चप्पन कद्दू की खेती नगदी फसल के रूप में की जाती है. इसका पौधा लतावर्गीय पौधों की श्रेणी में आता है. लेकिन इसकी बेल एक से दो फिट लम्बाई की पाई जाती है. चप्पन कद्दू का इस्तेमाल सब्जी के रूप में किया जाता है. चप्पन कद्दू के खाने से शरीर में केरोटिन की पूर्ति होती है. इसके अलावा इसका इस्तेमाल कैंसर रोग में भी लाभकारी है. चप्पन कद्दू के अंदर विटामिन ए, सी और पोटैशियम जैसे तत्व पाए जाते हैं.
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चप्पन कद्दू की खेती के लिए उचित जल निकाशी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. इसकी खेती के लिए सामान्य मौसम सबसे उपयुक्त होता है. चप्पन कद्दू के फलों को अच्छे से विकास करने के लिए हल्की ठंड का मौसम सबसे उपयुक्त होता है. कम समयावधि की फसल होने की वजह से किसान भाइयों के लिए इसकी पैदावार फायदेमंद साबित हो रही है.
अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज आम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
चप्पन कद्दू की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है. इसकी खेती के लिए भूमि के अंदर कार्बनिक पदार्थ उचित मात्रा में होने चाहिए. इसकी खेती अधिक अम्लीय या क्षारीय भूमि में नही की जा सकती. इसके लिए भूमि का पी.एच. मान 6.5 से 7.5के बीच होना चाहिए.
जलवायु और तापमान
चप्पन कद्दू की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु सबसे उपयुक्त होती है. भारत में इसकी खेती रबी की फसल के साथ की जाती है. इसकी खेती के लिए सर्दी का मौसम सबसे उपयुक्त होता है. लेकिन सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसके लिए नुकसानदायक होता है. इसके पौधे अधिक धूप को सहन नही कर सकते. क्योंकि इसके पौधों पर फल बनने के दौरान तेज़ धूप पड़ने पर फल ख़राब होते हैं और उनकी गुणवत्ता में भी कमी देखने को मिलती है.
चप्पन कद्दू के पौधों को शुरुआत में अंकुरण के वक्त 20 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होता ही. उसके बाद पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है.
उन्नत किस्में
चप्पन कद्दू की कई तरह की उन्नत किस्में मौजूद हैं. जिन्हें किसान भाई अलग अलग क्षेत्रों के आधार पर अधिक उत्पादन लेने के लिए उगाते हैं.
आस्ट्रेलियन ग्रीन
चप्पन कद्दू की इस किस्म के पौधे झाड़ीनुमा दिखाई देते हैं. जिसकी बेल पर पीले रंग के फूल दिखाई देते हैं. इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 60 से 65 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के फलों का आकार लम्बा दिखाई देता हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 200 क्विंटल तक पाया जाता है. इसके फलों का रंग गहरा हरा दिखाई देता है.
पूसा अलंकार
चप्पन कद्दू की ये एक शंकर किस्म है, जिसके पौधे सामान्य ऊंचाई के पाए जाते हैं. इस किस्म के पौधों पर लगने वाले फल हल्के हरे रंग के दिखाई देते हैं. जिन पर चमकीली धारियां बनी होती है. और इसके फलों का आकार लम्बा दिखाई देता हैं. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 200 से 250 क्विंटल तक पाया जाता है.
अर्ली यलो प्रोलीफिक
चप्पन कद्दू की ये एक जल्दी पकने वाली किस्म है. इस किस्म के फलों का भंडारण अधिक समय तक किया जा सकता है. क्योंकि इसके फलों को तोड़ने के बाद इनका गुदा अधिक समय तक नर्म बना रहता है. इस किस्म के फलों का आकार कम गोल और हल्का लम्बा दिखाई देता है.
पंजाब चप्पन कद्दू
चप्पन कद्दू की इस किस्म के पौधे कम समय में अधिक उत्पादन देने के लिए जाने जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 100 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर पत्तियां अधिक मात्रा में पाई जाती है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 55 से 60 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के फलों का रंग गहरा हरा दिखाई देता है. इसके पौधों पर सफ़ेद धब्बा रोग का प्रभाव देखने को नही मिलता.
