खरबूजे की खेती कैसे करें – पूरी जानकारी

खरबूजे की खेती नगदी फसल के रूप में की जाती है. खरबूजे की गिनती कद्दू वर्गीय फसलों में की जाता है. इसके पौधे लता के रूप में फैल कर अपना विकास करते हैं. खरबूज के फल का इस्तेमाल खाने में किया जाता है जो बड़ा स्वादिष्ट होता है. खाने में इसे जूस के रूप में और सीधा सलाद के रूप में खाया जाता है. गर्मी के मौसम में इसे खाना मानव शरीर के लिए बहुत लाभदायक होता है. और इसके बीजों का उपयोग मिठाइयों में किया जाता हैं.

खरबूजे की खेती

खरबूजे की खेती के लिए उष्ण और आद्र जलवायु की जरूरत होती है. इसलिए इसे बारिश के मौसम से पहले उगाया जाता हैं. भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, हरियाणा, बिहार और मध्य प्रदेश में की जाती है. खरबूजे के पौधे को विकास करने के लिए गर्मी के मौसम की जरूरत होती है. इसके पौधों को बारिश की आवश्यकता सामान्य रूप से होती है. इसकी खेती कम खर्च और समय में अधिक उत्पादन देती हैं. जिस कारण खरबूजे की खेती किसानों के लिए लाभकारी मानी जाती है.

अगर आप भी इसकी खेती कर अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

खरबूजे की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि की जरूरत होती हैं. लेकिन अधिक उत्पादन लेने के लिए इसे हल्की रेतीली बलूई दोमट मिट्टी में उगाना चाहिए. जल भराव वाली भूमि इसकी खेती के लिए उपयोगी नही मानी जाती. क्योंकि इससे इसके पौधे और फल दोनों को नुकसान पहुँचता हैं. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

खरबूजे की खेती जायद के मौसम में की जाती है. इस दौरान इसके पौधे को गर्म और आद्र मौसम की जरूरत होती है. गर्मी के मौसम में पौधों में पानी की आपूर्ति रखने पर पौधे अच्छे से विकास करते हैं. सर्दी का मौसम इसकी खेती के लिए उपयुक्त नही माना जाता. बारिश का मौसम इसकी खेती के लिए उपयुक्त होता है. लेकिन पौधे पर फूल और फल बनने के दौरान अधिक बारिश नही होनी चाहिए. इस दौरान अधिक बारिश होने से इसकी पैदावार खराब हो जाती है. जबकि फल पकने के दौरान गर्म मौसम में नमी युक्त हवाओं के चलने से फल में मिठास का गुण बढ़ जाता है.

खरबूजे के बीजों को शुरुआत में अंकुरित होने के लिए 25 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. उसके बाद इसके पौधे 35 से 40 डिग्री के तक के तापमान पर आसानी से विकास कर लेते हैं. लेकिन उत्तम पैदावार के लिए 25 से 30 डिग्री के बीच का तापमान उपयुक्त माना जाता है.

उन्नत किस्में

खरबूजे की कई उन्नत किस्में मौजूद हैं. जिन्हें अलग अलग समय पर पैदावार लेने के लिए उगाया जाता हैं.

पंजाब सुनहरी

खरबूजे की इस किस्म को पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना ने तैयार किया है. खरबूजे की इस किस्म को अगेती पैदावार लेने के लिए लगाया जाता है. जिसका फल बाहर से हल्का भूरा और जालीदार दिखाई देता हैं. जबकि अंदर से हल्का नारंगी रंग का होता है. इस किस्म के फलों में गूदे की मात्रा ज्यादा पाई जाती है. इसका स्वाद काफी मीठा होता है. इस किस्म के फल रोपाई के लगभग 115 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 250 किवंटल के आसपास पाई जाती हैं.

हिसार मधुर

खरबूजे की इस किस्म को अगेती फसल के रूप में उगाया जाता हैं. जिसके फल ढाई महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं. खरबूजे की इस किस्म को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार ने तैयार किया है. जिसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 200 से 250 किवंटल के बीच पाया जाता है. इस किस्म के फलों का छिलका पतला होता हैं. जिस पर धारियां बनी हुई होती है. इसके फलों का रंग बाहर से लाल दिखाई देता है. जबकि अंदर से हल्का नारंगी होता है.

