Kheti Gyan

  • होम
  • मंडी भाव
  • मेरा गाँव
  • फल
  • फूल
  • सब्ज़ी
  • मसाले
  • योजना
  • अन्य
  • Social Groups

लौकी (घिया)की खेती कैसे करें – पूरी जानकारी यहाँ लें!

2019-07-05T16:23:33+05:30Updated on 2019-07-05 2019-07-05T16:23:33+05:30 by bishamber Leave a Comment

कद्दू वर्गीय सब्जियों में लौकी का एक महत्वपूर्ण स्थान है. लौकी लम्बी और गोल दोनों आकार में पाई जाती है. गोल वाली लौकी को पेठा के नाम से भी जाना जाता है. और लम्बी वाली लौकी को घिया के नाम से जाना जाता है. इस आर्टिकल में हम लम्बी वाली लोकी की खेती के बारे में बताऍगे. हालाँकि लम्बी और गोल लोकी की खेती में ज्यादा अंतर नहीं है। लौकी का इस्तेमाल खाने में कई तरह से किया जाता है. खाने के रूप में लौकी का इस्तेमाल सब्जी, रायता, हलवा, और पेठे बनाने में किया जाता है. इसके अलावा लौकी का इस्तेमाल कई तरह की बीमारियों को दूर करने में भी किया जाता हैं. जिनमें पेट संबंधित बीमारी प्रमुख है.

Table of Contents

  • उपयुक्त मिट्टी
  • जलवायु और तापमान
  • उन्नत किस्में
    • पूसा सन्देश
    • काशी गंगा
    • नरेन्द्र रश्मि
    • पूसा हाइब्रिड
    • अर्को बहार
    • काशी बहार
  • खेत की जुताई
  • पौध तैयार करना
  • बीज और पौध रोपाई का तरीका और टाइम
  • पौधों की सिंचाई
  • सहारा देना
  • उर्वरक की मात्रा
  • खरपतवार नियंत्रण
  • पौधों को लगने वाले रोग
    • सफेद मक्खी
    • लाल कद्‌द भृंग
    • चेपा
    • फल मक्खी
    • चूर्णिल आसिता
  • फलों की तुड़ाई
  • पैदावार और लाभ
लौकी की पैदावार

लौकी की खेती पूरे भारत वर्ष में की जाती है. अलग अलग मौसम के आधार पर इसे विभिन्न जगहों पर उगाया जाता है. लेकिन यह शुष्क और अर्द्धशुष्क जगहों पर अच्छी पैदावार देती है. इसकी खेती के लिए सामान्य तापमान से थोड़ा अधिक तापमान उपयुक्त होता है. लौकी की खेती उचित जल निकासी वाली किसी भी तरह की मिट्टी में की जा सकती है. इसके लिए मिट्टी का पी.एच. मान सामान्य होना चाहिए.

अगर आप भी लौकी की खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

लौकी की खेती के लिए उच्च उर्वरक क्षमता वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है. लेकिन अच्छी देखरेख में इसकी खेती उचित जल निकासी वाली किसी भी तरह की जमीन में की जा सकती है. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

लौकी की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु उपयुक्त होती है. समशीतोष्ण जलवायु वाले प्रदेशों में इसकी पैदावार अधिक होती है. लेकिन भारत में इसे ज्यादातर बारिश और गर्मी के मौसम में उगाया जाता है. इस दौरान इसकी सबसे ज्यादा खेती उत्तर भारत में की जाती है. इसकी खेती को बारिश की ज्यादा जरूरत नही होती. और सर्दियों के टाइम की जाने वाली इसकी पैदावार पर सर्दियों में पड़ने वाले पाले का असर देखने को मिलता है.

इसकी खेती के लिए 30 डिग्री के आसपास का तापमान उपयुक्त होता है. लौकी के बीजों को अंकुरण के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. लेकिन इसके पौधों को वृद्धि करने के लिए 35 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है.

