चाहिए. क्योंकि उचित मात्रा ही पौधों को बढ़ने में ज्यादा सहायक होती हैं. शुरुआत में पौधा लगाने से पहले हर गड्डे में 10 किलो कम्पोस्ट या गोबर की खाद डालें. इसके साथ एक किलो नीम केक के मिश्रण को डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दें. जिसके बाद पौधे को गड्डे में लगायें.
अगर मिट्टी में अम्लीय गुण ज्यादा हो तो हर साल प्रत्येक पौधे को 500 ग्राम चुना या डोलामाइट देना चाहिए. इसे पौधे को बारिश के मौसम से पहले अप्रैल या मई महीने में देना चाहिए. जिससे पौधा अच्छे से वृद्धि करता हैं.
जब पौधा पूरी तरह से विकसित हो जाये तब पहली साल में एन.पी.के. (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम) को 1:1:3 के अनुपात के एक तिहाई भाग को पौधों को दें. और दुसरे साल में 1:1:4 के अनुपात के दो तिहाई भाग को पौधों को दें. जबकि तीसरे साल में इसके 1:1:5 वाले मिश्रण को साल में दो बार दें. पहली बार जून माह में दे जबकि दूसरी बार सितम्बर माह में दें. अधिक पैदावार लेने के लिए विशेष सूक्ष्म पोषक मिश्रण के 5 ग्राम को एक लीटर पानी में मिलाकर पौधों को दे. इसको पौधों को तभी दें जब पौधे में फूल बन रहे हों.
पौधे की सिंचाई
काली मिर्च के पौधे को पानी की जरूरत ज्यादा होती होती है. इस कारण इसकी पहली सिंचाई पौधे के रोपण के साथ ही कर देनी चाहिए. जिसके बाद इसे लगातार पानी देते रहना चाहिए. जिससे पौधे में नमी बनी रहे. अगर पौधे को कम पानी देते है तो पौधे के पत्ते पीले पडकर झड़ने लग जाते हैं. लेकिन जब पौधे पर फूल आ रहे हो तब पौधे को पानी बहुत कम मात्रा में दें. क्योंकि ज्यादा पानी देने से पौधे के फूल झड जाते हैं. जिससे पैदावार कम होती है.
पौधों को लगने वाले रोग
काली मिर्च के पौधों को रोग कवक और कीटों के माध्यम से ही लगते हैं. इसलिए इनका रोकथाम ज़रुरी होता है. अगर इनका रोकथाम नही करते हैं तो पौधे की जड़ें जल्द ही खराब हो जाती हैं.
फाइटोफ्थोरा रोग
इस रोग का प्रभाव पौधे के शुरुआती टाइम में ही देखने को मिलता है. इस रोग के लगने से पौधे की जड़ें सड़ने लगती लगती हैं. पौधे की पत्तियों और तने पर काले रंग के धब्बे बनने शुरू हो जाते हैं. जिसके बाद पत्तियों पर इन धब्बों का आकार बढ़ने लगता है और पत्तियां सडकर टूट जाती हैं. और धीरे धीरे पौधा पूरा नष्ट हो जाता है. इसकी रोकथाम के लिए शुरुआत में ही पौधे पर बोर्डों मिश्रण का छिडकाव करें. इसके अलावा कोप्पर ओक्सिक्लोराइड से पौधे के आसपास की मिट्टी को उपचारित कर देना चाहिए.
एन्थ्रेकनोज रोग
पौधे में यह रोग कवक के माध्यम से फैलता है. जो कोलोटोट्राइकम ग्लोयोस्पोरोयाड्स नामक कवक की वजह से होता है. यह पौधे की पत्तियों को सबसे ज्यादा नुकशान पहुंचाता है. इसके लगने पर पौधे की पत्तियों पर पीले भूरे रंग की चित्तियाँ बन जाती हैं. इसकी रोकथाम के लिए भी 1% बोर्डियों मिश्रण का छिडकाव पौधे पर करना चाहिए. इसके अलावा 0.1 प्रतिशत वाले कार्बेन्डाजिम का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
पर्ण चित्ती रोग
पौधे पर पर्ण चित्ती का रोग गर्मी के टाइम में ज्यादा देखने को मिलता हैं, जो राइजोक्टोनिया सोलानी कवक के माध्यम से होता है. इसका प्रभाव पूरे पौधे पर देखने को मिलता है. इसके लगने पर पौधे की पत्तियां और तना काला पड़ने लगता है और कुछ टाइम बाद पूरा पौधा सुखकर गिर जाता है. इसकी ख़ास पहचान ये है कि ये पौधे पर उपर से नीचे की तरफ फैलता है. इसकी रोकथाम के लिया भी 1% बोर्डियों मिश्रण का छिडकाव पौधे पर करना चाहिए.
