भिंडी की खेती कैसे करें – पूरी जानकारी!

सब्जियों में भिंडी का एक प्रमुख स्थान है. भिंडी लोगो की लोकप्रिय सब्जी बनी हुई है. आज भिंडी का इस्तेमाल कई तरह की सब्जियों के साथ भी किया जाता है. भिंडी में कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन ए, बी और सी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं. जो मनुष्य के लिए उपयोगी होते हैं. भिंडी के इस्तेमाल से पेट संबंधित छोटी बिमारियों से भी छुटकारा मिलता है.

भिंडी की पैदावार

भिंडी का पौधा लगभग एक से डेढ़ मीटर लम्बाई वाला होता है. इसकी खेती खरीफ और बरसात दोनों मौसम में की जाती है. इसके पौधे को बारिश की ज्यादा जरूरत नही होती. और इसकी खेती के बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. इसकी खेती के लिए भूमि पी.एच. मान सामान्य होना चाहिए. भारत में इसकी खेती लगभग सभी जगह की जा सकती है.

अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

भिंडी की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि उपयोगी होती है. लेकिन अधिक पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 7 से 8 के बीच होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

भिंडी की खेती के लिए गर्म और आद्र जलवायु उपयुक्त होती है. भारत में इसकी खेती खरीफ और बारिश दोनों मौसम में की जाती है. इसके पौधे को अधिक बारिश की आवश्यकता नही होती. सामान्य बारिश इसकी खेती के लिए काफी होती है. अधिक सर्दी और अधिक गर्मी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नही होती. सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसकी खेती को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाता है.

इसके बीजों को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की आवश्यकता होती है. अंकुरण के दौरान अगर तापमान 15 डिग्री के आसपास रहता है तो बीज अंकुरित नही होता. अंकुरित होने के बाद इसके पौधे को विकास करने के लिए 27 से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है.

उन्नत किस्में

भिंडी की कई तरह की उन्नत किस्में हैं, जिनको उनकी पैदावार और की जाने वाली तुड़ाई के हिसाब से तैयार किया गया है.

पूसा ए-4

उन्नत किस्म

भिंडी की ये एक उन्नत किस्म है. जिसको भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे पर बीज के अंकुरण के लगभग 15 से 20 दिन बाद फूल आने शुरू हो जाते हैं. जिनकी पहली तुड़ाई बीज रोपण के 45 दिन बाद कर ली जाती है. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 10 से 15 टन तक पाई जाती है.

पंजाब-7

भिंडी की ये एक पीतरोग रोधी किस्म है. इस किस्म के पौधों 50 से 55 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका आकार सामान्य और रंग हरा होता है. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 8 से 20 टन तक प्राप्त होती है.

परभनी क्रांति

इस किस्म के पौधों पर भी पीतरोग नही लगता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 50 दिन बाद पहली तुड़ाई के तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के फल गहरे हरे और लगभग 15 से 20 सेंटीमीटर लम्बे पाए जाते है. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 10 से 12 टन के आसपास पाई जाती है.

अर्का अनामिका

इस किस्म के पौधों पर पीलीशिरा मोजेक रोग नही लगता. इस किस्म के फल अधिक लम्बाई वाले और गहरे हरे रंग के होते हैं. जिनकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 20 टन के आसपास पाई जाती है. इस किस्म को दोनों ऋतुओं में उगाया जा सकता है. इस किस्म के पौधे लम्बाई वाले और फैले होते हैं. जिसके फूलों की पंखुडियां जामुनी रंग की दिखाई देती हैं.

हिसार उन्नत

इस किस्म को हरियाणा और पंजाब में अधिक उगाया जाता है. इस किस्म का निर्माण चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा किया गया है. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 15 टन तक प्राप्त की जाती है. इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 45 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों को गर्मी और बारिश दोनों मौसम में उगाया जा सकता है.

वी. आर. ओ. – 6

भिंडी की इस किस्म को काशी प्रगति के नाम से भी जाना जाता है. जिसको भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के 45 से 50 दिन बाद फल देना शुरू कर देते हैं. इस किस्म के पौधों पर पीलीशिरा मोजेक रोग नही पाया जाता. इसके पौधे बारिश के मौसम में अधिक तेज़ी से वृद्धि करते हैं.