उन्नत किस्में

लौकी की कई तरह की किस्में मौजूद हैं. इन सभी किस्मों को कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है.

पूसा सन्देश

लौकी की उन्नत किस्म

पूसा सन्देश किस्म को उत्तर भारत में बारिश और खरीफ के मौसम में उगाया जाता है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 320 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधे खेत में बीज रोपाई के 50 से 60 दिन बाद फल देना शुरू कर देता है. इसके फल आकर्षक हरे रंग और मध्यम आकार वाले होते हैं.

काशी गंगा

इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 400 से 450 क्विंटल के आसपास पाई जाती है. लौकी की इस किस्म को गर्मी के मौसम में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के फल मध्यम आकार और हरे रंग के होते हैं. जिनकी लम्बाई एक से डेढ़ फिट की होती है. इस किस्म के पौधों बीज रोपाई के 50 से 55 दिन बाद फल देना शुरू कर देते हैं.

नरेन्द्र रश्मि

इस किस्म के फल हलके और छोटे दिखाई देते हैं. लेकिन इन सभी का औसतन वजन एक किलो के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के फलों का रंग हलका हरा होता है. इस किस्म के पौधे पर फल बीज रोपाई के लगभग 60 दिन बाद शुरू हो जाते हैं. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 300 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.

पूसा हाइब्रिड

इस किस्म को उत्तर भारत में खरीफ के मौसम में अधिक उगाया जाता है. क्योंकि खरीफ के मौसम में इसकी पैदावार अधिक मिलती है. खरीफ के मौसम में इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 470 क्विंटल से भी ज्यादा पाई जाती है. इस किस्म के फल को अधिक दिनों तक भंडारित भी किया जा सकता है. इस किस्म के पौधे 50 से 55 दिन बाद फल देना शुरू कर देते हैं.

अर्को बहार

लौकी की इस किस्म के फल सीधे और मध्यम आकार वाले होते हैं. जिनका रंग हल्का हरा होता है. इसके एक फल का औसतन वजन एक किलो से ज्यादा पाया जाता है. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 450 से 500 क्विंटल तक पाई जाती है. लौकी की इस किस्म को गर्मी और बारिश के मौसम में उगाया जाता है. इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 50 से 60 दिन बाद फल देना शुरू कर देते हैं.

काशी बहार

संकर किस्म की लौकी

ये लौकी की एक संकर किस्म है. जिसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 520 क्विंटल के आसपास पाई जाती है. इस किस्म को बरसात और गर्मी दोनों मौसम में उगाया जा सकता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 60 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. इस किस्म के पौधों की प्रारम्भिक गांठों पर ही फल बनना शुरू हो जाता हैं. इस किस्म के फल सामान्य आकार वाले और हरे रंग के होते हैं.

इनके अलावा और भी कई तरह की किस्में मौजूद हैं. जिनमें पूसा मेघदूत, पूसा प्रोलिफिक राउंड, माही 8, पूसा मंजरी, नामधारी और पूसा संतुष्टि जैसी बहुत साड़ी किस्में हैं जिन्हें कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है.

खेत की जुताई

लौकी की खेती के लिए साफ़ और भुरभुरी मिट्टी का होना जरूरी है. इसके लिए खेत में मौजूद पुरानी फसल के सभी तरह के अवशेष ख़तम कर उसकी गहरी जुताई करें. गहरी जुताई के लिए पलाऊ या तवे वाले हलों का उपयोग करें. उसके बाद खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी में मौजूद सभी प्रकार के ढेलों को ख़तम कर मिट्टी को भुरभुरा और समतल बना दें.

मिट्टी के समतल हो जाने के बाद खेत में 10 से 15 फिट की दूरी पर धोरे नुमा क्यारी बना दें. इस तरह की क्यारी समतल पर फसल उगाने के लिए बनाई जाती है. इसके अलावा इसकी खेती बॉस की लकड़ियों पर जाल बनाकर भी की जाती है. इसके लिए क्यारियों की जगह एक से डेढ़ फिट चौड़ाई और आधा फिट गहराई की नाली तैयार की जाती है. उसके बाद इन क्यारी और नाली में उचित मात्रा में गोबर की खाद और उर्वरक डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. खेतों में ये प्रक्रिया पौधे की रोपाई के लगभग 20 दिन पहले की जानी चाहिए.

