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खीरे की खेती कैसे करें – Cucumber Farming Information

2019-06-19T18:07:07+05:30Updated on 2019-06-19 2019-06-19T18:07:07+05:30 by bishamber Leave a Comment

बेल की फसल के रूप में होने वाली सब्जियों में खीरा का महत्वपूर्ण स्थान हैं. खीरे का इस्तेमाल सलाद के रूप में सबसे ज्यादा किया जाता है. खीरे के अंदर पानी की मात्रा सबसे ज्यादा पाई जाती है. खीरे का इस्तेमाल पेट संबंधित बीमारियों में भी किया जाता है. इसके अलावा खीरे का इस्तेमाल घुटने के दर्द और पथरी के रोग में ज्यादा लाभदायक होता है. खीरे का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन की चीजें बनाने में भी किया जा रहा है. खीरे के इस्तेमाल से आँखों के नीचे बनने वाले काले धब्बे को हटाया जा सकता है.

Table of Contents

  • उपयुक्त मिट्टी
  • जलवायु और तापमान
  • खीरे की किस्में
    • स्वर्ण पूर्णिमा
    • कल्याणपुर ग्रीन
    • हिमांगनी
    • खीरा-75
    • प्रिया
    • स्वर्ण शीतल
    • पूसा उदय
    • स्ट्रेट 8
  • खेत की जुताई
  • बीज बोने का टाइम और तरीका
  • पौधे की सिंचाई
  • उर्वरक की मात्रा
  • खरपतवार नियंत्रण
  • फसल को लगने वाले रोग
    • चूर्णी फफूंदी
    • फल मक्खी
    • सुंडी रोग
    • आद्र या बीज गलन रोग
    • फल विगलन (फल और फूल का झड़ना)
  • फलों की तुड़ाई
  • पैदावार और लाभ

खीरे की खेती तीन महीने में पूरी हो जाती है. इसकी खेती के लिए शीतोष्ण और समशीतोष्ण दोनों तरह की जलवायु उपयुक्त होती है. इसकी खेती किसी भी तरह की मिट्टी में की जा सकती है. और इसकी खेती के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती हैं.

अगर आप भी खीरे की खेती करना चाह रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

खीरे की खेती के लिए किसी ख़ास तरह की मिट्टी की जरूरत नही होती. लेकिन बलुई दोमट मिट्टी में इसकी पैदावार ज्यादा मिलती है. इसकी खेती के लिए जमीन थोड़ी अम्लीय होनी चाहिए. जमीन का पी.एच. मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए. इसकी खेती के लिए जमीन में पानी का भराव ना होता हो और जल निकासी की उचित व्यवस्था हो.

जलवायु और तापमान

खीरे की खेती के लिए शीतोष्ण और समशीतोष्ण दोनों तरह की जलवायु उपयुक्त मानी जाती है. भारत में ज्यादातर जगहों पर इसकी खेती गर्मी या बरसात के मौसम में की जाती है. ज्यादा बारिश इसकी पैदावार को नुक्सान पहुँचती है. क्योंकि ज्यादा नमी रहने से इसके पौधों पर कई तरह के रोग लग जाते हैं. सर्दियों में पड़ने वाला पाला भी इसकी खेती के लिए नुकसानदायक होता है.

खीरे की खेती के लिए सामान्य तापमान जरूरी होता हैं. लेकिन ये न्यूनतम 20 डिग्री और अधिकतम 40 डिग्री तापमान पर भी अच्छी पैदावार देता है. फूल खिलते टाइम अगर तापमान सामान्य रहता है तो पैदावार ज्यादा मिलती है. क्योंकि ज्यादा तापमान होने पर पौधे पर नर फूल ज्यादा विकसित होते हैं. जबकि कम तापमान पर मादा फूल ज्यादा खिलते हैं. इसलिए ज्यादा और कम तापमान इसकी पैदावार के लिए उपयुक्त नही है.

खीरे की किस्में

खीरे की खेती कम समय की होने के कारण लोग इसे बड़ी मात्रा में करते हैं. खीरे को उपज के आधार पर इसे कई किस्मों में बाँटा गया हैं.

स्वर्ण पूर्णिमा

खीरे की ये किस्म मध्य अवधि में पैदावार देने के लिए जानी जाती है. इसके बीज को खेत में लगाने के 45 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देता है. जब इसके पौधे पर फल आने शुरू हो जाएँ तब इनके फलों को 2 दिन के अंतराल में तोड़ लेना चाहिए. इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 200 से 250 क्विंटल तक हो जाती है.

कल्याणपुर ग्रीन

उन्नत किस्म का खीरा

खीरे की इस किस्म को सबसे ज्यादा पैदावार देने वाली किस्म के रूप में जाना जाता है. एक हेक्टेयर में इसकी पैदावार 10 से 15 टन तक हो जाती है. इसका पौधा बीज रोपण के 40 दिन बाद फल देना शुरू कर देता है. फल लगने के दौरान इसकी तुड़ाई रोज़ करनी चाहिए.

