कुसुम की उन्नत खेती कैसे करें – पूरी जानकारी!

कुसुम की खेती मुख्य रूप से तिलहन फसल के रूप में की जाती है. इसके दानों में पाया जाने वाला तेल बहुत ही उपयोगी होता है. इस तेल का इस्तेमाल खाने में और व्यापारिक रूप से किया जाता है. व्यापारिक रूप में इसके तेल का इस्तेमाल साबुन, वार्निस, पेंट और निलोनियम को बनाने में किया जाता है. इसके तेल के इस्तेमाल से हृदय संबंधित बीमारी और खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है.

कुसुम की खेती कैसे करें

कुसुम के पौधे को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नही होती. क्योंकि इसकी जड़ें गहराई में जाकर खुद के लिए पानी की पूर्ति कर लेती है. इसके पौधे की संरचना कुछ हद तक सूरजमुखी के पौधे की तरह ही होती है. जिस पर लगने वाले फूलों की पंखुडियां पीले रंग की होती है. भारत में इसकी खेती उत्तर और मध्य प्रदेश में ज्यादा की जाती है. इसकी खेती के लिए शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है.

अगर आप भी कुसुम की खेती कर अच्छी कमाई करना चाहते है तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

कुसुम की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है. लेकिन अच्छी और ज्यादा पैदावार लेने के लिए इसे गहरी काली मिट्टी में उगाना चाहिए. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 5 से 8 के बीच होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

कुसुम की खेती के लिए शुष्क और आद्र जलवायु उपयुक्त होती है. भारत में इसकी खेती रबी की फसलों के साथ में की जाती है. इसके पौधे को अधिक बारिश या सिंचाई की जरूरत नही होती. इस कारण इसे कम बारिश वाली जगहों पर आसानी से उगाया जा सकता है. इसकी खेती के लिए सर्दी का मौसम उपयुक्त होता है. जबकि फसल को पकने के लिए गर्म मौसम की जरूरत होती है.

उन्नत किस्में

कुसुम की कई उन्नत किस्में मौजूद हैं. इन सभी किस्मों को उनकी पैदावार और बीज में तेल की मात्रा के आधार पर तैयार किया गया है.

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कुसुम की इस किस्म के दाने सफ़ेद रंग के होते हैं. जिनमें तेल की मात्रा 30 प्रतिशत तक पाई जाती है. इस किस्म के पौधे कांटेदार होते हैं. जिन पर खिलने वाले फूल सफ़ेद रंग के पाए जाते हैं. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 16 किवंटल के आसपास पाया जाता है.

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कुसुम की इस किस्म के पौधों पर काटें नही पाए जाते और इसके पौधे पर खिलने वाले फूलों का रंग पीला होता है. लेकिन सूखने के बाद इन फूलों का रंग नारंगी दिखाई देता हैं. इस किस्म के दाने छोटे और सफ़ेद रंग के होते है. जिनका छिलका पतला होता है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 14 किवंटल के आसपास पाया जाता है.

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कुसुम की ये एक जल्दी पकने वाली किस्म है. जिसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 150 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 15 किवंटल के आसपास पाया जाता है. इसके बीजों में तेल की मात्रा सबसे ज्यादा 36 प्रतिशत पाई जाती है.

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उन्नत किस्म

 

कुसुम की इस किस्म के पौधे अधिक तेल उत्पादन के लिए जाने जाते है. इस किस्म के बीजों में 30 से 35 प्रतिशत तक तेल की मात्रा पाई जाती है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 180 से 190 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 14 से 15 किवंटल तक पाया जाता है.

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इस किस्म के पौधे जल्द पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 130 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 10 किवंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधे पर काटें नही पाए जाते.

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कुसुम की ये भी एक बिना कांटों वाली किस्म है. जिसके पौधे पर पीले रंग के फूल पाए जाते हैं. जो सूखने के बाद नारंगी रंग में परिवर्तित हो जाते हैं. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 135 से 140 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. इसके बीजों में तेल की मात्रा 30 प्रतिशत तक पाई जाती है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 15 से 16 किवंटल तक पाया जाता है.