पौध तैयार करना

लौकी की खेती सीधे बीजों को खेत में लगाकर भी की जा सकती है. बीज के माध्यम से खेती करने के लिए इसके बीजों को तैयार की हुई नाली में लगाया जाता है. बिज़ रोपाई से पहले तैयार की हुई नालियों में पानी छोड़ देना चाहिए. उसके बाद बीज की रोपाई करना चाहिए.

लेकिन कुछ किसान भाई इसकी अधिक और जल्दी पैदावार के लिए इसके पौध नर्सरी में तैयार कर लेते हैं. जिन्हें बाद में खेत में लगा दिया जाता है. नर्सरी में इसकी पौध को पॉलीथिन बैग में तैयार किया जाता है. जिसको बुवाई के लगभग 20 से 25 दिन पहले ही तैयार कर लिया जाता है.

इसके बीजों को मिट्टी में रोपाई से पहले गोमूत्र या बाविस्टीन से उपचारित कर लेना चाहिए. बीजों को उपचारित करने से कई तरह के रोग से छुटकारा मिल जाता है. और पैदावार भी अच्छी मिलती है.

बीज और पौध रोपाई का तरीका और टाइम

बीज के माध्यम से इसकी खेती करने के लिए प्रति हेक्टेयर में डेढ़ से दो किलो बीज की जरूरत पड़ती है. बीज की रोपाई से पहले क्यारियों में पानी छोड़कर उन्हें गिला कर लेना चाहिए. उसके बाद बीजों की रोपाई क्यारियों में दोनों तरफ मेड पर अंदर की तरफ करनी चाहिए. बीज रोपाई के दौरान प्रत्येक बीज के बीच दो से तीन फिट की दूरी रखनी चाहिए.

पौध के माध्यम से इसकी खेती के लिए तैयार की हुई पौध को खेत में हल्का गड्डा कर उसमें लगाया जाता है. इसके लिए खेत में बनाई हुई नाली में पौधे को लगाकर उसे चरों तरफ से मिट्टी से अच्छे से दबा दें. इसकी खेती के लिए नर्सरी में बीजों को लगभग 20 से 25 दिन पहले तैयार किया जाता है.

लौकी की खेत अगर जायद के मौसम में की जानी हो तो इसके पौधे को फरवरी माह में नर्सरी में तैयार किया जाता है. और बारिश के मौसम में इसकी खेती करने के लिए इसके बीजों की रोपाई जून महीने में करना उचित होता है. जबकि पहाड़ी छेत्रों में इसकी रोपाई मार्च या अप्रैल माह के शुरुआत में करनी चाहिए.

पौधों की सिंचाई

लौकी के पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत नही होती. इसके पौधों की अगर बीज के रूप में रोपाई की गई हो तो बीज को अंकुरित होने तक मिट्टी में उचित नमी बनाए रखनी चाहिए. लेकिन अगर इनकी रोपाई पौध के माध्यम से की गई हो तो पौध रोपाई के तुरंत बाद पानी दे देना चाहिए. लौकी के पौधे को बारिश के मौसम में पानी की जरूरत नही होती. लेकिन अगर बारिश टाइम पर ना हो और पौधा सुखने लगे तो पौधे को उचित टाइम पर पानी देना चाहिए. जबकि बारिश के बाद इसके पौधे को सप्ताह में एक बार पानी देना उचित होता है.

गर्मियों के मौसम में इसके पौधे को पानी की ज्यादा जरूरत होती है. इसलिए गर्मियों के मौसम में पौधे को तीन दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए. जब पौधे पर फल बन रहे हो तब उसे हल्का पानी देने से फल जल्दी और अधिक मात्रा में प्राप्त होते हैं.