हिमांगनी

खीरे की ये नई किस्म है जिसको ज्यादा उपज देने के लिए तैयार किया गया है. इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 10 से 12 टन पाई जाती है. इसके पौधे बीज बोने के 40 से 45 दिन बाद फल देना शुरू कर देते हैं. जिनके फलों को रोज़ तोड़ना जरूरी होता है. क्योकि ज्यादा लम्बे टाइम तक खेत में पड़े रहने की वजह से इसके फल ख़राब हो जाते हैं.

खीरा-75

खीरे की इस किस्म को खासकर पर्वतीय जगहों के लिए बनाया गया है. इसके पौधे 45 से 50 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. जिनकी हर दो दिन के अंतराल में तुड़ाई करनी चाहिए. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 8 टन तक पाई जाती है.

प्रिया

खीरे की ये एक संकर किस्म है. जिसको संकरण के माध्यम से तैयार किया गया है. इस किस्म को ज्यादा उपज के लिए ही तैयार किया गया है. इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 12 टन तक हो जाती है. इसकी पौधे बीज बोने के एक से सवा महीने बाद फल देना शुरू कर देते हैं.

स्वर्ण शीतल

खीरे की इस किस्म को चूर्णी फफूंद रोधी बनाया गया है. जिस पर चूर्णी फफूंद का असर नही होता है. इस किस्म के फल सामान्य लम्बाई के और ठोस होते हैं. इसकी प्रति हेकटेयर पैदावार 250 से 300 क्विंटल तक हो जाती है.

पूसा उदय

खीरे की इस किस्म के फल हरे और चमकीले दिखाई देते हैं. इस किस्म के पौधे बीज रोपण के 30 से 40 दिन बाद फल देना शुरू कर देते हैं. जिनकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 12 टन से भी ज्यादा होती है.

स्ट्रेट 8

स्ट्रेट किस्म का खीरा

खीरे की ये एक अगेती किस्म है. इसके पौधे, बीज लगाने के एक महीने बाद ही फल देना शुरू कर देते हैं. इस किस्म के फल सबसे लम्बे पाए जाते हैं. इसके फलों की लम्बाई 30 सेंटीमीटर से ज्यादा पाई जाती है. जबकि इसकी पैदावार बहुत कम पाई जाती है. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 4 टन तक पाई जाती है.

खेत की जुताई

खीरे की खेती शुरू करने से पहले खेत में मौजूद पहले की फसल के सभी अवशेष नष्ट कर दें. उसके बाद खेत की अच्छे से जुताई करें. जुताई के कुछ दिन बाद खेत में गोबर का पुराना खाद डाल दें. खाद डालने के बाद फिर से खेत की अच्छे से जुताई करें. उसके बाद खेत में पानी छोड़कर उसके कुछ दिन बाद फिर से खेत की जुताई कर दें.

बीज बोने का टाइम और तरीका

खीरे की खेती साल भर में अलग अलग जगहों पर अलग अलग टाइम के हिसाब से की जाती हैं. उत्तर भारत में खीरे की खेती मार्च से नवम्बर माह तक की जाती है. जबकि मध्य और दक्षिण भारत में इसकी रुपाई नवम्बर माह में करते हैं. और पर्वतीय इलाकों में इसकी खेती सिर्फ अप्रैल और मई में ही की जाती है.

खीरे की खेती जमीन से एक फिट उचाई पर करना अच्छा होता हैं. जिसके लिए खेत में चार फिट की दूरी पर एक से सवा फिट चोड़ाई की मेड बनाते हैं. जिसमें बीज को दो से तीन फिट की दूरी पर खेत में लगा देते हैं. जबकि कुछ किसान भाई इसकी खेती समतल में भी करते हैं. उसके लिए बीज को खेत में एक फिट गहरी नाली बनाकर उसमें 2 फिट की दूरी पर लगाते हैं. साधारण किस्म की बुवाई के लिए 3 किलो बीज काफी होता हैं. जबकि संकर किस्म के लिए 2 से 2.5 किलो बीज की जरूरत होती हैं.

पौधे की सिंचाई

खीरे की खेती को ज्यादा पानी की जरूरत नही होती. खासकर बारिश के मौसम में इसे पानी की बहुत कम जरूरत होती है. बारिश के मौसम में खीरे की तीन से चार सिंचाई करना काफी होता है. जबकि ग्रीष्म काल की फसल के लिए सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है. इस दौरान फसल को 5 से 6 दिन के अंतराल में पानी की जरूरत होती है.

सर्दी के मौसम में खीरे की फसल को 5 से 6 सिंचाई की जरूरत होती है. सर्दी के मौसम में इसको 15 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए. पौधे पर फूल खिलने के बाद पानी की कमी ना होने दें. क्योंकि पानी की कमी होने पर पैदावार में फर्क देखने की मिलता हैं. पानी की पूर्ति के लिए ड्रिप पद्धति से इसकी सिंचाई करना अच्छा होता है.