वर्षा उपहार

भिंडी की इस किस्म को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के 50 दिन बाद फल देना शुरू कर देते हैं. इस किस्म को दोनों ऋतुओं में पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधों की प्रति हेक्टेयर पैदावार 10 टन के आसपास पाई जाती है.

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भिंडी की ये एक उन्नत किस्म है. जिसको अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 40 से 50 दिन बाद फल देना शुरू कर देते हैं. जिनकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 20 टन के आसपास पाई जाती है. इस किस्म के फल गहरे हरे रंग के होते हैं.

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आजाद कृष्णा

भिंडी की इस किस्म को आजाद कृष्णा के नाम से भी जाना जाता है. इसके फल लाल रंग के होते हैं. जिनकी लम्बाई 15 सेंटीमीटर के आसपास पाई जाती है. जिनकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 10 से 15 टन तक पाई जाती है.

खेत की तैयारी

भिंडी की खेती के लिए शुरुआत में खेत की अच्छे से जुताई कर उसे खुला छोड़ दें. उसके बाद खेत में 15 गाडी प्रति एकड़ के हिसाब से पुरानी गोबर की खाद को डालकर खेत की अच्छे से जुताई कर दें. जिससे गोबर की खाद मिट्टी में अच्छे से मिल जाती है. उसके बाद खेत में पानी छोड़कर खेत का पलेव कर दें. पलेव करने के दो से तीन दिन बाद जब भूमि उपर से सूखने लगे तब खेत की फिर से जुताई कर उसमें पाटा चला दें ताकि खेत समतल हो जाए.

बीज की रोपाई का टाइम और तरीका

भिंडी के बीज की रोपाई सीधे खेतों में की जाती है. इसके बीज की रोपाई अलग अलग मौसम की फसल के आधार पर की जाती है. ग्रीष्मकालीन फसल के लिए इसके बीजों की रोपाई फरवरी या मार्च के महीने में की जाती है. जबकि बारिश के समय में इसके बीजों की की रोपाई जुलाई के महीने में की जाती है.

भिंडी के बीजों को खेत में लगाने से पहले उन्हें गोमूत्र या कार्बेन्डाजिम से उपचारित कर लगाना चाहिए. एक हेक्टेयर में इसकी रोपाई के लिए 5 किलो के आसपास बीज काफी होता है. भिंडी के बीज की रोपाई हाथ और मशीन दोनों के माध्यम से मेड़ों पर की जाती है.

ग्रीष्मकालीन फसल की रोपाई के दौरान इसकी पंक्तियों के बीच की दूरी एक फिट और पंक्तियों में पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर रखी जाती है. जबकि बारिश के वक्त की जाने वाली फसल की रोपाई के लिए पंक्तियों के बीच की दूरी डेढ़ से दो फिट और पंक्तियों में पौधे से पौधे के बीच की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर रखी जानी चाहिए.

पौधों की सिंचाई

भिंडी के बीज की रोपाई आद्रता युक्त भूमि में की जाती है. इस कारण इसके बीजों को तुरंत सिंचाई की जरूरत नही होती है. इसके पौधे की सिंचाई मौसम के आधार पर की जाती है. शुरुआत में इसके पौधे की 10 से 15 दिन के अंतराल में सिंचाई करें. उसके बाद जब गर्मी बढ़ने लगे तो सिंचाई का टाइम कम कर दें. और गर्मी के अधिक बढ़ने पर सप्ताह में दो बार सिंचाई करनी चाहिए. जबकि बारिश के वक्त सिर्फ आवश्यकता होने पर ही पौधों को पानी देना चाहिए.

उर्वरक की मात्रा

भिंडी की खेती के लिए जमीन में उर्वरक की उचित मात्रा का होना जरूरी होता है. इसके लिए शुरुआत में खेत की जुताई के वक्त लगभग 15 गाडी प्रति एकड़ के हिसाब से पुरानी गोबर की खाद या एक टन वर्मी कम्पोस्ट खाद को खेत में डालकर मिट्टी में मिला दें. इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में दो बोरे एन.पी.के. को आखिरी जुताई के वक्त प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना चाहिए. पौधों की सिंचाई के दौरान जब पौधा 50 दिन और 90 का हो जाए तब 20 – 20 किलो यूरिया की मात्रा को सिंचाई के साथ पौधों को दें.