सहारा देना

लौकी की खेत अगर समतल भूमि में की गई हो तो किसी सहारे की जरूरत नही होती. क्योंकि इस दौरान इसकी बेल जमीन में फैलती हैं. लेकिन अगर इसकी खेती जमीन से ऊपर की जाए तो इसके लिए सहारे की जरूरत होती है. सहारे के लिए खेत में 10 फिट की दूरी पर बाँस गाड़कर उन पर जाल बनाकर पौधे को चढ़ाया जाता है. इस विधि से खेती ज्यादातर बारिश के मौसम में की जाती है.

उर्वरक की मात्रा

लौकी के पौधे को उर्वरक की ज्यादा जरूरत होती है. इसकी खेती के लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त 200 से 250 क्विंटलपूरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से तैयार की हुई नालियों में डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. इसके अलावा एन.पी.के. के दो बोरे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में तीन बार दें.

एक बोर को शुरुआत में खेत को तैयार करते वक्त नालियों में डालकर मिट्टी में मिला दें. जबकि बाकी बचे एक बोर को दो बराबर हिस्सों में बांटकर पौधों की सिंचाई के वक्त दे. पहली बार बीज रोपाई के लगभग 40 दिन बाद इसकी आधी मात्रा पौधों को दें और बाकी बची आधी मात्रा को फूल बनने के दौरान पौधों को दें.

खरपतवार नियंत्रण

लौकी के पौधों में खरपतवार नियंत्रण करना जरूरी होता है. क्योंकि इसके पौधे को उर्वरक की ज्यादा जरूरत होती है. लेकिन खरपतवार के हो जाने से इसकी मात्रा अच्छे से पौधों को नही मिल पाती. लौकी के पौधों में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक और प्राकृतिक तरीके से किया जाता हैं. प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए पौधे की बीज रोपाई के लगभग 20 दिन बाद गुड़ाई कर देनी चाहिए. उसके बाद लगभग 15 दिन के अंतराल में पौधे को दो गुड़ाई और कर दें. खेत में खरपतवार नही होने पर पौधे को पोषक तत्व उचित मात्रा में मिलते हैं. इससे पौधा अच्छे से वृद्धि करता है.

रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए बीज रोपाई से पहले या बीज रोपाई के तुरंत बाद ब्यूटाक्लोर का छिडकाव जमीन में करना चाहिए.

पौधों को लगने वाले रोग

लौकी के पौधों में कई तरह के रोग पाए जाते हैं. जो पौधे की पत्तियों और फलों को कई तरह से नुक्सान पहुँचाते हैं. जिनकी रोकथाम करना जरूरी होता है.

सफेद मक्खी

सफ़ेद मक्खी का रोग

सफेद मक्खी का रोग ज्यादातर फसल पर देखने को मिलता है. जो पौधे की पत्तियों को ज्यादा नुक्सान पहुँचाती हैं. सफेद मक्खी पत्तियों की निचली सतह पर रहते हुए पत्तियों का रस चुस्ती है. जिससे पत्तियां पीली होकर नष्ट हो जाती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर इमिडाक्लोप्रिड या एन्डोसल्फान की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

लाल कद्‌द भृंग

लाल कद्‌द भृंग किट पौधों की पत्तियों को ज्यादा नुक्सान पहुँचाता है. इस रोग का किट नारंगी रंग का होता है. जिस पर कई रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. इस रोग के कीट अपनी हर अवस्था में पौधे को नुक्सान पहुँचाते हैं. इस रोग का लार्वा पौधे के तने और फलों को ज्यादा नुक्सान पहुँचाता है. इस रोग के लगने पर पौधे पर एमामेक्टिन या कार्बेरिल का छिडकाव करना चाहिए. जबकि मिट्टी में पाए जाने वाले इसके लार्वा के लिए क्लोरपायरीफॉस को सिंचाई के साथ पौधों में देना चाहिए.