उर्वरक की मात्रा

खेत में बीज बोने से पहले 20 गाडी प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत पुरानी गोबर की खाद डालकर उसे मिट्टी में मिला दें. उसके बाद एन.पी.के. की उचित मात्रा खेत में बनाई हुई मेड के बीच में डालकर उसे मिट्टी में मिला दें. पौधे के लगाए जाने के 30 दिन बाद 20 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से नाइट्रोजन का छिडकाव करें. उसके 40 दिन बाद एक बार फिर खेत में 20 किलो नाइट्रोजन का छिडकाव करें. इसे पैदावार में फर्क देखने को मिलता है.

खरपतवार नियंत्रण

खीरे की खेती में खरपतवार नियंत्रण बहुत जरूरी होता है. खरपतवार नियंत्रण नही कर पाने की वजह से पौधे में कई तरह के रोग लग जाते हैं. जिसका असर पैदावार पर देखने को मिलता है. नीलाई गुड़ाई कर इसकी खरपतवार नियंत्रित की जा सकती हैं. इसलिए खीरे की दो से तीन नीलाई गुड़ाई जरूरी होती है. इसकी पहली गुड़ाई 25 दिन बाद और दूसरी उसके 20 दिन बाद कर देनी चाहिए.

फसल को लगने वाले रोग

खीरे की फसल को कई तरह के रोग लग जाते हैं. अच्छी पैदावार लेने के लिए इनकी रोकथाम करना जरूरी होता है.

चूर्णी फफूंदी

रोग लगा पौधा

पौधों पर ये रोग एक महीने बाद दिखाई देने लग जाता है. इस रोग के लग जाने के बाद पत्तियों की निचली सतह पर सफ़ेद रंग का धब्बा दिखाई देने लगता है. जिससे पौधे की पत्तियां जल्द ही पीली पड़कर गिरने लग जाती हैं. जिसका असर खीरे की पैदावार और बढ़त दोनों पर देखने को मिलता है. इसकी रोकथाम के लिए पौधे पर सल्फेक्स और कैराथेन की उचित मात्रा को पानी में मिलकर छिड़काव चाहिए.

फल मक्खी

फल मक्खी का रोग कीट की वजह से लगता हैं. इसकी वजह से पौधे का कम पका और पूरी तरह से पका हुआ फल खराब हो जाता है. जिसका असर पैदावार पर ज्यादा देखने को मिलता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर कारटप एस पी का छिडकाव करना चाहिए.

सुंडी रोग

सुंडी रोग का असर पौधों की पत्तियों पर दिखाई देता हैं. जो धीरे धीरे इसकी पत्तियों को खाकर उन्हें नष्ट कर देता है. जिससे फल अच्छे से वृद्धि नही कर पाता हैं. पौधों पर ये रोग एक कीड़े की वजह से लगता है. जिसका रंग हरा पीला होता है. इसकी रोकथाम के लिए पौधे पर क्लोरोपाइरीफास का छिडकाव करना चाहिए.

आद्र या बीज गलन रोग

इस रोग के लग जाने पर बीज सड़कर खराब हो जाता हैं. जिससे बीज का अंकुरण नही हो पाता है. इसकी रोथाम के लिए मैन्कोजेब से बीज का उपचार कर खेत में उगाना चाहिए.

फल विगलन (फल और फूल का झड़ना)

इस रोग के लगने पर पौधे के फूल खराब होकर झड़ने लग जाते हैं. इन फूलों पर एक सफ़ेद फफूंदी बनने लग जाती है. और ऐसी ही फफूंदी फल पर भी देखने को मिलती है. जो समय के बढ़ने के साथ साथ काली दिखाई देने लगती है. इसकी रोकथाम के लिए पौधे के पास जलभराव ना होने दें.

फलों की तुड़ाई

खीरे का पौधा बीज बुवाई के एक से सवा महीने बाद फल देना शुरू कर देता है. जिसके बाद इसके फलों की तुड़ाई की जाती है. अलग अलग किस्मों के आधार पर इसके फल एक या दो दिन में अगली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है. खीरे के फलों की तुड़ाई कई बार में की जाती है.

पैदावार और लाभ

खीरे की अलग अलग क़िस्म के आधार पर इसकी पैदावार 4 से 16 टन तक हो सकती है. खीरे का बाज़ार भाव 10 से 40 रूपये किलो तक पाया जाता है. शुरुआत में बाज़ार में इसकी कीमत अच्छी मिलती है. इस कारण अगेती किस्म की बुवाई करनी चाहिए. जिससे किसान भाइयों को अपनी पैदावार की अच्छी कीमत मिल जाती हैं. इसकी फसल से किसान भाई एक बार में एक लाख से ज्यादा की कमाई कर सकता है.

Filed Under: सब्ज़ी Tagged With: Cucumbers, khiraa, खीरा

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