एम.एच.वाई. 3

खरबूजे की ये एक संकर किस्म हैं. जिसको कृषि अनुसंधान केंद्र दुर्गापुरा, जयपुर ने दुर्गापुरा मधु और पूसा मधुरस के संकरण से तैयार किया हैं. इस किस्म को मध्यम समय में पैदावार देने के लिए तैयार किया गया हैं. इस किस्म के पौधे रोपाई के तीन महीने बाद पैदावार देते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 200 किवंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के फल चपटे गोल और हल्के हरे-पीले रंग के दिखाई देते हैं. जिनका गूदा अंदर से हल्के हरे रंग का होता है. इस किस्म के फल बाकी कई किस्मों से ज्यादा मीठे होते हैं. इसके फलों में मिठास की मात्रा 16 प्रतिशत तक पाई जाती है.

मृदुला

खरबूजे की इस किस्म को मध्य भारत में अधिक उगाया जाता हैं. इस किस्म के फल बाहर से हल्के पीले दिखाई देते हैं. जिनमें गुदे की मात्रा ज्यादा और बीज कम पाए जाते हैं. इस किस्म के फल थोड़े लम्बे अंडाकार दिखाई देते हैं. इस किस्म के फलों में मिठास की मात्रा कम पाई जाती है. इस किस्म के पौधे पर फूल खिलने के एक महीने बाद फल पकना शुरू हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 250 किवंटल के आसपास पाया जाता है.

सागर 60 एफ 1

तरबूजे की ये एक संकर किस्म है. जिसको गुजरात में अधिक उगाया जाता हैं. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग तीन महीने बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. इस किस्म के फलों का छिलका काफी पतला होता है. इस किस्म के फलों पर धारियां दिखाई देती है. इसके फलों का बाहरी रंग ज्यादातर हरा पीला दिखाई देता हैं. इस किस्म के फल स्वाद में काफी मीठे होते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 230 से 270 किवंटल के बीच पाया जाता है.

पूसा शरबती

खरबूजे की ये एक संकर किस्म है. जिसको भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने एक अमेरिकन किस्म के साथ संकरण कर तैयार किया है. खरबूजे की इस किस्म को अगेती पैदावार लेने के लिए उगाया जाता है. इस किस्म को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में नदी तटीय जगहों पर उगाया जाता है. इस किस्म के फलों पर हरी धारियां बनी होती है. इस किस्म के फलों का छिलका मोटा होता है. इसके फलों में गुदे की मात्रा ज्यादा और बीज की मात्रा कम पाई जाती हैं. इस किस्म के फलों में मिठास की मात्रा बाकी किस्मों की तरह सामान्य पाई जाती हैं.

अर्का राजहंस

उन्नत किस्म का खरबूज

खरबूजे की इस किस्म को अगेती पैदावार लेने के लिए भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरु, कर्नाटक के द्वारा तैयार किया गया हैं. इस किस्म के फलों को दूर तक आसानी से ले जाया जा सकता है. क्योंकि इसके फलों का गुदा ठोस होता है. इसके गुदे का रंग सफ़ेद दिखाई देता है. इस किस्म के फलों पर चूर्ण फफूंदी का रोग काफी कम देखने को मिलता है. इसके फल गोल अंडाकार दिखाई देते हैं. जिनमें मिठास की मात्रा ज्यादा पाई जाती है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 260 किवंटल के आसपास पाया जाता है.

हरा मधु

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा तैयार खरबूजे की इस किस्म को पछेती पैदावार लेने के लिए उगाया जाता है. इस किस्म के फलों पर हरे और सफ़ेद रंग की धारियां बनी होती हैं. इस किस्म के फलों का गुदा भी हरे रंग का पाया जाता हैं. इसके गुदे में मिठास की मात्रा अधिक पाई जाती है. इस किस्म के फलों में चूर्णित आसीता और मृदुरोमिल आसिता का रोग काफी कम देखने को मिलता है. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 200 किवंटल के आसपास पाया जाता है.

इनके अलावा और भी काफी किस्में हैं, जिन्हें किसान भाई अलग अलग समय पर उत्तम पैदावार लेने के लिए उगाते हैं. जिनमें पूसा रसराज, नरेंद्र खरबूजा 1, एम. एच. 10, दुर्गापुरा मधु, एम. एच. वाई. 5, हिसार मधुर सोना, एम एच 51, अर्को जीत, स्वर्ण, पूसा मधुरस, पंजाब एम. 3, एम- 4, पंजाब हाइब्रिड और आर. एन. 50 जैसी काफी किस्में मौजूद हैं.