चेपा

चेपा का रोग पौधों पर गर्मियों के वक्त ज्यादा देखने को मिलता है. इस रोग के किट पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर पौधे को नष्ट कर देते हैं. इसके किट हरे पीले रंग के दिखाई देते हैं. जो पौधे पर झुंड के रूप में लगते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल या डाइमेथेएट का छिडकाव करना चाहिए.

फल मक्खी

फल मक्खी पौधे की पैदावार को सबसे ज्यादा नुक्सान पहुँचाती है. फल मक्खी फलों पर अपने अंडे देती हैं. जिसका लार्वा फलों के अंदर जाकर उसे नष्ट कर देता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर एन्डोसल्फान का छिडकाव करना चाहिए.

चूर्णिल आसिता

इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर सफ़ेद रंग का पाउडर दिखाई देता है. जो धीरे धीरे सम्पूर्ण पत्ते को ढक लेता है. जिससे पौधा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नही कर पाता और फल का आकार छोटा रह जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर हेक्साकोनाजोल या माईक्लोबूटानिल की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

फलों की तुड़ाई

लौकी की पैदावार

लौकी के फलों की तुड़ाई बीज रोपाई के लगभग 50 दिनों बाद शुरू हो जाती है. इसकी तुड़ाई कई चरणों में पूरी की जाती है. जब फल को लगे चार से पांच दिन हो जाए और फल आकार में अच्छा दिखाई दे तब इसकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए. फल की तुड़ाई करते वक्त उसे डंठल से कुछ दूरी रखते हुए तेज़ धार वाले हथियार से करनी चाहिए. इससे फल ज्यादा टाइम तक ताज़ा रहता है. फल की तुड़ाई के तुरंत बाद इन्हें पॉलीथिन में भरकर बाज़ार में बेचने के लिए भेज देते हैं. फलों की तुड़ाई ज्यादातर शाम के वक्त या सुबह जल्दी करनी चाहिए.

पैदावार और लाभ

लौकी की खेती दो से तीन महीने की होती है. इसकी खेती में ज्यादा खर्च और मेहनत भी नही लगती. जबकि इसकी पैदावार अच्छी होती है. एक हेक्टेयर में इसकी औसतन पैदावार 350 से 500 क्विंटल तक पाई जाती है. इसका बाज़ार में थोक भाव 5 रूपये प्रति किलो के आसपास पाया जाता है. जिससे एक बार में किसान भाई एक हेक्टेयर से दो लाख तक की कमाई आसानी से कर लेता हैं.

Filed Under: सब्ज़ी

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

  • भेड़ पालन कैसे शुरू करें 
  • प्रमुख तिलहनी फसलों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
  • बरसीम की खेती कैसे करें
  • बायोगैस क्या हैं? पशुओं के अपशिष्ट से बायोगैस बनाने की पूरी जानकारी
  • सूअर पालन कैसे शुरू करें? Pig Farming Information

Categories

  • All
  • अनाज
  • अन्य
  • उन्नत किस्में
  • उर्वरक
  • औषधि
  • जैविक खेती
  • पौधे
  • फल
  • फूल
  • मसाले
  • मेरा गाँव
  • योजना
  • रोग एवं रोकथाम
  • सब्ज़ी
  • स्माल बिज़नेस

Follow Us

facebookyoutube

About

खेती ज्ञान(www.khetigyan.in) के माध्यम से हमारा मुख्य उद्देश्य किसानों को खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारियां देना है. अगर आप खेती संबंधित कोई भी जानकारी देना या लेना चाहते है. तो आप इस ईमेल पर सम्पर्क कर सकते है.

Email – khetigyan4777[@]gmail.com

Important Links

  • About Us – हमारे बारे में!
  • Contact Us (सम्पर्क करें)
  • Disclaimer (अस्वीकरण)
  • Privacy Policy

Follow Us

facebookyoutube

All Rights Reserved © 2017-2022. Powered by Wordpress.