लेमन ग्रास की खेती भारत में बड़ी मात्रा में की जाती है. जिसको नींबू घास, चायना ग्रास, भारतीय नींबू घास, मालाबार घास और कोचीन घास के नाम से भी जाना जाता है. भारत में इसकी खेती व्यापारी तौर से की जाती है. इसकी पत्तियों से नीबू जैसी खुशबू आती है. जिस कारण इसकी पत्तियों का इस्तेमाल चाय बनाने में किया जाता है.
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इसकी पत्तियों से तेल निकाला जाता है, जिसका मुख्य घटक सिट्रल होता है. जिसके कारण इसकी पत्तियों से नीब जैसी खुशबू आती है. इसकी पत्तियों में पाए जाने वाले तेल का इस्तेमाल उच्च कोटि के इत्र, सौंदर्य प्रसाधन की चीजें और साबुन बनाने में किया जाता है. इसकी पत्तियों से तेल निकालने के बाद शेष बचे भाग का इस्तेमाल कागज़ और हरे खाद को बनाने में किया जाता है.
लेमन ग्रास को शुष्क जलवायु का पौधा कहा जाता है. भारत में इसकी खेती राजस्थान, केरल, कर्नाटक, असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में की जाती है. इसके पौधे को बारिश की अधिक जरूरत नही होती. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान सामान्य होना चाहिए.
अगर आप भी इसकी खेती से अच्छी खासी कमाई करना चाहते हैं तो आज हम आपको इसके बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
लेमन ग्रास की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली भूमि की जरूरत होती है. जल भराव वाली भूमि में इसकी खेती नही की जा सकती. क्योंकि जल भराव वाली जगह में इसकी पैदावार कम होती है. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान सामान्य होना चाहिए.
जलवायु और तापमान
लेमन ग्रास की खेती के लिए उष्ण और समशीतोष्ण जलवायु की जरूरत होती है. मौसम में अधिक आद्रता वाली जगहों पर इसकी खेती के लिए धूप की ज्यादा जरूरत होती है. सर्दी के मौसम में पर्याप्त धूप होने पर इसकी पैदावार अच्छी होती है. लेकिन सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसकी खेती को प्रभावित करता है. इसके पौधे को बारिश की भी ज्यादा जरूरत नही होती. 200 से 250 सेमी. वार्षिक वर्षा इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है.
इसके पौधों को शुरुआत में अंकुरित होने के लिए 20 से 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है. अंकुरित होने के बाद इसका पौधा गर्मियों के मौसम में अधिकतम 40 डिग्री तापमान पर भी आसानी से विकास कर सकता है. जबकि सर्दियों के मौसम में 15 डिग्री से कम तापमान इसकी खेती के लिए उपयुक्त नही होता है.
उन्नत किस्में
लेमन ग्रास की कई प्रजातियाँ विकसित कर ली गई है. इन प्रजातियों में कई तरह की किस्में मौजूद हैं. इन सभी किस्मों को इसकी पत्तियों में पाई जाने वाली तेल की मात्रा और उनके उत्पादन के आधार पर तैयार किया गया है.
सिम्बोपोगान फ्लेक्सुओसस
इस प्रजाति की किस्मों के पौधों की पत्तियां सीधी होती है. जिनके अंदर का ट्यूब और पत्तियों का मुख्य शिरा बादामी रंग का पाया जाता है. इस प्रजाति में कावेरी, प्रगति, कृष्णा और नीमा जैसी और भी कई किस्में शामिल है. जिनका उत्पादन सामान्य से अधिक पाया जाता है. इन किस्मों को राजस्थान और मध्य प्रदेश में ज्यादा उगाया जाता है.