खेत की तैयारी

खरबूजे की खेती के लिए मिट्टी का साफ़ और भुरभुरी होना जरूरी है. इसकी खेती के लिए शुरुआत में खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए. उसके बाद खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से दो बार गहरी जुताई कर खेत को कुछ दिन के लिए खुला छोड़ दें. खेत की गहरी जुताई के लिए पलाऊ या तवे वाले हलों का उपयोग करें.

उसके बाद फिर से कल्टीवेटर चलाकर खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दें. उसके बाद रोटावेटर चलाकर मिट्टी में मौजूद सभी प्रकार के ढेलों को ख़तम कर मिट्टी को भुरभुरा बना लें. मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद खेत में पाटा चलाकर भूमि को समतल बना लें. ताकि अधिक बारिश के वक्त खेत में जल भराव ना हो पायें. उसके बाद फसल की रोपाई के हिसाब से उचित आकार की क्यारियां तैयार कर ली जाती है.

खरबूजे की रोपाई समतल भूमि में दो तरह से समतल भूमि के ऊपर और जमीन में नाली खोदकर की जाती है. समतल भूमि पर इसकी खेती करने के लिए शुरुआत में भूमि की सतह पर 10 से 15 फिट की दूरी रखते हुए धोरेनुमा क्यारी बना दें. जबकि जमीन में नाली बनाकर खेती करने के लिए जमीन में एक से डेढ़ फिट चौड़ाई और आधा फिट गहराई की नाली तैयार की जाती है. उसके बाद इन क्यारियों और नालीयों में उचित मात्रा में जैविक खाद और रासायनिक उर्वरक डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. क्यारी और नाली बनाने की ये प्रक्रिया खेतों में बीज रोपाई के लगभग 20 दिन पहले की जाती हैं.

बीज की मात्रा और उपचार

खरबूजे की प्रति हेक्टेयर खेती में सामान्य और सघन बुवाई के लिए एक से डेढ़ किलो बीज की जरूरत होती हैं. इसके बीजों की रोपाई से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए. इसके बीजों को उपचारित करने के लिए कैप्टान या थिराम दवा का इस्तेमाल करना चाहिए. बीजों को उपचारित करने से उनमें शुरूआती रोग नही लग पाते और बीजों का अंकुरण भी अच्छे से होता हैं.

बीज रोपाई का तरीका और टाइम

खरबूजे की खेती बीज और पौध दोनों तरीके से की जा सकती हैं. इसकी पौध तैयार कर उगाना काफी कठिन होता है. इसलिए आम किसान इसे बीज के माध्यम से ही उगाते हैं. बीज के माध्यम से उगाने के दौरान इन्हें खेत में तैयार की गई धोरेनुमा क्यारियों और नालियों में दोनों तरफ लगाया जाता है. इस दौरान बीजों के बीच दो फिट के आसपास दूरी होनी चाहिए. एक जगह पर दो बीज का रोपण करना चाहिए. बीज की रोपाई के दौरान उन्हें दो से तीन सेंटीमीटर की गहराई में लगाना चाहिए.

रोपाई का तरीका

इसके अलावा जो किसान भाई इसकी खेती टपक सिंचाई विधि से करना चाहता है, उसे इसे खेत में समतल से ऊपर उठी क्यारियां बनाकर जिगजैग तरीके से लगाना चाहिए. इस तरीके से रोपाई के दौरान इसकी बेल को खेत में बॉस की रोपाई कर रस्सियों के सहारे हवा में फैलने दिया जाता हैं.

खरबूजे के पौधों की रोपाई अलग अलग जगहों के मौसम के आधार पर की जाती है. मैदानी भागों में इसके पौधों की रोपाई फरवरी माह में करना अच्छा होता है. जबकि पहाड़ी क्षेत्र जहां बर्फ अधिक पड़ती वहां किसान भाई इसे अप्रैल और मई माह में आसानी से उगा सकते हैं. जबकि नदी तटीय इलाकों में इसकी रोपाई अक्टूबर माह में की जानी चाहिए.

पौधों की सिंचाई

खरबूजे के पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है. इसके पौधों की पहली सिंचाई बीज रोपाई के तुरंत बाद कर देनी चाहिए. उसके बाद बीजों के अंकुरण तक खेत में नमी बनाए रखने के लिए हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए. पौधे के अंकुरण के बाद उन्हें विकास करने के लिए नमी की जरूरत होती है. इसलिए पौधों के विकास के दौरान उन्हें सप्ताह में एक बार पानी जरुर देना चाहिए. और जब पौधे पर फल पूरी तरह से बड़े आकार में बन जाए तब उन्हें पानी देना बंद कर देना चाहिए. इससे फल अच्छे से पकता है और फलों में मिठास का गुण भी अधिक बनता हैं.