मेक्सिको चप्पन कद्दू
चप्पन कद्दू की ये एक विदेशी किस्म है. जिसके फलों का रंग पीला दिखाई देता है. इस किस्म के फल लम्बाई के साथ गोल दिखाई देते हैं. इस किस्म की खेती अभी काफी कम किसान भाई करते हैं. इसकी खेती मध्य प्रदेश में ही ज्यादा की जाती है.
इसके अलावा और भी कई किस्में हैं. जिनको अलग अलग जगहों के आधार पर उगाया जाता है.
खेत की तैयारी
चप्पन कद्दू की खेती के लिए मिट्टी का साफ और भुरभुरा होना जरूरी है. इसके लिए शुरुआत में खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर दें. इसके बाद खेत को कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें. खेत को खुला छोड़ने के बाद उसमें पुरानी गोबर की खाद डालकर उसकी दो से तीन गहरी जुताई कर दें.
खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी चलाकर उसका पलेव कर देना चाहिए. पलेव करने के बाद जब खेत की मिट्टी उपर से हल्की सुखी हुई दिखाई देने लगे तब उसकी फिर से जुताई कर दे. खेत की जुताई के बाद खेत में पाटा चलाकर मिट्टी को समतल बना देना चाहिए. इसके बीजों की रोपाई समतल जमीन में मेड बनाकर की जाती है. इसलिए समतल बनाने के बाद खेत में मेड तैयार कर दें.
बीज रोपाई का तरीका और टाइम
चप्पन कद्दू के पौधे बीज के माध्यम से ही लगाए जाते हैं. इसके बीजों की रोपाई करने से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए. इसके बीजों को उपचारित करने के लिए कार्बेन्डाजिम, थीरम या ट्राइकोडरमा विराइड की उचित मात्रा का इस्तेमाल करना चाहिए. एक हेक्टेयर खेती के लिए 5 से 7 किलो बीज काफी होता है. इसके बीजों की रोपाई खेत में मेड बनाकर की जाती है.
इसके बीजों की रोपाई समतल खेत में ड्रिल के माध्यम से मेड बनाकर पंक्तियों में की जाती है. इसके बीजों की रोपाई से पहले मेड बनाने के दौरान प्रत्येक पंक्तियों के बीच डेढ़ फिट के आसपास दूरी रखनी चाहिए. पंक्तियों में इसके बीजों की रोपाई के दौरान बीजों के बीच लगभग एक फिट की दूरी रखते हुए रोपाई करनी चाहिए. और इस दौरान बीजों को जमीन के अंदर दो से तीन सेंटीमीटर नीचे ही लगाना चाहिए. ताकि अंकुरण प्रभावित ना हो सके.
चप्पन कद्दू की खेती रबी की फसल के वक्त की जाती है. इस दौरान इसके बीजों की रोपाई अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक कर देनी चाहिए. जबकि पर्वतीय क्षेत्र जहां सर्दियों के दौरान अधिक बर्फबारी होती है, वहां इसके बीजों की रोपाई मध्य जनवरी से मध्य मार्च तक की जाती है.
पौधों की सिंचाई
चप्पन कद्दू के बीजों की रोपाई के तुरंत बाद उनकी सिंचाई कर देनी चाहिए. उसके बाद बीजों के अंकुरित होने तक खेत में नमी बनाए रखने के लिए आवश्यकता के अनुसार पानी देना चाहिए. ताकि बीजों का अंकुरण अच्छे से हो सके. बीजों के अंकुरित होने के बाद इसके पौधों की 10 दिन के अंतराल में सिंचाई करते रहना चाहिए. पौधों पर फूल और फल बनने के दौरान सिंचाई सामान्य रूप से करनी चाहिए. चप्पन कद्दू के पौधों को 8 से 10 सिंचाई की जरूरत होती है.