सिम्बोपोगान पेन्डूलस
इस प्रजाति की किस्मों की पैदावार ज्यादा पाई जाती है. और इस प्रजाति के पौधों की पत्तियों में पाए जाने वाले तेल की मात्रा भी अन्य किस्मों से ज्यादा पाई जाती है. इसकी पत्तियां गहरे हरे रंग की होती है. जबकि इन पत्तियों में पाया जाने वाला ट्यूब हल्के रंग का होता है. चिरहरित और प्रमाण इस प्रजाति की दो मुख्य किस्में हैं.
सिम्बोपोगान क्रास
लेमन ग्रास की ये एक संकर प्रजाति है. जिनकी किस्मों को बाकी की प्रजातियों के संकरण से तैयार किया गया है. इस प्रजाति को सिम्बोपोगान खासियेनस और पेन्डूलस के संकरण से तैयार किया गया है. इस प्रजाति की मुख्य किस्म सी. के. पी. – 25 है. इस किस्म की पत्तियां पतली, छोटी और कम चौड़ी होती हैं. जिनका रंग सम्पूर्ण रूप से हरा पाया जाता है.
इन सभी प्रजातियों के अलावा ओ. डी. 19 ओडाक्कली किस्म है जिसको एर्नाकुलम केरल द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म का उत्पादन अधिक पाया जाता है. इसके पौधे लाल रंग के होते हैं. जिसकी पत्तियों में पाए जाने वाले तेल का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 80 से 220 किलो तक पाया जाता है.
पौध तैयार करना
लेमन ग्रास के पौधों को बीज और कलम दोनों के माध्यम से उगाया जाता है. लेकिन कलम के माध्यम से इसकी पौध लगाना ज्यादा लाभकारी माना जाता है. इसकी पौध रोपाई के लगभग दो महीने पहले नर्सरी में तैयार की जाती है. एक हेक्टेयर में इसके बीजों की रोपाई के लिए 2 से 3 किलो बीज काफी होता है. जबकि नर्सरी में पौधा तैयार करने के लिए दो किलो बीज काफी होता है. इसके बीज को नर्सरी में लगाने से पहले उपचारित कर लेना चाहिए. इसके लिए बीजों को कुछ देर गोमूत्र में डुबोकर रखना चाहिए.
बीज को उपचारित करने के बाद पौध के लिए नर्सरी में उगाया जाता है. इसके बीजों को नर्सरी में लगाने का सबसे उपयुक्त टाइम मार्च और अप्रैल का महीना होता है. जिसके दो महीने बाद जून और जुलाई के महीने में बारिश के मौसम के दौरान इसके पौधों को खेत में लगाया जाता है. बीज के अलावा इसकी पौध पुराने पौधों से भी तैयार की जाती हैं.
खेत की तैयारी
लेमन ग्रास के पौधे एक बार लगाने के बाद 5 साल तक पैदावार दे सकते है. इसके पौधों की रोपाई के शुरुआत में मिट्टी का भुरभुरा होना जरूरी होता है. इसके लिए खेत की पहली जुताई पलाऊ लगाकर करनी चाहिए. उसके कुछ दिन बाद खेत की कल्टीवेटर के माध्यम से एक बार जुताई कर उसमें गोबर की खाद डाल दें. गोबर की खाद को फिर से जुताई के माध्यम से मिट्टी में मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पाटा चलाकर उसे समतल बना लें. खेत को समतल बनाने के बाद उसमें उचित दूरी की क्यारियां बना लें.
पौध रोपाई का तरीका और टाइम
नर्सरी में बीज के माध्यम से तैयार पौधों को खेत में लगाया जाता है. इसके पौधों को खेत में बनाई गई क्यारियों में पंक्तियों में लगाते हैं. इसकी रोपाई के दौरान प्रत्येक पंक्तियों के बीच एक से डेढ़ फिट की दूरी होनी चाहिए. और पंक्तियों में लगाए गए पौधों के बीच एक फिट की दूरी काफी होती है. इसके पौधों को जमीन में तीन सेंटीमीटर की गहराई में लगाना चाहिए.