खरपतवार नियंत्रण

भिंडी के पौधों में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक तरीके से करने के लिए खेत में बीज की रोपाई से पहले फ्लूक्लोरेलिन की उचित मात्रा का छिडकाव करें. जबकि नीलाई गुड़ाई के माध्यम से खरपतवार नियंत्रण करने के लिए इसके पौधों की उचित टाइम पर नीलाई गुड़ाई की जाती है. इसकी पहली गुड़ाई बीज रोपाई के 20 दिन बाद कर देनी चाहिए. उसके बाद बाकी की सभी गुड़ाई 15 से 20 दिन के अंतराल में कर देनी चाहिए. गुड़ाई के दौरान पौधों की जड़ों पर हलकी मिट्टी चढ़ा दें. ताकि पौधे वजन बढ़ने पर गिरे नही.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

भिंडी के पौधे में कई तरह के रोग लगते है. जिनकी उचित टाइम पर देखभाल ना करने पर पैदावार को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचता है.

फल छेदक

फल छेदक रोग

भिंडी के पौधे पर फल छेदक रोग का प्रकोप नमी के मौसम में ज्यादा देखने को मिलता है. इस रोग की वजह से पैदावार को सबसे ज्यादा नुक्सान पहुँचता है. इसके कीट भिंडी के फलों को अंदर से खाकर खराब कर देते हैं. इन कीटों का आक्रमण पौधे के तने और प्ररहों पर भी देखने को मिलता है जिसकी वजह से फल मुड़कर खराब हो जाते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर प्रोफेनोफॉस या क्विनॉलफॉस की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

पीत शिरा रोग

भिंडी के पौधे पर लगने वाला ये रोग एक वायरस जनित रोग है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों की सिरायें पीली पड़ जाती है. और नई निकलने वाली शाखाएं भी पीली दिखाई देती हैं. इसके अलावा फलों का रंग भी पीला दिखाई देने लगता है. इसका प्रभाव बढ़ने पर धीरे धीरे पौधा विकास करना बंद कर देता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर इमिडाक्लोप्रिड या डाइमिथोएटकी उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

चूर्णिल आसिता

भिंडी के पौधे पर ये रोग किसी भी अवस्था में देखने को मिल सकता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर सफ़ेद चूर्ण के जैसे धब्बे दिखाई देते हैं. जो धीरे धीरे बड़े होते जाते हैं. जिससे पौधा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नही कर पाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर गंधक की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

लाल मकड़ी

भिंडी के पौधे पर लाल मकड़ी का आक्रमण पौधे की वृद्धि के साथ देखने को मिलता है. इस रोग के किट सफ़ेद मक्खियों की तरह पत्तियों की निचली सतह पर झुण्ड बनाकर रहते हैं. जो धीरे धीरे पत्तियों के रस को चूसते रहते हैं. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है. और पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगता है. प्रकोप बढ़ने पर सम्पूर्ण पौधा पीला होकर सूखने लगता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर डाइकोफॉल या गंधक की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

फलों की तुड़ाई

भिंडी की हर किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 40 से 50 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. भिंडी के फलों की तुड़ाई कई चरणों में की जाती है. पहली तुड़ाई करने के बाद चार से पांच दिन के अंतराल में तुड़ाई करते रहना चाहिए. अगर इसके फलों की पकने से पहले तुड़ाई नही की जाए तो फल पककर कडवा पड़ जाता है. जिससे पैदावार को नुकसान पहुँचता है. भिंडी के फलों की तुड़ाई अक्सर शाम के वक्त ही करनी चाहिए. इससे फल दूसरे दिन तक बिलकुल ताज़ा दिखाई देता है.

पैदावार और लाभ

भिंडी की फसल से किसान भाई कम खर्च में अधिक लाभ कमा सकता है. भिंडी की अलग अलग किस्मों के आधार पर इसकी औसतन पैदावार 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर पाई जाती है. जिसका बाज़ार में थोक भाव 10 से 30 रूपये प्रति किलो तक पाया जाता है. इस हिसाब से किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से लगभग डेढ़ से दो लाख तक की कमाई आसानी से कर सकता हैं.

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