उर्वरक की मात्रा
चप्पन कद्दू की खेती में जैविक और रासायनिक उर्वरक की जरूरत बाकी कद्दूवर्गीय फसलों की तरह ही होती है. इसके लिए शुरुआत में खेत की जुताई के वक्त लगभग 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. रासायनिक उर्वरक के रूप में खेत की आखिरी जुताई के वक्त लगभग दो बोरे एन.पी.के. की मात्रा का छिडकाव कर देना चाहिए. इसके अलावा रासायनिक उर्वरक के रूप में लगभग 20 किलो यूरिया प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बीज रोपाई के बाद सिंचाई के साथ फूल आने से पहले देना चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
चप्पन कद्दू की खेती में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक और रासायनिक दोनों ही तरीकों से किया जा सकता है. रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण करने के लिए व्यूटाक्लोर की उचित मात्रा का छिडकाव बीज रोपाई के तुरंत बाद कर देना चाहिए. जबकि प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण पौधों की नीलाई गुड़ाई के माध्यम से किया जाता है. इसके बीजों की रोपाई के लगभग 20 से 25 दिन बाद पौधों की पहली नीलाई गुड़ाई कर देनी चाहिए. इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए तीन से चार गुड़ाई की जरूरत होती है. पहली गुड़ाई के बाद इसके पौधों की बाकी की गुड़ाई 15 दिन के अंतराल में कर देनी चाहिए. और हर गुड़ाई के दौरान पौधों की जड़ों पर हल्की मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए.
पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
चप्पन कद्दू के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जिनका प्रभाव इसकी पैदावार पर देखने को मिलता है.
सफ़ेद धब्बा
सफ़ेद धब्बा का रोग एक विषाणु जनित रोग है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बनने लग जाते हैं. जो धीरे धीरे सम्पूर्ण पौधे पर फैल जाते हैं. जिससे पौधों का विकास रुक जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
फल मक्खी
चप्पन कद्दू के पौधों पर लगने वाला ये एक किट रोग है, जो इसकी पैदावार को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाता है. चप्पन कद्दू के पौधों पर इस रोग का प्रभाव फलों के बनने के दौरान देखने को मिलता है. इस रोग के कीट फल की ऊपरी सतह पर अंडे देते हैं. जो फलों के अंदर प्रवेश कर जाते हैं. जिससे फल जल्द पीला पड़कर खराब हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर फलों के बनने के दौरान ही नीम के तेल का छिडकाव 10से 15 दिन के अंतराल में दो बार कर देना चाहिए.
चेपा
चप्पन कद्दू के पौधों पर इस रोग का प्रभाव मौसम परिवर्तन के दौरान देखने को मिलता है. इस रोग के कीट पौधे के नर्म भागों का रस चूसकर पौधों का विकास रोक देते हैं. कीटों के द्वारा रस चूसने पर पौधे के पत्तों का रंग पीला दिखाई देने लगता है. जिसका प्रभाव बढ़ने पर सम्पूर्ण पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर थाइमैथोक्सम की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
कातरा ( काली सुंडी )
चप्पन कद्दू के पौधों पर इस रोग का प्रभाव पौधों के विकास के दौरान देखने को मिलता है. इस रोग की सुंडी पौधों की पत्तियों को खाकर पौधों का विकास रोक देती है. जिसका असर इसकी पैदावार पर देखने को मिलता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर डाइमेथोएट या मैलाथियान की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
फलों की तुड़ाई
चप्पन कद्दू के पौधे बीज रोपाई के लगभग 60 से 70 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस दौरान इसके फलों को कच्चे रूप में तोड़कर बेचा जाता है. क्योंकि पकने के बाद इनका इस्तेमाल सब्जी के रूप में नही किया जा सकता. पौधों पर फलों के लगने के बाद जब उनका आकार और रंग अच्छा दिखाई देने लगे तब उन्हें तोड़ लेना चाहिए. फलों की तुड़ाई के बाद उनकी छटाई कर बाज़ार में बेचने के लिए जालीदार कट्टों में भर देना चाहिए.
पैदावार और लाभ
चप्पन कद्दू की औसतन पैदावार 150 क्विंटल के आसपास पाई जाती है. एक किलो चप्पन कद्दू का बाज़ार भाव 10 रूपये प्रति किलो से 30 रूपये प्रति किलो तक पाया जाता है. इस हिसाब से किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से डेढ़ से दो लाख तक की कमाई आसानी से कर लेता है.