नर्सरी में तैयार की हुई पौध के अलावा इसके पौधों को पुराने पौधों की जड़ों के माध्यम से भी लगा सकते हैं. इस तरीके से पौध लगाने की विधि को स्लिप विधि के नाम से जाना जाता है. इस विधि से कलम तैयार करने के लिए पुराने पौधे को जड़ के पास से लगभग 8 से 10 सेंटीमीटर ऊँचाई से काटना चाहिए. उसके बाद इसकी जड़ों को उखाड़कर उन में से जड़ों की स्लिप ( छोटी जड़ों ) को अलग कर लेना चाहिए. इन जड़ों को खेत में 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई में लगा देते हैं. इस विधि को सबसे लाभकारी और उत्तम माना जाता है. इसके पौधों को पंक्तियों में पहले की तरह ही सामान दूरियों पर उगाया जाता है.
लेमन ग्रास की पौध को ज्यादातर जगहों पर बारिश के मौसम में उगाया जाता है. क्योंकि इस दौरान पौध लगाने पर पौधों को शुरुआत में सिंचाई की जरूरत नही पड़ती और पौधा अच्छे से विकास भी करता है. बारिश के मौसम के अलावा जहां सिंचाई की उचित व्यवस्था हो वहां इसके पौधों को मार्च के महीने में उगाना अच्छा होता है. क्योंकि मार्च के महीने में उगाये गए पौधों से पहली कटाई के दौरान 20 प्रतिशत ज्यादा उपज प्राप्त होती है.
पौधों की सिंचाई
इसके पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत नही होती. लेकिन अधिक उत्पादन लेने के लिए पौधों की उचित टाइम पर सिंचाई करनी चाहिए. गर्मियों के मौसम में इसके पौधों की जड़ों में नमी बनाए रखने पर ज्यादा पैदावार मिलती है. इसके पौधों को खेत में लगाने के तुरंत बाद पानी देना चाहिए. उसके बाद पौधे के अंकुरित होने तक खेत में नमी बनाए रखने के लिए उचित टाइम पर दो से तीन दिन के अंतराल में पानी देते रहना चाहिए. जब पौधा पूरी तरह से अंकुरित हो जाए तब पौधे को गर्मियों के मौसम में सप्ताह में एक बार और सर्दियों के मौसम में 20 दिन के अन्तराल में पानी देना चाहिए. इसका पौधा तीन महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाता है. पौधों की प्रत्येक कटाई के तुरंत बाद पौधों को पानी देने पर पैदावार अधिक मिलती है. जबकि बारिश के मौसम में इसके पौधों को पानी की जरूरत नही होती.
उर्वरक की मात्रा
इसके पौधों को बाकी फसलों की तरह उर्वरक की जरूरत होती है. इसके लिए खेत की तैयारी के वक्त 10 से 12 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में डालना चाहिए. इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में दो बोरे एन.पी.के. की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत की आखिरी जुताई के टाइम खेत में छिड़क देना चाहिए. इसके अलावा लगभग 20 से 25 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़ के हिसाब से पौधों को प्रत्येक कटाई के बाद देने से पौधों पर नई शाखाएं जल्दी निकलती हैं. जिससे पौधे की पैदावार भी बढती है.
खरपतवार नियंत्रण
इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण करने के लिए पौधों की नीलाई गुड़ाई की जाती है. इसके पौधों को खेत में लगाने के बाद शुरुआत में लगभग डेढ़ महीने तक खरपतवार पैदा ना होने दे. इसके लिए पौधों की रोपाई के बाद 20 से 25 दिन के अंतराल में दो गुड़ाई कर देनी चाहिए.
इसके पौधों की हर कटाई के बाद एक बार गुड़ाई करने से पैदावार पर फर्क देखने को मिलता है. जबकि रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए डायूरान और आक्सीफ्लोरफेन की उचित मात्रा का छिडकाव खेत में करना चाहिए.
पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
लेमन ग्रास के पौधों में कम ही रोग देखने को मिलते हैं. लेकिन कुछ ऐसे रोग होते हैं. जिनके लगने पर पौधा विकास करना बंद कर देता है. जिसके कारण उपज में कमी देखने को मिलती है. इन रोगों की वक्त रहते रोकथाम करने से पौधे को बचाया जा सकता है.
दीमक
दीमक का प्रकोप पौधों पर वैसे तो किसी भी अवस्था में दिखाई दे सकता है. लेकिन पौधों के अंकुरण के वक्त इसका प्रकोप अधिक देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधे मुरझाकर पीला पड़ जाता है. और उसके कुछ दिन बाद पौधा पूर्ण रूप से सूखकर नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की जड़ों में क्लोरोपाइरीफॉस का छिडकाव करना चाहिए.
चिलोत्रेए
लेमन ग्रास पर चिलोत्रेए का प्रकोप किट की वजह से फैलता है. इस रोग के किट का रंग सफ़ेद होता है, जिसके शरीर पर काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. इसके लगने पर पौधे की मुख्य पत्तियां सबसे पहले सूखती है. उसके बाद सम्पूर्ण पौधा सूखने लगता है. इसकी रोकथाम के लिए नीम के काढ़े को पौधों पर छिडकना चाहिए.
सफ़ेद मक्खी
इसके पौधों पर सफ़ेद मक्खी के प्रकोप की वजह से इसकी पैदावार प्रभावित होती है. क्योंकि इसके कीट पौधों की पत्तियों का रस चूसते हैं. जो पत्तियों की निचली सतह पर पाए जाते हैं. इनके रस चूसने की वजह से पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है. और कुछ दिन बाद पत्तियां सूखने लगती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफॉस की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
चूहों का प्रकोप
लेमन ग्रास का पौधा खुशबूदार होता है. इसकी पत्तियों से नींबू की जैसी खुशबू आती है. जो चूहों के अधिक आकर्षण का कारण बनती है. जिससे चूहे खेत में बिल बनाकर रहते हैं. और पौधों की पत्तियों को काटकर उन्हें खाते हैं. जिससे पैदावार को नुक्सान पहुँचता है. इनकी रोकथाम के लिए जिंक फास्फाइड या बेरियम क्लोराइड का प्रयोग खेत में करना चाहिए.
पौधों की कटाई
लेमन ग्रास के पौधे एक बार लगाने के बाद लगभग 5 साल तक पैदावार दे सकते हैं. इसके पौधे खेत में लगाने के लगभग 60 से 90 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके पौधों की अच्छी देखभाल कर किसान भाई साल में चार से ज्यादा कटाई आसानी से ले सकता है.
लेमन ग्रास के पौधों की हर कटाई के बाद इनकी पैदावार बढती जाती हैं. क्योंकि पौधों की कटाई के बाद इसके पौधों से अधिक मात्रा में नए प्ररोह निकलते हैं. जिससे उपज में वृद्धि होती है. इसके पौधों की कटाई करते वक्त हमेशा ध्यान रखे की पौधों की कटाई जमीन की सतह से 10 से 12 सेंटीमीटर ऊपर से करनी चाहिए. ऐसा करने से पौधे में नए प्ररोह अच्छे से निकलते हैं. और पौधा अच्छे से विकास करता है.
पैदावार और लाभ
लेमन ग्रास की अलग अलग प्रजातियों की किस्मों से हर साल एक हेक्टेयर से औसतन 100 टन के आसपास हरी घास की पैदावार मिलती है. जिनको सूखाकर आसवन विधि से साल भर में लगभग 500 किलो के आसपास तेल प्राप्त होता है. जिसका बाज़ार भाव 1200 रूपये प्रति किलो के आसपास पाया जाता है. जिससे किसान भाइयों की एक साल में एक हेक्टेयर से शुद्ध आय 3 से 4 लाख तक की हो जाती है.
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