नदी किनारे वाले भागों में खेती करने के दौरान इसके पौधों को पानी की जरूरत नही होती. क्योंकि नदी किनारे इसकी खेती करने से इसके पौधे की जड़ें जमीन से आसानी से पानी शोक लेती हैं. लेकिन इस दौरान पौधों में पानी की कमी होने पर उन्हें आवश्यकता के अनुसार पानी देना चाहिए.

उर्वरक की मात्रा

खरबूजे के पौधों को विकास करने के लिए उर्वरक की जरूरत बाकी कद्दू वर्गीय फसलों की तरह ही होती हैं. इसके लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त लगभग 200 से 250 किवंटल पूरानी गोबर की खाद को जैविक उर्वरक के रूप में प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में तैयार की हुई नालियों या धोरेनुमा क्यारियों में डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दें.

इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में लगभग 30 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस और 40 किलो पोटाश की मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से नालियों में डालकर मिट्टी में मिला देना चाहिए. इसके अलावा पौधों पर फूल खिलने से 15 दिन पहले लगभग 20 किलो यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से पौधों की सिंचाई के वक्त उन्हें देना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण

खरबूजे की खेती में खरपतवार नियंत्रण काफी अहम होता है. क्योंकि इसके पौधे भूमि की सतह पर फैलकर अपना विकास करते हैं. जिससे खेत में खरपतवार रहने पर इसके पौधे और फल दोनों को नुक्सान पहुँचता हैं. इसकी खेती में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से करना अच्छा होता है.

इसके लिए शुरुआत में पौधों की रोपाई के लगभग 15 से 20 बाद उनकी हल्की नीलाई गुड़ाई कर देनी चाहिए. खरबूज के पौधे को दो से तीन गुड़ाई की जरूरत होती है. इसके पौधे की पहली गुड़ाई के बाद बाकी की गुड़ाई 10 दिन के अंतराल में कर देनी चाहिए. इसके अलावा जो किसान भाई रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण करना चाहता है. वो बीज रोपाई से पहले ब्यूटाक्लोर की उचित मात्रा का छिडकाव जमीन में कर दें. इससे खेत में खरपतवार जन्म ही नही ले पाती हैं.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

खरबूजे के पौधे में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जिनकी उचित समय पर रोकथाम कर फसल को खराब होने से बचाया जा सकता है.

पत्ती झुलसा

रोग लगा पौधा

खरबूजे की खेती में पत्ती झुलसा का रोग फफूंद की वजह से फैलता हैं. पौधों पर इस रोग का प्रभाव मौसम में परिवर्तन के दौरान दिखाई देता है. इस रोग की शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर छोटे, गोल, भूरे पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. जिनका आकार रोग बढ़ने की स्थिति में बढ़ जाता है. और पत्तियां सुखी हुई दिखाई देने लगती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए बीजों की रोपाई के दौरान कार्बेन्डाजिम की 2 ग्राम मात्रा को एक किलो से मिलाकर बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए. इसके अलावा मैंकोजेब या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर 10 से 15 दिन के अंतराल में करना चाहिए.

चेपा

खरबूजे के पौधों पर लगने वाला ये एक कीट रोग है. जिसका प्रभाव अधिक उमस और गर्मी के वक्त ज्यादा देखने को मिलता है. इस रोग के कीट पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर उन्हें नष्ट कर देते हैं. इस रोग के के कीट हरे पीले और काले रंग के दिखाई देते हैं. जिनका आकार छोटा होता है और ये पौधों पर झुंड के रूप में दिखाई देते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर थाइमैथोक्सम की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

लाल कद्‌द भृंग

लाल कद्‌द भृंग के कीट नारंगी रंग के दिखाई देते हैं. जिन पर काले और सफ़ेद रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. इस रोग के कीट का लार्वा पौधे के तने और जड़ों को ज्यादा नुक्सान पहुँचाता है. जबकि इसके कीट पौधे की पत्तियों को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाता हैं. इस रोग के लगने पर पौधे पर एमामेक्टिन या कार्बेरिल का छिडकाव करना चाहिए. जबकि मिट्टी में पाए जाने वाले इसके लार्वा की रोकथाम के लिए क्लोरपायरीफॉस की उचित मात्रा को सिंचाई के साथ पौधों को देना चाहिए.