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कुसुम की इस किस्म के पौधों पर हलके काटें पाए जाते हैं. इसके पौधों की लम्बाई कम और पौधे पर बनने वाले पुष्प चक्र का आकार बड़ा होता है. जिन पर नारंगी रंग के फूल खिलते हैं. इसके पुष्प चक्र में पाए जाने वाले दानो का आकार बड़ा होता है. जिनमें तेल की मात्रा 29 प्रतिशत तक पाई जाती है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 12 किवंटल के आसपास पाया जाता है.

खेत की तैयारी

कुसुम की खेती के लिए शुरुआत में खेत की दो से तीन गहरी तिरछी जुताई कर खेत को खुला छोड़ देते हैं. उसके कुछ दिन बाद खेत में उचित मात्रा में जैविक खाद ( कम्पोस्ट, पुरानी गोबर की खाद ) को मिट्टी में डालकर खेत की जुताई के माध्यम से उसे खेत में फैला देते हैं.

खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी छोड़कर उसका पलेव कर देते हैं. क्योंकि कुसुम के बीजों को अंकुरित होने के लिए नमी की जरूरत होती है. पलेव करने के दो से तीन दिन बाद जब जमीन ऊपर से सुखी हुई दिखाई देने लगे तब उसकी एक बार फिर जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना ले. और उसके बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल बना दें.

बीज रोपाई का तरीका और टाइम

कुसुम के बीजों को खेत में लगाने से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए. ताकि बीजों पर लगने वाले शुरूआती रोगों का असर दिखाई ना दें और बीज अच्छे से अंकुरित हो सके. बीजों को उपचारित करने के लिए थायरम या बाविस्टिन की उचित मात्रा का इस्तेमाल करना चाहिए. एक हेक्टेयर में इसकी रोपाई के लिए 18 से 20 किलो बीज की आवश्यकता होती है.

इसके बीजों को खेत में पंक्तियों में ड्रिल के माध्यम से उगाया जाता है. प्रत्येक पंक्तियों के बीच लगभग एक से डेढ़ फिट की दूरी रखनी चाहिए. और पंक्तियों में पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखी जाती है. बीजों की रोपाई करते वक्त बीजों को 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई में ही उगाना चाहिए. क्योंकि ज्यादा और कम गहराई में उगाने पर उनका अंकुरण प्रभावित होता है.

कुसुम की खेती रबी की फसल के साथ की जाती है. इस कारण इसकी रोपाई रबी की फसलों के वक्त ही की जाती है. खेत में इसके बीजों की रोपाई का सबसे उपयुक्त टाइम मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक का होता है. इसके अलावा किसान भाई इसे नवम्बर के आखिर सप्ताह तक भी आसानी से उगा सकते हैं.

पौधों की सिंचाई

कुसुम के पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत नही होती है. इसके पौधों की जड़ें गहराई में जाकर खुद के लिए पानी की पूर्ति कर लेती हैं. इस कारण ही इसे कम सिंचाई वाली जगहों पर ज्यादा उगाया जाता है. इसके पौधों की पहली सिंचाई बीज रोपाई के लगभग 30 से 40 दिन करनी चाहिए. उसके बाद पौधों की एक या दो सिंचाई फूल खिलने के बाद कर दें. ताकि पौधे से पैदावार अधिक मात्रा में प्राप्त हो सके.

उर्वरक की मात्रा

इसके बीज की रोपाई से पहले खेत की तैयारी के वक्त 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में डाल दें. इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में एक बोरा एन.पी.के. की मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में आखिरी जुताई के वक्त खेत में छिड़क दें.