मूल म्लानि रोग
इस रोग का प्रभाव तने से शुरू होता है. पौधे पर यह रोग जून से सितम्बर के बीच में लगता है. इस रोग के लगने पर पौधे के तने पर गहरे भूरे रंग के निशान बनने लग जाते हैं. धीरे धीरे पूरा तना अंदर से खाली हो जाता है और पत्तियां सुखकर गिर जाती है. इसकी प्रारंभिक अवस्था में पता चलने पर फाइटो सैनिटरी से रोका जा सकता है. लेकिन अगर पता ना चले तो रोग वाले पौधे की पत्तियों को नष्ट कर देना चाहिए.
पाद गलन रोग
काली मिर्च की खेती में ये रोग सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचता है. यहाँ रोग मुख्य रूप से दक्षिण पश्चिम से आने वाले मानसून के कारण लगता है. इसके लगने पर पौधे का शीर्ष भाग काला पड़ जाता है. पौधे पर काले धब्बे बनने लगते है और पतीयाँ गिरने लगती है. लेकिन ये सभी लक्षण बारिश के मौसम के बाद दिखाई देते है. इस रोग के लग जाने के बाद पौधे को जड़ के पास से काटकर अलग कर दें.
काली मिर्च की तुड़ाई
काली मिर्च से ही सफ़ेद मिर्च बनाई जाती है. इस कारण इसकी तुड़ाई टाइम पर करनी चाहिए. काली मिर्च के पौधे पर फूल मई या जून में आ जाते हैं. जिसके बाद इनको पूरी तरह से तैयार होने में 6 से 8 महीने का टाइम लगता है. सफ़ेद और काली दोनों ही मिर्च एक पौधे पर लगती है. लेकिन इन्हें तोडने के बाद काला और सफ़ेद रूप दिया जाता है.
सफ़ेद मिर्च बनाने के लिए फल को पकने से पहले ही तोड़ लिया जाता हैं. जिसके बाद उसे पानी में डालकर इनका उपरी छिलका उतार लिया जाता है. फिर उसे धूप में तीन से चार दिन तक सुखाया जाता है. जिससे इनका रंग सफ़ेद दिखाई देने लगता है.
काली मिर्च बनाने के लिए फल को पूरी तरह से पकने देते हैं. जब फल का रंग हरे रंग से बदलकर चमकीला नारंगी हो जाता है तो फल पूरी तरह से पक जाता है. जिसके बाद उसे पौधे से अलग कर लिया जाता है. काली मिर्च के फल गुच्छों में पायें जाते हैं जिन्हें बाद में तोड़कर अलग अलग किया जाता है. अलग किया हुए फलों को गर्म पानी में एक मिनट तक डालकर रखा जाता है. जिसके बाद उसे सूखने के लिए धूप में डाल दिया जाता है. ऐसा करने से फल का काला रंग ज्यादा आकर्षक बनता है और धूप में जल्दी सूखता है.
पैदावार और लाभ
काली मिर्च के प्रत्येक पौधे से साल में 4 से 6 किलो तक पैदावार मिल जाती है. जबकि एक हेक्टेयर में 1100 से ज्यादा पौधे लगाये जा सकते हैं. ऐसे में एक हेक्टेयर से किसान भाइयों को 40 से 60 किवंटल तक पैदावार हो जाती है. जिससे किसानो की एक साल में 10 लाख तक की कुल कमाई हो जाती है.
I am from AGRA, will it to be possible black pepar kheti . What is plant rate and it’s annual expenses.
आप इसकी जानकारी आपके नज़दीकी किसान सहायता केंद्र या कृषि परिवेक्षक से ले सकते हैं. वो आपको इसके बारें में सम्पूर्ण जानकारी और इसकी पौध के बारें में भी बता देंगे
Jankari chahiye
अगर कालीमिर्च को पकने पर तोड़ा ना जाएं बल्कि उसे नैसर्गिक रूप से बेल पर ही पकने दिया जाए तो क्या समय आनेपर वे सभी गुच्छे स्वतः ही जमीन पर गिर जाते हैं। आगर यह बात सही है तो फिर ” कालीमिर्च ” को तोड़ा क्यों जाता है ?
हम राजस्थान से हैं हमको काली मिर्च के पौधे चाहिए तो वह कैसे प्राप्त कर सकते हैं
हम झारखंड से हैं हमें काली मिर्च का पौधा लगाने के लिए क्या करना पडे़गा हमें बताएं
में हरियाणा से हूं, काली मिर्च का पोधा चहाते कहा से मिले गा ??????????????
हम नागौर राजस्थान में काली मिर्च की खेती कर सकते है क्या, बताएं
काली मिर्च, दालचीनी की खेती राजस्थान में कर सकते है क्या बताएं।और पूरी जानकारी देते।
Mai Ayodhya up se hun. Kya mere yahan kalimirch kee kheti possible hai?
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