सफेद मक्खी

सफेद मक्खी का रोग ज्यादातर कद्दू वर्गीय फसल पर देखने को मिलता है. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों की निचली सतह पर रहते हुए उनका रस चुस्ती है. जिससे पत्तियां पीली होकर नष्ट हो जाती हैं. और पौधा विकास करना बंद कर देता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर इमिडाक्लोप्रिड या एन्डोसल्फान की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए

पत्ती सुरंग

इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियों में सुरंग नुमा आकृति दिखाई देती हैं. जिनका रंग हल्का भूरा और पारदर्शी दिखाई देता हैं. रोग बढ़ने से पर सम्पूर्ण पत्तियां पारदर्शी दिखाई देने लगती है. जिससे पौधा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देता है. और पौधे का विकास रुक जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एबामेक्टिन की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

चूर्णिल आसिता

खरबूजे के पौधों पर लगने वाला ये रोग फफूंद की वजह से फैलता हैं. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधे की पत्तियों पर सफ़ेद रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. रोग के बढ़ने पर पौधों की पत्तियों पर सफ़ेद रंग का पाउडर जमा हो जाता है. जिससे पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर घुलनशील सल्फर की 20 ग्राम मात्रा को लगभग 10 लीटर पानी में मिलाकर पौधों में 10 दिनों के अंतराल में दो से तीन बार छिडकना चाहिए. इसके अलावा हेक्साकोनाजोल या माईक्लोबूटानिल की उचित मात्रा का छिडकाव भी अच्छा होता हैं.

सुंडी

खरबूजे की खेती में सुंडी रोग का असर पौधों की पत्तियों पर दिखाई देता हैं. पौधों पर लगने वाला ये एक कीट रोग हैं. जिसकी सुंडी का रंग हरा पीला दिखाई देता है. इस रोग की सुंडी धीरे धीरे पौधे की पत्तियों को खाकर उन्हें नष्ट कर देती है. जिससे पौधा अच्छे से वृद्धि नही कर पाता हैं. इसकी रोकथाम के लिए पौधे पर क्लोरोपाइरीफास का छिडकाव करना चाहिए.

फल विगलन

खरबूज के पौधों में लगने वाले फल विगलन रोग को फल सडन के नाम से भी जाना जाता है. खरबूज की खेती में फल विगलन रोग का प्रभाव इसके फलों पर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने से खरबूज के फल सड़कर खराब हो जाते हैं. पौधों पर ये रोग भूमि में अधिक नमी के बने रहने पर दिखाई देता है. इसके अलावा फल एक ही जगह से भूमि से लगे रहने पर भी फैलता है. इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में जल भराव ना होने दे. इसके अलावा दो से तीन दिन के अंतराल में फलों की स्थिति को बदलते रहना चाहिए.

फलों की तुड़ाई

खरबूजे की विभिन्न किस्मों के पौधे बीज रोपाई के लगभग 80 से 90 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके पके हुए फल का पता फलों के रंग, आकार और डंठल को देखकर लगाया जा सकता है. इसके फल के पकने के बाद उसके डंठल के चारों तरफ जगह दिखाई देने लगती है और डंठल सूखने लग जाता है. इसके अलावा पकने के बाद इसके फलों में एक ख़ास तरह की खुशबू आने लगती हैं. इस दौरान इसके फलों की तुड़ाई कर लेनी चाहिए. नज़दीक बाज़ार में बेचने के लिए इसके पूर्ण पके फलों की तुड़ाई करनी चाहिये. जबकि ज्यादा दूरी पर फलों को भेजने के लिए इसके कम पके फलों की तुड़ाई कर अलग कर लेना चाहिए. फलों की तुड़ाई करने के बाद उन्हें किसी ठंडी जगह में रख कर उनका कुछ दिन भंडारण भी किया जा सकता है.

पैदावार और लाभ

खरबूज की विभिन्न किस्मों के पौधों की प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 200 से 250 किवंटल के आसपास पाई जाती हैं. जबकि इसके फलों का बाज़ार भाव 20 रुपये प्रति किलो के आसपास पाया जाता हैं. जिस हिसाब से किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से चार लाख तक की कमाई आसानी से कर सकता हैं.

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