खरपतवार नियंत्रण

कुसुम की खेती में खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई के माध्यम से की जाती है. कुसुम के पौधों की एक या दो गुड़ाई काफी होती है. इसके पौधों की पहली नीलाई गुड़ाई बीज रोपाई के लगभग 20 से 25 दिन बाद कर देनी चाहिए. पहली गुड़ाई के दौरान ज्यादा नजदीक दिखाई देने वाले पौधों को भी निकाल देना चाहिए. इसके पौधों की दूसरी गुड़ाई पहली गुड़ाई के लगभग 15 दिन बाद कर देनी चाहिए.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

कुसुम के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जिनके प्रकोप की वजह से पौधे प्राप्त होने वाली पैदावार में काफी फर्क देखने को मिलता हैं.

गेरुई रोग

कुसुम के पौधों पर इस रोग का असर उनके विकास के दौरान देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर पीले और भूरे रंग के चित्ते बन जाते हैं. जिनकी वजह से पौधे का विकास रुक जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मैंकोजेब या जिनेब का उचित मात्रा में छिडकाव करना चाहिए.

झुलसा रोग

रोग लगा पौधा

पौधों पर झुलसा रोग मौसम परिवर्तन और वायरस की वजह से देखने को मिलता है. इसके लगने पर पौधों की पत्तियों के किनारे सूखने लगते हैं. और कुछ दिन बाद पूरी पत्ती पीली पड़कर सुख जाती है. जिसकी वजह से पौधा विकास करना बंद कर देता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर बाविस्टिन या हिनोसान की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

माहू रोग

कुसुम के पौधों पर लगने वाला ये एक कीट रोग है. जो पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर पौधे के विकास को प्रभावित करता है. इसके कीट पौधे के कोमल भागों पर समूह में पाए जाते हैं. इन कीटों का रंग लाल, पीला या काला दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर पौधों की पैदावार काफी ज्यादा प्रभावित होती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफॉस या मैलाथियान की उचित मात्रा का छिडकाव 10 से 15 दिन के अंतराल में दो बार करना चाहिए.

फल छेदक

कुसुम के पौधों पर फल छेदक का प्रकोप पौधों पर फूलों के बनने के बाद दिखाई देता है. इस रोग के कीट का लार्वा कलियों के अंदर जाकर फूल में मुख्य भागों की नष्ट कर देती हैं. जिसका सबसे ज्यादा असर पौधे की पैदावार पर देखने को मिलता है. पौधों पर लगने वाले इस रोग की रोकथाम के लिए डेल्टामेथ्रिन या इंडोसल्फान की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

भभूतिया रोग

कुसुम के पौधों पर इस रोग के लगने पर उनका विकास रुक जाता है. इस रोग का असर पौधे की पत्तियों पर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर सफ़ेद रंग का चूर्ण पाउडर दिखाई देता है. जिसकी वजह से पौधा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर घुलनशील गंधक की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

पौधों की कटाई और मढ़ाई

कुसुम की अलग अलग किस्मों के पौधे 140 से 160 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं. जब इसके पौधे की पत्तियां पीली पड़कर गिरने लग जाए तब इनकी कटाई कर लेनी चाहिए. इसके पौधों की कटाई में काफी सावधानी रखनी होती है. क्योंकि इसकी कुछ किस्मों के पौधों में कांटे पाए जाते हैं. काटें वाली किस्मों के पौधों को सावधानीपूर्वक हाथों में दस्ताने पहनकर या कपड़ा बांधकर काटना चाहिए. जबकि बिना काँटों वाली किस्मों को काटने में कोई परेशानी नही होती.

कुसुम के पौधों की कटाई के लिए कम्बाइन हार्वेस्टर मशीन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. जिससे फसल को काटने में आसानी रहती है. फसलों की कटाई के बाद उन्हें सुखाकर उनकी मड़ाई की जाती है. इसकी मड़ाई मशीनों की सहायता से की जाती है. जिससे बीज को कलियों से अलग कर लिया जाता है.

पैदावार और लाभ

कुसुम की प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 15 किवंटल के आसपास पाई जाती है. इसके अलावा इसके फूलों की पंखुड़ियों का भी बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. जिनको किसान भाई एकत्रित कर बाज़ार में बेच सकता है. जिससे किसान भाई को इसकी खेती से अच्छा लाभ प्राप्त होता है.

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